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Monika verma

"इक्कीसवीं सदी का भारत"


आज भारत की बेबस तस्वीर, सूनी सड़कों पर रो रही हैं।
हे भारत माता, तेरी सरकार आज आँखे खोल कर सो रही हैं।
ये कैसा करुण दृश्य माँ, आज तेरे आँचल से झलक रहा हैं। 
वो अन्नदाता, वो धरती पुत्र, आज दाने के लिए बिलख रहा हैं।
21वीं सदी के नये भारत की नई सुबह, अंधकार से होती हैं।
जनता के जख्मों को देख कर, ये सरकार आँखे खोल कर सोती हैं।
कल की देवी, माता स्वरूपा नारी, आज कोठे पर यूँ बिकती हैं।
एक कोठे की आड़ में न जाने कितनों की रोटी सिकती हैं।
21वीं सदी की ये झांकी चीख चीख कर सबसे कहती हैं।
नंगी गरीबी और बेरोजगारी क्यूँ सड़कों पर ऐसे लेटी हैं।
आज भारत की बेबस तस्वीर, सूनी सड़कों पर रो रही हैं।
हे भारत माता, तेरी सरकार आज आँखे खोल कर सो रही हैं।
#मोनिका वर्मा

©Monika verma #21वीं_सदी
#21वीं_सदी_का_भारत

Monika verma

Adv Di Pi Ka

मैं था, 
मैं हूँ, 
मैं रहूँगा...
#SushantDay

©Di Pi Ka
  #21stCentury #21Jan21 #SushantDay #SushantSinghRajput  #HappyBirthday

...

2122 2122 212

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हद से आगे बात बढ़ने को चली        
जनवरी  सूनी  गुज़रने  को चली        

वस्ल अब ही तो हुआ था ऐ फ़लक   
और अब ही रुत बिछड़ने को चली     

ये पहल क्या ख़ूब लाई रंग है              
ज़िन्दगी थोड़ी सवरने को चली           

ज़ख़्म  फ़िरसे हो रहे  हैं क्यों हरे     
क्यों दुबारा इश्क़ करने को चली        2122 2122 212

Sanjeev Shukla

2122 2122 212

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शायरी की इब्तिदा की............दास्ताँ ||
मिट चुके अलफ़ाज़ कुछ  बाकी  निशाँ || 

खूबसूरत  इक  हसीं  तहरीर है....
चंद सूखे गुल महकते दरमियाँ  || 

चांदनी उतरी है क्यूँ चश्मों में फिर.....
तीरगी  कुछ  शाम  का  गहरा धुआँ ||

रोज़ इक नाशा दगी का फ़लसफ़ा…… 
कुछ तबस्सुम और कुछ नादानियाँ    || 

दिल में बस इक मुस्कुराहट सी खिली … 
याद  आयी  कुछ  शरारत  शोखियाँ  

"रिक्त" है ये शायरी का .......................... तर्ज़ुमा
आतिश-ए-तहरीर  पुर सोज-ए-निहाँ  ||

©Sanjeev Shukla 2122  2122  212

परिंदा

#Sea 2122 2122 212 #शायरी

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अपना समझे थे जिसे भी दिल से हम
उसने ही दिल को खिलौना माना था

©Jitendra Verma #Sea 2122 2122 212

Badal Ragg

ग़ज़ल बह्र - 2122 212 2122 212 #badal #worldpostday

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ज़िन्दगी  में   जितना हम यार   उठते  रहते  है।
ज़िन्दगी  से  हर  दफ़ा उतना  गिरते  रहते है।।

ये मुहब्बत का  असर है  सनम जो आजतक।
हम बिछड़ के भी  यहाँ तुमसे मिलते रहते है।।

हुस्न की  चाहत  किसे  अब नहीं  होती यहाँ।
एक है   जो  आप  बस  ओढ़े  परदे  रहते है।।

अब  किसी  भी  राह  जो  जाए  मिलने उन्हें।
रुक  के  भी  लगता  है  पैर  चलते  रहते  है।।

है  जमाना  ये   बहुत  ही  बुरा  क्या  सोचना।
आजकल  माँ-बाप  बच्चों से  कहते  रहते हैं।।

हमने भी  कुछ गलतियां की  बताने  में उन्हें।
बस  इसी  ही  बात से  आज  डरते  रहते है।। 

फिर तरक्की  की  वज़ह  से  टूटा रिश्ता था।
लोग क्यों अब  ख़ामख़ा यार जलते रहते है।।

ये जहां  हमको  बहुत  रास आयी  ज़िन्दगी।
लोग  मरने  के  लिए  तुमसे  लड़ते  रहते है।।

©Badal Raagg ग़ज़ल बह्र - 2122 212 2122 212
#badal

#worldpostday

sarikaAgarwal

good evening

©Sarika #ग़ज़ल_अभ्यास 1
2122  2122  212

vinay vishwasi

प्यार तुमसे मैं करूँ जी जान से।

जाँ तुम्हें अपना  कहूँ मैं शान से।

चाहतें अब कुछ नहीं अवशेष हैं-

बस तुम्हें माँगा करूँ भगवान से।
 #मुक्तक #चाहतें #विश्वासी 
2122  2122  212

vinay vishwasi

फासले क्यों  बढ़ रहे हैं  आजकल।

भाव भी क्यों चढ़ रहे हैं आजकल।

क्या वज़ह यह खोजने को रोज ही-

हम किताबें  पढ़ रहे हैं  आजकल।

 #मुक्तक #भाव_बढ़_रहा_है #विश्वासी
2122  2122  212
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