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Dr Upama Singh
“इश्क़ का खुदा” ग़ज़ल –5 पहली बार देखा तो दिल तेरी ओर झुकने लगा। दिल मेरा आपसे जुड़ने के लिए बेकरार रहने लगा। धीरे धीरे आपको अपना ज़िन्दगी बनाने लगा। दिल मेरा आपको ही सब कुछ मानने लगा। बस इक तेरे में खोकर ज़माने को भूलने लगा। दिल मेरा थोड़ा ख़ुदगर्ज होकर बस तेरे खयालों में खोने लगा। मैंने तुझे अपना सनम दिलबर और जानम नाम देने लगा। मैंने तो आपको ही अपना इश्क़ का खुदा मानने लगा। #कोराकाग़ज़ #kkdrpanchhisingh #collabwithकोराकाग़ज़ #kkकविसम्मेलन #विशेषप्रतियोगिता #kkकविसम्मेलन3
Dr Upama Singh
“ज़िन्दगी का सफ़र” ग़ज़ल –4 आसान हो कठिन हर राहों पर चलते देखा है। मंज़िल को ढूँढते हुए ज़िन्दगी का सफ़र देखा है। लोगों को कभी ऊँची पहाड़ियों पर चढ़ते देखा है। तो कभी समंदर के लहरों से टकरा साहिल पर आते देखा है। सुबह सवेरे सभी के अपनी उम्मीदों से जुड़ते देखा है। शाम होते ही उन उम्मीदों और ख्वाहिशों को टूटते देखा है। मंज़िल तक पहुँचने से पहले थक वापस लौटते देखा है। ज़िन्दगी के अंधेरे को उजाले में बदलते क़रीब से मैंने देखा है। #कोराकाग़ज़ #kkकविसम्मेलन #kkकविसम्मेलन3 #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #kkdrpanchhisingh
Dr Upama Singh
“मोहब्बत का मंज़िल” ग़ज़ल –3 आज मैंने तेरा नाम अपनी ज़िन्दगी का गीत रखा है। तेरे मोहब्बत के अल्फाज़ का नाम ग़ज़ल रखा है। अपनी हाथों की लकीरों में आपको अपना क़िस्मत बन रखा है। शामिल कर लिया तुझे मैंने आज से अपनी ज़िन्दगी बना रखा है। आँखों से उतार दिल में अपने बसा रखा है। मोहब्बत के मुसाफ़िर ने समुंदर की गहराई नाप रखा है। इक उम्र हो गई मोहब्बत बिना ये जहां ज़िन्दगी नहीं देख रखा है। मोहब्बत के रास्ते मील का पत्थर नापते मंज़िल देख रखा है। #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #kkdrpanchhisingh #विशेषप्रतियोगिता #kkकविसम्मेलन #kkकविसम्मेलन3
Dr Upama Singh
“मोहब्बत का मंज़िल” ग़ज़ल –3 आज मैंने तेरा नाम अपनी ज़िन्दगी का गीत रखा है। तेरे मोहब्बत के अल्फाज़ का नाम ग़ज़ल रखा है। अपनी हाथों की लकीरों में आपको अपना क़िस्मत बन रखा है। शामिल कर लिया तुझे मैंने आज से अपनी ज़िन्दगी बना रखा है। आँखों से उतार दिल में अपने बसा रखा है। मोहब्बत के मुसाफ़िर ने समुंदर की गहराई नाप रखा है। इक उम्र हो गई मोहब्बत बिना ये जहां ज़िन्दगी नहीं देख रखा है। मोहब्बत के रास्ते मील का पत्थर नापते आपकी अपना मंज़िल बना रखा है। #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #kkdrpanchhisingh #विशेषप्रतियोगिता #kkकविसम्मेलन #kkकविसम्मेलन3
Dr Upama Singh
“तेरे बिन” ग़ज़ल – 2 आ देख तेरे बिन कैसे जी रही हूंँ मैं। जैसे ख़ुद की ज़िन्दगी से बेखबर हो रही हूंँ मैं। नज़रे थकती नहीं आज भी रास्ते वही ढूँढती रही हूंँ मैं। तेरे प्यार की मंज़िल के लिए कितनी बेकरार रही हूंँ मैं। ढलती शमा तन्हाई की ख़ामोशी में अकेले ही सिमट रही हूंँ मैं। तेरे प्यार की तलाश में दिन रात सबसे बे–ख़बर हो रही हूंँ मैं। धीरे धीरे तेरे प्यार को अपनी रूह में उतार रही हूंँ मैं। एक बार तुम पुकारो मेरा नाम अपनी दिल के मंदिर में तुम्हें बसा रही हूंँ मैं। #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #kkकविसम्मेलन #kkकविसम्मेलन3 #kkdrpanchhisingh
Dr Upama Singh
“मोहब्बत” ग़ज़ल – 1 अपने रूह से मेरे रूह को छू प्यार मेरा अमर कर दो। मैं हूंँ अधूरा ज़िन्दगी में आकर पूरा कर दो। खोए हैं एक दूजे के प्यार में होश में आने दो। टूट कर चाहो ऐसे प्यार को हमारे मुकम्मल कर दो। तुम अपनी हथेलियों पर मेरे नाम की मेंहदी रच लो। अपने माथे पर मेरे नाम का बिंदी और सिंदूर भर लो। धूप में मैं तेरे वास्ते मैं चला अपने बालों की छांँव कर दो। आँखों में काजल चेहरे पर प्यार भरा आँचल रख दो। इस क़दर टूट कर चाहो तुम मुझे पागल कर दो। इक नज़र प्यार से ऐसे देखो मुझे पागल कर दो। #kkdrpanchhisingh #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #kkकविसम्मेलन #विशेषप्रतियोगिता #kkकविसम्मेलन3
अभिलाष सोनी
कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 5 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- अपनी बर्बादियों का मैं हल चाहता हूँ। अपनों की दुआएँ मैं आजकल चाहता हूँ। ख़ाकसारी से होना मैं सफ़ल चाहता हूँ। बहुत झेल लिया मुफ़लिसी का ये दंश। अपनी बर्बादियों का मैं हल चाहता हूँ। तन्हा गुज़ारी है यहाँ सारी उम्र ही मैंने। ज़िंदगी के हसीं मैं कुछ पल चाहता हूँ। जो लोग मेरी मुफ़लिसी से हैं कतराते। उन लोगों से दूरी मैं आजकल चाहता हूँ। ज़माने के झमेले नहीं चाहिए मुझको। दिल को सुकूँ मैं दर-असल चाहता हूँ। ऐ मेरे दोस्त, मेरे हमदर्द मेरे साथ चल। दुआएँ अब तेरी मैं मुसलसल चाहता हूँ। कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 5 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- अपनी बर्बादियों का मैं हल चाहता हूँ। अपनों की दुआएँ मैं आजकल चाहता हूँ। ख़ाकसारी से होना मैं सफ़ल चाहता हूँ। बहुत झेल लिया मुफ़लिसी का ये दंश।
कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 5 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- अपनी बर्बादियों का मैं हल चाहता हूँ। अपनों की दुआएँ मैं आजकल चाहता हूँ। ख़ाकसारी से होना मैं सफ़ल चाहता हूँ। बहुत झेल लिया मुफ़लिसी का ये दंश।
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कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 4 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है। मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है। रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है। हम तो रहते हैं उसके ही गम में गुमशुदा। भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है। चेहरे में मासूमियत और ये शोख़ अदाएं। नज़रों से क़ातिल पर दिल को लुभाए। आख़िर उससे नज़रें चुराना कौन चाहता है। भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है। बातों में शरारत जैसे हो लड़कपन। हरकतें हैं ऐसी प्यारी, जीत लें सबका मन। आख़िर उससे बचकर जाना कौन चाहता है। भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है। सबके दिलों की वो मल्लिका, रातों की रानी। ख़ूबसूरत है वो इतनी, जैसे अल्हड़ जवानी। आख़िर उससे आज दूर जाना कौन चाहता है। भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है। मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है। रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है। दिल में इस क़दर बस गई है वो सनम मेरी। भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है। कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 4 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है। मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है। रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है। हम तो रहते हैं उसके ही गम में गुमशुदा। भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।
कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 4 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है। मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है। रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है। हम तो रहते हैं उसके ही गम में गुमशुदा। भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।
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कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 3 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- वक़्त चाहिए। कुछ रिश्ते निभाने हैं बाकी अभी, शुरुआत के लिए भी वक़्त चाहिए। वो आते नहीं हमसे मिलने कभी, मुलाक़ात के लिए भी वक़्त चाहिए। करेंगें उनसे बातें अपने मुद्दे की सभी, तहकीकात के लिए भी वक़्त चाहिए। कि अधूरी कहानी भी हम पूरी करेंगे, इस हालात के लिए भी वक़्त चाहिए। आँखों आँखों में बातें करेंगे हम भी, इशारों के लिए भी वक़्त चाहिए। फिर होंगे नैना दो से चार अपने भी, मोहब्बत के लिए भी वक़्त चाहिए। करेंगे खत्म सारी शिकायतें तुम्हारी, सवालात के लिए भी वक़्त चाहिए। बिछा देंगे मोहब्बत के फूल राहों में, इस सौग़ात के लिए भी वक़्त चाहिए। कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 3 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- वक़्त चाहिए। कुछ रिश्ते निभाने हैं बाकी अभी, शुरुआत के लिए भी वक़्त चाहिए। वो आते नहीं हमसे मिलने कभी, मुलाक़ात के लिए भी वक़्त चाहिए।
कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 3 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- वक़्त चाहिए। कुछ रिश्ते निभाने हैं बाकी अभी, शुरुआत के लिए भी वक़्त चाहिए। वो आते नहीं हमसे मिलने कभी, मुलाक़ात के लिए भी वक़्त चाहिए।
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कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 2 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- वो मेरा था, मेरा है, मेरा ही रहेगा। वो मेरा था, मेरा है, मेरा ही रहेगा। मेरे मौज-ए-दिल की वजह ही रहेगा। भले ही वो मुझसे आज नाराज़ है। मुस्कुराता हुआ मेरी तरह ही रहेगा। उसे आता नहीं मुझपे गुस्सा करना। मगर फिर भी रहता वो नाराज़ है। मैंने देखा है उसकी आँखों में वो प्यार। जो बदलता नहीं इस तरह ही रहेगा। इतना सा तो प्यार कमाया है मैंने। कि उसकी दिल में वो जगह पा सकूँ। मेरे दिल में तो वो बस ही चुका है। ये उसका घर है उसका ही रहेगा। उसकी कहानी का आधा हिस्सा हूँ मैं, और मेरी कहानी का वो पूरा हिस्सा है। लोगों की जुबां में हमारा ही था किस्सा, आज भी चाहत का वो किस्सा ही रहेगा। कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 2 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- वो मेरा था, मेरा है, मेरा ही रहेगा। वो मेरा था, मेरा है, मेरा ही रहेगा। मेरे मौज-ए-दिल की वजह ही रहेगा। भले ही वो मुझसे आज नाराज़ है। मुस्कुराता हुआ मेरी तरह ही रहेगा।
कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक - 2 दिनाँक - 16.01.2022 विषय :- वो मेरा था, मेरा है, मेरा ही रहेगा। वो मेरा था, मेरा है, मेरा ही रहेगा। मेरे मौज-ए-दिल की वजह ही रहेगा। भले ही वो मुझसे आज नाराज़ है। मुस्कुराता हुआ मेरी तरह ही रहेगा।
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