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Abhishek 'रैबारि' Gairola
चलनक्षम उस परेशां से दिमाग़ का छितरा कोई अजीब ख्याल हूँ मै। दूर चमकती रौशनी की झुठलाई कोई आस हूँ मै। जब सर्वस्व क्षणभंगुर है तो बेवजह क्यों त्रास हूँ मै ? ©Abhishek 'रैबारि' Gairola चलनक्षम उस परेशां से दिमाग़ का छितरा कोई अजीब ख्याल हूँ मै। दूर चमकती रौशनी की झुठलाई कोई आस हूँ मै। जब सर्वस्व क्षणभंगुर है तो बेवजह क्य
AK__Alfaaz..
कल, भोर भये, सिंदूरी साड़ी पहन, किरणें उतर आयीं, भूमि के आंगन मे, साथ वो लायीं, अपनी नेह की, हथेलियों मे भरकर, पूनम की बिखरी, चंद्र रश्मियों के , रजत अक्षतों को, और..ममता की धूप ने, लेकर उसे अपनी, ममत्व की अंगुलियों पर, टीक दिया मेरे माथे पे, आशीष का तिलक बना, कल, भोर भये, सिंदूरी साड़ी पहन, किरणें उतर आयीं, भूमि के आंगन मे, साथ वो लायीं, अपनी नेह की, हथेलियों मे भरकर,
AK__Alfaaz..
इक, बरसती शाम पर, मन के, झरोखे से झाँकती वो, बैठी थी, उलझी लटों को सँवारने, यादों की इक, टूटी दंदों वाली कंघी से, कि तभी, वक्त की आँधी चली, उम्मीद की दहलीज पर टँगा, विश्वास का परदा, फटकर चीथड़े में लहराने लगा, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #सोलह_आने_स्त्री इक, बरसती शाम पर, मन के, झरोखे से झाँकती वो,
vishnu prabhakar singh
मेरे कसबा में मंडी के आत्मा से देखो तो सुनिश्चित आश से सम्बोधन बाज़ार! दूर गाँव की जिजीविषा प्रतिदान की सभ्यता कुकुरमुत्ता शैली की दुकान हर ग्राहक वैश्य। पतरचट पर रख्खी मालभोग केला एक घौर, छितराया हुआ बच्चों से बहलाया हुआ उसी चट्टी पर आँचल भर मिर्च छटाक भर सोंठ भरोसे की भेंट। आगे एक मेमना अनहोनी की पूर्वाग्रह में निढ़ाल अब उसका चरवाहा बकरी नहीं पालेगा मेमना ने जो घास का मूल्य चुकाया,उसे ले अपने खून को धीरज में समेट दो कोस की पग यात्रा धीरज को शक्ति देने कल्याण के द्वार। साइकिलों में कुछ मोटर साईकिल खटकते हुए उस पर ढोंग की सवारी काज से बढ़ा भटकाव हलवाई के मुँह बोले जवांई पान,ठंडे के मक्खी। सिनेमा घर नव दम्पति के सौगंध-वचन नया सिंगार,नई वय 'इंसाफ हो के रहेगा'की लय मध्यांतर में सब साथी है पिक्चर अभी बाकी है! भारत गांवों का देश... सुदूर गांवों के प्रमंडल में एक पुरानी मंडी,'मुरलीगंज' एक जीवन रेखा!! मेरे कसबा में मंडी के आत्मा से देखो तो सुनिश्चित
vishnu prabhakar singh
महादेवी जी के स्मरण में आप सुपुत्री माँ भारती की जीवन काल आपकी साहित्यिक निस्वार्थ भाव आपका योगदान समीक्षकों के भीषण के बीच दो काल खंड में सक्रिय लेखनी अद्भुत करुणामयी लेखन अखिल भारतीय स्तर को सम्बोधन सुख,दुख की साथी एक लेखिका,देश को। आपके पुण्यतिथि पर मेरी लिखी एक कवितांजली, (कृपया अनुशीर्षक देखें) "करुणादात्री" विषमता क्या रहस्य है अंतरिक्ष का और ज्ञान का एक का ओर नहीं,दूसरे का छोर नहीं यहाँ रहस्यमय अँधेरा,असंख्य सूर्यो के साथ यहाँ
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
difference between reality and dreams *सबक* ****** रात मैंने आसमां को … एक सबक सिखला दिया , उसका कुछ सामां इधर कुछ उधर को खिसका दिया ... चांद कुछ टेढ़ा सा था तारें थे ज्यादा घने , कुछ में रोशनी अधिक थी कुछ थे शायद अधखिले ... चांद को सीधा किया तारों को कुछ छितरा दिया, अंजुरी में भर के कुछ को जमीं पर बिखरा दिया .... तारों को पाकर जमीं तो सच में ही मुस्का गई मानो ना मानो मगर वो गीत मेरे गा गई ... पर…! ये तो बस एक ख्वाब था ख्वाबों की क्या बिसात है ये जिंदगी के हाथ था कभी बिखरा दिया , कभी छिटका दिया....!! ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) difference between reality and dreams *सबक* ****** रात मैंने आसमां को … एक सबक सिखला दिया , उसका कुछ सामां इधर कुछ उधर को खिसका दिया ... च
Mahfuz nisar
मज़दूर दिवस चौड़े पंजों वाला, मजबूत पिंडलियों वाला, बग़ैर जूतों का पाँव, मजबूत कंधे पर गमछी, जो वक़्त बेवक़्त, बारिश और धूप में छाता, काम के समय पसीने पोछने में, थक कर बैठ कर भोजन करने में, जेठ की दुपहरी में इस पर लेट कर आराम करने में, तरह तरह से काम आती है, चेहरे पर छितरायी संघर्ष की पीड़ा को अन्वरत मुस्कान से छुपाये, काम की तलाश में हर दिन किसी चौराहे पर खड़ा कर देती है ज़िंदगी, दूसरों के काम पूरी लगन से करना, कुछ मीठी शाबाशी तो कुछ तीखे बोल सुनना, कभी किसी घर से पेट भर भोजन मिलना, कभी सत्तू तो कभी कपड़े में लपेटे कुछ रोटियों को चुपचाप खा कर काम में दुबारा लग जाना, शाम ढलने पर अपने मेहनताने का जोड़-तोड़ करते हुए साइकिल पर गाने गुनगुनाते हुए चलते चले जाना, कुछ एक-आध किलो भर चावल, शेर भर आटा, कुछ दाल,सौ ग्राम तेल, और आध किलो आलू,परिवार के पेट भरने का सामान जुटाते समय उसके आँखों के तेज़ ऐसे होते हैं, जैसे तेज़ हमारे देश के नेताओं की आँखों में शपथ ग्रहण करते समय होती है। लेकिन दोनों तेज़ के भीतर एक गहरी खाई जितनी दूरी है। बहुत प्रेम है इनके मेहनतकश हृदय में, नहीं है इनके घर पर मजबूत छत और प्रयाप्त बिस्तर, फिर भी इनकी नींद बहुत ईमानदार है, ठीक इनके कर्म की भाँति, ससमय आ जाती है। और फिर अगली सुबह अगले काम की तलाश में ये घर से निकल पड़ते हैं। ये मज़दूर हैं, जो संघर्ष के बावजूद मजबूर नहीं, मजबूत बने रहते हैं। अपील: इनके हाथों से चल रहा दुनिया का काम, मनुष्य बनो करो इनका सम्मान, कितनी योजना और लाओगे, जो है उससे ही कर दो इनका कल्याण। मज़दूर दिवस,,,,,। ✍महफूज़ मज़दूर दिवस चौड़े पंजों वाला, मजबूत पिंडलियों वाला, बग़ैर जूतों का पाँव, मजबूत कंधे पर गमछी, जो वक़्त बेवक़्त, बारिश और धूप में छाता,
Sukirti Bhatnagar
मैं और मेरा प्रियतम दूर कहीं अम्बर के नीचे, गहरा बिखरा झुटपुट हो। वहीं सलोनी नदिया-झरना झिलमिल जल का सम्पुट हो। नीरव का स्पंदन हो केवल
Prakashvaani پرکاشوانی
आजादी की शर्त... शाम 6 बजे का वक़्त, ढलते सूरज की गर्मी और ठंढी हवाओं के बीच हो रही लड़ाइयों का आनंद लेता हुआ मैं पास के एक पार्क की तरफ टहलने का मन बना रहा था