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Sarvesh Kumar Maurya
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बात दिल में हमारे दबी रह गई । प्यास होंठो पे आकर थमी रह गई ।।१ आँख में आँसुओं की नमी रह गई ।। ज़िन्दगी में उसी की कमी रह गई ।।२ देख शैतान फिर से हुआ है खफ़ा । बाग में क्यों कली अधखिली रह गई ।३ ले गया कौन फल तोड़ कर बाग के । डालियों में ये नाजुक फली रह गई ।।४ डोर को छोड़कर जो उड़ी थी पतंग । फिर ज़मीं पर कहीं वो पड़ी रह गई ।।५ आज बरबाद ऐसे हुए हम यहाँ । पूर्वजों की ज़मीं बेचनी रह गई ।।६ कौन करता खुशामद किसी की यहाँ । कोर सबकी यहाँ पर फँसी रह गई ।।७ सो न पाया यहाँ मैं कभी रात में । नींद आँखों में मेरी धरी रह गई ।।८ प्यार जबसे हुआ है सुनो तो प्रखर । दिल हमारे अजब रोशनी रह गई ।।९ ३०/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बात दिल में हमारे दबी रह गई । प्यास होंठो पे आकर थमी रह गई ।।१
KP EDUCATION HD
KP NEWS for the same for me to get the same for ©कंवरपाल प्रजापति टेलर आवश्यकता विवरणों की खोज करने के लिए आगे पढ़ें और सुनिश्चित करें कि आप आखिरी तारीख से पहले आवेदन करते हैं। पटना उच्च न्यायालय स्टेनोग्राफर भ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- नेह विलुप्त मुझे अब दिखता , देखो चारों ओर । डरकर रहते रिश्ते सारे , लिए स्वार्थ की डोर ।। नेह विलुप्त मुझे अब दिखता ... मातु-पिता का प्रेम अनूठा , कल तक जिस संसार । वंश प्रेम में अब वह खोकर , भूले सब संस्कार ।। अब तो डरते मातु-पिता हैं , देख तनय के कोर । नेह विलुप्त मुझे अब दिखता... भेदभाव की गठरी बाँधी , औ सिकहर दी टाँग । आज वही डसते हैं देखो , बनके काले नाग ।। इस जग का रखवाला लगता , छोड़े बैठा छोर । नेह विलुप्त मुझे अब दिखता... दुनिया के इस मेले में सब , बैठे है कंगाल । दीदी जीजा साला साली , की अब बने मिसाल ।। बाकी रिश्तों में तो दिखता , छाया कलयुग घोर । नेह विलुप्त मुझे अब दिखता .. दादी नानी काकी मौसी , की किसको परवाह । नहीं किसी को भी रिश्तों में , दिखती थोड़ी चाह ।। मरघट तक है सूना-सूना , है माया का जोर । नेह विलुप्त मुझे अब दिखता ... नेह विलुप्त मुझे अब दिखता , देखो चारों ओर । डर कर रहते रिश्ते सारे ,लिए स्वार्थ की डोर ।। २२/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- नेह विलुप्त मुझे अब दिखता , देखो चारों ओर । डरकर रहते रिश्ते सारे , लिए स्वार्थ की डोर ।। नेह विलुप्त मुझे अब दिखता ... मातु-पिता का
Nisheeth pandey
#वो रात बेहया !!!! ----------- वो रात मानो ,बेहया हो गयी थी जब तुम बाल खोल कर घूर रहीं थी ... आधुनिकता में तुम्हारे शर्ट के खुले बटन नाभी के ऊपर से बाँधे शर्ट का कोर... मुझे रिझाती रहीं ... तुम्हारे होठों पर हँसी कातिल निगाहें ... वो रात बन गई थी शराब ... नहीं झेंप रहीं थी ...किसी भी बात पर अपनी अदां तुम ,मैं और वो रात कोई भी हो... मुहब्बत तन मन बेबाक सुनाती अपनी प्यास... दिल की चाहत प्यार बरसे मिटे प्यास.. इश्क़ के गीत...सरेराह गाती तुम बल्ब के घूरने पर... स्विच ऑन ऑफ करती तुम मानो 'आँख मारकर' लुभाती तुम... अपने पारदर्शी पोसाक में...इतना इतराती तुम . हाँ!बेहया सी दिख रहीं थी वो! आधुनिकता जो आज काम वासना ग्लाश में शराब शराब में घुलता बर्फ स्त्री पुरुष के हर गुण अपनाया...ये बेहयापन कैसे निभाया? दरवाज़ा बंद रहा...गैरों के लिए तो ,अपनों से भी... कभी अस्तिव बचाती थी ? धर्म पर अडिग थी हाँ! अब बेहया हो गयी थी आधुनिकता के तलब में वो! जो इरादों से अपनी आधुनिकता की पक्की थी सच में...वो रात ज़िद्दी थी... अब वो भीड़ में भी गम्भीर नही ...भीड़ से लड़ने की हुनर रखती अपनी हर मजबूरी से... हर-हाला लड़ी थी हर तूफ़ान जन्म देकर उड़ जाती जब उसके सर पे वोडका वाइन चढ़ता अपने ही ज़िस्म से चादर फाड़ देती ... ना सूरज की दरकार-ना चाँद का इंतज़ार चिटकती सड़कों पर नशे में झूमकर चलती है... हाँ! आधुनिकता में बेहया होती जा रहीं थी वो रात ! अपने हर ख्वाब को मुक़म्मल करने में हर पुरुष को ठोकर मार... खुद को बराबर जता रहीं ... स्त्रीत्व के चेहरे का नक़ाब नोंच कर पुरुष की तिलिस्म वो रच रहीं ... रात भर जागती-उघियाती , बियर के मगों से बतियाती है... कभी कुछ लिखती तो कभी संस्कार के कैनवास पर खुद को नंगी चित्रित करती है... हाँ! तुम बेहया हो गयी ! खुद को मॉडर्न बनाने में ढलती रात में , वाशना के चाशनी में मिठाई बनती रहीं... जिश्म का प्यार में रमी रहीं , रूह का गला घोंट दिया... आधुनिकता के बाज़ार में जिंदा रहेंगी मेरी साँसों के साथ वो रात और तुम , ये बात दोहराती रहेंगी ... आधुनिकता में परुष से बराबरी करना बराबरी में बेहया होने की जिद्द करना .... आधुनिकता की परिभाषा क्या था तुम्हारे लिये बस पुरुषों के दुर्गुणों का बराबरी करना .... हाँ वो रात बेहया हो गयी थी .... हाँ वो रात बेहया हो गयी थी .... #निशीथ ©Nisheeth pandey #WoRaat वो रात बेहया !!!! ----------- वो रात मानो बेहया हो गयी थी जब तुम बाल खोल कर घूर रहीं थी ... आधुनिकता में तुम्हारे शर्ट के खुले बटन
Ravendra
Kulbhushan Arora
GRATITUDE: For DDD From DD बादल खूब बरसे, नीलगगन मुस्कराया, स्नेहिल स्पर्श लिए इंद्रधनुष 🌈 आया, मन के विशाल नभ पे, स्नेह का बादल छाया, मन की आंखों के कोर मे आंसू की बा
Shree
छोटी सी बात कल शाम तुम आए। सब रंग लाए, अपने संग स्वप्न अनगिनत लाए, खुली आंखों से सब दिखाया, उसकी दोनों हथेलियां एक साथ जकड़ कर दूसरे हाथ गुलाल उसके गाल
Satish Chandra
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले लौंडों को Petrichor या तो गाली लगती है या चोरों का कोई गिरोह। #भक्कपेटरीचोर 😂🙈😂 वेन सच वर्डस कन्फ्यूज यू टू द कोर देन यू रिएलाईज वर्ड इज पेटरीचोर #YQbaba #SattyPun #PunChayat
विमुक्त
" धरा ने पुकारा आकाश को , आकाश झुका और समा गया उसमे !! " एक कहानी आकाश और धरा की...... एक अजनबी शहर , दो शख्श ...... जो न कभी मिले थे पहले कभी , न यह आशा थी कि मिलेंगे भी ...पर आधुनिकता का दौर उन