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Parmod Yadav
अदनासा-
Er.Shivampandit
पुरुष यानि......???? पुरुष यानि कि पत्थर में अंकुरित कोंपल.... पुरुष मतलब... लोहे के सीने के पीछे धक-धक करता कोमल ह्रदय पुरुष माने... कोयल की कुहूक ढ़ूँढता वृक्ष पुरुष कहता है "आज मूड ठीक नहीं है, दिमाग़ ठिकाने नहीं है...." पर, शायद ही कहेगा कि आज मन उदास है... अब आगे.........! #P.T.O ©Er.Shivam Tiwari #पुरूष_यानि......???? पुरुष यानि कि पत्थर में अंकुरित कोंपल.... पुरुष मतलब... लोहे के सीने के पीछे धक-धक करता कोमल ह्रदय पुरुष माने...
GRHC~TECH~TRICKS
सच्चाई है कुछ ही समय पहले की (A) **************************** पहले _व्यक्ति एक किलो घी पीकर पचा जाता था। अब_ एक किलो घी को 100 भी नहीं पचा पाते हैं। पहले _ साधनों की बांट देखना एक जुर्म था। अब_ साधनों की बांट देखना एक खुशी समझते हैं। पहले _सुबह एक आदमी की आवाज पर पुरा परिवार उठता था। अब_ अब ढोल बजाने पर भी पुरा परिवार नहीं उठता है। पहले _हंसना एक खुशी थी,ये सबके लिए एक जैसी थी। अब_हंसना एक जुर्म सा है,इसलिए सबके लिए अलग-2हैं। पहले _प्यासा कुआं के पास जाता था,प्यास बुझाने के लिए। अब_कुआं आता खुद प्यासे के पास प्यास बुझाने के लिए। पहले _ एक न्यु पेंट शर्ट कईयों के काम आती थी। अब_ एक बार पहनने के बाद ही फिकी- 2हो जाती एक लिए ही। पहले _सोच समझकर चलते थे राहगीर अपने रास्ते पर। अब_केवल फुंकरा पंथी पर खुशी से चलते है मौत के रास्ते पर। पहले _ एक की मौत पर सबके लिए एक जैसा शोक होता था। अब_ सबकी मौत को कुत्तों की मौत जैसे समझते हैं ज़श्न होता है हर पल। शेष जानकारी अगले पोस्ट में लिखा जाएगा।(B) ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks सच्चाई है कुछ ही समय पहले की (A) **************************** पहले _व्यक्ति एक किलो घी पीकर पचा जाता था। अब_ ए
Nisheeth pandey
#वो रात बेहया !!!! ----------- वो रात मानो ,बेहया हो गयी थी जब तुम बाल खोल कर घूर रहीं थी ... आधुनिकता में तुम्हारे शर्ट के खुले बटन नाभी के ऊपर से बाँधे शर्ट का कोर... मुझे रिझाती रहीं ... तुम्हारे होठों पर हँसी कातिल निगाहें ... वो रात बन गई थी शराब ... नहीं झेंप रहीं थी ...किसी भी बात पर अपनी अदां तुम ,मैं और वो रात कोई भी हो... मुहब्बत तन मन बेबाक सुनाती अपनी प्यास... दिल की चाहत प्यार बरसे मिटे प्यास.. इश्क़ के गीत...सरेराह गाती तुम बल्ब के घूरने पर... स्विच ऑन ऑफ करती तुम मानो 'आँख मारकर' लुभाती तुम... अपने पारदर्शी पोसाक में...इतना इतराती तुम . हाँ!बेहया सी दिख रहीं थी वो! आधुनिकता जो आज काम वासना ग्लाश में शराब शराब में घुलता बर्फ स्त्री पुरुष के हर गुण अपनाया...ये बेहयापन कैसे निभाया? दरवाज़ा बंद रहा...गैरों के लिए तो ,अपनों से भी... कभी अस्तिव बचाती थी ? धर्म पर अडिग थी हाँ! अब बेहया हो गयी थी आधुनिकता के तलब में वो! जो इरादों से अपनी आधुनिकता की पक्की थी सच में...वो रात ज़िद्दी थी... अब वो भीड़ में भी गम्भीर नही ...भीड़ से लड़ने की हुनर रखती अपनी हर मजबूरी से... हर-हाला लड़ी थी हर तूफ़ान जन्म देकर उड़ जाती जब उसके सर पे वोडका वाइन चढ़ता अपने ही ज़िस्म से चादर फाड़ देती ... ना सूरज की दरकार-ना चाँद का इंतज़ार चिटकती सड़कों पर नशे में झूमकर चलती है... हाँ! आधुनिकता में बेहया होती जा रहीं थी वो रात ! अपने हर ख्वाब को मुक़म्मल करने में हर पुरुष को ठोकर मार... खुद को बराबर जता रहीं ... स्त्रीत्व के चेहरे का नक़ाब नोंच कर पुरुष की तिलिस्म वो रच रहीं ... रात भर जागती-उघियाती , बियर के मगों से बतियाती है... कभी कुछ लिखती तो कभी संस्कार के कैनवास पर खुद को नंगी चित्रित करती है... हाँ! तुम बेहया हो गयी ! खुद को मॉडर्न बनाने में ढलती रात में , वाशना के चाशनी में मिठाई बनती रहीं... जिश्म का प्यार में रमी रहीं , रूह का गला घोंट दिया... आधुनिकता के बाज़ार में जिंदा रहेंगी मेरी साँसों के साथ वो रात और तुम , ये बात दोहराती रहेंगी ... आधुनिकता में परुष से बराबरी करना बराबरी में बेहया होने की जिद्द करना .... आधुनिकता की परिभाषा क्या था तुम्हारे लिये बस पुरुषों के दुर्गुणों का बराबरी करना .... हाँ वो रात बेहया हो गयी थी .... हाँ वो रात बेहया हो गयी थी .... #निशीथ ©Nisheeth pandey #WoRaat वो रात बेहया !!!! ----------- वो रात मानो बेहया हो गयी थी जब तुम बाल खोल कर घूर रहीं थी ... आधुनिकता में तुम्हारे शर्ट के खुले बटन
Pramod Kumar
Ravi Sharma
कुछ है अंदर जो छूटता नहीं है तेरा ख्वाब है कि टूटता नहीं है संभाल कर रखी है वो शर्ट मैंने दुप्पटे का रंग जिससे छूटता नहीं है।। ।। रवि ।। ©Ravi Sharma #rain कुछ है अंदर जो छूटता नहीं है तेरा ख्वाब है कि टूटता नहीं है संभाल कर रखी है वो शर्ट मैंने दुप्पटे का रंग जिससे छूटता नहीं है।।
Pramod Kumar
Er.Shivampandit
विविधता में एकता ©Er.Shivam Tiwari #विविधता_में_एकता दिन भर घर के बाहर की सड़क पर ख़ूब कोलाहल रहता है और सांझ ढलते सड़क के दोनों किनारों पर लग जाता है मेला सज जाती हैं दुकानें
Nisheeth pandey
शीर्षक - बहती हवाँ और मैं 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ दृश्य यूँ था काली घटा से आसमान ढका था बहती हवाँ शीतल मन ले कर शीतलता से ,भाव विभोर कर रहीं थी छत की ऊंची दीवार पे चढ़, बहती हवाँ संग रोमांचित मन हो रहा था मानो बहती हवाँ में विलुप्त था, तृप्त मन हो रहा था बहती हवाँ आगोश के भवँर में लपेट रहीं थी मन मुग्ध तन चंचल हल्की फुल्की बारिश बूँदों की सिहरन मेरे मन ने पुझा ऐ हवाँ तुम रोज यूँ ही मिलते क्यों नहीं बहती हवाँ की तेज बहाव करीब आ कर बड़े अदब से कहा- मैं रोज तुम्हारे करीब से गुजरती ,ये और बात तुम मुलाक़ात नहीं करते ?” हवाँ ने कहा - जब तुम आसमानों में बादलों की चित्रकारी देखते वहां दृष्टिकोण में मैं ही हूँ। भीनी माटी की सुगन्ध तुम तक पहुँचती वह मैं ही हूँ। खिड़की पर जब बारिश देखते ,तुम तक बारिश की बूँदों को पहुँचाती मैं ही हूँ। सुगन्ध से गुलाब के फूलों से परिचित मैं ही करवाती हूँ। अदरक वाली कड़क मीठी चाय से महक धूएँ बन तुम तक आती मैं ही हूँ । तुम्हारे पसंदीदा गानों की धून बन कर मैं ही आती हूँ । शर्ट के टूटे हुए बटन में मैं ही उछलती हूँ । तुम्हें खिंच पहाड़ों में मैं ही लाती हूँ। बहते झरनों की आवाज तुम तक मैं ही लाती हूँ। कभी निशीथ पहर में तुम्हें चाँद तक मैं लाती हूँ नदी किनारों में बैठे तुम तुम्हारे पाँव को पानी से मैं ही सहलाती हूँ। मौसम की बहारों का चित्त मैं ही लाती हूँ अभी तुम्हें बारिश की पानी के गीली गीली एहसास मैं ही दिलाऊँगी लेकिन तुम्हें मुझे एहसास करने की फुर्सत कहाँ मिल पाती है 🥰 @निशीथ ©Nisheeth pandey #ChaltiHawaa दृश्य यूँ था काली घटा से आसमान ढका था बहती हवाँ शीतल मन ले कर शीतलता से ,भाव विभोर कर रहीं थी छत की ऊंची दीवार पे चढ़, बहती ह