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Dr Upama Singh

              किसान
       रचना नंबर 5

परिश्रम के देवता और मिशाल
जिन पर रहता कर्ज़ के बोझा का निशान
टूटे फूटे झोपड़ी और कच्चे मकान 
की छत से टपकती बारिश
फिर भी उनको तमन्ना रहती बारिश की
देश में सियासत यूंँही चलता रहेगा
सियासत अपनी चालों से 
किसान को ऐसे ही छलता रहेगा
वक्त की चाल छल और कपट
जिस पर आज के नेता करते सियासत
मर रहा जवान सीमा और खेतों में किसान
फिर मैं कैसे कहूँ मेरा भारत महान।— % & #कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#विशेषप्रतियोगिता 
#गणतंत्रदिवस2022 
#गणतंत्रभारत 
#kkdrpanchhisingh

Dr Upama Singh

        पिता और बेटी
      रचना नंबर 4

खुशियाँ देना चाहे बेटी को
पूरे संसार की जिसे करे पिता 
बेटी से करता सारी बात
उसे करते वो सदा ही
स्नेह प्यार और दुलार
खुशी से पापा ने बेटी पर 
अपनी हर ख्वाहिश लूटा दी
मैंने बस खुशी से मुस्कुराया
पापा ने अपनी बेटी को 
सारी दुनिया ही दिला दी
परखती है बेटी अपने प्यार को
उसके लिए पिता ही होते 
जिंदगी के पहले हीरो
ढूंढती उन्हें अपने प्यार में— % & #कोराकाग़ज़ 
#kkdrpanchhisingh 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#विशेषप्रतियोगिता 
#गणतंत्रदिवस2022 
#गणतंत्रभारत

Dr Upama Singh

            आंसू
          रचना नंबर 3

नामुमकिन है अब लौट आना
हम निकल चुके हैं आंसू की तरह
आसूं जो बह गए वो तुझे ढूंढते रह गए
पर तुम उनको समझते ही रह गए
क्योंकि तुम जो अपने ना थे
ये आंसू भी जान गए तुमको पहचान गए
एक दिन गिरते आंसू ने पूछ ही लिया
मुझे गिरा दिया है उसके लिए
जिसके लिए तुम कुछ भी नहीं 
जिसने तेरी कभी कद्र ही नहीं की
ज़िन्दगी को मैंने बहुत समझाया 
अक्सर ऐसे फसाने होंगे ऐसे ही जीने होंगे।

— % & #कोराकाग़ज़ 
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#विशेषप्रतियोगिता 
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Dr Upama Singh

               गणतंत्र दिवस
             रचना नंबर 2

हर वीरों आपको हम याद रखेंगे।
ये बलिदान शहादत आपकी है।

जान से प्यारा ये भारत देश हमारा है।
इसके शान के लिए हमें मर मिटना है।

विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान।
ये सबसे बड़ा लोकतांत्रिक गणतंत्र हमारा।

लहराएंगे अपना तिरंगा ऊपर आसमां पर।
भारत का नाम होगा विश्व के हर इंसान के जुबां पर।
— % & #गणतंत्रभारत 
#गणतंत्रदिवस2022 
#कोराकाग़ज़ 
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Dr Upama Singh

       अधूरी ख्वाहिश
       रचना नंबर 1

अधूरी रह गईं कुछ ख्वाहिशें
थोड़े अधूरे रह गए हम
वक्त बीत गया ना हम हुए पूरे
ना हुईं पूरी हमारी ख्वाहिशें
बहुत तकलीफ़ देती हैं ये अधूरे ख्वाहिशें
अरमान टूट कर हमें खोखला कर गई
कुछ ख्वाबों को करीब से टूटते देखा हमने
नसीब समझ अपना कर लिया कबूल हमने
ख्वाहिशें भी उम्मीद हैं ख्वाबों की तरह
ये भी हमें देती हैं जीने को वजह

— % & #गणतंत्रभारत 
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Dr Upama Singh

                  “इश्क़ का खुदा”
                   ग़ज़ल –5

पहली बार देखा तो दिल तेरी ओर झुकने लगा।
दिल मेरा आपसे जुड़ने के लिए बेकरार रहने लगा।

धीरे धीरे आपको अपना ज़िन्दगी बनाने लगा।
दिल मेरा आपको ही सब कुछ मानने लगा।

बस इक तेरे में खोकर ज़माने को भूलने लगा।
दिल मेरा थोड़ा ख़ुदगर्ज होकर बस तेरे खयालों में खोने लगा।

मैंने तुझे अपना सनम दिलबर और जानम नाम देने लगा।
मैंने तो आपको ही अपना इश्क़ का खुदा मानने लगा। #कोराकाग़ज़ 
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Dr Upama Singh

              “ज़िन्दगी का सफ़र”
                ग़ज़ल –4

आसान हो कठिन हर राहों पर चलते देखा है।
मंज़िल को ढूँढते हुए ज़िन्दगी का सफ़र देखा है।

लोगों को कभी ऊँची पहाड़ियों पर चढ़ते देखा है।
तो कभी समंदर के लहरों से टकरा साहिल पर आते देखा है।

सुबह सवेरे सभी के अपनी उम्मीदों से जुड़ते देखा है।
शाम होते ही उन उम्मीदों और ख्वाहिशों को टूटते देखा है।

मंज़िल तक पहुँचने से पहले थक वापस लौटते देखा है।
ज़िन्दगी के अंधेरे को उजाले में बदलते क़रीब से मैंने देखा है। #कोराकाग़ज़ 
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#kkकविसम्मेलन3 
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Dr Upama Singh

              “मोहब्बत का मंज़िल”
                ग़ज़ल –3
        
आज मैंने तेरा नाम अपनी ज़िन्दगी का गीत रखा है।
तेरे मोहब्बत के अल्फाज़ का नाम ग़ज़ल रखा है।

अपनी हाथों की लकीरों में आपको अपना क़िस्मत बन रखा है।
शामिल कर लिया तुझे मैंने आज से अपनी ज़िन्दगी बना रखा है।

आँखों से उतार दिल में अपने बसा रखा है।
मोहब्बत के मुसाफ़िर ने समुंदर की गहराई नाप रखा है।

इक उम्र हो गई मोहब्बत बिना ये जहां ज़िन्दगी नहीं देख रखा है।
मोहब्बत के रास्ते मील का पत्थर नापते मंज़िल देख रखा है।
 #कोराकाग़ज़ 
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Dr Upama Singh

              “मोहब्बत का मंज़िल”
                ग़ज़ल –3
        
आज मैंने तेरा नाम अपनी ज़िन्दगी का गीत रखा है।
तेरे मोहब्बत के अल्फाज़ का नाम ग़ज़ल रखा है।

अपनी हाथों की लकीरों में आपको अपना क़िस्मत बन रखा है।
शामिल कर लिया तुझे मैंने आज से अपनी ज़िन्दगी बना रखा है।

आँखों से उतार दिल में अपने बसा रखा है।
मोहब्बत के मुसाफ़िर ने समुंदर की गहराई नाप रखा है।

इक उम्र हो गई मोहब्बत बिना ये जहां ज़िन्दगी नहीं देख रखा है।
मोहब्बत के रास्ते मील का पत्थर नापते आपकी अपना मंज़िल बना रखा है।
 #कोराकाग़ज़ 
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Dr Upama Singh

                    “तेरे बिन”
                   ग़ज़ल – 2

आ देख तेरे बिन कैसे जी रही हूंँ मैं।
जैसे ख़ुद की ज़िन्दगी से बेखबर हो रही हूंँ मैं।

नज़रे थकती नहीं आज भी रास्ते वही ढूँढती रही हूंँ मैं।
तेरे प्यार की मंज़िल के लिए कितनी बेकरार रही हूंँ मैं।

ढलती शमा तन्हाई की ख़ामोशी में अकेले ही सिमट रही हूंँ मैं।
तेरे प्यार की तलाश में दिन रात सबसे बे–ख़बर हो रही हूंँ मैं।

धीरे धीरे तेरे प्यार को अपनी रूह में उतार रही हूंँ मैं।
एक बार तुम पुकारो मेरा नाम अपनी दिल के मंदिर में तुम्हें बसा रही हूंँ मैं। #कोराकाग़ज़ 
#विशेषप्रतियोगिता 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
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#kkकविसम्मेलन3 
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