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Rakhi Bisht
धुआँ उड़ने लगे जब जली हुई ख़्वाहिशों का, वो फौरन चले जाते है। समझदारी का कोयला जलाएं तो सब हाथ सेंकने चले आते है। खाँसते है कुछ उलझनों को मुँह पर हाथ रख कर, कुछ को दबाते है कभी उम्मीद की अँगीठी पे बैठा आने वाले कल की तपिश देते है। #धुआँ #अँगीठी #ख़्वाहिश #तपिश
Anant Nag Chandan
अब तुम्हें कैसे बताएं अभी हमारे अंदर आग नहीं भड़की अभी हमे सिगरेट सुलगाना पड़ता है कुछ आंखें ही ऐसी होती हैं जिनको कोई न कोई ख़्वाब दिखाना पड़ता है इस दुनिया को छोड़कर जिसमें तुम भी हो जाता कौन है लेकिन जाना पड़ता है ©Anant Nag Chandan अभी हमारे अंदर आग नहीं भड़की अभी हमे सिगरेट सुलगाना पड़ता है कुछ आंखें ही ऐसी होती हैं जिनको कोई न कोई ख़्वाब दिखाना पड़ता है इस दुनिया को
अभी हमारे अंदर आग नहीं भड़की अभी हमे सिगरेट सुलगाना पड़ता है कुछ आंखें ही ऐसी होती हैं जिनको कोई न कोई ख़्वाब दिखाना पड़ता है इस दुनिया को #Shayari
read moreHarshita Dawar
Insta@dawarharshita जब से तेरे हाथों ने होठों तक का सफर तय कर लिया जब से होठों ने सिगरेट को धुएं में सुलगाना सीख लिया बस तभी से इश्क़ जो दिल में बचा कूचा सा रिश्ता को भी सुलगाता गया विश्वास जो था कहीं राख में उड़ाता गया पplease save the enviornment n human सेहत के लिए हानिकारक bad for health Insta@dawarharshita जब से तेरे हाथों ने होठों तक का सफर तय कर लिय
Devansh Parashar
इश्क़ की अँगीठी इश्क़ की अँगीठी दहकती सी रात पर वो पिघल रही थी और मैं उसकी यदों की अँगीठी पर दहक रहा था । तभी अचानक एक सर्द हवा का झोंका बंद खिड़की की ददारो
इश्क़ की अँगीठी दहकती सी रात पर वो पिघल रही थी और मैं उसकी यदों की अँगीठी पर दहक रहा था । तभी अचानक एक सर्द हवा का झोंका बंद खिड़की की ददारो
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
पूस माघ की रात में, पडती ऐसी ठण्ड़ । रखो अँगीठी पास में , फिर भी देती दण्ड़ ।। शीत लहर पर देख लो , चले न कोई जोर । थर-थर काँपें गाँत है , जाएँ अब किस ओर ।। शीत लहर से आज भी , होती साँसें बंद । सूर्यदेव का तेज ही , देता है आनंद ।। सड़को पर सोते रहे , बेघर वें लाचार । कैसे आये नींद अब , चलती शीत बयार ।। २०/१२/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR पूस माघ की रात में, पडती ऐसी ठण्ड़ । रखो अँगीठी पास में , फिर भी देती दण्ड़ ।। शीत लहर पर देख लो , चले न कोई जोर । थर-थर काँपें गाँत है , जाए
पूस माघ की रात में, पडती ऐसी ठण्ड़ । रखो अँगीठी पास में , फिर भी देती दण्ड़ ।। शीत लहर पर देख लो , चले न कोई जोर । थर-थर काँपें गाँत है , जाए #कविता
read moreKrishna
आज भी याद आता है (READ CAPTION) #कान्हा❤️❤️ वो पीछे की गली से आना वो बार बार मेरा घबराना और फिर फ़ोन मिलाना आज भी याद आता है वो गेट पर चम्पल उतारना वो तेरा मुझे धीरे से बोलना
वो पीछे की गली से आना वो बार बार मेरा घबराना और फिर फ़ोन मिलाना आज भी याद आता है वो गेट पर चम्पल उतारना वो तेरा मुझे धीरे से बोलना #Memories #Truth #lovequotes #yourquote #Collab #yourquotebaba #yourquotedidi #कान्हा❤️❤️
read moreBad Poet
लेकिन मैं तुम्हारे लिए ये गुलाब लाया हूँ और मैंने जानना है कि क्या तुम इसे खिलने दोगी? (caption) *गुलाब* ऐसा नहीं है कि मुझे डर है मैं तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं हूँ ऐसा नहीं है कि मेरे पास कहने के लिए लफ्ज़ नहीं हैं लेकिन जब तुम उसके साथ
*गुलाब* ऐसा नहीं है कि मुझे डर है मैं तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं हूँ ऐसा नहीं है कि मेरे पास कहने के लिए लफ्ज़ नहीं हैं लेकिन जब तुम उसके साथ #Roses #illuminate #translation #shawnmendes #mendesarmy #badpoethindi
read moreAnil Ray
बहुत अजीब रस्में-रिवाज दुनिया के दहलीज़ विदा बेटी अब मेहमान थी। परायों के संग, निभ पाने का था भय सुनहरे सुखद स्वप्न-मंद मुस्कान थी। निहारकर निजबेटी को वह बेटी अब सृजन-पालन से पाक अवतार में थी। महाविद्यालयगमन शिक्षाहितार्थ बेटी घर-आँगन अजनबी रिश्तें-कतार थी। कमबख्त! पुनः आगमन, वही रस्म है विदा करना था जो दिल का तार थी। मंगलगीत संग, स्वागत को चली अब बरसों बाद देखकर भैया से हँसी थी। अदा! करने रस्मों को, आयी दहलीज़ स्वजनों से उसके चेहरे पर खुशी थी। ©Anil Ray 🌺💗🌺 बेटी का बयान 🌺💗🌺 तुम संस्कारी बनो पराये घर है जाना फिर इस घर में आखिर क्यों हूँ मैं?? भगवान भी आना चाहे, धरा पर यदि अवतार भगवान का भी
🌺💗🌺 बेटी का बयान 🌺💗🌺 तुम संस्कारी बनो पराये घर है जाना फिर इस घर में आखिर क्यों हूँ मैं?? भगवान भी आना चाहे, धरा पर यदि अवतार भगवान का भी #girl #daughter #Ladki #relations #कविता #hindipoetry #Khushi #beti #nonotohindi #Anil_Kalam #Anil_Ray
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
आज सरकार जो बना बैठे । धन वही देश का लुटा बैठे ।।१ बीज नफ़रत का वो उगा बैठे । धर्म का पाठ भी पढ़ा बैठे ।।२ आदमी को बना दिया दुश्मन । क्या कहें प्रेम सब भुला बैठे ।।३ पक्ष विपक्ष मिल गये उधर देखो । झोपड़ी वो सभी जला बैठे ।।४ जाम ऐसा उसे पिलाया है । होश अपने सभी गवा बैठे ।।५ साज क्या आज छेड़कर गाऊँ । गीत मेरे वही चुरा बैठे ।।६ भूलकर पाप जो हुए हमसे । आज सब पास में वो आ बैठे ।।७ कर रहा शोक हूँ गरीबो का । जो अँगीठी सभी बुझा बैठे ।।८ फर्क कुछ भी नही पड़ा उन पर । वोट ले जो इन्हें भुला बैठे ।।९ मूक ये मीडिया कहे क्या अब । जेब अपनी गर्म करा बैठे ।।१० अब किसी का नहीं प्रखर कोई । दाँव अपने तुम्हें लगा बैठे ।।११ २१/०६/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आज सरकार जो बना बैठे । धन वही देश का लुटा बैठे ।।१ बीज नफ़रत का वो उगा बैठे । धर्म का पाठ भी पढ़ा बैठे ।।२ आदमी को बना दिया दुश्मन । क्या कह
आज सरकार जो बना बैठे । धन वही देश का लुटा बैठे ।।१ बीज नफ़रत का वो उगा बैठे । धर्म का पाठ भी पढ़ा बैठे ।।२ आदमी को बना दिया दुश्मन । क्या कह #शायरी
read moreअतुल कुमार सिंह
बेरहम पूस के जाड़े में, कल ही अँगीठी टूटी थी आज रात की बारिश ने, कम्बल भी गीला कर डाला पूरी कविता कैप्शन में पढ़िए बेरहम पूस के जाड़े में, कल ही अँगीठी टूटी थी आज रात की बारिश ने, कम्बल भी गीला कर डाला जैसे तैसे रातें अगहन की बीतीं ठंड ने था मानों ठान लिय
बेरहम पूस के जाड़े में, कल ही अँगीठी टूटी थी आज रात की बारिश ने, कम्बल भी गीला कर डाला जैसे तैसे रातें अगहन की बीतीं ठंड ने था मानों ठान लिय
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