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अदनासा-
अति सूचनाओं एवं संदेश से अति प्रभावित सत्य असत्य में जुझता क्रांतिकारी यह युग है अकूत ज्ञान के सागर में दादुर की भांति हम यहां वहां छलांग मारते इस मायावी संसार में अब दादुर का विवेक ही निर्णायक विकल्प है वह ज्ञान के सागर में है या कूप के वृत्ताकार में ©अदनासा- #हिंदी #ज्ञान #विवेक #kitaab #दादुर #संसार #आधुनिकता #Facebook #Instagram #अदनासा
Harlal Mahato
मेघा गरजा बारिश हुई देखो बुंदें छबीली नच गई सुप्त-सयाना दादुर भैया टर्र-टर्र कर कर ली सगाई चटाई बिछाई तरणी ने तट पर पुलकित पुष्प रंग लगाए पट पर जुगनुओं की अगुवाई में बारात आई रस्में होने लगी झटपट पनघट पर पाहुन-पग धुलाए तरुण ताल आसन परोसा स्वच्छ शैवाल मीन रोहू लगी खातिरदारी में दृष्टि दिए रखा सब पर हरलाल शस्य सजाए माड़ुआ सप्तरंग मुदित मन से घोंघा बजाए मृदंग मंत्र उच्चारण किए केकड़े ने दूल्हन आई सज-धज रौशनी संग ©Harlal Mahato वर्षा ऋतु और दादुर #वर्षा_ऋतु #rainydays #Marriage Shalini Pandit prajakta indira Priya Gour Pushpvritiya
Naresh Chandra
कारे बदरा गहराय रहे फिर कारी बदरिया छाय रही बरखा रानी निकरौ घर से प्यासी धरती अकुलाय रही। पपिहा भी शोर मचाय रहा दादुर भी टेर लगाय रहा जन जीवन अब घबरा करके दैव दैव की रट लगाय रहा। ©Naresh Chandra कारे बदरा गहराय रहे फिर कारी बदरिया छाय रही बरखा रानी निकरौ घर से प्यासी धरती अकुलाय रही। पपिहा भी शोर मचाय रहा दादुर भी टेर लगाय रहा जन ज
Harlal Mahato
मेघा गरजा बारिश हुई, बुंदे छबीली नच गई। सुप्त-सयाना दादुर भैया, टर्र टर्र कर ली सगाई।। चटाई बिछाई तरणी ने तट पर, पुलकित पुष्प ने रंग लगाया पट पर। जुगनूओं की अगुआई में बरात आई , रस्म होने लगी झटपट पनघट पर।। पाहुन-पग धुलाए तरुण ताल , आसन परोसा स्वच्छ शैवाल। मीन रोहू लगे खातिरदारी में, दृष्टि दिये रखा सब पर हरलाल।। शस्य सजाया मंड़ुआ सप्तरंग, मन मुदित हुआ घोंघा बजाए मृदंग। मंत्र उच्चारण किये केकड़े ने, दुल्हन आई सजधज रौशनी संग।। #दादुर #विवाह #Nojoto #nojotopoetry #nojotohindi Anshula Thakur Anshu writer indira Roshani Thakur 🌹Adhoori Khwahish🌹 Tarani Nayak(di
Sadashiv Yadav
बरसे बदरा भीगें गजरा दादुर के दिन आई गयें तरूवर झूमें गिरिवर सीझे देखके बल खाई गयें मन मानत न कुछ जानत न बेलों की तरह लिप टाई गयें बेगाना"
सोमेश त्रिवेदी
अंगना में बेला फूलाइल बा आज अंगना दुआरी मोर सउसे अटारी फइलल बा गंध मंद खुशबु समाइल बा, रात बहल बयार आ बरसल फुहार तऽ दादुर के टेर सुनी जियरा जुड़ाइल बा। काहें बगइचा में कोयल किलोर करे काहें के अंखिया के पुतरी सुखाइल बा, काहें झरोका से झांके चनरमा इ मादक सुगंध काहें मउसम मताइल बा। पूछली हऽ धनिया अपना सजनवा से... तऽ कहलें अंगनवा में बेला फूलाइल बा। ©® सोमेश_त्रिवेदी अंगना में बेला फूलाइल बा आज अंगना दुआरी मोर सउसे अटारी फइलल बा गंध मंद खुशबु समाइल बा, रात बहल बयार आ बरसल फुहार तऽ दादुर के टेर सुनी जियर
Bharat Bhushan pathak
चित्रपदा छंद विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण चार चरण, दो-दो समतुकांत भगण भगण गुरु गुरु २११ २११ २ २ नीरद जो घिर आए। तृप्त धरा कर जाए।। कानन में हरियाली। हर्षित है हर डाली।। कोयल गीत सुनाती। मंगल आज प्रभाती। गूँजित हैं अब भौंरे। दादुर ताल किनारे।। मेघ खड़े सम सीढ़ी। झूम युवागण पीढ़ी।। खेल रहे जब होली। भींग गये जन टोली।। दृश्य मनोहर भाते। पुष्प सभी खिल जाते।। पूरित ताल तलैया। वायु बहे पुरवैया।। भारत भूषण पाठक'देवांश' ©Bharat Bhushan pathak #holikadahan #होली#holi#nojotohindi#poetry#साहित्य#छंद चित्रपदा छंद विध
Sanket Bharti
अपने अस्तित्व को थोड़ी सी तो पहचान दे पूरी कविता कैप्शन में है मृगतृष्णा को मारकर थोड़ा सा तो ज्ञान ले अपने अस्तित्व को थोड़ी सी तो पहचान दे जाल है यह रूप का चित्र के स्वरूप का मालिन जो मन है तेरा दाद
B Pawar
तुमसे मिला हो जैसे जैसे बरसों के प्यासे को अमृत की प्याली, सावन का अंधा जो देखे हरियाली, पतझड़ के मौसम मे बहारों का आना, नदियों के जल का समंदर मे मिल जाना, जैसे बिछड़े हंसो का ये फिर से मिलन हो, लो आसमाँ झुक गया है ज़मीं के मिलन को, जैसे दादुर के मुख पड़ी बरसा की बुँदे, कोई भटकता राहगिर जो मंजिल को ढूँढे, बेरंग ज़िंदगी मे कोई रंग भर रही हो, धीमी सी ज़िंदगी की रफ्तार बढ़ रही हो.— % & यहां नीचे पूरा पढ़े 👇 तुमसे मिला हो जैसे जैसे बरसों के प्यासे को अमृत की प्याली, सावन का अंधा जो देखे हरियाली,
Jitendra Mishra
बादल घनघोर आये, अम्बर में छा गए। कड़की बिजली जोर से, खूब गरजे खूब बरसे, राजा तो मस्ती में सोये, रंक की नींद उड़ा गये।। टुटा सा घर रंक का, राजा का महल रहा। राजा मस्त पकौड़े में, रंक चिंताग्नि में जल रहा।। दिन धीरे धीरे बीत रहा, छत से टपकता पानी था। रंक जो ठहरा बेचारा, बनवा पाना बेमानी था।। पानी इस कदर बरसा, नदी नाले भर गए। चिंता से रंक हृदय, जल से भी जल गए।। टर टर करते दादुर, वर्षा गीत गा रहे थे। मानों कर्कश वाणी से, रंक को चिढ़ा रहे थे।। थी गरीबी इस कदर, टपके से भीगा रात भर। न टूटे घर को बना पाया, न गिरने से बचा पाया।। ©Jitendra Mishra बादल घनघोर आये, अम्बर में छा गए। कड़की बिजली जोर से, खूब गरजे खूब बरसे, राजा तो मस्ती में सोये, रंक की नींद उड़ा गये।। टुटा सा घर रंक का, राजा