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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल दर्द दिल का अब छुपाए कैसे । रंग महफ़िल में जमाए कैसे ।।१ #शायरी

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ग़ज़ल
दर्द दिल का अब छुपाए कैसे ।
रंग महफ़िल में जमाए कैसे ।।१

हो चुकी है आज उम्र भी अपनी ।
नैन उनसे फिर मिलाए कैसे ।।२

पास दौलत भी कहाँ अब इतनी ।
ब्याह बेटी का रचाए कैसे ।।३

आज झुक भी तो नहीं पाता मैं
खार राहों से हटाए कैसे ।।४

बोझ बढ़ता ही गया कांधो का ।
अब झुके काँधें दिखाए कैसे ।।५

मोह माया ने इस तरह जकड़ा ।
छोड़ घर को मंदिर जाए कैसे ।।६

पाप इतने कर लिए है उसने ।
अब प्रखर गंगा नहाए कैसे ।।७

१३/१२/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल


दर्द दिल का अब छुपाए कैसे ।

रंग महफ़िल में जमाए कैसे ।।१

~VanyA V@idehi ~

वक़्त को बाँधने की पुरजोर कोशिश में...
मुट्ठीयां बँधी रह गईं ;
वक़्त फिसल कर रहा !
शेष जो बाकी रही बंद हथेलियों में...
वो खार रहा सिर्फ खार!

©V Vanya #खार

siva sandeep garhwal

गज़ल ghazal शायरी शायरी बे-हद और बे-हिसाब बेचे हैं, झूटे आंखों को ख़्वाब बेचे हैं. ए सियासत सुकून बतला कर, तुमने हमको अज़ाब बेचे ह

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Shubham Bhardwaj

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- चाँद को नूर दिखाने वाले । पालकी आज सजाने वाले ।।१ ले गये फूल कि डोली देखो । खेल गुडिय़ा का बताने वाले ।।२ दे गये जख़्म हजारों मुझको । #शायरी

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ग़ज़ल :-
चाँद को नूर दिखाने वाले ।
पालकी आज सजाने वाले ।।१

ले गये फूल कि डोली देखो ।
खेल गुडिय़ा का बताने वाले ।।२

दे गये जख़्म हजारों मुझको ।
बात वह मेरी उठाने वाले ।।३

खार ही याद रहे जब उनको ।
क्या करे फूल उगाने वाले ।।४

जल उठे दीपक पथ में उनके ।
जब चलें राह दिखाने वाले ।।५

सो गये आज वही फिर देखो ।
नींद से सबको जगाने वाले ।।६

इक दफ़ा और गिरा दे हमदम ।
ज़ाम होठो से लगाने वाले ।७

भूलने वो लोग लगें हैं हमको ।
जो थे रिश्ता निभाने वाले ।।८

देख ले आज प्रखर है गुमशुम ।
उसका हमदर्द बताने वाले ।।९

०५/०७/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
चाँद को नूर दिखाने वाले ।
पालकी आज सजाने वाले ।।१

ले गये फूल कि डोली देखो ।
खेल गुडिय़ा का बताने वाले ।।२

दे गये जख़्म हजारों मुझको ।

poet-Akash kumar

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

हीर छन्द आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे । और लगी , बात बुरी , खार जो जुबा उगे ।। प्यार मिटा , स्वार्थ जगा , रीति जगत की बनी । मातु #कविता

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हीर छन्द

आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे ।
और लगी , बात बुरी ,  खार जो जुबा उगे ।।
प्यार मिटा , स्वार्थ जगा , रीति जगत की बनी ।
मातु तुम्हीं , भूल गयी , मुझे हो तुम्हीं जनी ।।

आस नही , पास कही , सुनों खास अब नही ।
दूर चलो , और चलो , मिलाप जो मन नही ।।
डोर वही , छूट गयी , जहाँ आप हम हुए ।
करूँ विनय , मातु तनय , दूर नही हम हुए ।।

२६/०४/२०२५    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हीर छन्द

आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे ।
और लगी , बात बुरी ,  खार जो जुबा उगे ।।
प्यार मिटा , स्वार्थ जगा , रीति जगत की बनी ।
मातु

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

फूल से खार ना ज़ुदा रखना । अब किसी से नही गिला रखना ।।१ कर नही भेद बेटियों से तू । प्यार ये एक सा सदा रखना ।।२ बीज जो बो रहें नफ़रतों के । य #शायरी

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फूल से खार ना ज़ुदा रखना ।
अब किसी से नही गिला रखना ।।१

कर नही भेद बेटियों से तू ।
प्यार ये एक सा सदा रखना ।।२

बीज जो बो रहें नफ़रतों के ।
यार उनको न दरमिया रखना ।।३

सुन पराया नहीं यहाँ कोई ।
सब सलामत रहें दुआ रखना ।।४

हर किसी से कहूँ यहाँ क्या मैं ।
प्यार मे दिल सदा बड़ा रखना ।।५

यार आये नहीं हमारे अब ।
किस तरह आज हौसला रखना ।।

टूट जाए न दिल प्रखर का अब ।
दर्द ए दिल दवा सदा रखना ।।

२३/०४/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR फूल से खार ना ज़ुदा रखना ।
अब किसी से नही गिला रखना ।।१

कर नही भेद बेटियों से तू ।
प्यार ये एक सा सदा रखना ।।२

बीज जो बो रहें नफ़रतों के ।
य

Abhishek 'रैबारि' Gairola

भूख सब को भूख है और सब की भूख पूरी भी होती है कोई दया खाता है तो कोई खार कोई वहम खाता है तो कोई मार कोई मुनाफ़ा खाता है तो कोई इल्ज़ाम कोई

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भूख

सब को भूख है और सब की भूख पूरी भी होती है 
कोई दया खाता है तो कोई खार
कोई वहम खाता है तो कोई मार
कोई मुनाफ़ा खाता है तो कोई इल्ज़ाम 
कोई अपने प्रेमी को खाता है तू कोई राँड 
कोई खाता है नर जाति
तो कोई खा जाता है संपूर्ण प्रजाति 
कोई जवानी खा जाता है तो कोई स्मृतियाँ
कोई गाँव के गाँव खा जाता है तो कोई त्रुटियाँ 
कोई शर्म खा जाता है तो कोई कमियाँ
अंत में यह भूख हमें खा जाएगी 
और जब कुछ भी नहीं बचेगा तो स्वयं को।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola भूख

सब को भूख है और सब की भूख पूरी भी होती है 
कोई दया खाता है तो कोई खार
कोई वहम खाता है तो कोई मार
कोई मुनाफ़ा खाता है तो कोई इल्ज़ाम 
कोई

Kamaal Husain

yqdidi Yqbhaijani जब तलक तू आएगा शाम ढल चूकी होगी जख्म-ए-दिल पे ये दुनियाँ खार मल चुकी होगी कहने वाले कहतें हैं मुझसे सुन ले ए

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जब  तलक  तू  आएगा   शाम  ढल  चूकी होगी
जख्म-ए-दिल पे ये दुनियाँ खार मल चुकी होगी

कहने  वाले  कहतें  हैं  मुझसे  सुन ले ए पागल 
भूल जा कि वो हमदम अब बदल  चुकी  होगी

तुम तपिश  मोहब्बत की जब तलक बुझाओगे 
रात रौशनी  तब-तक  सब  निगल  चुकी  होगी

कर रहे हो देरी  पर   लौट  के   जब   आओगे 
जिस्म से मेरे  हमदम  जां निकल   चुकी होगी 

ख्बाब़ कल कमाल आया तुम कहाँ पे खोए हो
तुमसे मिलने को घर से  वो निकल चुकी होगी  #yqdidi Yqbhaijani
जब  तलक  तू  आएगा   शाम  ढल  चूकी होगी
जख्म-ए-दिल पे ये दुनियाँ खार मल चुकी होगी

कहने  वाले  कहतें  हैं  मुझसे  सुन ले ए
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