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B Pawar
उस समय जब रोया करता था आंसू बहुत निकलते थे। मां अपने आंचल से आंसू पोंछती और पुचकारती जाती। अब मैं पहले जैसा नही रोता , अब आंसू भी नही निकलते। और न ही कोई पुचकारता है। मेरे ऊपर लंबे समय से आंचल की छांव नहीं रही शायद इस वजह से आंखो के आंसू सूख गए। उस समय जब रोया करता था आंसू बहुत निकलते थे। मां अपने आंचल से आंसू पोंछती और पुचकारती जाती। अब मैं पहले जैसा नही रोता , अब आंसू भी नही निकल
JALAJ KUMAR RATHOUR
जो बचपन भरा होना था प्रेम और पुचकारों से, बर्बाद हो रहा है। दरिंदगी और बलात्कारों से, खो बैठे हैं हम इंसानियत यारों, क्या फायदा धर्म और त्यौहारों से, ©जलज कुमार #Stoprape जो बचपन भरा होना था पुचकारों से, बर्बाद हो रहा है। बलात्कारों से, खो बैठे हैं हम इंसानियत यारों, क्या फायदा धर्म और त्यौहारों
Anamika
रूठना किससे कौन सुने किस्से.. #रूठना #अकेलापन #बालमन #भागमभाग मांबाप के पास समय नही देते खिलौने ,पर वो लाड़ नहीं भागती जिंदगी में बाहों का हार नहीं पुचकारने के लिए आया क
Anita Saini
मस्तक पर स्नेह का सागर उड़ेल सुलाती है कभी मारती है तो कभी पुचकारती है माँ! कभी अंग लगाती कभी फटकारती है कभी डाँटती है प्रेम से है कभी दुलारती है माँ! यदाकदा ग्रहण कह देती क्रोध में और कभी सौ तरह से नज़र उतारती है माँ ख़ुद फटा पहन कर भी ख़ुश रहती है किन्तु मुझे राजकुमारी सा सजाती है माँ! ख़ुद काँटों में जीवन बिता लेती है मगर, मेरा पथ आँचल से बुहारती है माँ! क्या कहूँ और मैं मेरी माँ के लिए...निःशब्द हूँ वो सर्वस्व निछावर कर चुकी है मुझपे सब सुख त्याग कर जीवन सँवारती है माँ! ♥️ मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ! 😊🥰❤️ ©Anita Saini #MothersDay #कविता #ज़िन्दगी #विचार #माँ #बात #मैं #हम #शायरी #समाज मस्तक पर स्नेह का सागर उड़ेल सुलाती है कभी मारती है तो कभी पुचकारती है मा
Bhupendra Rawat
ज़िंदगी की ढेरों ख्वाइशें लेकर में सफर में ही था खुद की ज़िंदगी से दूर मैं इस शहर में ही था हर एक ख्वाईश ने दूर से पुचकारा ही था,कि ज़िंदगी की फरमाइशों के बोझ तले मैं कब्र में ही था भूपेंद्र रावत 8।07।2021 ©Bhupendra Rawat ज़िंदगी की ढेरों ख्वाइशें लेकर में सफर में ही था खुद की ज़िंदगी से दूर मैं इस शहर में ही था हर एक ख्वाईश ने दूर से पुचकारा ही था,कि ज़िंदगी की
Raushan_rosi
ये सन्नाटे भरे दिन ये अंधेरे घणे रातें बैचैनी लेते करबट मन में उलझी हजारों बातें सीने में होती एक अजीब सी जो चुभन जो है नहीं उसके लिए किसी उठती जलन यूँ ऐसे तकलीफ में देख कर वो पुचकार देती अगर माँ पास होती तो हजारों बाधाओ को नजर से उतार देती ©Raushan_rosi ये सन्नाटे भरे दिन ये अंधेरे घणे रातें बैचैनी लेते करबट मन में उलझी हजारों बातें सीने में होती एक अजीब सी जो चुभन जो है नहीं उसके लिए किसी
Abhijeet Yadav
जब बचपन की चादर ओढ़े मैं बेसुध होकर सोता था, तब माँ सहला कर पुचकार कर मुझको उठाती थी और कहती थी........ कि, उठो राजा बेटे मेरे देखो पापा आ गए...... तब मैं नंगाकर, आँख मीच कर उठता था पापा को मुस्कराता देख झट से उनके गोद में जाता था, और जोर जोर से चिल्ल्लाता था पापा आ गए........ पापा आ गए........ पापा आ गए! जब बचपन की चादर ओढ़े मैं बेसुध होकर सोता था, तब माँ सहला कर पुचकार कर मुझको उठाती थी और कहती थी........ कि, उठो राजा बेटे मेर
Kulbhushan Arora
सुप्रभात🙏🙏🙏🙏 सबका दिन मंगलमय हो शुभ हो😍😍 . . . . एक सुझाव शेष अनुशीर्षक में 🙏 जब अंधेरा छाये कुछ समझ ना आए सच्चे मन से ईश्वर से प्रश्न कीजिए तुरन्त उत्तर का चाह छोड़ कुछ प्रतीक्षा कीजिए प्रतीक्षा में आंखे खुली
Kulbhushan Arora
Recipe For Mental Health जब अंधेरा छाये कुछ समझ ना आए सच्चे मन से ईश्वर से प्रश्न कीजिए तुरन्त उत्तर का चाह छोड़ कुछ प्रतीक्षा कीजिए प्रतीक्षा में आंखे खुली
Kulbhushan Arora
बिल्कुल साधारण मगर महत्वपूर्ण जब अंधेरा छाये... कुछ समझ ना आए, सच्चे मन से , ईश्वर से प्रश्न कीजिए, तुरन्त उत्तर का चाह छोड़.… कुछ प्रतीक्षा कीजिए। प्रतीक्षा में , आंखे खुली रखना देखने को, कान खुले रखना सुन लेने को। मन ..... मनमानी करता है प्रतिक्षा में, मौन से देखना देखते रहना मन को पुचकारना इसे, मान जाता है मन, इसी मौन में.... कहीं ना कहीं से प्रश्न उत्तर पाता है, बस..... कुछ समय दीजिए, उतर को आने को अवश्य आयेगा।। बिल्कुल साधारण मगर महत्वपूर्ण जब अंधेरा छाये... कुछ समझ ना आए, सच्चे मन से , ईश्वर से प्रश्न कीजिए, तुरन्त उत्तर का चा