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Mukesh Singh Rana
जो व्यक्त है वो अव्यक्त नहीं जो अव्यक्त है वो व्यक्त नहीं... ©Mukesh Singh Rana व्यक्त-अव्यक्त
विष्णुप्रिया
माँ के हाथों की, ये चूड़ियां अवगत है, उनके हृदय के व्यक्त अव्यक्त भावो से... माँ के हाथों की, ये चूड़ियां अवगत है, उनके हृदय के व्यक्त अव्यक्त भावो से... खुशियो में, गुंजायमान करती, संपूर्ण गृह,
Sunita D Prasad
नदी को लिखना सहज नहीं रहा बहना पड़ा डूबकर उतरना पड़ा उद्गम से समागम तक कइयों बार। पर मैं फिर भी लिखने में असमर्थ रही धीरे-धीरे कटकर नदी संग बह जाने वाले किनारों की अनकही व्यथा। बारिशों को लिखना सरल नहीं रहा सीखना पड़ा बिन भेदभाव भीगना और भिगाना। पर मैं नहीं लिख पाई दर-दर भटकर नमी बटोरते बादलों की अथक यात्रा। ऐसे ही प्रत्येक लिखत में नदियों संग होते हैं कुछ किनारे भी और बारिशों संग कुछ बादल भी। व्यक्त के साथ बहुत कुछ छूट जाता है कहीं पीछे अव्यक्त भी। --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #व्यक्त-अव्यक्त..... नदी को लिखना सहज नहीं रहा बहना पड़ा डूबकर उतरना पड़ा उद्गम से समागम तक कई बार।
Sunita D Prasad
तुम्हारी आँखों के एकाकीपन से अधिक मुझे आकर्षित करता है उनका यदाकदा अचंभित होना। हम उतना ही दिखे जितना हम कर पाए स्वयं को व्यक्त अव्यक्त भीतर ही कहीं अंध गुफा बनता गया। व्यक्त करना एक ऐसी कला रही जिसे तुम्हारे संवादों से अधिक मौन ने बखूबी निभाया स्वर से अधिक तुम्हारे मुख की विश्रांति ने मेरी शिराओं में कंपन उत्पन्न किया। देखो, वहाँ दूर उतरती शाम की टूटती घाम बिखरने से अधिक सिमट रही है और यहाँ मैं तुम्हारे चुंबन के मध्य अधरों के ताप से बरसाती नदी में किसी हरे वृक्षों की भाँति टूटकर, बह निकली हूँ मेरी देह पर उभरे स्वेद कण उसी बरसाती नदी की विरासत हैं।। --सुनीता डी प्रसाद💐💐 तुम्हारी आँखों के एकाकीपन से अधिक मुझे आकर्षित करता है उनका यदाकदा अचंभित होना। हम उतना ही दिखे जितना हम कर पाए स्वयं को व्यक्त
Parasram Arora
अगर अव्यक्त को व्यक्त करना हो तो हमें "कला " का सहारा लेना होगा यतो हमें मूर्तिकार बन कर उस कल्पित अव्यक्त चीज की मूर्ती बनानी पड़ेगी या फिर ह्रदय की गुफा से ु कल्पना क़े अव्यक्त रूप को व्यक्त करने क़े. लिए कोई कविता कागज़ पर उतारनी पड़ेगी जहां तक सवाल प्रकृति क़े व्यक्त स्वरूप और परमात्मा क़े अव्यकत निराकार रूप को उजागर . करने का है उसके लिए ध्यान और मौन की साधना से गुजर कर साक्षित्व क़ि दिव्य आँख पैदा करनी पड़ेगी # व्यक्त और अव्यक्त.....
Vin's Bansode
आता वेळ नाही वेळेला काही काम नाही स्तब्ध जीव आज व्यक्त काही नशेत धुंद माझे शब्द साही प्रश्न अमाप उत्तर नाही आयुष्य आहे अर्थ नाही. #अव्यक्त
Rani Salunke
भर उन्हाळ्यात एका छानशा वातानुकूलित कॅफेटेरियामध्ये तू तिच्यासोबत बसला होतास. उगाचच तिची नजर चुकवून मग इकडे तिकडे पाहत होतास. तिला समजत नाही काही हा मात्र फक्त तुझा गोड गैरसमज होता. तिला कळत होतं सार पण तुला सांगावं अस वाटलं नसेल तिला. कदाचित ती ही पाहत होती तुला इथे तिथे पाहिल्यावर हळूच तुझी नजर चुकवून. तुझ्या डोळ्यात एकटक पाहण्याचा तिचा प्रयत्न बहुतेक अयशस्वी झाला असावा. मग तिने टेबल वरच्या टिशू वर उगाचच पेनाने काहीतरी खरवडवलं. तुझ्या मनात उत्सुकता असूनही तू तिला विचारलं नाहीस. ती दाखवणारच नाही उगाच भाव खाईल हा तुझा समज होता. तिने तो कागद मग लिहून पुन्हा चुरगळाला आणि तसाच टेबलवर ठेवला आणि गोड स्मितहास्य करून निघून गेली. ती गेल्यानंतर तरी एकदा त्या टिशूमध्ये काय लिहल असावं ह्या उत्सुकतेनं तू पाहायला हवं होतंस पण ते न करता तू ही निघून गेलास. अरे वेड्या नजरेतून ती जे बोलूनही तुला कळलं न्हवत ते शब्दात लिहून तिने तुझ्या जवळ ठेवलं. डोळे सोड तुला कागदावरच सुद्धा वाचता नाही आलं. -राणी साळुंके. #अव्यक्त