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Manmohan Dheer
चिंतित क्यूँ हो नैराश्य पर प्रहार संभव है घटाटोप अंधेरे का भी उपसंहार संभव है . तुम प्रकृति के सौंदर्य के अनुगामी तो हो कुटिल दृष्टि का भी भव्य श्रंगार संभव है . निकल सूक्ष्म कूपों से बाहर भी देखिये गूढ़ विचारों से सस्ता व्यापार संभव है . विषम विशाल भले हो भय आवश्यक नही सरलता से भी जीवन का विस्तार संभव है . धीर उनसे भी बात करेगा जो मौन हैं वो जानता है कि सबसे प्यार संभव है . उपसंहार
आशीष गौड़
हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना! क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है! कुरुवंशज की नीति वहां पर मौन खड़ी थी, भरी सभा में जब सन्नाटे चीख रहे थे! बंधित लाये रंगमंच पर रजस्वला को, दुःशासन की जांघें व्याकुल दीख रहे थे! अपितु हमारा प्रश्न दूसरा है इति से अब, विध्वंसों में तुम क्यों दक्ष बने फिरते हो! प्रश्नों के उत्तर से चिन्तित होने वालों, अंधियारों में फिर क्यों यक्ष बने फिरते हो! सब ग्रंथों के उपसंहार में, नारी क्यों भयभीत मिला करती है! हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना, क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है! महीपति तब भी चक्षुविहीन हुआ करते थे, द्वापर में भी छल से काफी काम हुए थे, आलौकिक थी त्रेता की वह प्रेम कहानी, तुलसी की रामायण में संग्राम हुए थे! योजन नापे रघुनंदन ने सेतु बनाकर, संयोजकता के बल पर वह सफल हुए थे! दम्भ में उलझे नृपों को मही में पिघलाकर, पर महिजा को पाने में वह विफल हुए थे! आसक्ति हमारी माता सिय से पूछ रही है! अग्निपरीक्षा देकर भी क्या प्रीत मिला करती है! हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना, क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है! आशीष गौड़ हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना! क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है! कुरुवंशज की नीति वहां पर मौन खड़ी थी, भरी सभा में जब स
DR. SANJU TRIPATHI
कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें। 👇👇👇👇 इंद्र के अंशावतार यदुकुल वंश के पांडव और कुंती के तीसरे पुत्र थे अर्जुन । द्रोणाचार्य के शिष्य धनुर्विद्या में पारंगत और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} समस्त महापुराणों में 'ब्रह्माण्ड पुराण' अन्तिम पुराण होते हुए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। समस्त ब्रह्माण्ड का सांगोपांग वर्णन इसमें प्राप्त होने के कारण ही इसे यह नाम दिया गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। विद्वानों ने 'ब्रह्माण्ड पुराण' को वेदों के समान माना है। छन्द शास्त्र की दृष्टि से भी यह उच्च कोटि का पुराण है। इस पुराण में वैदर्भी शैली का जगह-जगह प्रयोग हुआ है। उस शैली का प्रभाव प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास की रचनाओं में देखा जा सकता है। यह पुराण 'पूर्व', 'मध्य' और 'उत्तर'- तीन भागों में विभक्त है। पूर्व भाग में प्रक्रिया और अनुषंग नामक दो पाद हैं। मध्य भाग उपोद्घात पाद के रूप में है जबकि उत्तर भाग उपसंहार पाद प्रस्तुत करता है। इस पुराण में लगभग बारह हज़ार श्लोक और एक सौ छप्पन अध्याय हैं। पूर्व भाग :- पूर्व भाग में मुख्य रूप से नैमिषीयोपाख्यान, हिरण्यगर्भ-प्रादुर्भाव, देव-ऋषि की सृष्टि, कल्प, मन्वन्तर तथा कृतयुगादि के परिणाम, रुद्र सर्ग, अग्नि सर्ग, दक्ष तथा शंकर का परस्पर आरोप-प्रत्यारोप और शाप, प्रियव्रत वंश, भुवनकोश, गंगावतरण तथा खगोल वर्णन में सूर्य आदि ग्रहों, नक्षत्रों, ताराओं एवं आकाशीय पिण्डों का विस्तार से विवेचन किया गया है। इस भाग में समुद्र मंथन, विष्णु द्वारा लिंगोत्पत्ति आख्यान, मन्त्रों के विविध भेद, वेद की शाखाएं और मन्वन्तरोपाख्यान का उल्लेख भी किया गया है। मध्य भाग :- मध्य भाग में श्राद्ध और पिण्ड दान सम्बन्धी विषयों का विस्तार के साथ वर्णन है। साथ ही परशुराम चरित्र की विस्तृत कथा, राजा सगर की वंश परम्परा, भगीरथ द्वारा गंगा की उपासना, शिवोपासना, गंगा को पृथ्वी पर लाने का व्यापक प्रसंग तथा सूर्य एवं चन्द्र वंश के राजाओं का चरित्र वर्णन प्राप्त होता है। उत्तर भाग :- उत्तर भाग में भावी मन्वन्तरों का विवेचन, त्रिपुर सुन्दरी के प्रसिद्ध आख्यान जिसे 'ललितोपाख्यान' कहा जाता है, का वर्णन, भंडासुर उद्भव कथा और उसके वंश के विनाश का वृत्तान्त आदि हैं। 'ब्रह्माण्ड पुराण' और 'वायु पुराण' में अत्यधिक समानता प्राप्त होती है। इसलिए 'वायु पुराण' को महापुराणों में स्थान प्राप्त नहीं है। 'ब्रह्माण्ड पुराण' का उपदेष्टा प्रजापति ब्रह्मा को माना जाता है। इस पुराण को पाप नाशक, पुण्य प्रदान करने वाला और सर्वाधिक पवित्र माना गया है। यह यश, आयु और श्रीवृद्धि करने वाला पुराण है। इसमें धर्म, सदाचार, नीति, पूजा-उपासना और ज्ञान-विज्ञान की महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है। इस पुराण के प्रारम्भ में बताया गया है कि गुरु अपना श्रेष्ठ ज्ञान सर्वप्रथम अपने सबसे योग्य शिष्य को देता है। यथा-ब्रह्मा ने यह ज्ञान वसिष्ठ को, वसिष्ठ ने अपने पौत्र पराशर को, पराशर ने जातुकर्ण्य ऋषि को, जातुकर्ण्य ने द्वैपायन को, द्वैपायन ऋषि ने इस पुराण को ज्ञान अपने पांच शिष्यों- जैमिनि, सुमन्तु, वैशम्पायन, पेलव और लोमहर्षण को दिया। लोमहर्षण सूत जी ने इसे भगवान वेदव्यास से सुना। फिर नैमिषारण्य में एकत्रित ऋषि-मुनियों को सूत जी ने इस पुराण की कथा सुनाई। पुराणों के विविध पांचों लक्षण 'ब्रह्माण्ड पुराण' में उपलब्ध होते हैं। कहा जाता है कि इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय प्राचीन भारतीय ऋषि जावा द्वीप वर्तमान में इण्डोनेशिया लेकर गए थे। इस पुराण का अनुवाद वहां के प्राचीन कवि-भाषा में किया गया था जो आज भी उपलब्ध है। 'ब्रह्माण्ड पुराण' में भारतवर्ष का वर्णन करते हुए पुराणकार इसे 'कर्मभूमि' कहकर सम्बोधित करता है। यह कर्मभूमि भागीरथी गंगा के उद्गम स्थल से कन्याकुमारी तक फैली हुई है, जिसका विस्तार नौ हज़ार योजन का है। इसके पूर्व में किरात जाति और पश्चिम में म्लेच्छ यवनों का वास है। मध्य भाग में चारों वर्णों के लोग रहते हैं। इसके सात पर्वत हैं। गंगा, सिन्धु, सरस्वती, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी आदि सैकड़ों पावन नदियां हैं। यह देश कुरु, पांचाल, कलिंग, मगध, शाल्व, कौशल, केरल, सौराष्ट्र आदि अनेकानेक जनपदों में विभाजित है। यह आर्यों की ऋषिभूमि है। काल गणना का भी इस पुराण में उल्लेख है। इसके अलावा चारों युगों का वर्णन भी इसमें किया गया है। इसके पश्चात परशुराम अवतार की कथा विस्तार से दी गई है। राजवंशों का वर्णन भी अत्यन्त रोचक है। राजाओं के गुणों-अवगुणों का निष्पक्ष रूप से विवेचन किया गया है। राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव का चरित्र दृढ़ संकल्प और घोर संघर्ष द्वारा सफलता प्राप्त करने का दिग्दर्शन कराता है। गंगावतरण की कथा श्रम और विजय की अनुपम गाथा है। कश्यप, पुलस्त्य, अत्रि, पराशर आदि ऋषियों का प्रसंग भी अत्यन्त रोचक है। विश्वामित्र और वसिष्ठ के उपाख्यान काफ़ी रोचक तथा शिक्षाप्रद हैं। (राव साहब एन एस यादव) 'ब्रह्माण्ड पुराण' में चोरी करने को महापाप बताया गया है। ©N S Yadav GoldMine #SunSet {Bolo Ji Radhey Radhey} समस्त महापुराणों में 'ब्रह्माण्ड पुराण' अन्तिम पुराण होते हुए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। समस्त ब्रह्माण्ड का
AK__Alfaaz..
अपने, जीवन की प्रस्तावना, लिखकर, अपनी श्वाँसों के, उपसंहार तलाशती वो, मृत्यु.., पहला व अन्तिम, निबंध है उसके जीवन का, उसके.., जीवन की पुस्तक का, पहला पन्ना कोरा है, और..दूसरे पन्ने पर लिखी है, उसके श्वाँसों की विषय सूची, उसकी अश्रुओं की स्याही से, कुल ग्यारह.., पीर अनुसूचियों में, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #आर्तनाद_एकादश अपने, जीवन की प्रस्तावना, लिखकर, अपनी श्वाँसों के,
Krish Vj
शीर्षक :- एहसास की दुनिया "कोरा काग़ज़" काग़ज की नाव बनाकर, चलना मैंने जल पर सीख लिया कोरा काग़ज़ संग एहसास लेखन के, यूँ ढलना सीख लिया पूर्ण निबंध पढ़िए.. अनुशीर्षक मेें 📖 🖋️ अंतिम चरण :- शीर्षक :- एहसास की दुनिया "कोरा काग़ज़" निबंध का शीर्षक जो उसकी आत्मा है, अर्थात आत्मा बिना जीवन की कल्पना असम्भव
Insprational Qoute
कोरोना वायरस पर निबंध प्रस्तावना:-कोरोना एक वायरस हैं जो कि covid-19 के नाम से जाना जाता है। 19 से अभिप्राय हैं कि यह विश्व मे दिसम्बर माह 2019 में आया था।विश्व स
CM Chaitanyaa
"श्रीराम चरितावली" प्रस्तावना : जिनका मुख-मंडल देख, अश्रु जल छलके अविराम। वे हैं नील मणि की भाँति, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।। दशरथ के नंदन बड़े अद्भुत,
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नामुमकिन सा लगता है एक तेरी विशेषताओं की सम्पूर्णता को बता पाना, शब्दों का वर्णनाकार अक्सर कम पढ़ जाता है, 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें 🙏 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 आखिरी व पांचवा चरण निबंध लेखन शीर्षक-कोरा कागज की विशेषताएँ 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 1.शीर्षक 🌼🌼🌼🌼 आज का मुख्य शीर्षक कोरा काग़ज़ मंच की विशेषताओं प
Tarot Card Reader Neha Mathur
कोरा काग़ज़ जन्मदिन महाप्रतियोगिता 2022 अंतिम चरण :- निबंध लेखन शीर्षक:- कोराकाग़ज़ की विशेषताएँ उपशीर्षक:-कोरा काग़ज़ परिवार एक अभूतपूर्व मंच प्रस्तावना:- कोरी से सोच को जो शब्दों से एहसास दे कोई खुशी लिखे तो कोई ग़म बयां कर दे, नए लफ़ज़ों को देकर कवि की सोच को पंख दे प्यार के दो मिसरों में नित नई तस्वीर उभरे, ग़ज़ल कविता से कोरा काग़ज़ परिवार का रूप सजे हंसी फुहारों से भी परिवार का हर रूप हंसे और खिले, स्वागत खुली बाहों से सबका करता यही हैं विशेषताएँ माँ सरस्वती का सदा आशीष बरसे दूं यही जन्मदिन की शुभकामनाएँ। शेष कैप्शन/अनुशीर्षक में पढ़ें।🙏🙏 कोरा काग़ज़ जन्मदिन महाप्रतियोगिता 2022 अंतिम चरण :-निबंध लेखन शीर्षक:-कोरा काग़ज़ की विशेषताएँ उपशीर्षक:-काग़ज़ परिवार एक अभूतपूर्व मंच प्