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Archana Chaudhary"Abhimaan"
शायद........ शायद समझ ना पाए तुम मुझे शायद समझ ना पाई मैं तुम्हे सालो का साथ यूंही बीत गया दिल के जज़्बात कोने में दफ़न होगए। समझने समझाने के लिए पास आई किसी अजनबी को पास पाया। कभी थकावट का इशारा था कभी रात ढल जाने का बहाना था हर वक्त ही रुसवाई थी जाने किस बात की सजा पाई थी। इजहार का इंतजार करते करते जाने कितनी राते गुजार दी। एक अहसास को तरसते रहे एक जज़्बात को तरसते रहे। Archana Chaudhary'Abhiman' #सिसक
An_se_Anshuman
आंखें मजाल है ढल जाएं तेरे हिज्र में जागते हुए दिल धक से रुक जाता है तेरी आवाज में सिसक को भांपते हुए , ©अं_से_अंशुमान #सिसक #Anshuman #twoliner #Hindi
aamil Qureshi
किसी रोज़ छॉंव की तलाश में किसी रोज़ छांव की तलाश में निकलने वाला तू नही जब इंसां होकर इंसां को ही फिर समझने वाला तू नही तू खुद के फायदे को काट लेगा अपने ही जनै को बेजुबान पेड़ों को काटने से सम्भलने वाला तू नही एसी फिज्र कूलर की आदत हो गयी है तेरे शरीर को मखमल हवा के झोंके से अब पिघलने वाला तू नही मर जायेगा सिसक सिसक कर यूही हवा के बिन तक़ब्बुर है तुझमें शुरुआत नेकी की करने वाला तू नही आमिल Kisi roz chaav ki talash m niklne wala tu nhi Jab insaa hokr insaa ko hi fir samjhne wala tu nhi Khud k fayde ko kaat lega apne hi janne ko Bezubaan paiddo ko katne se sambhalne wala tu nhi Ac fridge cooler ki adat ho gyi h tere shareer ko Makhmal hwaa ke jhoke se ab pighalne wala tu nhi
Kisi roz chaav ki talash m niklne wala tu nhi Jab insaa hokr insaa ko hi fir samjhne wala tu nhi Khud k fayde ko kaat lega apne hi janne ko Bezubaan paiddo ko katne se sambhalne wala tu nhi Ac fridge cooler ki adat ho gyi h tere shareer ko Makhmal hwaa ke jhoke se ab pighalne wala tu nhi
read moreRadhika Udavat
#OpenPoetry कर बखान विभिन्न घटनाओं का मैं ,अपना जीवन वृत्तांत सुना रही । मां की तीसरी बेटी हूं मैं ,अपने बड़ों से उपेक्षित हुई । मां ने तराशा संस्कारों से ,बाबा के साएं में बड़ी हुई । पढ़ाई में जब लगन लगी मैं ,अपने स्तर से उठती रही । अपने जीवन की पहली जीत मैं ,जीवन भर के लिए संजोती रही । कद बड़ा , सम्मान बड़ा , अब मैं ,अपनी नज़रों में बड़ी हुई । जीवन के सबसे नाजुक पल में ,अब मैं प्रवेश थी कर रही । स्कूल बदला , साथी बदले ,पढ़ाई की लगन वहीं रही । भावुक बनी मैं , सच्ची बनी मैं ,फिर भी दूसरों के स्वार्थ में पिसती रही । मार्मिक हृदय सी काया लिए मैं ,क्षणभंगुर सी प्रतीत हुई । जब - जब टूटी दिल ही दिल से,सिसक - सिसक कर रह गई । कमजोर हुई , अपनों से थोड़ी दूर हुई ,पढ़ाई में फिर भी अव्वल रही । शिक्षा की लगन से पहचान पाई ,जब १२ वी में , मैं प्रथम आयी । नया उजाला मिला जीवन में , नए पड़ाव की ओर अग्रसर हुई । नाजुक पलों को पार कर मैं ,नासमझ से समझदार बनी। मां - बाबा की उम्मीदों को लिए मैं ,रोज नए नए सपने बून रही । अपनी सोच को उत्कृष्ट मान मैं ,आत्मविश्वास की नाव पर सवार हुई । इसी आत्मविश्वास से मेरे जीवन में , कविता की उत्पत्ति हुई । होंसला , मेहनत का साथ लिए मैं ,अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही । नित-नए विचारों को आत्मसात कर मैं,अपने अंतर्मन के लक्ष्य को पहचान रही । #OpenPoetry
Shivam Verma
#OpenPoetry {••••••मन••••••} इस तन पर और मन पर व्यापित हैं जग की पीड़ा तन हर्षित मन कुलपति फिर मन भए व्यकुलाए मन कुंठित तन कर्म करे तन कुंठित मन रोए असुअं में जब धीर हरे तब सिसक सिसक बिखराए तेरी पीड़ा " सौं " तू जाने फिर भी रहे छिपाए जग जानै मन मोरे खेल करै सब कोई तू बस ठहरा कोरा कागज तुझ संग मीत करै ना कोई "जो जन जस मन तस तुझ संग करे अनुरागी" प्रीति वचन सब मोह आगंतुक बैरागी तुझ झोंके विरह की अग्नी खुद रात करै रंगीनी मन तू कोमल, निश्छल, निर्मल तोहे छलै सब कोई। (मेरी डायरी से) #OpenPoetry {••••••मन••••••}
#OpenPoetry {••••••मन••••••}
read moreगौरव गोरखपुरी
#OpenPoetry बुझी नहीं थी जब सीने कि आग रह गई थी तड़प तड़प कर रोयी थी आंखे - कभी सिसक - सिसक कर कभी फफक - फफक कर #OpenPoetry ro
#OpenPoetry ro
read moreनशीली कलम
तेरे जाने के बाद वो कमरा भी सिसक सिसक कर रोया जिसकी चादर तू ओढ़ कर सोया करती थी ❤❤ बल्देव पाण्डेय #NojotoQuote इश्क ❤ Kalakaksh Internet Jockey Satyaprem
इश्क ❤ Kalakaksh Internet Jockey Satyaprem
read more"निश्छल किसलय" (KISALAY KRISHNAVANSHI)
दिल फटता है कलम रूकती है फूलों की ऐसी विदाई पर , हमने तो अपना सब कुछ दे डाला तरस आता है उनकी रुसवाई पर , बातें वही पुरानी अब तक अब कुछ अच्छा करके देखेंगे तुम तो अपना(वोट ) दे चुके हो हम तुम्हे अगले चुनाव में देखेंगे आज देखे और देखते रह गए फूलों की कोई परवाह न की , मां की सूनी कोख न देखी बाप की बेबसी की परवाह न की , गुलिस्तां को सँवारने चले है फूल बिना ये गुलशन कैसा कलियाँ सिसक सिसक के रूठी बिना बहार ये चमन कैसा देखा पतझर हमने पहले भी पर पत्ते गिरते थे पुराने वाले चमन सूना और बागबाँ रोता है ये वो फूल थे चमन महकाने वाले सब कुछ होता रहा गुलशन में माली की ख़ामोशी कुछ ऐसी है न हलचल हुई न उसकी नींद टूटी ये उसकी मदहोशी अब कैसी है फूलों की ज़रूरत न माली को है पर दरख्तों की हालत अब कौन सुने जिसकी कलियाँ सुखी, फूल गिरे अब सूखे फूल को कौन चुने सुना मौसम वैज्ञानिक रहते है तेरे कुनबे में क्यों इस अंधड़ को वो पहचान न पाए हो रहा अब ये क्यों गुलशन सूना राजनीति की तरह क्यों जान न पाए ©️किसलय कृष्णवंशी "निश्छल"
Anjali Srivastav
देख आईना मुस्कुराती रही एक तुझे ही गुनगुनाती रही है तू ही मेरा हमसाया सनम देख खुद को ही लजाती रही तेरे नाम की पहनकर पायल छम छम छम छनकाती रही डूबकर तेरे इश्क़ में तो.... जाम तुझे ही पिलाती रही बना काजल आंखों का मै तुझे ही पल-पल लगाती रही संग तेरे ही रहने को मैं .... उम्मीद का दिया जलाती रही तुम संग जीऊं,पल- पल ऐसा स्वप्न मैं सजाती रही बन जाऊँ रोशनदान तेरी जुगनू बन मैं जगमगाती रही बन दीवानी सिसक-सिसक कर खुद को ही पागल बनाती रही न जाने कैसा डर है समाया जिसे देख मैं नज़रे चुराती रही....।। अंजली श्रीवास्तव देख आईना मुस्कुराती रही एक तुझे ही गुनगुनाती रही है तू ही मेरा हमसाया सनम देख खुद को ही लजाती रही तेरे नाम की पहनकर पायल छम छम छम छनकाती रही
देख आईना मुस्कुराती रही एक तुझे ही गुनगुनाती रही है तू ही मेरा हमसाया सनम देख खुद को ही लजाती रही तेरे नाम की पहनकर पायल छम छम छम छनकाती रही
read moreShivank Shyamal
अंधेरी रात ‘बलात्कार: समाज का कड़वा सत्य’ अंधेरी रात चल पड़ी थी वो अंधेरे से रास्ते पर , मन में डर का एक वीराना सा डर भर, सिसकियों से भर चुका था, सहमा हुआ ये दिल उसका, पलट उसने देख लिया था, हब्शियों का एक झुंड ।।
अंधेरी रात चल पड़ी थी वो अंधेरे से रास्ते पर , मन में डर का एक वीराना सा डर भर, सिसकियों से भर चुका था, सहमा हुआ ये दिल उसका, पलट उसने देख लिया था, हब्शियों का एक झुंड ।।
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