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Shaarang Deepak
||स्वयं लेखन||
ॐ नमः पार्वती पतेय हर हर महादेव! एक केशर विलेपित कोमल कमल राजकन्या, शोभित न्यारी ललित ललाट, दिव्य छविधारी गौरी प्यारी। दूजे शोभित हैं भभूत,विषधर नीलकंठ मुंडमाल से भरा कंठ, धारण किए चंद्र चमक रहा मस्तक, जटाधारी केश,भाल त्रिनेत्र बर्फाच्छादित निवास क्षेत्र। पर्वतपुत्री शोभित न्यारी कनक बसन कंचुकी सजाए, स्वर्ण आभूषण शोभा भाए, हृदय में शिव को बसाए, एक ही हठ वर बने शिवशंकर जाती कैलाश शिखर निष्ठावान प्रेम संकल्प लिए शैल सुता पूजती शिवलिंग, अन्न जल त्याग प्रेमरस भींग, वैरागी शिव के हृदय में कर प्रेम जागृत, किया शक्ति ने स्वयं को समर्पित। ©||स्वयं लेखन|| ॐ नमः पार्वती पतेय हर हर महादेव! एक केशर विलेपित कोमल कमल राजकन्या, शोभित न्यारी ललित ललाट, दिव्य छविधारी गौरी प्यारी।
AJAY NAYAK
मदिरा हम भी उस महफ़िल में होंगे, जहां चांदनी रात के साये में, मस्ती होगी, गीत होंगे, संगीत होंगे, दोस्तों के बीच अच्छे तराने होंगे। एक हाथ में कांच का गिलास होगा, एक हाथ में साथी का हाथ होगा, सामने खड़ा एक साकी होगा, जो गिलास को समय पर रंगता होगा। कुछ अच्छी बातें होंगी, तो थोड़ी बहुत नोकझोक होगी, निकलेंगे हम वहां से गरम मिजाज़ में, अगले दिन फिर एक टेबल पर होंगे । कुछ तो बात है इस मदिरा में, जो छलकते ही पूरा पूरा बिखर जाता है पर कभी अपना गुणधर्म नही है छोड़ता तीस मिली में भी कमाल दिखा जाता है । जो जो जाता है इसके साए में वह उसका होकर रह जाता है बस एक घूंट कंठ से उतरते ही दुश्मन भी दोस्त बन जाता है । मैं भी अब सोच रहा हूं थोड़ा लेकर इसे अंदाजू साकी से कहकर भर लूं अपना गिलास। चख लूं दोस्तों के साथ इसका स्वाद देख लूं क्यों है यह दुनिया में विशेष जो भी जाता है इसके आगोश में, वह कैसे? ऊंच नीच, अमीर गरीब का, भूल जाता है भेद । –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #Wine #मदिरा मदिरा हम भी उस महफ़िल में होंगे, जहां चांदनी रात के साये में, मस्ती होगी, गीत होंगे, संगीत होंगे, दोस्तों के बीच अच्छे तरा
Prakash writer05
सुनो तुम आओगी न देखने जब इस हृदय की धमनियां ठंढी पड़ जाएंगी, जब इस देह पर कफ़न की सफेद चादर डाल दी जाएंगी... आना जरूर मैं मिलूँगा तुम्हे चिता की ठंढी हुई राख में, जलते हुए शरीर से उठते हुए धुंए में...मैं इंतज़ार करूँगा दोस्त तुम्हारे आने का..वहां लोग बहुत होंगे मगर तुम आना चुपके से भीड़ के पीछे छुप कर खड़े हो जाना देखना जब मुझे मुखाग्नि पड़ रही होगी तो मेरे कंठ तुमसे कुछ कह रहे होंगे, वो शब्द जो किसी से न कहे गए.. ज़रा कठिन होगा पर तुम समझ जाओगी... हा थोड़ी सी राख जरूर अपने साथ लेते जाना और इक चुटकी अपने मांग में सजा लेना ।। ©Prakash writer05 #सुनो तुम आओगी न देखने जब इस हृदय की धमनियां ठंढी पड़ जाएंगी, जब इस देह पर कफ़न की सफेद चादर डाल दी जाएंगी... आना जरूर मैं मिलूँगा तुम्हे चि
Devesh Dixit
गरल (दोहे) गरल भरे मन में यहाँ, देखो जो इंसान। कष्ट भोगता है वही, कहते हैं भगवान।। दुष्ट धरे जो भावना, वो बदले की राह। मर्म उसे सोहे नहीं, करे गरल की चाह।। गरल धरे जो कंठ में, वो हैं भोले नाथ। दुष्टों का संहार कर, भक्तों का दें साथ।। करे गरल का त्याग जो, सज्जन उसको मान। छोड़ सभी वह द्वेष को, करता सुख का पान।। गरल भरे आस्तीन में, छिप कर करता वार। अपमानित होता तभी, मन में रखता भार।। .............................................................. देवेश दीक्षित स्वरचित एवं मौलिक ©Devesh Dixit #गरल #दोहे #nojotohindipoetry गरल (दोहे) गरल भरे मन में यहाँ, देखो जो इंसान। कष्ट भोगता है वही, कहते हैं भगवान।। दुष्ट धरे जो भावना, वो
KP EDUCATION HD
KP NEWS HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for the ©KP NEWS HD इस पर्व का संबंध शिव जी से है और 'हर' शिव जी का नाम हैं इसलिए हरतालिका तीज अधिक उपयुक्त है. महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखने का संकल्प लेती ह
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अपनों में ही मिल गये, आज मुझे अब सर्प । वे ही अब तो कह रहे , कैसा हमसे दर्प ।।१ हम तो शंकर हैं नहीं,मानव हैं नादान। विष पीते ही कंठ से,हो तन का अवसान ।।२ कैसे धारण हम करें , आज गले में सर्प । हम तो बस इंसान है , हो जाता है दर्प ।।३ भोले करते जो यहाँ , होता वही विधान । हम तो प्राणी तुच्छ हैं ,बन न सके इंसान ।।४ जानें अब किस बात से ,हुआ यहाँ गृह-क्लेश । हम तो हैं परदेश में , लिख भेजो संदेश ।।५ प्रियतम को मन की व्यथा ,लिखती सजनी आज । तुमसा मेरा हाल है , क्या खोलूँ मैं राज ।।६ २७/०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- अपनों में ही मिल गये, आज मुझे अब सर्प । वे ही अब तो कह रहे , कैसा हमसे दर्प ।।१ हम तो शंकर हैं नहीं,मानव हैं नादान। विष प
Arun Rathore
हर मानुष का धर्म होना चाहिए और उस धर्म का निर्वहन करना गुरु के बिना, संभव नहीं.. गुरु उतना ही आवश्यक है जितना इस धरा पर जीवित रहने के लिए जल. कदाचित गुरु के बिना शिष्य का कंठ गीला, नही हो सकता क्योंकि गुरु उस जल के समान है जिसमें सटीक पारदर्शिता हमेशा बनी रहती है. ©Arun Rathore #guru हर मानुष का धर्म होना चाहिए और उस धर्म का निर्वहन करना गुरु के बिना, संभव नहीं.. गुरु उतना ही आवश्यक है जितना इस धरा पर जीवित रहने के
Bharat Bhushan pathak
मुक्तक विधान-१,२ एवं ४ पंक्ति तुकांत तथा ३ पंक्ति अतुकांत सममात्राभार पर आधारित गरीबी गीत गाती है,अमीरी को, रिझाती है। सुखाकर कंठ ये अपना,इनके प्यास,बुझाती है।। गलाकर फेंक दे भोजन,अगर या छोड़ दें सड़ने- हुजूरी चल,रही इनकी,सुनो दुनिया,बताती है।१ मिले जब कष्ट भी इनको,कहे ये भाग्य में लिखा। अमीरी चाकरी करना ,गरीबी ने, यही सिखा।। नयनजल बेचके हरदम,गरीबी पेट भरती है- हमें आराम देते क्या,उन्हें हमने,कभी देखा।२ ©Bharat Bhushan pathak मुक्तक विधान-१,२ एवं ४ पंक्ति तुकांत तथा ३ पंक्ति अतुकांत सममात्राभार पर आधारित गरीबी गीत गाती है,अमीरी को, रिझाती है। सुखाकर कंठ ये अपना,इ
Nisheeth pandey
हाय रे पानी पानी रे पानी आकाश में भी तू , धरती पे भी तू , पाताल में भी तू जाने कितनों को सजीव किये जाने कितनों को डुबो खाये पानी रे पानी कहीं घर उजाड़े कहीं खेत उजाड़े आसमान से बरसे पानी कहीं कपड़ा वपडा,बर्तन बासन गरीब के मोल डुबाये कैसा है ये पानी है बाढ़ पर अड़े मोल-भाव बाढ़ न करें हाय रे पानी पानी रे पानी कभी कंठ सूखने का महिना आए तब एक गिलास पानी का भी है दाम लगाए बिकने लगे बोतल में पानी साला पानी में भी मिलावट को है पाया भोली जनता कहाँ कहाँ न ठगाए हाय रे पानी पानी रे पानी कभी सूखाती प्यास कभी बुझाती स्वास हम सबकी शामत आयी चहुँ ओर धरती पर छायी पानी रे पानी जिधर निकले उधर पानी न नैया न पतवार प्रकृति ने दी कैसा भ्रम जाल कहीं मृगतृष्णा कहीं पानी का अथाह सागर दोनों बुझा न पाए कण्ठ प्यास पानी रे पानी पानी रे पानी .. तू रक्षक भी तू भक्षक भी तेरे बगैर शरीर नहीं तू हरती पल में साँस भी पानी रे पानी पानी पानी ....... #निशीथ ©Nisheeth pandey हाय रे पानी पानी रे पानी आकाश में भी तू , धरती पे भी तू , पाताल में भी तू जाने कितनों को सजीव किये जाने कितनों को डुबो खाये पानी रे पानी