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Raj Shekhar Kumar
मैंने किया हैं हर काम,काम समझके पिया लब सनम का ,जाम समझके उस हूर की ख़ातिर,उसकी नूर की ख़ातिर किया इबादत अल्लाह का,राम समझके इंतज़ार,हिज़्र,जफ़ा, रुस्बाई जो मिला उनसे,रख लिया,इनाम समझके क्या करते वो भी,संग मेरे हबीब को देख झुका कर सर गुजर गए,एहतराम समझके किसी मंजिल की जानिब निगाहें थी,पर रुके पैर कूचे में उसके,मक़ाम समझके कैसा प्यार था,कैसा यार था जिसपे मर के अपनी वफ़ा देखते हैं,इल्ज़ाम समझके इब्तदा से ये आलम हैं,वजूद तुझसे कायम हैं मैं गज़ले लिखता हूँ तेरा,नाम समझके #ग़ज़ल#हिंदी *जानिब-की ओर *इब्तदा-शुरुआत,beginning *हबीब-प्रिय,dear *एहतराम-respect,आदर
Bhushan
Nova Changmai
दर क्या है??? एक लंबा हट्टा कट्टा आदमी उसी आवाज से बात कर रही है, और तुम सुनकर डर रही हो, उसको को दर नहीं बोलता है। जो बीते हुए कल है उससे शिक्षा लो, और जो आज करने वाले हो उसे किया नया क्या कुछ कर सकते हो उसके बारे में सोचो ,और डरो उस समय के लिए जो भविष्य में तुम्हारे जीवन को सुनहरी अक्षर में लिखकर जीवन को बदल सकता है। #सीखना #शायरी#कविता#रोमांस#मीनिंग #Motivational #Good #evening
prashant Singh rajput
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Anita Saini
इब्तदा ए इश्क़ में ना पूछिए हुज़ूर आलम दिल की तलबगारी का! बेचैन हुए रहते हैं मिलकर भी उनसे बयाँ न हो पाएगा हश्र अपनी बेक़रारी का! गुमाँ था हमें कि कभी कम ना होगी अना परचम लहराएगा सदा हमारी ख़ुद्दारी का! और अब हाल ये है कि बात न हो तो मौका ढूँढते है उस बुत की ताबेदारी का! ©Anita saini इब्तदा ए इश्क़ में ना पूछिए हुज़ूर आलम दिल की तलबगारी का! बेचैन हुए रहते हैं मिलकर भी उनसे बयाँ न हो पाएगा हश्र अपनी बेक़रारी का! गुमाँ था ह
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
Anuj Ray
खुशबू चरित्र की" खुशबू चरित्र की, हीरे सी चमकती है, फूलों सी महकती है। खुशबू चरित्र की, जीवन के आईने में, सूरज सी दमकती है। खुशबू चरित्र की, आदर्श भी गढ़ती है, इतिहास भी रचती है। ©Anuj Ray # खुशबू की चरित्र की"