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Devanand Jadhav
.......... ©Devanand Jadhav #MahavirJayanti अहिंसा परमो धर्म: ...जगाला शांती, अहिंसा व सत्य यांचा मार्ग दाखविणारे भगवान महावीर हे जैन धर्माचे 24 वे तिर्थकार आहेत...त्य
Bharat Bhushan pathak
पाप-पुण्य युद्ध में विजय प्रतीक पुण्य का। सत्य से असत्य का प्रतीक जीत सत्य का।। राम नाम जाप का पर्व अम्ब मात का। भद्र के ये छाप का अभद्र नाश ताप का। ©Bharat Bhushan pathak पाप-पुण्य युद्ध में विजय प्रतीक पुण्य का। सत्य से असत्य का प्रतीक जीत सत्य का।। राम नाम जाप का पर्व अम्ब मात का। भद्र के ये छाप का अभद्र नाश
Pushpvritiya
हिय की मारी सोच अकिंचन, पिय जी झूठ बँधाय गयो मन.....!! @पुष्पवृतियाँ ©Pushpvritiya #चौपाई वैरागी मन तुम बिन प्रीतम, पीर न जाने किन् विध् हो कम...! कस्तूरी मृग बन कर साजन, तोहे ढूँढ़े भटके वन वन......!! विरहिन देह जलन जागे
Devesh Dixit
शान्ति (दोहे) शोर सराबा कर रहे, हुई शांति है भंग। मन भी अब बेचैन है, करते भी वे तंग।। शांति चित्त में हो नहीं, करते तभी विलाप। दर-दर भटके वो फिरे, तन का बढ़ता ताप।। लगन लगी है काम की, मिलता है पैगाम। हो पूरा जब वो कभी, मिले शान्ति फिर नाम।। धड़कन में जब राम हों, सुख का फिर विस्तार। शांति हृदय को भी मिले, जीवन का ये सार।। भवन कलह जब भी मिटा, मिला शान्ति का दान। रचना की तब हो उपज, जैसे हो वरदान।। ................................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #शान्ति #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry शान्ति (दोहे) शोर सराबा कर रहे, हुई शांति है भंग। मन भी अब बेचैन है, करते भी वे तंग।। शांत
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विधा दाम छन्द 121 121 121 121 सुनो रघुनाथ खडा अब दास । हरो सब ताप लगी है आस ।। न ठूँठ बने अब मानव गात । करो न भला तुम ही अब तात ।। जपूँ हरि नाम कहे हनुमान । कटे सब फंद करे जब ध्यान ।। सुनो तन मानव है हरि धाम । भजो फिर लाल सदा प्रभु राम ।। वही रघुनंदन है घनश्याम । रहा जग सुंदर है यह धाम ।। लगाकर चंदन मैं नित भाल । करूँ फिर वंदन लेकर थाल ।। २७/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा दाम छन्द 121 121 121 121 सुनो रघुनाथ खडा अब दास । हरो सब ताप लगी है आस ।।
Anuradha T Gautam 6280
बुराइयों को चाहे कितना भी अंधकार हो सूरज भगवान का ताप उसे दूर कर देता है थरथर कांपते शत्रु जहां पर #सूर्य देव की जय जय कार हो..🖊️ 🌞 #Chhathpooja 🌞 🙏#@2🤦🏻🙆🏻♀️🙏 ©Riddhi Anuradha Gautam बुराइयों को चाहे कितना भी अंधकार हो सूरज भगवान का ताप उसे दूर कर देता है थरथर कांपते शत्रु जहां पर #सूर्य देव की जय जय कार हो..🖊️
Devotional Page
अंधेरे में कही दूर एक रोशनी में तुम नज़र आते हो, क्यों इतने दूर हो, हर वक्त ये सवाल परेशान करता है। कुछ तो उत्तर दो प्रियतम, अब यूं न मौन धरो, के तू ही है जीन का सहारा मेरा, के तू ही है जाने का सहारा मेरा। आओ अब करीब आ जाओ, जल्दी से मुझे अपने संग ले जाओ, तेरे बिन जीना मुश्किल है अब एक एक पल मेरे प्रियतम। ©Devotional Page प्रेम ताप - विरह वेदना
Sangeeta Kalbhor
जब खुद से सामना हुआ.. जब खुद से सामना हुआ मुद्दतों बाद मेरा कई अनचाही यादों का लगा हुआ था ड़ेरा सोचा जान लूँ मैं करीब से अपने आपको दूर ना कर पाई क्षणभर के लिए भी अपने अंदर के ताप को बहुत मलिनता है मुझमें आज भी भरी हुई शायद इसलिए ही हूँ अंदर से ड़री हुई नकाब अच्छाई का पहने हुए रखती हूँ अंदर ही अंदर बूराइयों को चखती हूँ सिमटकर मुझमें ही मैं अलगाव करना चाहती हूँ है जो अमानुषता जरासी मुझमें पूरा मनुष्यता में बदलना चाहती हूँ..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #sparsh जब खुद से सामना हुआ मुद्दतों बाद मेरा कई अनचाही यादों का लगा हुआ था ड़ेरा सोचा जान लूँ मैं करीब से अपने आपको दूर ना कर पाई क्षणभर के
Ravi Shankar Kumar Akela
किसी पदार्थ या प्राणी का वह विशिष्ट भौतिक सारभूत तथा सहज और स्वाभाविक गुण या तत्त्व जो उसके स्वरूप के मूल में होता है और जिसमें कभी कोई परिवर्तन या विकार नहीं होता। ' विकृति ' इसी का विपर्याय है। जैसे-(क) जन्म लेना और मरना प्राणी मात्र की प्रकृति है। (ख) ताप उत्पन्न करना और जलाना अग्नि की प्रकृति है। ©Ravi Shankar Kumar Akela #adventure किसी पदार्थ या प्राणी का वह विशिष्ट भौतिक सारभूत तथा सहज और स्वाभाविक गुण या तत्त्व जो उसके स्वरूप के मूल में होता है और जिसमें क
Ravi Shankar Kumar Akela
किसी विषय से चित्त में जो खेद या कष्ट होता है वही दुःख हे । इसी दुःख सें द्वेष उत्पन्न होता है । जब किसी विषय से चित्त को दुःख होगा होगा तब उससे द्वेष उत्पन्न होगा । योग परिणाम, ताप और संस्कार तीन प्रकार के दुःख मानकर सब वस्तुओं को दुःखमय कहना है । ©Ravi Shankar Kumar Akela #TereHaathMein किसी विषय से चित्त में जो खेद या कष्ट होता है वही दुःख हे । इसी दुःख सें द्वेष उत्पन्न होता है । जब किसी विषय से चित्त को दुः