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vishnu prabhakar singh
नहीं रोक पाए उसे जो काल के गाल में है काल तो सर पर मंडराता है हाथ तो आदेश पालक है इसकी उपयोगिता में ग्रास है इसे स्वच्छ रखने वाले के लिए करतल ध्वनि रोके नहीं रुक रहा सांत्वना का यह यज्ञ बिना रुके दीक्षा प्रस्तावित कर रहा है,और काल के गाल में उद्देशिका का अभाव है इस अभाव में,नहीं रोक पाये उसे! रोक का सर्वांगीण महत्व समझा देगा यह वायरस,आप रुकिये या मत रूकिये,माफ़ कीजियेगा। नहीं रोक पाए उसे... #नहींरोकपाए #collab #yqdidi #YourQuote
chandrashekhar Rajput
आमचा आजचा धर्म हा मुळीं धर्मच नव्हे. प्रचलित भिक्षुकशाही धर्म म्हणजे बुळ्या बावळ्या खुळ्यांना झुलवून भटांची तुंबडी भरणारें एक पाजी थोतांड आहे. या थोतांडाच्या भाराखाली अफाट भटेतर दुनिया माणूस असून पशूपेक्षांही पशू बनली आहे. त्यामुळें आमच्या सर्वांगीण हलाकीचें मूळ भटांच्या पोटांत आहे. त्यांच्या गोडबोल्या ओठांत नव्हे; हे शेंकडा दहा लोकांना पटतां पटतांच एक शतक काळाच्या उदरांत गडप झालें. भटेतरांच्या धार्मिक गुलामगिरीच्या थोतांडांत देवळांचा नंबर पहिला लागतो. ―प्रबोधन ठाकरे (देवळांचा धर्म आणि धर्मीची देवळे) देवळे पृ2 #NojotoQuote आमचा आजचा धर्म हा मुळीं धर्मच नव्हे. प्रचलित भिक्षुकशाही धर्म म्हणजे बुळ्या बावळ्या खुळ्यांना झुलवून भटांची तुंबडी भरणारें एक पाजी थोतांड आह
Divyanshu Pathak
क्योंकि प्रेम में मिली असफ़लता के बाद उसे लगता है कि वह अकेला हो गया है।नैतिकता और शिष्टाचार का बोध उसे अंदर ही अंदर परेशान करता है।वह सब कुछ
Krish Vj
ना वो 'शिक्षण' रहा हैं ना वो 'शिक्षक' रहें हैं 'विद्यार्थी' भी अब तो सिर्फ़, नाम के रहें हैं 'ज्ञानार्जन' सिर्फ़ "वृत्ति" तक सीमित रहा हैं मुल "उद्देश्य" से सब "विमुख" आज यहाँ हैं शिष्य और गुरू के "सम्बन्ध" अब कहाँ हैं आजकल देखे होते सम्बन्ध तार-तार यहाँ हैं शिक्षा का मूल उद्देश्य "सर्वांगीण" विकास हैं अपने "कर्म" "आचरण" से सब अब जुदा हैं पुरानी 'परम्परा' लौटानी होगी शिक्षा की हैं शिक्षा वृत्ति के लिए नहीं हैं अब समझाना हैं "नैतिक मूल्यों" के बिना शिक्षा पूर्ण नहीं हैं नैतिक मूल्यों संग शिक्षा जरूरी जीवन में हैं शिक्षा का मह्त्व बताना हैं, सरल बनाना हैं गुरू शिष्य के संबंध फ़िर से 'मधुर' बनाना हैं हम भारतवासी 'ज्ञान' का वो तेज दिखाना हैं शिक्षा से सबका "जीवन" सफल बनाना हैं #restzone #rztask31 #rzलेखकसमूह #शिक्षा शिक्षा व्यवस्था ना वो 'शिक्षण' रहा हैं ना वो 'शिक्षक' रहें हैं 'विद्यार्थी' भी अब तो सिर्फ़,
Sudha Tripathi
साधना जैसे मन को शांति और स्थिरता देता वैसे ही किताबों का अध्ययन ज्ञान से भर देता पढ़ो पढ़ो और खूब पढ़ो कि पढ़ो पढ़ो और खूब पढ़ो.... जीवन की सुगमता का कारण, पुस्तकों को बतलाकर चरित्र निर्माण हेतु नैतिकता सिखलाकर, रात्रि विश्राम से पूर्व जो स्वाध्याय कर लेता उनको किताबों का अध्ययन ज्ञान से भर देता पढ़ो पढ़ो और खूब पढ़ो की पढ़ो पढ़ो और खूब पढ़ो.... सर्वांगीण विकास है करती, सामाजिकता की राह दिखाकर सुख आनंद भंडार भर देती,ज्ञान सुधा की नित्य बहाकर कठिन सवालों को सुलझाएं जो,नित्य अध्ययनकर्ता उनको किताबों का अध्ययन ज्ञान से भर देता कि पढ़ो पढ़ो और खूब पढ़ो पढ़ो पढ़ो और खूब पढ़ो.... बचपन से आखरी साँसो तक, राह हमें दिखाती राष्ट्र निर्माण कर पुनर्जागरण कर, संस्कृति संरक्षित करती नवचेतना का संचार कर, युग परिवर्तन कर देता वैसे ही किताबों का अध्ययन, ज्ञान से भर देता पढ़ो पढ़ो और खूब पढ़ो पढ़ो पढ़ो और खूब पढ़ो.... ©Sudha Tripathi #BooksBestFriends 31. साधना जैसे मन को शांति और स्थिरता देता वैसे ही किताबों का अध्ययन ज्ञान से भर देता पढ़ो प
Ravendra
Mili Saha
// नई पीढ़ी का विकास हमारा कर्तव्य // बहुत विश्वास और उम्मीद के साथ कुदरत देती है, हाथ हमारे हाथों में, नई पीढ़ी के पूर्ण विकास का, नई पीढ़ी को सही मार्ग दिखाना, है ये हमारा कर्तव्य, मान रखना है हमें सदैव, कुदरत के इस विश्वास का, बाल रूप होता है अबोध, निर्दोष सब सरल लगे जिसे, हमें ही तो बोध कराना है उन्हें,नैतिकता के एहसास का, पूर्वजों के आदर्शों, संस्कारों को नई पीढ़ी बोझ ना समझें, इसलिए पल-पल महत्व समझाना है हमें इनके उजास का शिक्षा के माध्यम से नई पीढ़ी को सिखा सकते हैं जीने की कला, बस आवश्यकता है हमारी शिक्षा प्रणाली में एक नए बदलाव का, शिक्षा का अर्थ केवल किताबों से कुछ ज्ञान प्राप्त कर लेना नहीं है, शिक्षा को साधन बना सकते हैं हम संस्कृति,संस्कारों से जुड़ाव का, शिक्षित करने के साथ-साथ उन्हें पूर्वजों की गाथा से जोड़े रखना है, समाज, देश के लिए हमें आगाज़ करना होगा एक सार्थक प्रयास का, भविष्य की आशा है नई पीढ़ी, इन्हें बचाना, संजोना है हमारा कर्तव्य, समझाना है उन्हें ये चकाचौंध तो बस है पिंजरा, अंधकार के ग्रास का, जीवन में एक नींव का कार्य करते हैं बाल्यकाल में दिए गए संस्कार, समय रहते निर्माण करना होगा हमें चरित्र और सर्वांगीण विकास का, अक्सर कई वजह से नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को स्वीकार नहीं कर पाती, आपसी तालमेल से ही अंत हो पाएगा पीढ़ियों में अंतर के, इस द्वंद का, पुरानी पीढ़ियों को भी बदलते परिवेश की चुनौतियों को समझना होगा, तभी तो एक सुगम मार्ग प्रशस्त हो पाएगा, इस नई पीढ़ी के विकास का, कभी जिद कभी नादानियों का वहन कर उन्हें समझना, समझाना होगा, ताकि आधुनिकता की होड़ में भी, महत्व समझें संस्कारों के प्रभाव का। ©Mili Saha बहुत विश्वास और उम्मीद के साथ कुदरत देती है, हाथ हमारे हाथों में, नई पीढ़ी के पूर्ण विकास का, नई पीढ़ी को सही मार्ग दिखाना, है ये हमारा कर्
Rishika Srivastava "Rishnit"
#AzaadKalakaar #AzaadKalakaar स्त्री विमर्श क्यो?? स्त्री विमर्श वास्तव में एक जटिल प्रश्न बनकर युगांतर से मन को गुदगुदा ता आ रहा है यद्यपि नारी की उपस्थिति तो साहित्य की हर विद्याओं में किसी न किसी रूप में सदा से रहती ही आ रही है तब फिर इसी औचित्यता पर प्रश्नचिन्ह क्यों अंकित होता रहा है? हमारा देश आज़ाद हो चुका है फिर भी स्त्री की दशा आज भी दयनीय क्यों?? स्त्री विमर्श के विषय में एक प्रश्न और विचारणीय है कि क्या स्त्री द्वारा लिखित साहित्य स्त्रीवादी साहित्य होता है मेरे विचार से स्त्री या पुरुष के लेखन का नहीं है बस है स्त्री विमर्श पर कदम उठाने वाला या कलम उठाने वाली स्त्री स्वभाव का स्त्री समस्याओं की गहराई से परिचित है या नहीं स्त्री की पीड़ा उस पर हो रहे अत्याचार उत्पीड़न शोषण की कसक आदि को कभी मानसिक या वैचारिक रूप से भोगा है या नहीं। वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति संतोषजनक थी। समाज में स्त्री पुरुष दोनों समान रूप से सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकारी थे। पुत्र या पुत्री के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं था। सामाजिक, आर्थिक शैक्षिक तथा धार्मिक कार्यों में दोनों की समान भागीदारी थी। पुत्र या पुत्री के पालन पोषण में भी कोई अंतर नहीं माना जाता था ।इस युग की सबसे बड़ी उपलब्धि थी के पुत्र की शिक्षा के साथ-साथ पुत्रियों तथा स्त्रियों की शिक्षा पर भी गंभीरता पूर्वक ध्यान दिया जाता था। परिणाम स्वरूप लोपामुद्रा, विश्ववारा, घोषा, सिक्त निवावरी जैसी कवि तथा मंत्र और सुक्तों के प्रसिद्ध रचयिता इसी युग की देन है । इसी युग में हुई स्त्री विकास के मार्ग में बाधक जैसे परंपरा नहीं थी। स्त्रियों को इच्छा अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता प्राप्त थी। वैदिक काल और परिस्थितियों मैं शनै शनै परिवर्तन होने जैसा प्रतीत होने लगा यद्यपि पुत्री की शिक्षा-दीक्षा पूर्व चलती रहे तभी समाज की मानसिकता बदल गई। कालांतर में पुत्री भी स्वयं को पुत्र की तुलना में ही समझने लगी। चुकी इस युग में पर्दा प्रथा की चर्चा तो नहीं है। फिर भी नहीं रह गई सार्वजनिक सभा तथा धार्मिक अनुष्ठान में अपनी भागीदारी निभाने से वंचित होने लगी पुत्री का विवाह कम आयु में करने का विवाद चल पड़ा पुत्र-पुत्रियों के जन्म पर भी भेदभाव होने लगा। पुत्र का जन्म उत्सव मनाया जाने लगा लेकिन पुत्री के जन्म को अभिशाप समझा जाने लगा। पुत्रियों को वेदाध्ययन के अधिकार से बातचीत होना पड़ा। महाभारत में द्रोपदी के के लिए "पंडित" शब्द का विशेषण आया।ऐसी पंडिता जो माँ कुंती के आदेश के पाँच पतियों में बँटकर जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हो जाती है। कुंती जो विशिष्ट आदर्श कन्याओं में गिनी जाती है समाज के भय से सूरज को समर्पित अपनी को कोम्यता के फलस्वरूप प्राप्त पुत्र रत्न को नदी में प्रवाहित करने हेतु विवश हो जाती है. सती साध्वी राज कुलोधभूता सीता एक साधारण पुरुष के कहने पर अपने पति श्री राम द्वारा परित्यक्ता वन अकारण वनवास के दुःख झेलती है।विचारणीय है यदि उस समय की सधी और मर्यादाओं से बंधी राजकन्या हो कि यदि ऐसी स्थिति की सामान्य स्त्रियों की दशा कैसी रही होगी. चुकी इस काल में स्त्रियों को आर्थिक दृष्टि से पर्याप्त अधिकार प्राप्त है। माता-पिता आदि से प्राप्त धन स्त्री धन था ही विवोहरान्त या विवाह के समय पर आप उपहारों पर भी स्त्रियों का अधिकार था किंतु मनु विधान के अनुसार वह उसकी संपूर्ण स्वामिनी नहीं थीं। पति का अनुमति के बिना उसका एक पल भी उपयोग नहीं कर सकती थी। खैर जैसा था- था लेकिन वर्तमान परिपेक्ष में भी हम देखते हैं कि आज भी पुरुषों की मानसिकता यथावत है। मुगल शासनकाल में चल रहे भक्ति आंदोलन के फल स्वरुप स्त्रियों को सामाजिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता मिली फलता बदलाव का बीज अंकुरित होने लगा। 【आगे अनुशीर्षक में पढ़े】 ©rishika khushi ब्रिटिश शासन काल में स्त्रियों की परिस्थितियों के कुछ सुधार आया, क्योंकि शिक्षा का विस्तार किया गया। लड़कियों की शिक्षा में ईसाई मिशनरियाँ र
Aprasil mishra
संघर्ष बनाम सफलता उम्मीदों को सम्हालते हुए अब तक एक अरसा व्यतीत हो चुका है, मन अब हर दिन उबासियां ले रहा है। चेतन्यबोध क्षण प्रति क्षण विवेक शून्
Sudha Tripathi
भाग-2 कैप्शन में अवश्य पढ़ें ©Sudha Tripathi #nanhikaliनेत्रा ने कहा "मैम पिछले साल हम लोग घूमने गए थे, सारे फैमिलीमेंबर हमारा रिजर्वेशन पहले से था लेकिन लगभग 200 किलोमीटर ट्रेन चेंज कर