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Rameshkumar Mehra Mehra
और ना ही हया.... ©Rameshkumar Mehra Mehra # रोते बही है,जिसकी भाबनाएं सच्ची होती है,बाकी मतलब के रिश्ते रखने बालो की,आंखो में न शर्म होती है,ना आंसू,और ना हया...
# रोते बही है,जिसकी भाबनाएं सच्ची होती है,बाकी मतलब के रिश्ते रखने बालो की,आंखो में न शर्म होती है,ना आंसू,और ना हया... #Quotes
read moreshamawritesBebaak_शमीम अख्तर
White वफा ए इश्क हूं*मुखलिस वफा के साथ हूं मैं तेरे ही हिज्र में हूं,यानी अपनी अदा के साथ हूं मैं//१ *हरिम_ए_हवस भी*पशेमा है,ऐसे कैसे, के*वस्ल में भी शर्मों हया के साथ हूं मै//२ इस मुखलिसे उल्फत को मुकम्मल तो होने दे,के दौराने सफर तु खूदसे कहेगा,ये किस*फजा के साथ हूं मैं//३ मैं अपनी*अना पे आ गई तो तुझे तुझसे ही चुरा लूंगी, बारहा अपने आप में खुदसे जुदा के साथ हूं मैं//४ "शमा"की जिक्र ए खुदा वंदी,और नमाज ए इश्क यानी खुद बखुद*कदा में खुदा के साथ हूं मैं//५ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #goodnightimages वफा ए इश्क हूं*मुखलिस वफा के साथ हूं मैं, तेरे ही हिज्र में हूं,यानी अपनी अदा के साथ हूं मैं//१*शुद्ध *हरि
#goodnightimages वफा ए इश्क हूं*मुखलिस वफा के साथ हूं मैं, तेरे ही हिज्र में हूं,यानी अपनी अदा के साथ हूं मैं//१*शुद्ध *हरि #Trending #Like #shamawritesBebaak
read moremalay_28
White नज़र इक़रार करती है जुबाँ इन्कार करती है हया ने रोक रक्खा है न बोले प्यार करती है. ©malay_28 #हया
Rabindra Kumar Ram
" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम, कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो , फ़ुर्क़ते-ए-हयात अब जो भी हो सो हो , मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते. " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम, कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भ
" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम, कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भ #शायरी
read moreAnkur tiwari
White कुछ कहते होगे आफताब कुछ तुझे नूर समझते होंगे कुछ तुझे हुस्न ओ हया के नशे में मगरुर समझते होंगे देख न कितनी मिलती है तेरे किरदार से मेरी शायरी सच में 'अंजान' लोग तुझे मेरा मेहबूब समझते होंगे @अंकुर अंजान ©Ankur tiwari #कुछ कहते होगे आफताब कुछ तुझे नूर समझते होंगे कुछ तुझे हुस्न ओ हया के नशे में मगरुर समझते होंगे देख न कितनी मिलती है तेरे किरदार से मेरी श
#कुछ कहते होगे आफताब कुछ तुझे नूर समझते होंगे कुछ तुझे हुस्न ओ हया के नशे में मगरुर समझते होंगे देख न कितनी मिलती है तेरे किरदार से मेरी श
read moreManish Raaj
शर्म-ओ-हया --------------- दर्पण भी उनके चेहरे के दर्श को तरसता है ज़ुल्फ़ है की उनके चेहरे पर ही आ कर बिखरता है इस एक चेहरे को देख कर कई चहरा सँवरता है शर्म-ओ-हया के लिबास में जब उनका चेहरा निखरता है मनीष राज ©Manish Raaj #शर्म-ओ-हया
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
nojoto बूस्ट के बिना भी वायरल करिए मेरी मेहनतों को तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसितां की तरह//१ *मिलन*हर
read moreshamawritesBebaak_शमीम अख्तर
तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसिता की तरह//१*मिलन*हर्ष *जानलेवा मिटा न डाले कहीं *जुल्मत्तों के सन्नाटे, मेरी हयात में आजा महरबा की तरह/२ *घोर अन्धकार *शाश्वत मेरे फ़सानो के किस्से बहुत रसीले है,के लोग पूछते रहते है,लापता की तरह//३ ये*वहश्तो के तकाजे यहीं पे रहने दो,क्यूं पूछते हो मिरा हाल राजदां की तरह//४ कई दफा तेरे*हुजरे से होके गुजरें है,तेरे दीदार में *खांबिदा की तरह//५ *इबादतगाह *निद्रालु दशा तुम्हारे साथ तो सेहरा में भी मेरे हमदम,ये खिंजा भी मुझे लगती है *गुलसिता की तरह/६ *पुष्पाच्छादित चमन तेरी मसर्रते*आराइयां कहाँ"अख्तर"हो*मयस्सरे विसाल*नौख़ेज़ दास्ता की तरह//७ *संवारने वाला *मिलन*उपलब्ध *नया उत्पन्न/नया नया #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #Nojoto तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसिता की तरह//१ *मिलन*हर्ष*जानलेवा मिटा न डाले कहीं *जुल्मत्तों के स
तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसिता की तरह//१ *मिलन*हर्ष*जानलेवा मिटा न डाले कहीं *जुल्मत्तों के स #shamawritesBebaak
read moreRabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** फ़ुर्क़त *** " आज इक दफा उस से मुलाकात हुई , फ़ुर्क़ते हयाते-ए-ज़िक्र अब जो भी हो सो हो , मुहब्बत में बचे शिकवे शिकायतें आज भी हैं , आज उसे इक दफा गले लगाने को दिल कर रहा हैं , फकत अंजुमन कुछ भी तो कुछ बात बने , फ़ुर्क़त में उसे दाटने को जि कर रहा है , क्या समझाये की अब मुहब्बत नहीं हैं तुझसे , फकत तुझे महज़ इक याद की तरह रखी , तेरी तस्वीर आज भी इक पास रखी हैं , फिर जो कहीं मुहब्बत और नफ़रत की गुंजाइश हो तो याद करना , आखिर हम रक़ीबों से दिल लगा के आखिर करते क्या . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** फ़ुर्क़त *** " आज इक दफा उस से मुलाकात हुई , फ़ुर्क़ते हयाते-ए-ज़िक्र अब जो भी हो सो हो , मुहब्बत में बचे शिकवे शिकायतें
Rabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** नुमाइश *** " क्यों ना तेरा तलबगार हो जाऊं कहीं मैं , मैं मुख्तलिफ मुहब्बत हूं इस दस्तूर से , क्यों ना तेरा बार बार मुसलसल हो जाऊं मैं , खुद को तेरी आदतों में कितना मशग़ूल किया जाये , तुझमें में मसरुफ़ कहीं जाऊं मैं , बात जो भी फिर कहा तक जार बेजार , तेरे ज़िक्र की नुमाइश की पेशकश की जाये , लो ज़रा सी इबादत कर लूं भी मैं , इश्क़ की बात हैं मुहब्बत कर लूं मैं , तेरे ख्यालों की नुमाइश क्या ना करता मैं , ज़र्फ़ तेरी जुस्तजू तेरी आरज़ू तेरी , फिर इस हिज़्र में फिर किस की ख़्वाहिश करता मैं , उल्फते-ए-हयात एहसासों को अब जिना आ रहा मुझे , जो तेरे ख्यालों के तसव्वुर से रफ़ाक़त जो कर रहा हूं मै . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** नुमाइश *** " क्यों ना तेरा तलबगार हो जाऊं कहीं मैं , मैं मुख्तलिफ मुहब्बत हूं इस दस्तूर से , क्यों ना तेरा बार बार मु