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Nisheeth pandey
गाँव का धर्मपरिवर्तन ********************* शहर बना मैं गाँव को उजाड़ , मैं शहरी लाले लाल। दीवानी मैं चकाचौंध की,तु कीचड़ की धूल।। जैसी रखते सोच हम, वैसी ऊंची बोल। हम पालते रंगा सियार भी ,पहने कोई खोल।। हम देते फैशन को जादुई मुकाम, ऊँची ऊँची इमारत छूता आसमान। सोहरतवाजी में सभी को नचाते, गॉव का काट रहें हैं मान सम्मान कान।। मेरे पास जो है बनाते उसे शिक्षित बहुरिया, यकीनन करती खूब कमाल। गाँव को टाटा बाये - बाए बोलते, करते धर्म परिवर्तन गाँवों की ,अन्तः होते शहर में तब्दील ।। #निशीथ ©Nisheeth pandey #merasheher शहर बना मैं गाँव को उजाड़ , मैं शहरी लाले लाल। दीवानी मैं चकाचौंध की,तु कीचड़ की धूल।। जैसी रखते सोच हम, वैसी ऊंची बोल। हम पा
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
मेरे अल्फाज लफ़्ज़ों के काग़ज़ पे जब बिखेरते हैं, हाले दिल मेरी कलम से सदफ पे बेजा रंग भरते है//१ जालिमों से कह दो की मेहशरे अंजाम क्या होगा, ये कमजर्फ लोग मुझसे नाहक जंग करते है//२ सितमगर ताउम्र लगेगी तुझे_मुझे भुलाने में,के जख्मी दिलों के ज़ख़्म कहाँ जल्द भरते हैं//३ ज़माना तेरी चालाकिया चालबाजियां खूब जाने है,पर हम जान बूझकर तुझे दरगुजर करते है//४ "शमा"अब ताज्जुब न कर ये वो दौर है,के जिसमे लोमडी_सियार भी एक साथ शिरकते सफर करते है//५ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #intezaar मेरे अल्फाज लफ़्ज़ों के काग़ज़ पे जब बिखेरते हैं,हाले दिल मेरी कलम से सदफ पे बेजा रंग भरते है//१ जालि
Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी
दिनेश कुशभुवनपुरी
दोहा: बिच्छू काग सियार नीति सिखाने चल पड़े, बिच्छू काग सियार। मूषक से अब मित्रता, करने चली बिलार॥ Dinesh Pande ©दिनेश कुशभुवनपुरी #दोहा #बिच्छू #काग #सियार #मूषक #बिलार RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' एक अजनबी PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' शीतल चौधरी(मेरे शब्द संकलन ) ANOOP PA
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
heart गोया जो लोग सच बोलने पर रह जाते है तन्हा, उन्हे झूठबाजी*जेबा नही देती//१*शोभा महफिले धूर्त में*सदाकत का क्या काम,के *सादिक लोगो को धूर्तबाजी जेबा नही देती//२ *धोखेबाज *सदाचार*सच्चा जो मजा मेहनतकश को सोने में है,वो ऊंघने में कहां, के मेहनतकशो को ऊंघबाजी जेबा नहीं देती//३ दरअसल झुंडो में तो लोमड सियार और*श्वान रहते है, के निडर शेर को झूंडबाजी जेबा नहीं देती//४*कुत्ते सुनो"शमा"*लज्जते तो*हक*परस्ती की*तन्हाई मेंही है के हकपरस्तो को गूटबाजी जेबा नही देती//५ *जायका*सच*पूज्यनीय *एकांत #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #Heart#Nojoto गोया जो लोग सच बोलने पर रह जाते है तन्हा,उन्हे झूठबाजी*जेबा नही देती//१ *शोभा महफिले धूर्त में*सदाकत का क्या काम,के*सादिक लो
N S Yadav GoldMine
महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्कों, मणियों, अंगदों, के यूरों और हारों से समरांगण विभूषित दिखाई देता है। कहीं वीरों की भुजाओं से छोड़ी गयी शक्तियां पड़ी हैं, कहीं परिध, नाना प्रकार के तीखे खग और बाणसहित धनुष गिरे हुए हैं। कहीं झुंड के झुंड मांस भक्षी जीव-जन्तु आनन्द मग्न होकर एक साथ खड़े हैं, कहीं वे खेल रहे हैं और कहीं दूसरे-दूसरे जन्तु सोये पड़े हैं। 📚 वीर। प्रभो। इस प्रकार इन सबसे मरे हुए युद्धस्थल को देखो। जनार्दन। मैं तो इसे देखकर शोक से दग्ध हुई जाती हूं। मधुसूदन। इन पान्चाल और कौरव वीरों के मारे जाने से तो मेरे मन में यह धारणा हो रही है कि पांचो भूतों का ही विनाश हो गया । उन वीरों को खून से भीगे हुए गरूड़ और गीध इधर - उधर खींच रहे हैं। 📚 सहस्त्रों गीध उनके पैर पकड़ - पकड़ कर खा रहे हैं, इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म और अभिमन्यु- जैसे वीरों का विनाश हो जायेगा, यह कौन सोच सकता था? जो अवध्य समझे जाते थे, वे भी मारे गये और अचेत एवं प्राणशून्य होकर यहां पड़े हैं। गीध, कंक, बटेर, बाज, कुत्ते और सियार उन्हें अपना आहार बना रहे हैं। 📚 दुर्योधन के अधीन रहकर अमर्ष के वशीभूत हो ये पुरुष सिंह वीरगण बुझी हुई आगे के समान शान्त हो गये हैं। इनकी ओर दृष्टिपात तो करो। जो लोग पहले कोमल बिछौनों पर सोया करते थे, वे सभी आज मरकर नंगी भूमि पर सो रहे हैं। 📚 जिन्हें सदा ही समय-समय पर स्तुति करने वाले बन्दीजन अपने वचनों द्वारा आनन्दित करते थे, वे ही अब सियारिनों की अमंगल सूचक भांति - भांति की बोलियां सुन रहे हैं। जो यशस्वी वीर पहले अपने अंगों में चन्दन और अगुरू चूर्ण से चर्चित हो सुखदायिनी शययाओं पर सोते थे, वे ही आज धूल में लोट रहे हैं। 📚 उनके आभूषणों को ये गीध, गीदड़ और भयानक गीदडियां बारबार चिल्लाती हुई इधर -उधर फेंकती हैं । ये सभी युद्धाभिमानी वीर जीवित पुरुषों की भांति इस समय भी तीखे बाण, पानीदार तलवार और चमकीली गदाऐं हाथों में लिये हुए हैं। 📚 सुन्दर रूप और कान्तिवाले, सांडों के समान हष्ट-पुष्ट तथा हरे रंग के हार पहने हुए बहुत से योद्धा यहा सोये पड़े हैं और मांसभक्षी जन्तु इन्हें उलट-पलट रहे हैं। परिध के समान मोटी बाहों वाले दूसरे शूरवीर प्रेयसी युवतियां की भांति गदाओं का आलिंगन करके सम्मुख सो रहे हैं। जनार्दन। बहुत से योद्धा चमकीले योद्धा चमकीले कवच और आयुध धारण किये हुए हैं, 📚 जिससे उन्हें जीवित समझकर मांसभक्षी जन्तु उन पर आक्रमण नहीं करते हैं। दूसरे महामस्वी वीरों को मांसाहारी जीव इधर-उधर खींच रहे हैं, जिससे सोने की बनी हुई उनकी विचित्र मालाएं सब ओर बिखर गयी हैं। यहां मारे गये यशस्वी वीरों के कण्ठ में पड़े हुए हीरों को ये सहत्रों भयानक गीद़ड़ खींचते और झटकते हैं। 📚 बृष्णिसिंह। प्रायः प्रत्येक रात्रि के पिछले पहर में सुशिक्षित बन्दीजन उत्तम स्तुतियों और उपचारों द्वारा जिन्हें आनन्दित करते थे, उन्हीं के पास आज ये दु:ख और शोक से अत्यन्त पीडि़त हुई सुन्दरी युवतियां करूण विलाप कर रही हैं। केशव। इन सुन्दरियों के सूखे हुए सुन्दर मुख लाल कमलों के समूह की भांति शोभा पा रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #RABINDRANATHTAGORE महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्को
Jitendra Kumar Som
सियार न्यायधीश किसी नदी के तटवर्ती वन में एक सियार अपनी पत्नी के साथ रहता था। एक दिन उसकी पत्नी ने रोहित (लोहित/रोहू) मछली खाने की इच्छा व्यक्त की। सियार उससे बहुत प्यार करता था। अपनी पत्नी को उसी दिन रोहित मछली खिलाने का वायदा कर, सियार नदी के तीर पर उचित अवसर की तलाश में टहलने लगा। थोड़ी देर में सियार ने अनुतीरचारी और गंभीरचारी नाम के दो ऊदबिलाव मछलियों के घात में नदी के एक किनारे बैठे पाया। तभी एक विशालकाय रोहित मछली नदी के ठीक किनारे दुम हिलाती नज़र आई। बिना समय खोये गंभीरचारी ने नदी में छलांग लगाई और मछली की दुम को कस कर पकड़ लिया। किन्तु मछली का वजन उससे कहीं ज्यादा था। वह उसे ही खींच कर नदी के नीचे ले जाने लगी। तब गंभीरचारी ने अनुतीरचारी को आवाज लगा बुला लिया। फिर दोनों ही मित्रों ने बड़ा जोर लगा कर किसी तरह मछली को तट पर ला पटक दिया और उसे मार डाला। मछली के मारे जाने के बाद दोनों में विवाद खड़ा हो गया कि मछली का कौन सा भाग किसके पास जाएगा। सियार जो अब तक दूर से ही सारी घटना को देख रहा था। तत्काल दोनों ही ऊदबिलावों के समक्ष प्रकट हुआ और उसने न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव रखा। ऊदबिलावों ने उसकी सलाह मान ली और उसे अपना न्यायाधीश मान लिया। न्याय करते हुए सियार ने मछली के सिर और पूँछ अलग कर दिये और कहा - "जाये पूँछ अनुतीरचारी को गंभीरचारी पाये सिर शेष मिले न्यायाधीश को जिसे मिलता है शुल्क।" सियार फिर मछली के धड़ को लेकर बड़े आराम से अपनी पत्नी के पास चला गया। दु:ख और पश्चाताप के साथ तब दोनों ऊदबिलावों ने अपनी आँखे नीची कर कहा- "नहीं लड़ते अगर हम, तो पाते पूरी मछली लड़ लिये तो ले गया, सियार हमारी मछली और छोड़ गया हमारे लिए यह छोटा-सा सिर; और सूखी पुच्छी।" घटना-स्थल के समीप ही एक पेड़ था जिसके पक्षी ने तब यह गायन किया - "होती है लड़ाई जब शुरु लोग तलाशते हैं मध्यस्थ जो बनता है उनका नेता लोगों की समपत्ति है लगती तब चुकने किन्तु लगते हैं नेताओं के पेट फूलने और भर जाती हैं उनकी तिज़ोरियाँ।" ©Jitendra Kumar Som #KiaraSid सियार न्यायाधीश
Anand Dadhich
Mirror दर्पण से कहदो अच्छे से देखें लोगों की सूरत, हर दिन न सही यदा कदा तो बताते रहे फितरत, हर मुखड़े की हँसती हुई तस्वीरें है यहाँ वहाँ, फिर कौन सियार बनकर फैला रहा है ये नफरत। ©Anand Dadhich #दर्पण #सियार #विचार #kaviananddadhich #poetananddadhich #poetsofindia #Mirror