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Aprasil mishra
" हमारे सोशल मीडियाई लम्हें "..... (०१) " हमारे सोशल मीडियाई लम्हें "..... (०१) बात उन दिनों की है जब हमारा इस सोशलमीडिया की नयी आभासी दुनिया से साक्षात्कार हो रहा था, वह
Aprasil mishra
"उदारवाद बनाम रुढ़िवाद : एक जीवट समावेशी संस्कृति के सन्दर्भ में " 1.सांस्कृतिक अंतर्परिवर्तन- संस्कृति के बाहर किसी अन्य में संस्कृति में होने वाले बदलाव. 2.सांस्कृतिक अंत:परिवर्तन- किसी संस्कृति के भीतर हो
Aprasil mishra
"कृष्ण जीवन में राधा और रुक्मिणी तुलनात्मक साहित्य : एक कलंक" हमारे समाज के नायकों के अतीतीय जीवन वृत्तान्तों को साहित्य अथवा लेखन जगत उनके वास्तविक व गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अथवा मूल अध
Aprasil mishra
"वैश्विक समाज की शवाधान प्रणालियों में अन्तर एवं उनकी ऐतिहसिक पृष्ठभूमियाँ : जमींन-जिहाद के आलोक में।" **************************************** वैश्विक समाज में जनगत मानसिकता आज जिस तरह साम्प्रदायिक चरमपंथ में वैमनस्य का शिकार हो
Prajjwal Singh
इस दौर_ए_महामारी में बताओ, किसपे कितना दोष मढ़े। जितनों पर थी जिम्मेदारी, सारे हो जाओ कटघरे में खड़े।। जनता ने तुम पे विश्वास किया, ताजोतख्त सब तुम्हें दिया। तुम बेशर्म अभी भी देखो, तू_तू_मैं_मैं की लड़ाई में पड़े।। जिसके पास ताकत थी उसके साथ जिम्मेदारी भी थी, लेकिन वे जिम्मेदारी अनदेखी कर और ताकत जुटाने में जुटे रहे, परिणामतः लोग एक एक सांस के लिए मर रह
लफ्ज़-ए-राज...
बहुत समय पहले कि बात है भीषण गर्मी(उग्र धर्मान्धता) में बस (बस किसका प्रतीक होता यह आप तय कर लें) अपनी अनिश्चित गति से अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी, एक तो निश्चित आकार-प्रकार(संकीर्ण विचारधारा) की बस ऊपर से भीषण गर्मी, बस में 1 सीट और उस पर 2 महिलाएं, वैसे बस यात्रियों से पूरी तरह भरी हुई थी, लेकिन हम बात कर रहे हैं एक सीट पर 2 महिलाओं की, अचानक एक महिला उठी और उसने खिड़की बंद करते हुए कहा मुझे हवा से परेशानी हो रही है तभी दूसरी महिला ने खिड़की खोलते हुए कहा मुझे बंद खिड़की से घुटन हो रही है। जानते हैं फिर क्या हुआ, खिड़की बंद होने और खुलने का सिलसिला शुरू हो गया उग्रता बढ़ती जा रही थी परिणामतः दोनों महिलाओं के बाल एक दूसरे के हाथ में आ गए, बस में अफरा-तफरी का माहौल हो गया, तभी एक सज्जन उठे और दोनों महिलाओं को डांटते हुए कहा अरे मूर्खों तुम्हारी मति मारी गई है जिस खिड़की(प्रतीक आप तय करें "ना मंदिर कहेंगे ना मस्जिद कहेंगे) के लिए तुम लोग लड़ रही हो उसमें तो शीशा(ईश्वर-अल्लाह-गाॅड-वाहेगुरू) है ही नहीं। दोनों महिलाएं स्तब्ध और अवाक रह गईं। नोट:- इसलिए कहते हैं ज्ञानी से ज्ञानी मिले होय ज्ञान की बात और गद्हा से गद्हा मिले चले धड़ाधड़ लात।।। लेखक:- चौधरी अनिल कुमार राज (प्रिंस राज) #ianilraj01 बहुत समय पहले कि बात है भीषण गर्मी(उग्र धर्मान्धता) में बस (बस किसका प्रतीक होता यह आप तय कर लें) अपनी अनिश्चित गति से अपने गंतव्य की ओर बढ़
Parul Sharma
Pyar aur Dosti अजब प्रेम की गजब कहानी टूथपेस्ट का नमक,कोयला व चार कोल से बड़ा पुराना याराना था।उनकी ये दोस्ती जाने कब प्रेम में तब्दील हो गयी किसी को कानों कान खबर व हुई।किसी टूथपेस्ट को नमक,किसी टूथपेस्ट को चारकोल तो किसी टूथपेस्ट को कोयले से प्यार हो गया।वह अपनी दुनिया में हंसी खुशी प्रेम के गीत गा रहे थे।उनकी प्रेम कहानी परवान चढ़ रही थी।वो पहली बार 14 फरवरी को किसी घर की बगीया पर मिले थे जहाँ तरह तरह के रंगबिरंगे फूल लहलहा रहे थे सुबह की बसंती भीनी मंद शीतल बयार उन दोनों के दिलों में प्यार की ज्योति जला रही थी। ब्रश पर बैठे टूथपेस्ट की निगाहें अलाव में दधकते कोयले से हटती न थी।और कोयले की तो धड़कनें बस थम सी गयी थी ब्रश के सिंहासन पर बैठे राजकुमार पर। कोयला टूथपेस्ट के चाँदनी जैसे रंग पर मर मिटा था उधर टूथपेस्ट कोयले की काली रात के से रंग पर फिदा हो चुका था। दोनों की मुलाकात बगिया में इसी तरह होती और दोनों सारी दुनिया से बेखबर अपनी प्रेम नगरी में डूबे रहते थे।रोज बिछड़व भी होता था पर टूथपेस्ट और कोयला हर सुबह उसी बगिया में एक दूसरे का इंतजार करते थे।और मिलने पर प्रेम के गीत गाते थे।जाने कैसे इस प्रेम कहानी की खबर टूथपेस्ट की पिता(टूथपेस्ट की कंपनियाँ) जी को लग गयी।जाने क्यों टूथपेस्ट के पिताजी को ये जोड़ी पसंद नहीं आयी।टूथपेस्ट राजकुमार और कोयला एक गरीब घर की बेटी।सो प्रेम के दुश्मन बेरहमी कंपनी वालों ने उन्हें अलग करने की ठान ली।और अपने बेटे टूथपेस्ट को काफी समझने बुझाने की कोशिश की पर (पूरी कहानी caption में पढ़ें) #NojotoQuote ऐं भई कुछ भी ।।अजब प्रेम की गजब कहानी।। टूथपेस्ट का नमक,कोयला व चार कोल से बड़ा पुराना याराना था।उनकी ये दोस्ती जाने कब प्रेम में तब्दील हो