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kumaarkikalamse
अस्तित्व - कहानी हिन्दी और अंग्रेजी की पुस्तक से वार्तालाप की सांयकाल का समय, आते - जाते लोगों की धक्का मुक्की। दृश्य था एक पुस्तक प्रदर्शनी मेले का और मुझे सौभाग्य मिला दो पुस्तकों से बातचीत करने का। एक थी बूढ़ी हिन्दी की पुस्तक और एक थी ग्लैमर से लबरेज़ अंग्रेजी की। हिन्दी की पुस्तक जो अब वृद्ध हो चुकी थी, चेहरे पर झुर्रियाँ, आँखे कमजोर, कपकपाते हाथ, और सहमा हुआ लहज़ा बातचीत का। मैंने हिम्मत करके उनसे उनका हालचाल पूछा। वे कुछ कह पाती इससे पहले ही वहां चकाचौंध से भरी हुई, भीड़ का ध्यान आकर्षित करती हुई, आँखो पर महंगा चश्मा लगाए हुए अंग्रे
Darshan Blon
फिर दिदी और बाबा सोने चले गए और माँ मुझे कम्बलसे ढक कर, मेरे माथेको चूमते हुए कहने लगी: "बेटा भूत-वूत कुछ नहीं होता,सब तेरे मन में हैं,डरना ही है तो इंसानोसे डरके रहो " पूरी कहानी Caption में पढ़ें.... वो रात काफी ज़्यादा ठंडा थाl वैसे भी १२ मास ही दर्जीलिंग में तो लगभग ठंड ही रहता है और वो तो साल का आखरी महिना "दिसम्बर" था, तो शरीर जकड़ती ठंड का होना तो लाजमी थाl सर्दी के छुट्टियों के चलते में भी हर वक़्त दोस्तों के संग खेलने में काफी व्यस्त रहता और समय का कुछ अतापता ही नहीं रहता मुझेl मुझे आज भी वो रात अच्छे से याद है और उसके बारे में सोंचते ही मेरे मन में "डर और हंसी" का एक अनोखा मिलाजुला तरंग आज भी उठता हैl मैं शायद १० साल का था तब और रविवार का दिन होने की वजह से दोपहर को सब घरवाले साथ मि
इकराश़
वो छः साल का बच्चा ~ गद्य उस समय वो छः साल का ही तो था। कौन सुनता उसकी? किसको सुनाता वो? फैसला तो हो चुका था। बरामदे में लगी ग्रिल वाली गेट के पायदान पर खड़ा हो कर वो देखता रहा दूर जाते हुए अपने माँ-पिता को। आँखों में उसकी आँसू नहीं थे। शायद सूख चुके थे पिछले कुछ दिनों में। शायद रो-रो कर चुप हो गया था, क्योंकि उसकी रुलाई का किसी पे असर नहीं होना था, न हुआ। वो पहली बार था जब वो हारा था। अपनों से ही। नानी को अपने नाती को रखना था, वो जीत गयी। माँ ने अपना बेटी होने का फर्ज़ निभा दिया, वो जीत गयी। पिता जी शायद इसीलिए जीत गए थे
इकराश़
मैं, तुम, हम, तुम, मैं। ज़िन्दगी यूँ ही ख़त्म हो जाएगी। यही ज़िंदगी है।। इकराश़ #YqBaba #YqDidi #इकराश़नामा #गद्य #ज़िन्दगी **शुक्रिया जिन्होंने याद किया।
इकराश़
अक्सर हम जो चाहते हैं हमें नहीं मिलता, मिलता है तो बस एक एकाकीपन जो लील लेता है सब कुछ आपके अंदर का, और छोड़ देता है बस एक निर्वात जो जो भीतर बाहर से आपको खोखला, और उजाड़ कर देता है और फिर, कोई ख़्वाहिश नहीं ज़िंदा बचती है, जो आपको फिर से जीने की वजह दे दे और आप बन के रह जाते हो बस, एक ज़िंदा लाश।। और आपके अरमान, आपकी अर्थी।।। अक्सर कुछ ऐसा ही होता है ज़िन्दगी के साथ। बस एक ख़्याल है। #YqBaba #इकराश़नामा #YqDidi #गद्य #लाश #अर्थी
शुभी
मैंने रिश्तों को बनते देखा है, भरोसे की आँच पे दोस्ती को तपते देखा है, मैंने देखा है दोस्तों का क़रीब आना, उनका समय के साथ चले जाना भी देखा है। मैंने रिश्तों को बिखरते देखा है, देखे हैं दिन के नक़ाब, रात का चेहरा भी देखा है। घड़ी की टिक टिक के पीछे का शोर देखा है, कोहराम में मौजूद ख़ामोशी को देखा है। मैंने देखा है उड़ते परिंदों के क़ैद अरमानों को, मैंने पिंजर में रोशन चिरागों को देखा है। चाँद को ईर्षा से जलते हुए देखा है, और ज़मीन को सुकून से मरते हुए देखा है। गद्य लिखने का प्रयास किया था, पर पद्य ही बन गया बनते बनते। #yqbaba #dimri #yqdidi #prose #गद्य
Swarima Tewari
दुःख के दिनों में निरंतर बहते आँसुओं को देख, ईश्वर इक रोज़ एक तिल बनकर मेरे गाल पर उभर आया और मैं रोना भूलकर उस तिल के रहस्य में खो गई..ईश्वर जानता था अपने बच्चे को बहलाकर ध्यान बँटाना.. अब मैं पीड़ा के क्षणों में सुख को नहीं अपने चेहरे में ईश्वर को खोजती हूँ। ईश्वर कोई न कोई रास्ता दिखा ही देता है❤️ #yqbaba #yqdidi #yqhindi #hindiquotes #गद्य #ईश्वर #pc_pinterest #yqdidichallenge
Swarima Tewari
गले लगना इसलिए भी ज़रूरी होता है क्यूँकि कई दफ़ा हम बोलकर नहीं बता पाते कि हम कितने उदास हैं। (Caption) गले लगना इसलिए भी ज़रूरी होता है क्यूँकि कई दफ़ा हम बोलकर नहीं बता पाते कि हम कितने उदास हैं। गले लगना उदासी नापने का सटीक और सबसे खूबसूरत मापक यंत्र है। .......................................................... दोतरफ़ा मोहब्बत का इकतरफ़ा में बदल जाना अब तक की सबसे ख़ौफ़नाक स्थिति मानी गयी । .......................................................... रिश्ता बचाने के लिए प्रेम काफ़ी होता है ये दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है, भावनाओं का सम्मान और थोड़ा सा झुक जाना रिश्ता बचाने का मूलमंत्र है और ये दुनिया का सब
Swarima Tewari
मेरे बेअदब से ख़त (full in caption) मेरे बेअदब से ख़त.. जिनमें नहीं होती नमस्कार प्रणाम जैसी शुरुआत, नहीं पूछा जाता हाल चाल सामने वाले का क्यूँकि मुझे लगता है कि अगर वो मुझे जानता है तो ख़ुद ही मेरा काँधा माँग लेगा। इसलिए मैं सीधे आ जाती हूँ काम की बातों पर...न कोई औपचारिकता की कशमकश, न किसी झूठी मीठी बातों का बंधन! मेरे बेअदब से ख़त किसी सीमा में नहीं बंधते..बहते हैं पहाड़ों, पत्थरों की परवाह किये बिना बेपरवाह झरने से.. और न ही अंत मे लिखती हूँ सप्रेम, प्यार सहित, आपका अपना..बस अंत कर देती हूँ सिर्फ़ अपने नाम से। पर खटक जाती है यही ब
Swarima Tewari
बचा लो बचा लो! (caption) फेंक दो फेंक दो! धरा से बाहर ये आग के गोले इक गोला बनेगा सूरज, कोई बनेगा ठंडा चाँद मिटा दो मिटा दो! धरा से ख़ून का नामोनिशान ये रक्त गाड़ा हो बनेगा परत ओज़ोन की भेज दो भेज दो! एक डब्बे में नभ को नफ़रत की आँधियाँ