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Praveen Jain "पल्लव"
Red sands and spectacular sandstone rock formations पल्लव की डायरी खलल सियासतों का मचा लूट का ही पैगाम है हित आवाम का चकनाचूर हुआ व्यवस्था का बंटाहार है अरबो का पार्टियों का फंड जुड़ा एजेंसियों के बल पर घायल हिंदुस्तान है महँगाई और कर्ज देश पर बढ़ता गया मगर राजनीतिक दल माला माल है ये चुनावी फंड किस करवट बैठेगा इसकी आड़ में पनपता अपराध और भ्र्ष्टाचार है पेंशन रोजगार सबसिडी देने में होते नाकाम मगर पार्टियो का फंड जिंदाबाद है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Sands हित आवाम का चकनाचूर हुआ,पार्टियो के फंड जिंदाबाद है #nojotohindi
Rabindra Kumar Ram
" कोई मिली हैं हुबहू तुमसा वो तुम नही थी , ख्वाब हक़ीक़त बनते बनते ख्वाब ही रहा , आखिर कब तक ये मलाल रखा जाये , तेरे मौजूदगी का होने और ना होने यकीनन कुछ यकीन आये मुझको . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " कोई मिली हैं हुबहू तुमसा वो तुम नही थी , ख्वाब हक़ीक़त बनते बनते ख्वाब ही रहा , आखिर कब तक ये मलाल रखा जाये , तेरे मौजूदगी का होने और ना
Shivkumar
हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं । मुहब्बत को बस एक भरम जानते हैं । मैं क्या इसके बारे में मंज़िल से पूछूँ , थकान मेरी , मेरे क़दम जानते हैं । हमें भूल जाने की आदत है लेकिन, तुम्हे , हम , तुम्हारी क़सम जानते हैं । ये छुपना कहाँ और ये बहना कहाँ है, ये आंसू सब अपना धरम जानते हैं । आशु छलकती है क्यों आँख से हमको पता है , कहाँ सब लोग यु बिछड़ने का ग़म जानते हैं । दिया तो है मजबूर कैसे बताये उजालों की तकलीफ तो हम जानते हैं है जो भी कुछ हमें इस जहाँ में हम उसको खुदा का करम जानते हैं। ©Shivkumar #relaxation #हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं । #मोहब्बत को बस एक भरम जानते हैं । मैं क्या इसके बारे में #मंज़िल से पूछूँ , #थकान म
koko_ki_shayri
वक़्त के रेत फ़िसल रहे हैं, आईने भी करवटें बदल रहे हैं! फ़रेब के दाँव अब नहीं चलेंगे हमपर, तेरे हक़ीक़त से हम रूबरू हो रहें है!! ©koko_ki_shayri #तेरे हक़ीक़त से रूबरू हो रहे हैं...🙏🙏
Sarvesh kumar kashyap
BROKENBOY
हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं। मुहब्बत को बस इक भरम जानते हैं। मैं क्या इसके बारे में मंज़िल से पूछूँ, थकन मेरी मेरे क़दम जानते हैं। हमें भूल जाने की आदत है लेकिन, तुम्हे हम तुम्हारी क़सम जानते हैं। है छुपना कहाँ और बहना कहाँ है, ये आंसू सब अपना धरम जानते हैं। छलकती है क्यों आँख हमको पता है, कहाँ सब बिछड़ने का ग़म जानते हैं दिया तो है मजबूर कैसे बताये उजालों की तकलीफ तम जानते हैं है जो कुछ मयस्सर हमें इस जहाँ में हम उसको खुदा का करम जानते हैं। ©BROKENBOY #hugday हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं। मुहब्बत को बस इक भरम जानते हैं। मैं क्या इसके बारे में मंज़िल से पूछूँ, थकन मेरी मेरे क़दम जानते
अदनासा-
orange string love light हक़ीक़त भले हमें एक-दूसरे से दूर रहने को मजबूर कर देती है पर ख़्वाबों ख़यालों की मदद से वो हमें बहुत करीब ले आती है ©अदनासा- #हिंदी #हक़ीक़त #ख़्वाबों #ख़यालों #करीब #दूर #ValentineDay #lovelight #Instagram #अदनासा
||स्वयं लेखन||
दूर होकर भी करीब रहोगे तुम, मेरी हक़ीक़त में ना सही , मेरे तसव्वुर में सदा रहोगे तुम। ©||स्वयं लेखन|| दूर होकर भी करीब रहोगे तुम, मेरी हक़ीक़त में ना सही , मेरे तसव्वुर में सदा रहोगे तुम। #Love #Life #Life_experience #Zindagi #thought #Poet
सत्यमेव जयते
26 jan republic day भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े हुए उर्दू शायर मौलाना हसरत मोहानी ने साल 1921 में "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा दिया था. जिसका मकसद था लोगों में चेतना पैदा करना जिससे वो सरकार के द्वारा हो रहे जुल्मों के खिलाफ लड़ सकें. इस नारे के मायने भगत सिंह और उनके साथियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे. इसी वजह से भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों ने दिल्ली की असेंबली में 8 अप्रेल 1929 को बम फोड़ते और पर्चें फेंकते हुए जोर-जोर से इस नारे को अपनी बुलंद आवाज से लोकप्रिय बनाया. ©Kumar Vinod "इंकलाब जिंदाबाद"
||स्वयं लेखन||
हसरत है उनको अपना बनाने की, मगर हक़ीक़त की ज़मीन पे हसरतें कहां मुक़म्मल होती हैं। ©Gunjan Rajput हसरत है उनको अपना बनाने की, मगर हक़ीक़त की ज़मीन पे हसरतें कहां मुक़म्मल होती हैं। #MoonShayari #Life #Life_experience #thought #Zindagi #Lo