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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
heart गोया जो लोग सच बोलने पर रह जाते है तन्हा, उन्हे झूठबाजी*जेबा नही देती//१*शोभा महफिले धूर्त में*सदाकत का क्या काम,के *सादिक लोगो को धूर्तबाजी जेबा नही देती//२ *धोखेबाज *सदाचार*सच्चा जो मजा मेहनतकश को सोने में है,वो ऊंघने में कहां, के मेहनतकशो को ऊंघबाजी जेबा नहीं देती//३ दरअसल झुंडो में तो लोमड सियार और*श्वान रहते है, के निडर शेर को झूंडबाजी जेबा नहीं देती//४*कुत्ते सुनो"शमा"*लज्जते तो*हक*परस्ती की*तन्हाई मेंही है के हकपरस्तो को गूटबाजी जेबा नही देती//५ *जायका*सच*पूज्यनीय *एकांत #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #Heart#Nojoto गोया जो लोग सच बोलने पर रह जाते है तन्हा,उन्हे झूठबाजी*जेबा नही देती//१ *शोभा महफिले धूर्त में*सदाकत का क्या काम,के*सादिक लो
Ankur tiwari
जीवन में एक मोड़ पर जब मुझको झटका बड़ा मिला मेरा मन था बहुत उदास और मुंह लटका मेरा मिला ठन गई उस दिन जब दिलों दिमाग़ के बीच में जंग मैं कन्फ्यूज सा बीच में उनके केवल खड़ा मिला दिल कहता कर कुछ भी क्यों तू दुनिया से डरता है कहता दिमाग़ ज़रा संभल जा तू इस दुनियां में रहता है दिल कहता कि रिश्ते नाते प्यार वफा सब जीवन हैं कहता दिमाग़ जब पैसा हैं तो तू ही सबसे निमन है दिल ने कहा कि जा प्यार कर कहता दिमाग खतरा है बड़ा दिल कहता क्यों भयभीत हैं कहता दिमाग तू संभल जरा दिल कहता है तू भी रो ले कहता दिमाग तू लड़का हैं दिल कहता तो क्या दर्द नही कहता दिमाग तू बड़का है दिल और दिमाग के पाटे में पिस गया हूं मैं भी गेहूं सा अंजान समझ न आए कुछ क्या भाग जाऊं मैं मेहुल स ©Ankur tiwari #Dhund जीवन में एक मोड़ पर जब मुझको झटका बड़ा मिला मेरा मन था बहुत उदास और मुंह लटका मेरा मिला ठन गई उस दिन जब दिलों दिमाग़ के बीच में जंग
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
मेरे अल्फाज लफ़्ज़ों के काग़ज़ पे जब बिखेरते हैं, हाले दिल मेरी कलम से सदफ पे बेजा रंग भरते है//१ जालिमों से कह दो की मेहशरे अंजाम क्या होगा, ये कमजर्फ लोग मुझसे नाहक जंग करते है//२ सितमगर ताउम्र लगेगी तुझे_मुझे भुलाने में,के जख्मी दिलों के ज़ख़्म कहाँ जल्द भरते हैं//३ ज़माना तेरी चालाकिया चालबाजियां खूब जाने है,पर हम जान बूझकर तुझे दरगुजर करते है//४ "शमा"अब ताज्जुब न कर ये वो दौर है,के जिसमे लोमडी_सियार भी एक साथ शिरकते सफर करते है//५ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #intezaar मेरे अल्फाज लफ़्ज़ों के काग़ज़ पे जब बिखेरते हैं,हाले दिल मेरी कलम से सदफ पे बेजा रंग भरते है//१ जालि
Ankur tiwari
मैं थोड़ा भावुक हूं अक्सर भावनाओ में बह जाता हूं कहना तो बहुत कुछ होता है पर कुछ कह नहीं पाता हूं ज्यादा हाई फाई नही ना ही कोई बड़का हूं मैं संस्कारों में बंधा घर का सबसे छोटा लड़का हूं मैं मान लेता हूं अकसर बातें सबकी बिना कुछ कहें रह जाते हैं अक्सर मेरे कुछ सपने अधूरे अन कहें मैं कुछ नही समझता अक्सर लोग ऐसा समझते हैं उड़ाते हैं खूब मज़ाक मेरा और मुझ पर हंसते हैं मानता नहीं हूं मैं बुरा फिर भी लोग बुरा मान जाते है मेरी छोटी सी बात पर अक्सर ही मुझसे ठान जाते है परवाह करता हूं सबकी पर मेरी परवाह कोई नहीं करता सबके साथ खड़ा रहता हूं मेरे साथ कोई खड़ा नहीं रहता रो देता हूं छोटी छोटी बातों पर अक्सर पर कमज़ोर नहीं हूं माना करता हूं शरारते कुछ पर यकीं मानो मै लतखोर नही हूं मुझे भी पता हैं मेरी जिम्मेदारियां और मैं भरसक उन्हें निभाता भी हूं अपनी हर एक छोटी बड़ी बात घर वालो को बताता भी हूं खुश रहता हूं खुद में ही अक्सर दूसरों से तो गम ही मिलता है किसी से मिलता है कुछ ज्यादा तो किसी से कम ही मिलता है अपेक्षाएं सबको होती हैं मुझसे पर मै उपेक्षा का पात्र होता हूं लोगों के लिए मैं बिन दिमाग का सिर्फ एक आदमी मात्र होता हू ©Ankur tiwari #moonnight मैं थोड़ा भावुक हूं अक्सर भावनाओ में बह जाता हूं कहना तो बहुत कुछ होता है पर कुछ कह नहीं पाता हूं ज्यादा हाई फाई नही ना ही कोई
दिनेश कुशभुवनपुरी
दोहा: बिच्छू काग सियार नीति सिखाने चल पड़े, बिच्छू काग सियार। मूषक से अब मित्रता, करने चली बिलार॥ Dinesh Pande ©दिनेश कुशभुवनपुरी #दोहा #बिच्छू #काग #सियार #मूषक #बिलार RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' एक अजनबी PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' शीतल चौधरी(मेरे शब्द संकलन ) ANOOP PA
Nisheeth pandey
गाँव का धर्मपरिवर्तन ********************* शहर बना मैं गाँव को उजाड़ , मैं शहरी लाले लाल। दीवानी मैं चकाचौंध की,तु कीचड़ की धूल।। जैसी रखते सोच हम, वैसी ऊंची बोल। हम पालते रंगा सियार भी ,पहने कोई खोल।। हम देते फैशन को जादुई मुकाम, ऊँची ऊँची इमारत छूता आसमान। सोहरतवाजी में सभी को नचाते, गॉव का काट रहें हैं मान सम्मान कान।। मेरे पास जो है बनाते उसे शिक्षित बहुरिया, यकीनन करती खूब कमाल। गाँव को टाटा बाये - बाए बोलते, करते धर्म परिवर्तन गाँवों की ,अन्तः होते शहर में तब्दील ।। #निशीथ ©Nisheeth pandey #merasheher शहर बना मैं गाँव को उजाड़ , मैं शहरी लाले लाल। दीवानी मैं चकाचौंध की,तु कीचड़ की धूल।। जैसी रखते सोच हम, वैसी ऊंची बोल। हम पा
N S Yadav GoldMine
हैं वासुदेव श्रीकृष्ण। मेरे लिए इससे बढ़कर महान दुःख की बात और क्या होगी पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व द्वाविंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 🌷 गान्धारी बोलीं- भीमसेन ने जिसे मार गिराया था,वह शूरवीर अवन्ती नरेष बहुतेरे बन्धु-बान्धव से सम्पन्न था; परन्तु आज उसे बन्धुहीन की भांति गीध और गीदड़ नोंच-नोंच कर खा रहे हैं। मधुसूदन। देखो, अनेकों शूरवीरों का संहार करके वह खून से लथपथ हो वीरशैया पर सो रहा है। उसे सियार, कंक और नाना प्रकार के मांषभक्षी जीव जन्तु इधर-उधर खींच रहे हैं। 🌷 यह समय का उलट-फेर तो देखो। भयानक मारकाट मचाने वाले इस शूरवीर अवन्ति नरेष को वीरषैया पर सोया देख उसकी स्त्रियां रोती हुई उसे सब ओर से घेर कर बैठी हैं। श्रीकृष्ण। देखो, महाधनुर्धर प्रतीप नन्दन मनस्वी वाहिक भल्ल से मारे जाकर सोये हुए सिंह के समान पड़े हैं। 🌷 रणभूमि में मारे जाने पर भी पूर्णमासी को उगते हुए पूर्ण चन्द्रमा की भांति इनके मुख की कांति अत्यन्त प्रकाषित हो रही है। श्री कृष्ण। पुत्र शोक से सतप्त हो अपनी की हुई प्रतिज्ञा का पालन करते हुए इन्द्रकुमार अर्जुन ने युद्धस्थल में वृद्वक्षत्र के पुत्र जयद्रथ के पुत्र को मार गिराया है। 🌷 यघपि उसकी रक्षा की पूरी व्यवस्था की गयी थी, तब भी अपनी प्रतिज्ञा को सत्य कर दिखाने की इच्छा वाले महात्मा अर्जुन ने ग्यारह अक्षुहिणी सेनाओं का भेदन करके जिसे मार डाला था, वही यह जयद्रथ यहां पड़ा है। इसे देखो। जनार्दन। सिन्धु और सौवीर देष के स्वामी अभिमानी और मनस्वी जयद्रथ को गीध और सियार नोंच-नोंच कर खा रहे हैं। 🌷 अच्युत। इसमें अनुराग रखने वाली इसकी पत्नियां यघपि रक्षा में लगी हुई हैं तथापि गीदडि़यां उन्हें डरवाकर जयद्रथ की लाष को उनके निकट से गहरे गड्डे की ओर खींचे लिये जा रही हैं। यह काम्बोज और यवन देष की स्त्रियां सिन्धु और सौवीर देष के स्वामी महाबाहु जयद्रथ को चारों ओर से घेर कर वैठी हैं और वह उन्हीं के द्वारा सुरक्षित हो रहा है। 🌷 जनार्दन। जिस दिन जयद्रथ द्रौपदी को हरकर कैकयों के साथ भागा था उसी दिन यह पाण्डवों के द्वारा वध हो गया था परन्तु उस समय दुषलाका सम्मान करते हुए उन्होंने जयद्रथ को जीवित छोड़ दिया था। श्रीकृष्ण। उन्हीं पाण्डवों ने आज फिर क्यों नहीं आज सम्मान किया? देखो, वहीं यह मेरी बेटी दुषला जो अभी बालिका है। 🌷 किस तरह दुखी हो हो कर विलाप कर रही है? और पाण्डवों को कोसती हुई स्वंय ही अपनी छाती पीट रही है। श्रीकृष्ण। मेरे लिये इससे बढकर महान् दु:ख की बात और क्या होगी कि यह छोटी अवस्था की मेरी बेटी विधवा हो गयी तथा मेरी सारी पुत्रबधुऐं भी अनाथा हो गयीं। हाय। हाय, धिक्कार है। 🌷 देखो, देखो दुषला शोक और भय से रहित सी होकर अपने पति का मस्तक न पाने कारण इधर-उधर दौड़ रही है। जिस वीरे ने अपने पुत्र को बचाने की इच्छा वाले समस्त पाण्डवों को अकेले रोक दिया था, बही कितनी ही सेनाओं का संहार करके स्वंय मृत्यु के अधीन हो गया। मतवाले हाथी के समान उस परम दुर्जय वीर को सब ओर से घेरकर ये चन्द्रमुखी रमणियां रो रही हैं। एन एस यादव रोहिणी दिल्ली।। ©N S Yadav GoldMine #yogaday हैं वासुदेव श्रीकृष्ण। मेरे लिए इससे बढ़कर महान दुःख की बात और क्या होगी पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व द्वाविंष अध्याय
N S Yadav GoldMine
हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 1-21 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय। ऐसा कहकर गान्धारी देवी ने वहीं खड़ी रहकर अपनी दिव्य दृष्टि से कौरवों का वह सारा विनाश स्थल देखा। गान्धारी बड़ी ही पतिव्रता, परम सौभाग्यवती, पति के समान वृत का पालन करने वाली, उग्र तपस्या से युक्त तथा सदा सत्य बोलने वाली थीं। पुण्यात्मा महर्षि व्यास के वरदान से वे दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं अतः रणभूमि का दृश्य देखकर अनेक प्रकार विलाप करने लगीं। 📜 बुद्धिमी गान्धारी ने नरवीरों के उस अदभूत एवं रोमान्चकारी समरांगण को दूर से ही उसी तरह देखा, जैसे निकट से देखा जाता है। वह रणक्षेत्र हडिडयों, केशों और चर्बियों से भरा था, रक्त प्रवाह से आप्लावित हो रहा था, कई हजार लाशें वहां चारों ओर बिखरी हुई थी। हाथी सवार, घुड़ सवार तथा रथी योद्धाओं के रक्त से मलिन हुए बिना सिर के अगणित धड़ और बिना धड़ के असंख्य मस्तक रणभूमि को ढंके हुए थे। 📜 हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा थ। सियार, बुगले, काले कौए, कक्क और काक उस भूमि का सेवन करते थे। वह स्थान नरभक्षी राक्षसों को आनन्द दे रहा थ। वहां सब ओर कुरर पक्षी छा रहे थे। अमगलमयी गीदडि़यां अपनी बोली बोल रही थीं, गीध सब ओर बैठे हुए थे। उस समय भगवान व्यास की आज्ञा पाकर राजा धृतराष्ट्र तथा युधिष्ठिर आदि समस्त पाण्डव रणभूमि की ओर चले। 📜 जिनके बन्धु-बान्धव मारे गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र तथा भगवान श्रीकृष्ण को आगे करके कुरूकुल की स्त्रियों को साथ ले वे सब लोग युद्वस्थल में गये। कुरूक्षेत्र में पहुंचकर उन अनाथ स्त्रियों ने वहां मारे गये अपने पुत्रों, भाइयों, पिताओं तथा पतियों के शरीरों को देखा, जिन्हें मांस-भक्षी जीव-जन्तु, गीदड़ समूह, कौए, भूत, पिशाच, राक्षस और नाना प्रकार के निशाचर नोच-नोच कर खा रहे थे। 📜 रूद्र की क्रीडास्थली के समान उस रणभूमि को देखकर वे स्त्रियां अपने बहूमूल्य रथों से क्रन्दन करती हुई नीचे गिर पड़ीं । जिसे कभी देखा नहीं था, उस अदभूत रणक्षेत्र को देख कर भरतकुल की कुछ स्त्रियां दु:ख से आतुर हो लाशों पर गिर पड़ीं और दूसरी बहुत सी स्त्रियां धरती पर गिर गयीं। उन थकी-मांदी और अनाथ हुई पान्चालों तथा कौरवों की स्त्रियों को वहां चेत नहीं रह गया था। 📜 उन सबकी बड़ी दयनीय दशा हो गयी थी। दु:ख से व्याकुलचित हुई युवतियों के करूण-क्रन्दन से वह अत्यन्त भयंकर युद्वस्थल सब ओर से गूंज उठा। यह देखकर धर्म को जानने वाली सुबलपुत्री गान्धारी ने कमलनयन श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके कौरवों के उस विनाश पर दृष्टिपात करते हुए कहा- कमलनयन माधव। मेरी इन विधवा पुत्र वधुओं की ओर देखो, जो केश बिखराये कुररी की भांति विलाप कर रही हैं। 📜 वे अपने पतियों के गुणों का स्मरण करती हुई उनकी लाशों के पास जा रही हैं और पतियों, भाईयों, पिताओं तथा पुत्रों के शरीरों की ओर पृथक- पृथक् दौड़ रही हैं । महाराज कहीं तो जिनके पुत्र मारे गये हैं उन वीर प्रसविनी माताओं से और कहीं जिनके पति वीरगति को प्राप्त हो गये हैं, उन वीरपत्नियों से यह युद्धस्थल घिर गया है। पुरुषसिंह कर्ण, भीष्म, अभिमन्यु, द्रोण, द्रुपद और शल्य जैसे वीरों से जो प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी थे, यह रणभूमि सुशोभित है। ©N S Yadav GoldMine #boat हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत