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Poonam Suyal

अकेली ज़िंदगी 

अकेली ज़िंदगी जीने की अब हमें आदत हो गई है 
इस अकेलेपन से हमको चाहत हो गई है 
हर अच्छे या बुरे हाल में जीना सीख लिया है हमने 
कोई भी चीज़ अब हमें लुभाती नहीं है 
जो हुआ उसे नहीं सोचते हम अब 
अपने आज में जीने की हमें नसीहत मिल गई है 
कोई साथ हो तो लगता है अच्छा ही 
ना हो कोई तो भी किसीसे शिकायत हमें नहीं है  #collabwithकोराकाग़ज़  #कोराकाग़ज़  #kkpc21 #विशेषप्रतियोगिता 
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#yqdidi   

Pic credit google

Dr Upama Singh

      अकेली जिंदगी (कविता)

जिंदगी बस वही जो हम आज जी लें
कल जो जिएंगे वो उम्मीद होगी

ऐ जिंदगी! सच में कभी कभी थकावट महसूस होती है
जिंदा रहने के लिए हर कदम परीक्षा से गुजरना पड़ता है

अपनी जिंदगी का तू अकेला मुसाफिर है
बेगाने हैं जो अपना जताते हैं

छोड़ जायेंगे साथ तेरा एक दिन राहों में
वो जो आज खुद तेरा हमसफर बताते हैं

जीवन जिसके नाम कर दिया उसी ने मेरा साथ छोड़ दिया
आजमा के रास्ते में फिर उस मोड़ पर अपना मुख मोड़ लिया।।
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Dr Upama Singh

‘घूंघट में स्त्री’ विषय भारतीय समाज का बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है। स्त्री को शुरू से ही बंधन में बांध कर रखा गया है फिर भी समय के साथ उसने पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहराया है। एक भारतीय नारी जब तक अपने पीहर यानी पिता के घर रहती है तब तक वो हर बंधन से आज़ाद रहती है वही जब विवाह बाद अपने ससुराल पहुंचती हैं उसी दिन से इज्ज़त और संस्कार के नाम पर घूंघट करने को बोल देते हैं क्या सिर्फ घूंघट कर लेने से वो स्त्री अपने से बड़ों का आदर सत्कार करेगी या वो अ

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          “घूंघट में स्त्री” ( चिंतन)
                अनुशीर्षक में

 ‘घूंघट में स्त्री’ विषय भारतीय समाज का बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है। स्त्री को शुरू से ही बंधन में बांध कर रखा गया है
फिर भी समय के साथ उसने पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहराया है। एक भारतीय नारी जब तक अपने पीहर यानी पिता के घर रहती है तब तक वो हर बंधन से आज़ाद रहती है वही जब विवाह बाद अपने ससुराल पहुंचती हैं उसी दिन से इज्ज़त और संस्कार के नाम पर घूंघट करने को बोल देते हैं क्या सिर्फ घूंघट कर लेने से वो स्त्री अपने से बड़ों का आदर सत्कार करेगी या वो अ

Dr Upama Singh

           बहती हवा (गजल़)

किससे पूछूँ की क्या है वहांँ जहांँ वो रहते हैं
गुलाबी सी बहती हवा है मेरे इश्क़ की निशानी है वहांँ।।

हर सांस मेरे धड़कते दिल की धड़कने उनकी।
बहती हवा उड़ती घटा के अंदाज़ थे उनकी।।

सुन–ए–हवा बहती रहती है तू सदा।
तो मेरी मोहब्बत का पैगाम उनके पास लेती जा।।

मेरी बेशुमार मोहब्बत का गुलदस्ता ले जा।
चाहे बदले में इसके तू मेरी जान ले जा।।

मगर उनकी नूरानी आँखों और चेहरे से हर ग़म।
आ कर उनके आंँसू तू आ कर मुझे दे जा।। #कोराकाग़ज़ 
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#विशेषप्रतियोगिता 
#similethougths 
#बहतीहवा ग़ज़ल

अभिलाष सोनी

कोरा काग़ज़ Premium Challange-21 विषय 4 :- अकेली ज़िन्दगी (कविता) अकेली ज़िन्दगी को खुशनुमा बनाने तुम आए। सदियों की फैली उदासी को भुलाने तुम आए। तुम आए तो बहारों का मौसम भी प्यारा लगा। ख़ुशमिज़ाजी से हमको जीना सिखाने तुम आए।

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कोरा काग़ज़ Premium Challange-21
विषय 4 :- अकेली ज़िन्दगी (कविता)
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अकेली ज़िन्दगी को खुशनुमा बनाने तुम आए।
सदियों की फैली उदासी को भुलाने तुम आए।

तुम आए तो बहारों का मौसम भी प्यारा लगा।
ख़ुशमिज़ाजी से हमको जीना सिखाने तुम आए।

तन्हा बसर करते थे हम इन वीरानियों में कभी।
मेरी तन्हाई और वीरानियों को मिटाने तुम आए।

बड़ी अकेली थी ज़िन्दगी मेरी सहरा की तरह।
मधुर संगीत मेरे कानों में गुनगुनाने तुम आए।

तुम आये तो खुद को भी खूब पहचाना हमने।
दुनिया को मेरी सही पहचान बताने तुम आए। कोरा काग़ज़ Premium Challange-21
विषय 4 :- अकेली ज़िन्दगी (कविता)

अकेली ज़िन्दगी को खुशनुमा बनाने तुम आए।
सदियों की फैली उदासी को भुलाने तुम आए।

तुम आए तो बहारों का मौसम भी प्यारा लगा।
ख़ुशमिज़ाजी से हमको जीना सिखाने तुम आए।

अभिलाष सोनी

कोरा काग़ज़ Premium Challange-21 विषय 3 :- ज़माने की फ़िक्र (लघुकथा) ना ज़माने की फ़िक्र है ना किसी बात का ग़म। मस्तमौला इस ज़िंदगी में काफी खुश हैं हम। लोगों की सोच में तो है आज भी एक भरम। क्यूँ इतनी ख़ुशमिज़ाजी से अब जी रहे हैं हम।

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कोरा काग़ज़ Premium Challange-21
विषय 3 :- ज़माने की फ़िक्र (लघुकथा)
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ना ज़माने की फ़िक्र है ना किसी बात का ग़म।
मस्तमौला इस ज़िंदगी में काफी खुश हैं हम।

लोगों की सोच में तो है आज भी एक भरम।
क्यूँ इतनी ख़ुशमिज़ाजी से अब जी रहे हैं हम।

कैसे बताए उनको अब, ये है ख़ुदा का करम।
तक़दीर की बदौलत, हर ऊँचाई छूते हैं हम।

तालीम में हमको, है इतनी ही शराफ़त मिली।
भुलाकर लोगों की खामियाँ, मुस्कुराते हैं हम।

चाहत होती है सबकी, यहाँ सोहरत पाने की।
रोज अपनी बुलंदियाँ, अब तय करते हैं हम। कोरा काग़ज़ Premium Challange-21
विषय 3 :- ज़माने की फ़िक्र (लघुकथा)

ना ज़माने की फ़िक्र है ना किसी बात का ग़म।
मस्तमौला इस ज़िंदगी में काफी खुश हैं हम।

लोगों की सोच में तो है आज भी एक भरम।
क्यूँ इतनी ख़ुशमिज़ाजी से अब जी रहे हैं हम।

अभिलाष सोनी

कोरा काग़ज़ Premium Challange-21 विषय 2 :- घूँघट में स्त्री (चिंतन) इस देश में घूँघट में स्त्री का सम्मान कब तक है। लोगों की नज़रों में वो माँ के समान जब तक है। घूँघट में भी महफूज़ महसूस नहीं करती वो स्त्री। लोगों में गंदी सोच और बहसी हैवान जब तक है।

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कोरा काग़ज़ Premium Challange-21
विषय 2 :- घूँघट में स्त्री (चिंतन)
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इस देश में घूँघट में स्त्री का सम्मान कब तक है।
लोगों की नज़रों में वो माँ के समान जब तक है।

घूँघट में भी महफूज़ महसूस नहीं करती वो स्त्री।
लोगों में गंदी सोच और बहसी हैवान जब तक है।

माँ, बहन के रूप में ईश्वर की अनमोल देन है स्त्री।
मत करना कभी अपमान, सीने में जान जब तक है।

स्त्री ही है समाज की रीढ़ की हड्डी और बुनियाद।
करना सम्मान उसका हरपल, ये जहान जब तक है।

कहते है लोग कि स्त्री तो माँ का ही रूप होती है।
मत भूलना ये सत्य कभी, गीता कुरान जब तक है। कोरा काग़ज़ Premium Challange-21
विषय 2 :- घूँघट में स्त्री (चिंतन)

इस देश में घूँघट में स्त्री का सम्मान कब तक है।
लोगों की नज़रों में वो माँ के समान जब तक है।

घूँघट में भी महफूज़ महसूस नहीं करती वो स्त्री।
लोगों में गंदी सोच और बहसी हैवान जब तक है।

अभिलाष सोनी

कोरा काग़ज़ Premium Challange-21 विषय 1 :- बहती हवा (ग़ज़ल) तुझे छूकर गुज़रती हुई ये बहती हवा, जाने क्या कहती है ज़रा मुझे भी बता। बड़ी ख़ुशक़िस्मत है जो तुझे छू पाई, मेरे नसीब में तो तुझसे दूरी ही लिखा।

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कोरा काग़ज़ Premium Challange-21
विषय 1 :- बहती हवा (ग़ज़ल)
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तुझे छूकर गुज़रती हुई ये बहती हवा,
जाने क्या कहती है ज़रा मुझे भी बता।

बड़ी ख़ुशक़िस्मत है जो तुझे छू पाई,
मेरे नसीब में तो तुझसे दूरी ही लिखा।

तेरे रुख़सारों को तेरी ज़ुल्फों से छूती है,
मैं हाथ भी लगाऊँ तो इसमें मेरी ख़ता।

मैं अफसोस भी ज्यादा कर नहीं सकता,
मेरी हर ख़्वाहिश है अब तुझको पता।

मैं ज़िक्र भी तेरा कभी कर नहीं सकता,
इस हवा ने तो अब तुझको ही छू लिया।

कमबख़्त बड़ी शातिर है ये ज़िद करती है।
जैसे आँखों में छाया हो सिर्फ तेरा नशा। कोरा काग़ज़ Premium Challange-21
विषय 1 :- बहती हवा (ग़ज़ल)

तुझे छूकर गुज़रती हुई ये बहती हवा,
जाने क्या कहती है ज़रा मुझे भी बता।

बड़ी ख़ुशक़िस्मत है जो तुझे छू पाई,
मेरे नसीब में तो तुझसे दूरी ही लिखा।

DR. SANJU TRIPATHI

वर्तमान में हम 21वीं सदी में जी रहे हैं परंतु घूंघट में स्त्री विषय पर चिंतन आज भी हो रहा है या विषय इस बात को दर्शाता है कि हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच अभी भी विद्यमान है एक स्त्री को लोग आज भी घूंघट में ही रखने में प्रयासरत है हालांकि सभी की सोच ऐसी नहीं है बहुत से लोग हैं जो स्त्री और पुरुष को समानता की नजर से देखते हैं और समानता देने का प्रयास भी करते हैं। आज भी समाज में बहुतायत से घूंघट में रहने वाली स्त्री को ही सामाजिक संस्कारों से परिपूर्ण और संस्कृति को बचाने वाली माना जाता है जो स

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घूंघट में स्त्री (चिंतन) वर्तमान में हम 21वीं सदी में जी रहे हैं परंतु घूंघट में स्त्री विषय पर चिंतन आज भी हो रहा है या विषय इस बात को दर्शाता है कि हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच अभी भी विद्यमान है एक स्त्री को लोग आज भी घूंघट में ही रखने में प्रयासरत है हालांकि सभी की सोच ऐसी नहीं है बहुत से लोग हैं जो स्त्री और पुरुष को समानता की नजर से देखते हैं और समानता देने का प्रयास भी करते हैं।
आज भी समाज में बहुतायत से घूंघट में रहने वाली स्त्री को ही सामाजिक संस्कारों से परिपूर्ण और संस्कृति को बचाने वाली माना जाता है जो स

DR. SANJU TRIPATHI

राम और श्याम अपनी इकलौती बहन श्यामा को बेहद प्यार करते थे दोनों भाई उस पर जान छिड़कने थे वह किसी भी चीज की ख्वाहिश करती थी तो दोनों भाई उसे हर हाल में पूरा करने की कोशिश करते थे बीतते समय के साथ श्यामा ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा वैसे तो श्यामा अपनी जिंदगी की हर एक बात अपने भाइयों को बताती थी। परंतु जब से दोनों भाईयों की शादी हो गई तब से बहन भाई के रिश्ते में थोड़ी सी दूरी आ गई थी जिसे दोनों चाह कर भी नहीं भर पा रहे थे वे ज्यादातर अपनी-अपनी पत्नियों के कहने में ही रहते थे और उन्हीं के कहे अनुसा

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जमाने की फिक्र (लघुकथा) राम और श्याम अपनी इकलौती बहन श्यामा को बेहद प्यार करते थे दोनों भाई उस पर जान छिड़कने थे वह किसी भी चीज की ख्वाहिश करती थी तो दोनों भाई उसे हर हाल में पूरा करने की कोशिश करते थे बीतते समय के साथ श्यामा ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा वैसे तो श्यामा अपनी जिंदगी की हर एक बात अपने भाइयों को बताती थी। परंतु जब से दोनों भाईयों की शादी हो गई तब से बहन भाई के रिश्ते में थोड़ी सी दूरी आ गई थी जिसे दोनों चाह कर भी नहीं भर पा रहे थे वे ज्यादातर अपनी-अपनी पत्नियों के कहने में ही रहते थे और उन्हीं के कहे अनुसा
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