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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Village Life सन्ध्या छन्द 221 111 22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा ।। साधू कब तक बोले । लोभी मन मत डोले ।। इच्छा जब बढ़ती है । वो तो फिर डसती है ।। हो जीवन फिर बाधा । बोले गिरधर राधा ।। मीठी सुनकर वाणी । दौड़े सब अब प्राणी ।। सोचा नहिँ कुछ आगे । जोड़े मन-मन धागे ।। १४/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सन्ध्या छन्द 221 111 22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा
Bharat Bhushan pathak
कैसा ये युग आया भाई। सोच रही भी देवी माई।। मधुर नहीं अब होती गीतें। मर्यादा की खोती रीतें।। शिष्ट नहीं गीतों की बोली। मुद्रा लोभी जन-जन टोली।। ©Bharat Bhushan pathak #hillroad कैसा ये युग आया भाई। सोच रही भी देवी माई।। मधुर नहीं अब होती गीतें। मर्यादा की खोती रीतें।। शिष्ट नहीं गीतों की बोली। मुद्रा लोभ
Ankur tiwari
चलो माना गलत है दहेज़ पर क्या देने से खुद को रोक पाओगे जब भी जाओगे ढूंढने को रिश्ता नौकरी पैसा ओहदा भूल पाओगे कहने को कह तो कह देते हैं सभी कि हैं बुरी बात यूं दहेज़ लेना पर क्या कम पैसे सामान्य नौकरी वाले से अपनी बिटिया की शादी कराओगे सब लोग ढूंढ रहें इस समाज में अपने लिए दौलत मंद दामाद क्या किसी गरीब के साथ तुम अपनी बिटिया का घर बसा पाओगे गर नही तो तुम्हें अधिकार नही हैं दहेज़ के खिलाफ़ बोलने का तुम्हें अधिकार नहीं हैं सारे लड़को को एक ही तराजू पर तोलने का तुम्हें कोई अधिकार नही हैं हम पर यूं बेवजह लांछन लगाने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं हैं इस समाज को दहेज़ लोभी बताने का ©® अंकुर तिवारी ©Ankur tiwari #Exploration चलो माना गलत है दहेज़ पर क्या देने से खुद को रोक पाओगे जब भी जाओगे ढूंढने को रिश्ता नौकरी पैसा ओहदा भूल पाओगे कहने को कह तो
Devesh Dixit
आघात (दोहे) आशा जिससे हो हमें, दे वो ही आघात। पीड़ा होती है बहुत, व्याकुल हैं जज्बात।। जीवन में उलझन बड़ी, रहती है दिन रात। कैसे करूँ बखान मैं, मिलता है आघात।। समाधान जब हो कभी, मिलता है आराम। मुक्ति मिले आघात से, संकट है नाकाम।। देता जब कोई कभी, हमको है आघात। व्याकुल मन उसका रहे, खाता भी वह मात।। दें वो ही आघात हैं, जिस पर हो विश्वास। धन के लोभी से हमें, रहे न कोई आस।। .............................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #आघात #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry आघात (दोहे) आशा जिससे हो हमें, दे वो ही आघात। पीड़ा होती है बहुत, व्याकुल हैं जज्बात।। जीवन म
Rakesh frnds4ever
जीवन के सभी सुखद दुखद क्षणों की मन में छपी और मस्तिष्क के चेतन अवचेतन हिस्से में सहेजी गई सभी स्मृतियां जब जिंदगी की मुश्किल परिस्थितियों ओर बदतर हालातों में अनायास ही आंखों के दृश्यपटल के सामने इक रंगमंच के रूप में एक साथ प्रसारित हो ,, छवि के रूप में उभरती हैं तो मानों जैसे आपकी खुद की विभिन्न स्थितियों में अच्छी, बुरी, बेकार ,दयालु,स्वार्थी,लोभी, निर्दयी,सहयोगी, मतलबी,एकाकी,,आदि सभी छवियों से आपको रूबरू करा देती हैं ©Rakesh frnds4ever #Chhavi #जीवन के सभी सुखद दुखद #क्षणों की मन में छपी और मस्तिष्क के #चेतन #अवचेतन हिस्से में सहेजी गई सभी #स्मृतियां जब जिंदगी की
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
लोभ नही करना कभी , यह है माया जाल । बचकर चल इंसान तू , इसकी टेढ़ी चाल ।। लोभी मन होते नही , देख किसी के खास । अवसर पाते ही सुनो , तोडे मन की आस ।। लोभी को मिलता नही , देख कभी आराम । भज ले चाहे वो सदा , नित गिरधर का नाम ।। लोभी मन होते नही , देख कभी प्रभु धाम । लोभी तो भटकें सदा , भजते माया नाम ।। लोभ अगर मन में जगे , सुमिरि सिया पति नाम । उनके पावन नाम से , मन हो जाये धाम ।। १७/०५/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR लोभ नही करना कभी , यह है माया जाल । बचकर चल इंसान तू , इसकी टेढ़ी चाल ।। लोभी मन होते नही , देख किसी के खास । अवसर पाते ही सुनो , तोडे मन की
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- गिरधर तुमने जो दिया , मुझे आज उपहार । उसे समझता ही नही , देखो अब संसार ।।१ करते क्यों मेरा नहीं , आकर तुम संहार । मिलता अब मुझको नही , दुनिया से मनुहार ।।२ गिरधर तेरी चाकरी , करते थे हम खूब । अब तो लगता है मुझे , आज गये तुम ऊब ।।३ सब रिश्तों से थी अलग , तेरी मेरी प्रीत । क्या जाने ये जग मुआ , जिसकी झूठी रीति ।।४ तेरे मेरे प्रेम की , वेणु सुनाती गीत । तुम भी तो थे जानते , तुम ही मन के मीत ।।५ तुमसे तो बोला नही , हमने देखो झूठ । कहते तुम कुछ क्यों नही , बैठे बनके ठूठ ।।६ हरो आज चिंता सभी , दूर करो मन मैल । शरण तुम्हारे मैं रहूँ , ज्यों कोल्हू का बैल ।।७ अब रिश्तों से कर मुझे , गिरधर तू आजाद । रख लो अपनी तुम शरण , करता हूँ फरियाद ।।८ जीते जी मेरा नहीं , इस जग में अब ठौर । लोभी स्वार्थी लोग का , अब चलता है दौर ।।९ बदले सबने रंग है , मन की कहकर बात । अपने हित की बात कह , कर ली काली रात ।।१० विनय करूँ मैं आपसे , करो इसे स्वीकार । अपनी शरण बुला मुझे ,कर दो अब उद्धार ।।११ भ्रामर दोहा:- चार लघु झूठा ये संसार है , झूठी सारे मीत । सच्चा तो भूखा रहे , गाता कान्हा गीत ।।१ स्वार्थी रिश्तें तो सदा , देते हैं दुत्कार । देखा है देखो अभी , माया रूपी प्यार ।।२ नैनों से बातें करें , मीठी प्यारी आज । बैठे वे देखा करें , पूछे क्या है राज ।।३ दाता कष्टों से नहीं , होती है क्यों पीर । धोखा खाके क्यों बहे , दो नैनों से नीर ।।४ २७/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- गिरधर तुमने जो दिया , मुझे आज उपहार । उसे समझता ही नही , देखो अब संसार ।।१ करते क्यों मेरा नहीं , आकर तुम संहार । मिलता अब मुझको
Shakuntala Sharma
पूजा की शादी नजदीक थी और उसके बडे भाई को दहेज की रकम का इंतजाम करना था। लड़के वाले दहेज में मोटी रकम मांग रहें थे। और पूजा भी हो उसी लड़के से प्यार करती थी। आखिर पूजा का भाई मजबूर था । वह अपनी बहन की खुशिया ही चाहता है । पर वह यह भी जानता था । कि दहेज के लोभी लोग पूजा को कभी खुश नही रख पायेंगे । पूजा के बडे भाई ने लाख कोशिश की पर दहेज की रकम का इंतजाम नही कर पाया । अतः में पूजा के बड़े भाई ने हताश होकर कहा कि में दहेज के लोभी लोगों को अपनी बहन का हाथ नही दे सकता। चाह मेरी बहन कँवारी क्यो ना रहे जाये । ©Shakuntala Sharma # दहेज के लोभी लोगों को में अपनी बहन नही दे सकता ।
Anchal Pandey
चलिए.. कर दें आजाद खुदको, हर हथकड़ी, हर विकार से। संतोष, सौहार्द्र, दया और प्रेम हो जहां! चलें ऐसे नए संसार में। (अनुशीर्षक में पढ़ें ) Read in caption.. मन में कुछ आना, फिर उसकी ओर निकल जाना। कुछ करना, फिर पाना.. क्रमश: उसका अधिकारी बन जाना। यात्रा है हर किसी की! ...
Vikas Sharma Shivaaya'
क्या हमारा खराब प्रारब्ध किसी उपाय से बदला जा सकता है ?*क्यों बदलें *प्रारब्ध खराब है तो भोग करके नष्ट कर दो। लोभी आदमी टैक्सी के लिए पैसा खर्च न करके पैदल चला जाता है। हम प्रारब्ध को मिटाने के लिये भगवान् का भजन क्यों खर्च करें। शूरवीरता से उसको भोग लें। भीष्म के शरीर में दो अंगुल भी जगह ऐसी नहीं बची थी, जहाँ बाण लगने से घाव न हुआ हो। परन्तु उस अवस्था में भी वे कहते हैं कि मेरे जितने कर्म हैं,सब फल भुगताने के लिये आ जाओ ! 'पूर्वजन्म में जिन कर्मों का मेरे द्वारा संचय किया गया है, वे सभी रोग मेरे शरीर में उपस्थित हो जायँ। मैं सबसे उऋण होकर भगवान् विष्णु के परमधाम को जाना चाहता हूँ।' (महाभारत, शान्ति० २०९) ©Vikas Sharma Shivaaya' क्या हमारा खराब प्रारब्ध किसी उपाय से बदला जा सकता है ?*क्यों बदलें *प्रारब्ध खराब है तो भोग करके नष्ट कर दो। लोभी आदमी टैक्सी के लिए पैसा