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Shivkumar
नवरात्रि का दूसरा दिन है , मां ब्रह्मचारिणी का l मां दुर्गा को दूसरा रुप है , मां ब्रह्मचारिणी का ll तपस्विनी माता , सात्विक रुप धारण करती है l पूजा करने से भक्तों के , सारे कष्ट को वो हरती है l श्वेत वस्त्र मां धारण करती , तपस्या सदा ही वो करती है l तपस्या करने से , सारी सिद्धियां भक्तों को वो देती है ll दूध चावल से बना भोग , मां बड़ा प्रिय वो लगता है l खीर,पतासे, पान, सुपारी , मां को बहुत चढ़ाते हैं ll स्वच्छ आसन पर बैठकर , मां का करें ध्यान l मंत्र जाप करने से , माता कल्याण करती है ll राजा हिमाचल के यहां , माता उत्पन्न हुई थी l विधाता उनके लिए , शिव-संबंध रच रखे थे ll वह पति रुप में , भगवान शिव को चाहती थी l घोर तपस्या करने , वह फिर जंगल में चली गई ll भोलेशंकर , मां के तपस्या जब प्रसन्न हुए मनवांछित वर देने के लिए हो गए तत्पर ll तपस्विनी रुप में , मां को देखकर बोले शिवशंकर l ब्रह्मचारिणी नाम से , विख्यात होने का दिए वर ll ©Shivkumar #navratri #navaratri2024 #navratri2025 नवरात्रि का दूसरा दिन है , मां #ब्रह्मचारिणी का l मां #दुर्गा को दूसरा रुप है , मां ब्रह्मचारि
Ravendra
Anjali Singhal
Chitra Iyer
I carry my light within, taking the path less traveled, opening up the darkest path, lighting the way for those who don't carry theirs.. Goodmorning ❤️ Our arecanut(सुपारी) farm. There is a ritual on deepawali's evening. People wrap pieces of oil soaked cloth around sticks,
Ashok Mangal
जनहित की रामायण - 74 ख़बरों की सीरत सही नहीं, ख़बरों की नीयत सही नहीं ! जन-लोकपाल का था हो हल्ला, जन-लोकपाल चर्चा में ही नहीं !! अन्ना बाबा ने जनहित ज्योत जलाई, इनकी हर बात ख़बरों में खूब छायी ! आज वो ज्योत नजर ही नहीं आयी, प्रश्नकर्ता से हुज्जत की नौबत आयी !! गुमराही हुक्मरानों के खेल का है हिस्सा, सियासत में सब जायज, ये समझती जनता ! जनहित चिंतक चोला पहन जब कोई ठगता, जनता का भरोसा अपने आप से भी उठता !! ( अनुशीर्षक में अनवरत...) ख़बरों में उन्माद की सुपारी झलक रही, ख़बरें में अब जनहित की ललक ही न रही ! बेशरमी का आलम इस कदर है पसरा, जनसाधारण में खबरों की इज़्ज़त ही न
AK__Alfaaz..
कल, मन के अहाते में, एक बहती शीतल पुरवईया, हौले से आयी, दस्तक देकर, दहलीज पर मेरी, वो स्नेह के, किवाड़ों को खटखटायी, मैंने भी, अलसाई नींद से उठकर, जब किवाड़ खोले, तो..वो पुरवईया, वात्सल्य से मेरा, माथा सहलाकर कानों में, ममता पूर्वक, कुछ फुसफसायी, कल, मन के अहाते में, एक बहती शीतल पुरवईया, हौले से आयी, दस्तक देकर, दहलीज पर मेरी, वो स्नेह के,
AK__Alfaaz..
कल, साँँझ ढ़ले, रजत चंद्रिका की, श्वेत रश्मियों के नीचे, प्रयाग के, पावन संगम से निकली, दुग्ध धवलित, निर्मल माँ गंगा, काशी के अस्सी घाट पे, महादेव के पग पखारती, जा पहुंची तृप्ति देने, कल, साँँझ ढ़ले, रजत चंद्रिका की, श्वेत रश्मियों के नीचे, प्रयाग के, पावन संगम से निकली, दुग्ध धवलित, निर्मल माँ गंगा,
AK__Alfaaz..
कल भोर की, उदित होती सिंदूरी किरण के संग, मैने नेह की सुनहरी पोटली मे, सूरज से आती, ममता की धूप को, अपनी झीनी सी, हथेलियों से भर लिया, और.. गले का हार बना लटका लिया, ममत्व की डोरी मे पिरो, कल भोर की, उदित होती सिंदूरी किरण के संग, मैने नेह की सुनहरी पोटली मे, सूरज से आती, ममता की धूप को, अपनी झीनी सी हथेलियों से भर लिया,
AK__Alfaaz..
मेरी गली ने, जब तेरी आहट सुनी, हवाऐं आकर बलईयाँ लेने लगी, सूरज की किरणों ने, पगडंडियाँ बुहार दीं, बादलों ने बरस कर पैर पखारे, आसमान ने, सितारों के सिक्के भरकर हथेलियों में, न्यौछावर कर दी नदियों पे, दिल के देवालय में, एक मूरत स्थापित हुयी, प्रीत की जोगन ने, अपनी वत्सलता के दुग्ध-दही से, समर्पण की शहद-मिश्री से दिवास्नान कराया, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #तू_जोगन_मै_वैरागी... मेरी गली ने, जब तेरी आहट सुनी, हवाऐं आकर बलईयाँ लेने लगी, सूरज की किरणों ने,