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Irfan Saeed
आंधियां चीखती है शाख क्यों उजड़तें है मेरी गुरबत मै सभी ख़्वाब क्यों बिखरते है मेरी ख़ामोशी के शहर भी अभी जिंदा है तेरे आने जानें की हसरत में वो मचलते हैं बंजर मिट्टी भी तो गीली पड़ी है अश्को से अब तो आंसू भी तेरी याद में निकलते हैं मेरी आंखों का भी दरिया तो हो गया ठंडा मेरे सीने के दाग अब तलक सुलगते है तेरी जफा ने मुझे अब तलक घायल है किया अब तो ये दाग़ भी मेरे ना कभी भरते हैं इरफ़ा"शायर की तरह तोड़ लेगा दिल अपना हम तो मरते हैं,तो मरते है, चलो चलते हैं ©Irfan Saeed Bulandshari आंधियां चीखती है शाख क्यों उजड़तें है मेरी गुरबत मै सभी ख़्वाब क्यों बिखरते है मेरी ख़ामोशी के शहर भी अभी जिंदा है तेरे आने
HINDI SAHITYA SAGAR
कविता : "कब की छूट गईं वो राहें" आज सुबह वो घर से निकले, पहन के हाँथों में दस्ताने, दस्तानों में भी ठण्डे थे, कंपित हस्त हिमानी पाले। कोहरा छाया था सड़कों पर, पथ भी नजरों से ओझल था। तन भी ठिठुर रहा था थर-थर, मन भी बेहद बोझिल था। अंगुश्ताने भी पहने थे, ऊनी-अच्छे अंगुश्ताने। न ही ठंड अधिक थी, फिर भी ठंडी थी बाहें। ठंडी थी बस बाहें, या फिर पूरा तन ठंडा था, तन ठंडा था, मन ठंडा था, या फिर जीवन ही ठंडा था। उसके मन को जान न पाए, क्यों हम थे इतने अनजाने? मन मेरा उद्विग्न हो उठा, क्या थे हम इतने बेगाने? शायद! उसकी सिसकारी से, उर में जलती चिनगारी से, पलकों की एकटक चितवन से, शायद अब तक थे अनजाने। जिन पर चलकर हमें था जाना, कब की छूट गईं वो राहें। अब तो केवल शेष बची थी, दर्द भरी सिसकी और आहें। -✍🏻शैलेन्द्र राजपूत उन्नाव, उत्तर-प्रदेश 15.01.2023 ©HINDI SAHITYA SAGAR कविता : "कब की छूट गईं वो राहें" आज सुबह वो घर से निकले, पहन के हाँथों में दस्ताने, दस्तानों में भी ठण्डे थे, कंपित हस्त हिमानी पाले। कोहर
Anil Ray
दिल में दफ़न है, मुमताज बहुत सपनों की पर कमबख्त! यह दिल, तुम पर ही मरेगा। यार तुम मुमताज से भी बहुत खूबसूरत हो सदा साथ के लिए तेरे हजार नखरे सहेगा। कही गुज़र न जाये, यें जवानी ख्यालातों में साला! पंडित को बुला ले, मैं शादी करेगा। ©Anil Ray 💞 💖//एक-दूसरे के लिए मरते रहे//💖 💞 केवल दो वक्त रोटी के लिए आसमां उठाये रखा हम अनजान पानी पर दिनरात पापड़ बेलते रहे। कार्यालय में ठंडा खा
Vijay Kumar
MOHAMMAD BARKAT ALI
SHIVANSH UP WALA
Suresh Gulia
अनलिमिटेड मोहब्बत तेरी झील सी गहरी आँखों में डूब तो जाता, मगर तैरनाआता है, तुझसे मोहब्बत करके मर तो जाता, मगर ठोकर खाकर संभलना आता है, तूने कोशिश तो की हमें भी फरेब करना सिखाने की, मगर हम सीख नहीं पाए, क्योंकि हमें अनलिमिटेड प्रेम करना आता है | #Love ठंडा पानी;:9156219736 पंडितजी Babita Pandey Gori indira Sethi Ji R K Mishra " सूर्य " अब्र 2.0 Dard Harjinder Singh Asr