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Devesh Dixit
जीवन एक बिसात ये जीवन देखो एक बिसात है, जिसमें शतरंज सी हर बात है। फूँक फूँक कर कदम रखना है, आती मुसीबत से भी बचना है। कौन कहाँ पर कब कैसे घेरे, काट कर बातों को वो मेरे। मुझ पर ही हावी हो जाए, काम ऐसा कुछ कर जाए। उलझ जाऊँ मैं तब घेरे में, शतरंज के फैले इस डेरे में। शह-मात का चलन रहा है, देख पानी सा रक्त बहा है। युद्ध छिड़ा धन सम्पत्ति पर, कभी नारी की इज्जत पर। भाई-भाई में द्वेष बड़ा है, देखो कैसे अधर्म अडा़ है। खून के प्यासे दोनों भाई, महाभारत की देते दुहाई। प्रेम भाव सब ख़त्म हुआ है, ये जीवन अब खेल हुआ है। सभ्यता ही सब गई है मारी, बुजुर्गों का जीवन ये भारी। मिले नहीं सम्मान उन्हें अब, संतानें ही विद्रोह करें जब। कलियुग का ये प्रभाव सारा, किसने किसको कैसे मारा। संस्कारों की बलि चढ़ी है, मुश्किल की ही ये घड़ी है। होती है ये अनुभूती ऐसी, शतरंज में दिखती है जैसी। .......................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #जीवन_एक_बिसात #nojotohindi #nojotohindipoetry जीवन एक बिसात ये जीवन देखो एक बिसात है, जिसमें शतरंज सी हर बात है। फूँक फूँक कर कदम रखना ह
Pushpvritiya
कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में जाकर जड़ से तुमको सींचना.. मन वचन धरण नव अवतरण सब अपने भीतर भींचना..... रक्तिम सा भ्रुण बन कर तुम सम, भ्रुण भ्रुण में अंतर परखूँगी..! मेल असंभव क्यूँ हम तुम का, इस पर उत्तर रखूँगी....!! पुछूँगी कि किए कहाँ वो भाव श्राद्ध कोमल कसीज, खोजूँगी मैं वहाँ जहाँ बोया गया था दंभ बीज... उस नर्म धरा को पाछूँगी, मैं नमी का कारण जाचूँगी.......!! मैं ढूंढूँगी वो वक्ष जहाँ, स्त्रीत्व दबाया है निज का, वो नेत्र जहाँ जलधि समान अश्रु छुपाया है निज का....! प्रकृत विद्रोह तना होगा, जब पुत्र पुरुष बना होगा..... मैं तुममें सेंध लगाकर हाँ, कोमलताएं तलाशूँगी, उन कारणों से जुझूँगी.... मैं तुमको जीना चाहूँगी......!! अनुभूत करूँ तुमसा स्वामित्व, श्रेयस जो तुमने ढोया है... और यूँ पुरुष को होने में कितने तक निज को खोया.....! कदम कठिन रुक चलते चलते कित् जाकर आसान हुआ, हृदय तुम्हारा पुरुष भार से किस हद तक पाषाण हुआ.....!! मैं तुममें अंगीकार हो, नवसृज होकर आऊँगी, मैं तुमको जीना चाहूँगी........ फिर तुमसे मिलन निबाहूँगी........!! @पुष्पवृतियाँ ©Pushpvritiya कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में
||स्वयं लेखन||
विद्रोह में ही तुम्हारी जीत है, विद्रोह करो अपने डर का, विद्रोह करो अपने नकारात्मक विचारों का, विद्रोह करो अपने संदेह का। ©Gunjan Rajput विद्रोह में ही तुम्हारी जीत है, विद्रोह करो अपने डर का, विद्रोह करो अपने नकारात्मक विचारों का, विद्रोह करो अपने संदेह का,
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
N S Yadav GoldMine
जाने जब भरत व निषादराज का मिलन हुआ तब क्या हुआ !! 📌📌 {Bolo Ji Radhey Radhey} {Bolo Ji Radhey Radhey} भरत व निषादराज का मिलन :- 🌄 निषादराज गुह श्रृंगवेरपुर के आदिवासी राजा थे जो बचपन में महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में भगवान राम व उनके भाइयों के साथ ही पढ़े थे। जब भगवान श्रीराम वनवास पर गए थे तब रास्ते में उनकी अपने मित्र निषादराज से भी भेंट हुई थी। इसके बाद प्रभु गंगा पार करके चित्रकूट के लिए निकल गये थे। भरत राम के छोटे भाई व माता कैकेयी के पुत्र थे। उनकी माता के द्वारा ही सब षड़यंत्र रचा गया था जिस कारण भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का कठोर वनवास मिला था। जब भरत को अपने अयोध्या आगमन के पश्चात सब घटना का पता चला तो वे अपने भाई श्रीराम को लेने के लिए चित्रकूट निकल पड़े। उनके साथ अयोध्या का पूरा राज परिवार, मंत्रीगण, गुरुजन व अयोध्या की प्रजा भी थी। निषादराज का भरत पर संदेह :- 🌄 जब भरत अपनी सेना के साथ श्रृंगवेरपुर नगरी की सीमा पर पहुंचे तो श्रृंगवेरपुर के सैनिकों ने यह सूचना जाकर राजा गुह को दी। गुह ने सोचा कि जिसकी माता के कारण सब षड़यंत्र रचा गया हो तो उसका पुत्र भी वैसा ही होगा। वैसे भी अब भरत अयोध्या के राजा हैं और वह अपने साथ सेना का एक बड़ा दल लेकर आ रहा थे। निषादराज के अनुसार भरत ने सेना सहित श्रीराम व लक्ष्मण को वन में ही मारने का निश्चय किया ताकि किसी भी प्रकार के विद्रोह को दबाया जा सके। यह सोचकर निषादराज ने अपनी नगरी में ढोल पिटवा दिया व सभी को अयोध्या की सेना से लड़ने के लिए तैयार होने को कहा। नगरवासी ने निषादराज को समझाया :- 🌄 जब निषादराज सभी को लड़ने के लिए तैयार कर रहे थे उसी समय एक नगरवासी ने पहले उन्हें भरत से बातचीत करने को कहा ताकि उनके यहाँ आने का असली उद्देश्य जाना जा सके। उनका यह परामर्श निषादराज को पसंद आया व उन्होंने पहले भरत से बात करने की ठानी। भरत व निषादराज गुह का मिलन :- 🌄 इसके बाद निषादराज ने अपने सैनिकों को झाड़ियों में छुपने को कहा व स्वयं उनसे मिलने गए। अयोध्या के मंत्री सुमंत जो पहले भगवान श्रीराम को यहाँ तक छोड़ने आये थे वे निषादराज को जानते थे इसलिये उन्होंने उनका परिचय भरत को दिया। भरत को जब यह ज्ञात हुआ कि निषादराज भगवान श्रीराम के मित्र हैं तो वे उनके चरणों में गिर पड़े। अयोध्या नरेश के अपने चरणों में गिरते देखकर निषादराज की आँखें भर आई व उन्हें स्वयं पर पछतावा हुआ। उसके बाद भरत ने उन्हें अपने यहाँ आने का औचित्य बताया। तब निषादराज ने ही भरत व उनकी सेना को आगे का मार्ग दिखाया व साथ ही जब श्रीराम यहाँ आये थे तब कैसे अपना जीवन व्यतीत किया था व कहाँ सोये थे वह सब भी बताया। भरत यह सुनकर बहुत भावुक हो गए थे व उन्होंने आगे का मार्ग भगवान श्रीराम के भांति नंगे पैर पैदल पार करने का निर्णय किया था। इसके बाद निषादराज भरत व उनकी पूरी सेना को चित्रकूट तक लेकर गये थे।l ©N S Yadav GoldMine #Pattiyan जाने जब भरत व निषादराज का मिलन हुआ तब क्या हुआ !! 📌📌 {Bolo Ji Radhey Radhey} {Bolo Ji Radhey Radhey} भरत व निषादराज का मिलन :- 🌄
Shalvi Singh
Kulbhushan Arora
From 66 to 6 Hello बचपन, मुझे अच्छे से याद है बचपन में जब तुम सर्दियों को छुट्टियों में शिमला से सोनीपत नानी के घर आते थे न, अक्सर तुम्हें खो जाने की आदत
Mahima Jain
महिला सशक्तिकरण के नारे लगा कर, विद्रोह का डंका बजाने वाली। बराबरी एवं समानाधिकर के नाम पर, बोतल और सुट्टा गटकने वाली। दहेज उत्पीड़न की आड़ में, भोले भाले लोगों को ठगने वाली। ये लड़कियां नहीं लोमड़ियां हैं जनाब, समाज को ज़िंदा नरक बनाने वाली।। मैं खुद एक महिला हूं और अपने आसपास रोज़ कितनी ही महिलाओं को लोमड़ी बनते देखती हूं। 😓😪 । । । शब्द :- सशक्तिकरण, विद्रोह, बोतल। । ।
रिंकी✍️
धुँआ जो उठा सन सन्तावन में वो आग धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी विद्रोह सिर्फ जनता नही कलम भी अब करने लगी थी गुलामी जैसे जैसे बढ़ने लगी अत्याचार कब तक सहते ये आत्मा भी खुद से अब लड़ने लगी थी कलम चलने लगी आबाज़ स्वराज की उठने लगी थी डगमगाने लगा वो हर सिंहासन जो देश की नही , वो हर चीज़ अब होलिका में जलने लगी थी खोने के भय से अस्तित्व अपने सत्ता अब डरने लगी कलम सिपाही के बनने लगे आबाज़ कलमो की अब , जोर पकड़ने लगी थी। उदघोष स्वतन्त्रा का होने लगा डंका भारत का बजने लगा गांधी की आंधी चलने लगी थी प्रेमचंद ने हज़ारो प्रेमचंद बना डाले अब हर लेखक की लेखनी निर्भिक -निडर ,सत्य पथ पर बढ़ने लगी थी ✍️रिंकी धुँआ जो उठा सन सन्तावन में वो आग बढ़ने लगी थी विद्रोह सिर्फ जनता नही कलम भी अब करने लगी थी गुलामी जैसे जैसे बढ़ने लगी अत्याचार कब तक सहते
CM Chaitanyaa
... — % & मुरझाते फूलों को देख जब कभी भी व्याकुल हो जाता है अंबर, डूब जाता है निर्मम विद्रोह में। धरती की पुकार सुनकर बहरा हो जाता है,