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Sandeep Kothar

प्रिय पाठकों, मैं आपके साथ अपने दिल की गहराई से बात करना चाहता हूं। मेरी कविता में मैंने अपनी जीवन यात्रा को व्यक्त किया है, जो शहर की भीड़ और शोरगुल से दूर सुकून और शांति की तलाश में है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि हम सभी इस जीवन में अपने आप को ढूंढने की यात्रा पर हैं। हमें अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहार को समझने में मदद मिलती है, जिससे हम अपने जीवन में सुधार कर सकते हैं। मेरी कविता आपको अपने आप को समझने और अपने जीवन में सुधार करने के लिए प्रेरित करती है। यह आपको अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर

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Unsplash "खामोशी का आईना"

शहर की भीड़ से, कहीं दूर,
सुकून के पल तलाशता हूं,
शोरगुल की आगोश में खोया हुआ,
मेरा अक्स, मेरी पहचान तलाशता हूं।

न जाने कब और कहां,
मेरे खयालों का जहां मिल जाए,
इस उम्मीद में,
खामोशी का आईना तलाशता हूं।

©Sandeep Kothar प्रिय पाठकों, मैं आपके साथ अपने दिल की गहराई से बात करना चाहता हूं। मेरी कविता में मैंने अपनी जीवन यात्रा को व्यक्त किया है, जो शहर की भीड़ और शोरगुल से दूर सुकून और शांति की तलाश में है।

मैं आपको बताना चाहता हूं कि हम सभी इस जीवन में अपने आप को ढूंढने की यात्रा पर हैं। हमें अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहार को समझने में मदद मिलती है, जिससे हम अपने जीवन में सुधार कर सकते हैं।

मेरी कविता आपको अपने आप को समझने और अपने जीवन में सुधार करने के लिए प्रेरित करती है। यह आपको अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर

chander mukhi

क्या खोया ,क्या पाया 
हिसाब क्या करें 
ज़िन्दगी है एक दरिया 
पानी से बहें

©chander mukhi #जीवनयात्रा

Death_Lover

Rekha Gakhar

Anamika Nautiyal

मौसम सदैव बदलते रहते चाहे हो सर्दी-गर्मी धूप या बरसात,
जीवन रूपी इस यात्रा में हमेशा एक से नहीं रहते हैं हालात।

पल्लवित होती कोंपलों सा बचपन, यौवन में संघर्ष की बात,
कभी फ़िकर दो रोटी की, कभी प्रेम में डूबे हुए से ख़यालात।

कभी आता खुशियों का सावन तो कभी दुःखों का झंझावात,
नई उम्मीदों का सवेरा तो कभी असफल कोशिशों से भरी रात।

गिर जाते हैं कभी कुछ रिश्ते भरभरा कर जैसे पतझड़ में पात,
खिलते प्रेम पुष्प जीवन बगिया में बनकर बसंत की शुरुआत।

गुनगुनाती  शरद की मीठी सी बातें कभी  सर्द से होते जज़्बात,
फिर शुरू होता नया चक्र, देखते ही देखते आती मृत्यु अकस्मात

विचलित ना हों परिस्थितियाँ दुष्कर होने पर, धैर्य दिलाता निजात,
सुख और दुःख दोनों ही अवस्थाएँ स्थिर रखती जीवन का अनुपात।

परिवर्तन ही प्रकृति  का नियम फिर इन मौसमों की क्या बिसात,
हर दिन नया समझकर एक नए सिरे से करें ज़िंदगी से मुलाक़ात। यही है अनाम बात  😁

#pnpabhivyakti  #pnpabhivyakti4 #अनाम_ख़्याल #अनाम_बात #रात्रिख़्याल #जीवनयात्रा

Shilpa Yadav

#Travel #जीवनयात्रा #खुशहाली #बिखरेएहसास #Travel कलम-कर Sandip rohilla Raj Yaduvanshi अं_से_अंशुमान MM Mumtaz

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कौतूहल एक नई उमंग लिए है
एकांत के बजते उपंग दिए है।।

©Shilpa yadav #Travel
#जीवनयात्रा
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#बिखरेएहसास

#Travel  कलम-कर  Sandip rohilla Raj Yaduvanshi अं_से_अंशुमान MM Mumtaz

Shankar kamble

Tara Chandra

जीवनयात्रा: 
'शरीर' को जीवनभर 'मन' ने जितना चाहा दौड़ाया,
'आत्मा' की आज्ञा तो कभी सुनी ही नहीं गयी।। 

'बुद्धि' ने 'मन' के गलत निर्णयों के विरुद्ध हर बार बोला,
किन्तु 'मन' और 'इंद्रियों' के बहुमत से उसकी ध्वनि दब गई।। 

घर, समाज के बड़ों, बुजुर्गों ने कितना समझाया,
किन्तु अहंकार की आग ने वो सब 'राय' जला दी।। 

जीवन के दशक चुटकियों में निकलते गये,
'मन' ने कभी भी 'समय' से 'भेंट' न होने दी।। 

स्वयं ही स्वयं की एक विचित्र व छद्म दुनियाँ गढ़ ली 'चित्त' ने,
'नींव' इतनी क्षीणकाय कि सदैव हिलती रही।। 

क्यों न हो विछोह? आखिर, ऐसे दुष्ट संगी साथियों से,
आत्मा चुप भले रही पर रूठती चली गयी।। 

थकते शरीर से अब 'मन' का मन भी भर गया है,
वो पर्दे के पीछे कहीं जा के दुबक गया है।। 

उसकी बनाई 'भ्रामक' दुनियाँ भी ढह गई है,
जीवन का 'उद्देश्य' संभवतया 'कुछ' भी नहीं था,
तभी तो एक 'कमीं' जीवनभर अन्दर से खटखटाती रही,
आज द्वार खोल उससे बात की तो पूछ रही थी,
क्यों चाहिए था मनुष्य जीवन तुमको?
यही सब में लिप्त रहना था तो अन्य योनि ही ठीक हैं... 

आत्मा अब कुछ राय नहीं दे रही...
बस रह-रह के यही मानस उभर रहा है.. 

कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।
जो जस करहि सो तस फल चाखा ॥

©Tara Chandra #जीवनयात्रा

साहेब सतीश

#जीवनयात्रा #WForWriters Kavi Ashish Upadhyay RJ Neha Tiwari 👸

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एक तुम हो सही एक मैं भी सही हूँ,
पर बिछड़न है हमारी प्रीत में राधे,
एक नियति की पीड़ा है पीर हमारी,
एक ख्याल हमारा पर हम आधे-आधे।।

©साहेब सतीश #जीवनयात्रा

#WForWriters  Kavi Ashish Upadhyay RJ Neha Tiwari 👸

'मनु' poetry -ek-khayaal

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