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Stories related to प्रारब्ध का अर्थ

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Author Harsh Ranjan

प्रारब्ध।

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पता नहीं कितना अवसाद था,
जो अंत तक नहीं गला।
पता नहीं कितना अंधकार था,
जो सूर्योदय के साथ नहीं ढला।
महाकाय हिमखंडों का बना हूँ
जो जिंदगी रहते नहीं पिघलते,
अंदाज़ कर रहा हूँ कितने रुके
देख रहा हूँ कइयों को साथ चलते,
पता है कि मैं कोई वजह नहीं हूँ,
कोई चाहत नहीं हूँ,
कोई मतलब-बेमतलब मुस्कुराहट नहीं हूँ।
माँ-बाप के लिए अपाहिज संतान सा
एक अटल, प्रबल प्रारब्ध हूँ अमंगल,
जिसे चाहत से ओढा या
मजबूरी से छोड़ा नहीं जा सकता,
जिसने लेने में कसर नहीं छोड़ी पर जो
इस जन्म कुछ देकर नहीं जा सकता।
वो घर का अहसानों का अंबार और
अरमानों से रिक्त एक नीरव कोना है,
उसके न होने या गुमने का गम होता है
पर उसका होना भी आप में रोना है। प्रारब्ध।

शब्दवेडा किशोर

प्रारब्ध

लक्ष लक्ष लाटा तुझिया जगाच्या 
सुखाच्या दुःखाच्या हे गणनायका
कुणाला मायेचा देतोस उबारा
कुणास सतत देतोस दुःखाचा दुजोरा
कुणा नसे सुख कि घालावा सदरा अंगात
कुणी वाळवंटी जन्मतो तर कुणी महालात 
का रे भोगतात आयुष्य हे
प्रयत्न शोधण्याचे होउनिया व्यर्थ 
प्रश्न राहतात खिळलेले सगळ्यांच्या मनात
कळता कळेना तुझी अशी आगळी विषमता 
तेव्हा होय चित्ता माझ्या क्लेश बहूत 
जेव्हा सारी कोडी प्रारब्धाच्या मारुनिया माथा 
गप्प बसुनी हा शब्दवेडा किशोर काव्य करता
मग फुटे वाचा कित्येक प्रश्नांना या जनमाणसात

©शब्दवेडा किशोर #प्रारब्ध

Vikas Sharma Shivaaya'

प्रारब्ध #समाज

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देह धरे का दंड है सब काहू को होय ।
ज्ञानी भुगते ज्ञान से अज्ञानी भुगते रोय।

देह धारण करने का दंड–भोग या प्रारब्ध निश्चित है जो सब को भुगतना होता है,अंतर इतना ही है कि ज्ञानी या समझदार व्यक्ति इस भोग को या दुःख को समझदारी से भोगता है-निभाता है-संतुष्ट रहता है जबकि अज्ञानी रोते हुए–दुखी मन से सब कुछ झेलता है !

🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' प्रारब्ध

vishnu thore

प्रारब्ध

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 प्रारब्ध

somnath gawade

आसवांनी तरी का ओघळावे
दुःख माझे पाहून रोजचे
आता सारे सवयीने ओळखावे
प्रारब्ध माझ्या हातचे....



 #प्रारब्ध

somnath gawade

प्रारब्ध

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तुझ्या असीम वेदनेचा हुंकार जाणिवांना ग्रासून गेला.
कोषातच बागडणाऱ्या स्वप्न पाखरांचे पंख छाटून गेला.
काय असा ह्रदयास भेदनारा प्रमाद तुझ्या हातून झाला.
असह्य दुःख संचिताचा ठेवा प्रारब्धाला व्यापून गेला. प्रारब्ध

मलंग

SONGWRITER DURGA KRISHNA

प्रारब्ध #प्रेरक

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Author Harsh Ranjan

प्रारब्ध।

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पता नहीं कितना अवसाद था,
जो अंत तक नहीं गला।
पता नहीं कितना अंधकार था,
जो सूर्योदय के साथ नहीं ढला।
महाकाय हिमखंडों का बना हूँ
जो जिंदगी रहते नहीं पिघलते,
अंदाज़ कर रहा हूँ कितने रुके
देख रहा हूँ कइयों को साथ चलते,
पता है कि मैं कोई वजह नहीं हूँ,
कोई चाहत नहीं हूँ,
कोई मतलब-बेमतलब मुस्कुराहट नहीं हूँ।
माँ-बाप के लिए अपाहिज संतान सा
एक अटल, प्रबल प्रारब्ध हूँ अमंगल,
जिसे चाहत से ओढा या
मजबूरी से छोड़ा नहीं जा सकता,
जिसने लेने में कसर नहीं छोड़ी पर जो
इस जन्म कुछ देकर नहीं जा सकता।
वो घर का अहसानों का अंबार और
अरमानों से रिक्त एक नीरव कोना है,
उसके न होने या गुमने का गम होता है
पर उसका होना भी आप में रोना है। प्रारब्ध।

Tara Chandra

अधिक न सोच,
रख विश्वास.....





सब माथे लिखा,
विधाता ने.......।




💐श्री राधेकृष्ण💐

©Tara Chandra Kandpal
  #प्रारब्ध
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