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Ravi Kumar Panchwal
राजनीति करती रही नुकसान हमारे अरमानों का, हम आज़ादी लाते रहे वो बंदिशें लगाती रही। दुश्मन ने तो पीठ दिखा दी देख अपनी एकता, अपनों को अपनों कि सेना अपनों से लड़ाती रही। हम आज़ादी लाते रहे वो बंदिशें लगाती रही। क्यों माने हम धर्मों के बे-ईमानी नारों को, क्यों ना छाँटे लालच के बेमतलब ख़तपतवारों को, क्यों हम ख़ुद को धोखा देकर ख़ुश करें ग़द्दारों को, अब तक हमदर्दों की टोली हमारा दर्द भटकाती रही। हम आज़ादी लाते रहे वो बंदिशें लगाती रही। रविकुमार राजनीति करती रही नुकसान हमारे अरमानों का, हम आज़ादी लाते रहे वो बंदिशें लगाती रही। दुश्मन ने तो पीठ दिखा दी देख अपनी एकता, अपनों को अपनों कि
Piyush Shukla
काँटों सा चुभता जीवन ये आखिर बोलो कब तक काटें सुबह सलोनी होती लेकिन दर्द धूप संग आ जाते हैं मेरे सारे सपनों पर ये धूल धूल बिखरा जाते हैं साँझ जलाये दीपक लेकिन फिर भी कितनी काली रातें गीत प्रेम के कितने लिख्खे लेकिन कोई काम न आया सूखा मेरा आँगन अबतक बादल मेरा घर ना पाया पा से प्रेमी पा से पीड़ा विषय गीत का कैसे छाँटें जिन राहों पर मिलती मंज़िल उनपर चलना बेहद मुश्किल लेकिन ऐसी बातों से बस रुकता होगा कोई बुजदिल हम तो हठ में पर्वत को भी छोटे छोटे कण में बाटें ©पीयूष राज गीत काँटों सा चुभता जीवन ये आखिर बोलो कब तक काटें सुबह सलोनी होती लेकिन दर्द धूप संग आ जाते हैं मेरे सारे सपनों पर ये
Rajesh Raana
सरसों फूली पिली पिली , गेहूं की बालियां सपनीली, पेंच दे रही ज़िन्दगी लेकिन , उड़ी अपनी पतंग रंगीली । (१) आओ मिलकर ख़ाब गिनाए, किसके ज्यादा किसके कम । उम्मीदों की डोरी से बंधकर, उड़े अपनी पतंग हरदम । (२) हैं ज़िन्दगी गर पथरीली , तो पत्थरचट्टा क्यों न उगाये । सबकी ख्वाहिश है फूलों की , हम तुम काँटो को रिझाये । (३) है धुंआ अगर ज़िन्दगी तो , इसको छल्लों में उड़ाए । है ज़िन्दगी अगर पतंग तो , सातवे आसमान पर उड़ाए । (४) जीवन सुखदुख भरी टोकरी , अपनी पसंद की खुशियां छाँटे । जिस तक न पहुँची है अब तक , उस तक त्योहारों के पल बांटे , आओ तिलगुड़ लड्ड़ू , गुझिया बांटे ।। (५) (आप सब स्नेहीजन को मकर संक्रांति , पोंगल , बिहू , लोहड़ी पर्व की हार्दीक हार्दीक शुभ कामनाएं ) मकर संक्रांति #सरसों फूली पिली पिली , #गेहूं की #बालियां #सपनीली, #पेंच दे रही #ज़िन्दगी लेकिन , #उड़ी अपनी #पतंग #रंगीली । (१) आओ मिलकर #ख़ाब
Rajesh Raana
सरसों फूली पिली पिली , गेहूं की बालियां सपनीली, पेंच दे रही ज़िन्दगी लेकिन , उड़ी अपनी पतंग रंगीली । (१) आओ मिलकर ख़ाब गिनाए, किसके ज्यादा किसके कम । उम्मीदों की डोर से बंधकर, उड़े अपनी पतंग हरदम । (२) हैं ज़िन्दगी गर पथरीली , तो पत्थरचट्टा क्यों न उगाये । सबकों ख्वाहिश है फूलों की , हम तुम काँटो को रिझाये । (३) है धुंआ अगर ज़िन्दगी तो , इसको छल्लों में उड़ाए । ज़िन्दगी है अगर पतंग तो , सातवे आसमा पर उड़ाए । (४) जीवन सुखदुख भरी टोकरी , अपनी पसंद की खुशियां छाँटे । जिस तक न पहुँची है अब तक , उस तक खुशियो के पल बांटे ।। ( ©Rajesh Raana #makarsakranti #life #Festival #Nojoto सरसों फूली पिली पिली , गेहूं की बालियां सपनीली, पेंच दे रही ज़िन्दगी लेकिन , उड़ी अपनी पतंग रंगीली ।