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अबोध_मन//फरीदा
. . ©अबोध_मन//फरीदा निर्झर लोचन, करे करुण क्रंदन, रुग्ण सी लागे काया, जग ने कैसा भरमाया.? मन पावन, कुछ है अनमन, कोई समझ न पाया,
अबोध_मन//फरीदा
. . ©अबोध_मन//फरीदा निर्झर लोचन, करे करुण क्रंदन, रुग्ण सी लागे काया, जग ने कैसा भरमाया.? मन पावन, कुछ है अनमन, कोई समझ न पाया,
Vikas Sharma
पहनी आंसूँ की माला बना कर, पीडा रह गयी बस शरमाकर, तन पर कुरता एक फ़टेला, मन में आहों का मेला, रौंदता पदों के घावों को शमित करता तप्त राहों को करता सडकों पर रक्त वमन, मैं चला छोड खिलता चमन, मारे भूख निकलना पडा सडक पर, देश की आंखों में रडक कर, इसी मारे लोचन तने हैं मुझपर, यही मेरा पारितोष है! सब मेरा ही दोष है, सिंहासन निर्दोष है! -विकास भारद्वाज पहनी आंसूँ की माला बना कर, पीडा रह गयी बस शरमाकर, तन पर कुरता एक फ़टेला, मन में आहों का मेला, रौंदता पदों के घावों को शमित करता तप्त रा
Gopal Lal Bunker
विषपान करना जरा नर को भी सिखला दो ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ विष उगलने वाले शैतान हो गए हैं विष निगलने वाले शिव हो गए हैं, मगर देखते हैं लोगों को तो पाते हैं जैसे सब शैतान हो गए हैं, क्यों हो गए लोग शैतान शिव के देश में क्यों नाम लेकर शिव का शैतान से अघाते हैं, विष का जिम्मा केवल उस शिव पर छोड़ दिया है जो नीलकंठ है, भोला है, आदि है; शक्ति है, पीकर अमृत क्यों लोग विष वमन करते हैं आगे बार बार क्यों फिर शिव को करते हैं, लगता है लोगों ने खुद के जिम्मे अमृत लिया है औरों के जिम्मे तो विष ही विष दिया है, बना व्यापार लिया है लोगों ने विष को विष घोल-घोल कर किसी न किसी बहाने से, जय जयकार करते हैं नीलकंठ की और भर उन्माद फिर बात करते हैं विष वमन की, हे शिव मेरे, हे नीलकंठ मेरे विषपान करना जरा नर को भी सिखला दो, शिव कैसे होता है 'सत्यं शिवं सुंदरम्' जरा सिखला दो, मनमंथन के विष को पीना भी सिखला दो अमृत को बांँटना भी सिखला दो। ✍️ गोपाल 'सौम्य सरल' Pinterest wallpaper #शिव #सत्यंशिवंसुंदरम् #glal #restzone #yqdidi #rztask456 #rzलेखकसमूह विषपान करना जरा नर को भी सिखला दो ~~~~~~~~~~~~
Ajay Amitabh Suman
............. ©Ajay Amitabh Suman #राजनीति,#नरसंहार,#व्ययंग,#पलायन,#Politics,#Genocide,#Satire,#Opportunist जब देश के किसी हिस्से में हिंसा की आग भड़की हो , अपने हीं देश के व
रजनीश "स्वच्छंद"
कटु-वाणी।। किस कर दीप बुझाऊँ बोलो, जो सुबह रही रौशन ही नहीं। एक फूंक मार दूँ भी मैं कैसे, जो दुबक रहा यौवन ही कहीं। अज़ान श्लोक वाणी है महज़
Dr Jayanti Pandey
बांटने की राजनीति फिर से बाजार में आई है वो रहबर बने फिर रहे हैं,जो देश के सौदाई हैं कहते फिर रहे हैं ,उन्हें उनके हिस्से का हक मिले देश बंटा जिनकी शह पर,उन्हें यहां का सब मिले? श्रीमंत ! बहुत सह चुकी है धरती यह,अब और नहीं लाखों की हत्या का रक्त है तुमपर,भूलने का दौर नहीं नहीं पसंद यहां की संस्कृति, कहीं भी जा सकते हो सत्तावन देश हैं उम्मा में, देखो , शरण पा सकते हो! एहसान हमारी संस्कृति का है कि फल-फूल रहे हो इसमें पल कर, इसको ही तुम रातों दिन हूल रहे हो बांटा,काटा तलवारों से, नफ़रत का विष वमन किया तुम्हारी वहशी जीवनचर्या ने बाकी का दम घोंट दिया यह शिव राजे का देश है, यहां शिवराई ही आएगी बिके हुए गद्दार निजामों की एक नहीं चल पाएगी। देश हमारा समझ चुका है, ये खेल तुम्हारे गहरे हैं तुम्हारे ही व्यंजन तुम्हें चखाने के वादे पर हम भी ठहरे हैं। आदरणीय ओवैसी जी ने लखनऊ में एक तकरीर की कि उन्हें सियासत में उनका हिस्सा मिलना चाहिए।यह हिस्सा वो भारतीय होने के नाते नहीं, मुसलमान होने के
Aprasil mishra
जीवन का उत्कर्ष कहाँ है, सुधा कहाँ है स्वर्ग कहाँ है? ढूढ़ रहा हूँ पग-पग भू पर, प्रेम दीप्त संसर्ग कहाँ है?? (अनुशीर्षक अवलोकनीय) **************** जीवन का उत्कर्ष कहाँ है, सुधा कहाँ है स्वर्ग कहाँ है? ढूढ़ रहा हूँ पग-पग भू पर, प्रेम दीप्त संसर्ग कहाँ है?? मानवता का अर्
Ravendra