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Manya Parmar
laxman dawani
Manya Parmar
Manya Parmar
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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी काल महाकाल दस्तक देता अनहोनी का साम्राज्य है बीते कितने दिन और रात मोह माया की आंधी से खोता शिवतत्व का आधार है जगाओ लौ देवत्त्व से नाशवान देह और संसार है स्वरूप देवत्त्व का धरो शिवरात्रि पर तप और ध्यान का डमरू बजाना है डसने बैठे मिथ्यात्व के कितने सांप इनसे परे जाकर महादेव का रूप हम सबको अपने अंदर प्रगट कराना है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #mahashivaratri शिवरात्रि पर तप और ध्यान का डमरू बजाना है #nojotohindi
Rameshkumar Mehra Mehra
जानेमन........... मुझे मत सिखओ ..... मोहब्बत की बाते....! जिस किताबो से.!! तुमने मोहब्बत.. सीखी है.. बो किताबे.. हमनें लिखी है.... ©Rameshkumar Mehra Mehra # जानेमन...... मुझे मत सिखाओ, मोहब्बत की बाते, जिस किताबो से तुमने , मोहब्बत सीखी है, बो किताबे हमने लिखी है......
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ पायलें तुमको बजाना आ गया । नींद प्रियतम की उड़ाना आ गया ।।३ छुप गये डरकर वहीं हो तुम सदा । सामने जब भी सयाना आ गया ।।४ जुल्फ़ अपनी बाँधकर देखो कभी । अब इन्हें खुलकर उलझना आ गया ।।५ हर अदा तेरी मुझे कातिल लगी । किस तरह तुझको सताना आ गया ।।६ भटकना हमको नही है राह में । बाँह का तेरी ठिकाना आ गया ।।७ नाम प्रियतम का लिखो तुम हाथ में । अब हिना तुमको रचाना आ गया ।।८ एक ख्वाबों की यहाँ दुनिया बना । प्रीत का फिर हर तराना आ गया ।।९ आपकी हर बात में जादू दिखा । छोड़कर दुनिया दिवाना आ गया ।।१० नील अंबर कह रहा हमसे प्रखर । लौटकर तेरा खिलौना आ गया ।।११ ०१/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ पायलें तुमको बजाना आ गया । नींद प्रियतम की उड़ाना आ गया ।।३ छुप गये डरकर वहीं हो तुम सदा । सामने जब भी सयाना आ गया ।।४ जुल्फ़ अपनी बाँधकर देखो कभी । अब इन्हें खुलकर उलझना आ गया ।।५ हर अदा तेरी मुझे कातिल लगी । किस तरह तुझको सताना आ गया ।।६ भटकना हमको नही है राह में । बाँह का तेरी ठिकाना आ गया ।।७ नाम प्रियतम का लिखो तुम हाथ में । अब हिना तुमको रचाना आ गया ।।८ एक ख्वाबों की यहाँ दुनिया बना । प्रीत का फिर हर तराना आ गया ।।९ आपकी हर बात में जादू दिखा । छोड़कर दुनिया दिवाना आ गया ।।१० नील अंबर कह रहा हमसे प्रखर । लौटकर तेरा खिलौना आ गया ।।११ ०१/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२