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Uma Vaishnav

दोहा - प्रभाती 
**************
मधुकर गुंजन कर रहे, चिड़िया करती शोर।
सारी   बगियां   झूमती,  नाचे मन का मोर ।।

सुमन  खिले  हैं बाग में, महक उठी हर ओर।
कली कली अब खिल गई, आई  सुंदर  भोर।।

उगता सूरज कह रहा, मानव उठ अब जाग।
कब तक सोयेगा बता, कार्य राह पर भाग।।

©Uma Vaishnav #दोहा 
#प्रभाती 

#sunrays

Uma Vaishnav

प्रभाती घनाक्षरी
दिनकर दादा आये, सुबह सुहानी लाये, 
सूर्य किरण पा  कर ,जग जग  जाएगा। 

मंद  मंद  वायु  चले , शरद  हवाएँ  चले, 
आग  जला कर ज़न,  गर्माहट   पाएगा। 

डाल डाल खग बोले,नयन सभी ने खोले, 
 दिनकर  दादा  अब , लालिमा फैलाएगा।

सुंदर  सुबह आई , नई  ऊर्जा  संग  लाई, 
नव  सृजन  का  मनु ,  दीपक  जलाएगा।

©Uma Vaishnav #प्रभाती 
#घनाक्षरी 

#hills

अनुपम अनूप"भारत"

जिन्द़गी के सारे गुनाहो को कैंद रखा हैं,
इसी लिए मेरे हाथों मे एक बैग रखा हैं।
तेरे हमसफ़र बन सफर छोड़ने के बाद,
बनके खुद का साकी हाथ मे पैग रखा हैं। #प्रभाती
#अनुपम_अनूप"भारत"

Uma Vaishnav

🌻🌹प्रभाती दोहे🌹 🌻
************************

उदित सूर्य की लालिमा, सूर्य किरण सब ओर।
आशा   किरणें   साथ  में , लेकर  आई  भोर।।

प्रभात  बेला  का  सुनो, बड़ा अनोखा गान।
हरतरफ  मधुर  धुन बजे, पंछी  देते   तान।।

सुबह  सुनहरी  आ गई, लालिमा  हर  ओर।
पंछी   सुर  में  गा  रहे , नाच  रहे  हैं   मोर।।

©Uma Vaishnav #दोहा
#प्रभाती
#morning

Uma Vaishnav

प्रभाती - दोहा 
***************
नई भोर हैं आ गई, खिले पुष्प हर ओर। 
मधुकर गुंजन कर रहे, वन में नाचे मोर।। 

उषा किरण फैली हुई, सुन्दर निकली भोर।
पंछी बोले डाल पर,  शोर मचा सब  ओर।।

सुंदर  सुरम्य  भोर  हैं, पंछी   करते  शोर ।
धवल किरण फैली हुई, सुन्दर है ये भोर ।।

©Uma Vaishnav #प्रभाती 
#morning 

#Thinking

Uma Vaishnav

प्रभाती - दोहे
****''***** ***
जग जागा अब जाग जा, नैनो के पट खोल। 
मुख से हरि का नाम ले, राम का नाम बोल।। 

जब-जब हरि के नाम से, होगी  तेरी  भोर ।
अंधकार मिट जाएगा, चल प्रकाश की ओर।।

प्रातः काल में सदा ले, हरि का प्यारे नाम।
चिंता  सारी  छोड़  दे, मिटेगे दुख तमाम।।

मन को पावन कर जरा,हरिका करले जाप।
सब कुछ हरि पर छोड़ दे,मिटे ताप संताप।।

राहें मुस्किल हो भले, हरि को करले याद।
बाधा  सारी दूर  हो, मत कर व्यर्थ विवाद।।

©Uma Vaishnav #प्रभाती
#doha 

#soulmate

arya yadav

हिसाब कर ऐ जिंदगी, मंजिल कितनी दूर है 



वक़्त नही किसी के पास, बिगड़ते कई सुरु हैँ, 

                                             आर्य "अधूरा" #सुर

Mohan Somalkar

शब्दशिल्प आयोजित उपक्रम 
# सुर -तेच- छेडिता
कवि:- मोहन सोमलकर 
दिनांक:- ०७\११\२०२२


सुर तेच छेडिता 
शब्द आठवे मज
गुंफुनी शब्दमाळा 
पाठविती तु रोज !

पहाटेच्या समयी
कुहु कुहु  गाती कोकीळा
गुंज ती अभंगाची
ऐकु येई कानात दहा वेळा.!

स्पर्शून जाई बोल ते
माझ्या हळुच मग मना
स्वर तो लतादिदीचा
आठवी अलगद जुना..!

वेडाऊन जातो मीही
जर कधी ऐकु ना येई तो स्वर
मग शोधत राहतो एकलाच
रात्रंदिनी तुझा निसर्गात बहर..!

मोहन सोमलकर 
नागपुर

©Mohan Somalkar #सुर

Vikas Dhaundiyal

सुर

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बिना कुछ कहे वो 
हो रहे मशहूर है 

जान रहे है सब उनको ऐसे 
जैसे वो संगीत के 7 सुर है सुर

Kavi Kumar Ashok

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