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Poonam Suyal
एक खूबसूरत रात (अनुशीर्षक में पढ़ें) एक खूबसूरत रात पूनम की वो रात थी। चाँद अपनी चाँदनी पुरज़ोर बिखेर रहा था। मदमस्त था आलम। कितना खूबसूरत था समा। मैं अकेले घर में खिड़की के पास बैठकर चाय और मौसम का आनंद ले रही थी। ठण्डी पुरवाई चल रही थी जिसके मेरे गालों पर स्पर्श स्पर्श से असीम सुख की अनुभूति मुझे हो रही थी। पर इस सुख के साथ एक पीड़ा भी महसूस कर रही थी मैं। ऐसे मौसम में मैं अकेली जो थी। कोई नहीं था साथ मेरे जिससे अपनी खुशी साँझा कर सकूँ, अपने दिल की बात कह सकूँ। पति अब रहे नहीं और बच्चे अपनी दुनिया में मशगूल थे। अपनी नौकरी, घर
Poonam Suyal
पूनम का चाँद था मुस्कुरा रहा, ऐसी थी वो रात किसी को याद करते-करते तन्हाई में कट रही थी रात खामोश था समा, दिल था किसी का जल रहा बूँद-बूँद कर पिघल रही थी वो रात दर्द था बेशुमार, आँखें थी आँसुओं से भरी हुई ना जाने कैसी बिताई उसने वो रात चाँद था शीतल, लगाया उसने कुछ मरहम दिल पर उसी के सहारे बीती थी वो लम्बी काली रात सब्र जब ना हुआ, बह गए सभी जज़्बात आख़िर कब तक ग़म संभाले रखती वो रात उसे नहीं भूले, आज भी करते हैं वो उसे याद दिलो-दिमाग में आज भी ताज़ा है वो पूनम की रात पूनम का चाँद था मुस्कुरा रहा, ऐसी थी वो रात किसी को याद करते-करते तन्हाई में कट रही थी रात खामोश था समा, दिल था किसी का जल रहा बूँद-बूँद कर पिघल रही थी वो रात दर्द था बेशुमार, आँखें थी आँसुओं से भरी हुई ना जाने कैसी बिताई उसने वो रात
Poonam Suyal
पूनम की रात (अनुशीर्षक में पढ़ें) पूनम की रात पूनम की रात हो उजियारी, चाँदनी में भीगी हो धरा सारी तुम मिलो हमें तब, दिल हो जाएगा तुम पर बलिहारी कितना खूबसूरत होगा समा,
Nitesh Prajapati
"श्याम की नीति" कृपया पूरी कहानी अनुशीर्षक मे पढ़े । रचना क्रमांक :-3 @@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ "श्याम की नीति" एक बड़े शहर में एक बहुत छोटा आदमी रहता था, लेकिन था वह ईमान का बड़ा पक्का, चलाता था रिक्शा अपनी रोजी रोटी के लिए नाम था उसका श्याम। दिन में भी वह रिक्शा चलाता था और रात में रेलवे स्टेशन की बारह बजह वाली ट्रेन के मुसाफिर को अपनी मंजिल पर पहुंचा कर अपने घर चला जाता था। परिस्थिति उसकी बिल्कुल साधारण सी थी, मेहनत करके अपने बेटे का पढ़ाता था, लेकिन कभी किसी से बेमानी नहीं करता था।
Nitesh Prajapati
नितेश (नीति) #ग़ज़ल# मिला हमें यह "नितेश" नाम मम्मी पापा के मुँह से, लेकिन उस पर खरा उतरा में मेरी नीति से। नीति से चलना आसान नहीं होता, लेकिन मैं संभाल के चला इसे मेरे संस्कार से। मिलता नहीं है सच की राह पर साथ किसी का भी, लेकिन मैं चला हमेंशा इसी राह पर मेरे मन के विश्वास से। ना हारा किसी से, ना डरा किसी से, कितनी बार गिरा लेकिन फिर से उठा मैं मेरे विचारों से। हौसला है मेरा बुलंद, विश्वास भी है मन में, चलू मैं नीति का दामन थामे अपने वज़ूद से। फैलाता हूंँ संदेश नीति का अपने शब्दों से, शायद कोई पढ़ ले और छोड़ दे यह अनीति हमेंशा से। -Nitesh Prajapati रचना क्रमांक :-2 #प्रतिरूप #kkप्रतिरूप #कोराकाग़ज़प्रतिरूप #प्रतिरूपग़ज़ल #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़
Nitesh Prajapati
"नीतेश" नितेश मानी के नीति का उपासक, सच का नुमाइंदा और कानून का हिमायती। चलता है जो हमेंशा नीति की पगडंडी पर, चाहे फिर हो जाए कुछ भी खुद का। करता है वह दूसरों की इच्छा पहले पूरी, अपने बारे में तो वह बाद में सोचता है। जो श्री कृष्णा की तरह बांटता है प्यार, और घिरा रहता है हर वक़्त अपने चाहको से। ना होता है कोई छल कपट ना ही कोई क्रोध भाव, होता है इस नाम वालों का दिल बिल्कुल ही साफ़। रहता है वह अकेला अपने बलबूते पर, लेकिन देता है साथ हमेंशा जहांँ उसकी जरूरत होती है। रचना क्रमांक :-1 #प्रतिरूप #kkप्रतिरूप #कोराकाग़ज़प्रतिरूप #प्रतिरूपकविता #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़
Dr Upama Singh
“पंछी की उड़ान” कहानी बात अस्सी के दशक की है जब मेरा जन्म हुआ। मैं जन्म के समय बहुत ही कमजोर पैदा हुई थी। इसलिए कॉलोनी की मिश्रा आंटी ने मेरा नाम चिड़िया रख दिया। मेरे जन्म से 2 साल पहले ट्रेन एक्सीडेंट में मेरे 8 साल भाई की मौत हो गई थी। इसलिए जब मैं कमजोर पैदा हुई तो मेरी मांँ और पापा ने सोचा कि सब सोचेंगे लड़की हुई है इसलिए ये लोग ध्यान नहीं दे रहे हैं, इस सोच से वो लोग बहुत मेरे स्वास्थ्य बहुत ध्यान दिया। धीरे धीरे बड़े होने पर जब कॉलोनी के सारे लोग चिड़िया बुलाते से मुझे बहुत गुस्सा आता क्योंकि सब बच्चे मुझे “चिड़िया का दाना, है तुमको खाना” कह कर चिढ़ाते थे। एक दिन मिश्रा आंटी से मैंने कहा कि आप मेरा कोई और नाम नहीं रख सकती थी, उन्होंने का कि तुम बहुत कमजोर पैदा हुई थी और उस समय मुझे यही नाम सुझा। मैंने तुरंत बोला कि आप मेरा कोई और नाम रख दीजिए, तो वो बोली, आज से सब तुम्हें पंछी बुलाएंगे। अब तो तुम खुश हो ना, वैसे एक दिन तुम पंछी की तरह दूर ऊपर आसमान में कामयाबी की उड़ान भरोगी, ये मेरा तुम्हारे लिए आशीर्वाद है। धीरे धीरे सब मुझे तबसे पंछी नाम से बुलाने लगे। और आज मिश्रा आंटी और अपने सभी बड़ों और गुरुजनों के आशीर्वाद से बीएचयू जैसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी से पीएचडी स्क्लोरशिप के साथ कर कामयाब जीवन व्यतीत कर रही हूंँ। #कोराकाग़ज़ #प्रतिरूप #प्रतिरूपकहानी #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़प्रतिरूप #kkप्रतिरूप #विशेषप्रतियोगिता #unique_upama
Dr Upama Singh
“पंछी की उड़ान” पंछी बन उड़ना है दूर गगन। मंज़िल पाना है होकर मुझे मगन। हरी डाली पर मुझे अपना घरौंदा बनाना है। इसको पूरा करने वास्ते ख़्वाब हमें पिरोना है। हर इंसान चाहता उसे उड़ने को मिले। हम पंछी चाहते रहने को घर मिले। क्या पंछी का दर्द समझा सका ये ज़माना है। इंसान पेड़ काट कर तोड़ दिया मेरा आशियाना है। हम पंछी को आसमान में उड़ान भरने में आराम आज़ादी मिलती है। हमें पिंजड़े में क़ैद क्या कर दिया खुशी नहीं मिलती है। एक एक तिनका जोड़ कर मैं अपना घर बनाती हूंँ। धूप, हवा, बारिश, तूफ़ान झंझावातों से अपना परिवार बचाती हूंँ। मेहनत करने से मैं कभी नहीं घबराती हूंँ। अपने छोटे से शरीर से बड़ा काम कर जाती हूंँ। #प्रतिरूप #kkप्रतिरूप #कोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़प्रतिरूप #collabwithकोराकाग़ज़ #प्रतिरूपग़ज़ल #rimjhim_thoughts #विशेषप्रतियोगिता
Dr Upama Singh
“पंछी की उड़ान” बुरे वक्त में भी ना कभी घबराना पंछी ये दुनिया दुःख का मेला भीड़ भरी अंबर पर तुझे उड़ना ही है अकेला ऊँची उड़ान भरने पर भी पंछी कभी घमंड ना करना आसमान में उड़ने वाले भी को भी ज़मीन पर ही आकर होता है रहना पंछी का दिल अरमानों के बादल फैलाए थोड़ा शरमाए जब मेरे दिल को तेरी याद आए आज़ाद दिल आज़ाद ख़याल के पंछी हम अपने अरमानों के पंख लगा कर दूर आसमान में उड़ना चाहें हम पंछी: चिड़िया #प्रतिरूप #kkप्रतिरूप #प्रतिरूपकविता #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़प्रतिरूप
Tarot Card Reader Neha Mathur
कोरा कागज़ प्रतिरूप कहानी तीसरा चरण कहानी " नेहा और ब्रह्मराक्षस द्वंद" क्या था जो नेहा को महादेव ने सौंपा ? जिसे पाने के लिए ब्रह्मराक्षस ललायित हो उठा। क्या वह उसे मार डालेगा या कोई चन्द्रवंशी उसे बचा लेगा? कहानी अनुशीर्षक मे पढ़े। आज चम्बा की हवा ही अलग थी।पूर्णमाशी की रात का चन्द्रमा और उज्जवलित था। पहाड़ी पगडंडियों पर चलती नेहा के पांव मे न जाने आज कौन सी थिरकन थी।चारू चंद्र की चंचल किरणे भी उसके मुख को चांदनी से दिप्त कर रही थी। महादेव के बड़े भक्त श्याम बाबा ने अपने आश्रम मे बुलाया था।अपने प्रिय शिष्य चन्द्रकेतू के हाथ उसे संदेशा भेजा था।नेहा जानती थी यह कोई आम संदेशा नही है बहुत ही महत्वपूर्ण घटना शुरू होने का पहला चरण है।आज उसे अंधेरे मे सन्नाटे का नही आभास था बल्कि झिगुरे की आवाज़ भी उसे गीत लहरी रही थी। अपने मे मग