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Devesh Dixit
अपराधों की श्रृंखला (दोहे) अपराधों की श्रृंखला, का फिर से विस्तार। जगह-जगह से मिल रही, खबर देख हर बार।। कई तरह के जुर्म हैं, जिसको दें अंजाम। बिना डरे ही ये करें, दहशत वाले काम।। जीना ही दुश्वार है, शैतानों के बीच। कर्म करें ये कौन सा, जाने कैसे नीच।। अपराधों से है भरा, देख आज अखबार। कितनों की गिनती करें, छोड़ें भी हर बार।। प्रेम जाल में जो फंँसी, हो श्रृद्धा सा हाल। अपराधों में यह जुड़ा, हुआ देख विकराल।। सख्त हुआ कानून है, फैंका ऐसा जाल। मुजरिम को फिर है धरा, खींची उसकी खाल।। न्याय मिले जब देर से, परिजन हैं लाचार। अपराधी हैं घूमते, पीड़ित करें गुहार।। न्याय प्रणाली चुस्त हो, अपराधी भयभीत। जुर्म मिटे तब हों सुखी, तभी मिले फिर जीत।। ............................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #अपराधों_की_श्रृंखला #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry अपराधों की श्रृंखला (दोहे) अपराधों की श्रृंखला, का फिर से विस्तार। जगह-जगह से
Neel
orange string love light जब निकला रास्तों पर, ठोकरों में सारी दुनिया थी, बस तेरी आंखों में डूबे, खुद को लाचार कर बैठे। बहुत सम्हालकर रखा, सभी जज्बातों को अपने, तेरी नजरों से घायल हम, खुद को अखबार कर बैठे। 🍁🍁🍁 ©Neel खुद को अखबार कर बैठे 🍁
||स्वयं लेखन||
ram lala ayodhya mandir सूरज, चंदा, तारों में, आँगन,घर द्वार, दिवारों में, घाटी और पठारों में, लहरों और किनारों में, भाषण-कविता-नारों में,गाँव-गली-गलियारों में, चर्चा है अखबारों में,टीवी और बाजारों में। दुल्हन सी सुसज्जित एक अयोध्या नगरी है, जहां केवल जय श्री राम,जय श्री राम की गूंज, गूंज रही है। है चर्चा चहुं ओर राममंदिर की, है विजय ये सनातन धर्म की, ये विजय है बलिदानों की,गौरव की, सम्मान की। जो गौरव के प्रतिमान हैं,जो भारत की पहचान हैं, वो अयोध्या के राजाराम, मेरे प्रभु श्री राम आज पुनः विराजमान हैं। झूम रहे भारतवासी,चहुं ओर प्रसन्नता का उल्लास है, रामभक्तों की आंखों में केवल राम नाम का विश्वास है। जपो राम नाम,जीवन राममय हो जायेगा, राम तेरे तू राम का हो जायेगा। बन जायेंगे तेरे सारे बिगड़े काम,ले एक ही नारा, एक ही नाम, जय श्री राम, जय श्री राम, जय श्री राम। ©Gunjan Rajput सूरज, चंदा, तारों में, आँगन,घर द्वार, दिवारों में, घाटी और पठारों में, लहरों और किनारों में, भाषण-कविता-नारों में,गाँव-गली-गलियारों में, चर
Anil Ray
दृश्य स्वरूप से परे, मेरा एक निजस्वरूप भी है हजारों वस्त्र तन के लिए पर नजरदोष का क्या? कुदरत से प्राप्त कुदरती जिस्म अनमोल है मेरा तुम्हारा वजूद भी मिटेगा खुद को मिटा दूं क्या? ©Anil Ray विचारार्थ लेखन.................✍🏻 "सर! उस साली के बहुत पंख निकल आए हैं। कहती हैं मैं औरों के जैसी नहीं हूँ ... अजीब गंदी औरत है जो साफ होने
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- वो अभी तक तो जताता था हमीं से प्यार है । पीठ पर जो आज करता देख मेरे वार है ।।१ आदमी ही आदमी का कर रहा संहार है । प्यार के अब नाम पर फल फूलता व्यापार है ।।२ भूख जब भी जिश्म़ की लगती यहाँ हैवान को । खोजने फिर वह निकल पड़ता अकेली नार है ।।३ कल हुआ जो हादसा था सुन सरे बाज़ार में । चटपटी सी वह खबर आती सुबह अखबार है ।।४ उठ गया अपना भरोसा देखकर इंसान को । लाश को जब इस तरह बेचा गया बाज़ार है ।।५ मीडिया की बात ही पूछो नही अब आप सब । व्यूज मिल जाए अगर तो हद सभी फिर पार है ।।६ राम को भजते हुए ही प्राण ये निकले प्रखर । जब मिलें उसकी शरण तब छोड़ना संसार है ।।७ २३/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो अभी तक तो जताता था हमीं से प्यार है । पीठ पर जो आज करता देख मेरे वार है ।।१ आदमी ही आदमी का कर रहा संहार है ।
Anil Ray
एक बार फिर से नया साल आएगा जनवरी-फरवरी___नवंबर-दिसंबर दोहरायेगा.. यें आने वाला वक्त भी नया ही होगा बदनसीब होगा वों वक्त जो हमें न देख पायेगा.. दर्दे-दिल के ज़ख्म हरे के हरे ही रहे दर्द मुद्दतों पुराना कमबख़्त नयी धुन में गायेगा.. नववर्ष की बधाई भी किसको दूं मैं बेवफ़ाई का वक्त मुझको वफ़ा का वक्त लौटायेगा.. हरेक पल नया है वक्त के हाथों में पर वक्त के साथ हमारे हाथों में कुछ न रह पायेगा.. मत हँसो पर नेत्र को आँसू देकर दिल तोड़ने वाला वक्त हथौड़ा से तोड़ा जायेगा.. ©Anil Ray 🌸🪷__तानाशाह__ 🪷🌸 "सर! लोग अपने पदक पर पदक लौटा रहे हैं, एक न्यूज तो बनती है।" "न्यूज तो बनती है, पर यहाँ आजकल ईमानदारी सत्ता की छलनी में छ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- वो अभी तक तो जताता था हमीं से प्यार है । पीठ पर जो आज करता देख मेरे वार है ।।१ आदमी ही आदमी का कर रहा संहार है । प्यार के अब नाम पर फल फूलता व्यापार है ।।२ भूख जब भी जिश्म़ की लगती यहाँ हैवान को । खोजने फिर वह निकल पड़ता अकेली नार है ।।३ कल हुआ जो हादसा था सुन सरे बाज़ार में । चटपटी सी वह खबर आती सुबह अखबार है ।।४ उठ गया अपना भरोसा देखकर इंसान को । लाश को जब इस तरह बेचा गया बाज़ार है ।।५ मीडिया की बात ही पूछो नही अब आप सब । व्यूज मिल जाए अगर तो हद सभी फिर पार है ।।६ राम को भजते हुए ही प्राण ये निकले प्रखर । जब मिलें उसकी शरण तब छोड़ना संसार है ।।७ २३/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 2122 2122 2122 212 वो अभी तक तो जताता था हमीं से प्यार है । पीठ पर जो आज करता देख मेरे वार है ।।१
Divyanjli Verma
divyanjli ©Divyanjli Verma सभी पाठको से विनम्र निवेदन है की कृपया लेख को एक बार जरूर पढ़े और उस पर चिंतन भी करे। ये लेख केवल पत्रिका या अखबार में छपवाने के लिए नही लि
Rakesh Kumar