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Niaz (Harf)
दरवाजों का क्या है, यह तो बेजान है , दीवारों के भी कहा ,कोई कान है । रोज़ खाती हूं मैं मार, रोटी के सिवा। श्रृंगार की लालिमा, बिना श्रृंगार के मिल जाती है । और मेरे सर की बिंदी , मेरी खून से बन जाती है। To be continued....in next post...... ©Niaz (Harf) दरवाजों का क्या है, यह तो बेजान है , दीवारों के भी कहा ,कोई कान है । रोज़ खाती हूं मैं मार, रोटी के सिवा। श्रृंगार की लालिमा, बिना श्रृंगार
Kajal Singh [ ज़िंदगी ]
नवीन बहुगुणा(शून्य)
Anil Ray
💫✨तुम माता सीता को भूलते रहे✨💫 मर्द को जन्म ही नही देती खुद भी मर्द बन सकती हूँ मैं जब भी जरूरत रहे पर..... सदियों से सदा स्त्री रही हूँ मैं। और शायद! ऐसे ही तुम्हारा पौरुष सदा पालन-पोषण करती रहती हूँ मैं। दर्द का असीम सागर-सी सरिता पर.. हरेक रक्तरंजित बूंद तड़पाती रहती मुझे आज तक दर्द से कभी आह तक नही। मेरे तन से निकलकर एहसान फरामोश तेरे मूंह से कभी भी कोई वाह तक नही। मैं सहती रही दर्दे-गमों को युगों से ही ज़ालिम जमाने को मेरी परवाह नही। हर माह पानी जैसे खून बहाया है मैंने ताकि तुम्हारे चेहरे पर लालिमा आये। इसलिए नही कि मेरी काबिलियत को कमजोरी मान मुझ पर उंगली उठाये। मैं नित्य निभाती किरदार शिद्दत से मेरे तुमने फिर भी नियमग्रंथ बना दिया मेरे लिए मेरी ही इजाजत के बगैर.... क्या तुम्हारी इज्जत अधिक है या ऐसे दिनों-दिन बढ़ जाती है समाज। हमारी कठोरता पिघलकर नरम ही रही दुखों में भी हम ख़्वाहिशों में झूलते रहे। श्रीराम तुम्हारे लिए पुरूषोत्तम बन गये.. परन्तु तुम माता सीता को भूलते रहे....! ©Anil Ray 💫✨तुम माता सीता को भूलते रहे✨💫 मर्द को जन्म ही नही देती खुद भी मर्द बन सकती हूँ मैं जब भी जरूरत रहे पर..... सदियों से सदा स्त्री रही हूँ म
Bhuwnesh Joshi
Nisheeth pandey
प्रेम की तलाश ************ मैं तलाशना छोड़ दिया हूं हर कहीं जहां भी तुम्हारी झलकियां मिलती महसूस हुआ करती थी मुझे पता रहता था -कहां हो तुम सुबह की सैर छोड़ दी क्योंकि घास के पत्तों पर ठहरी मोती सी झिलमिलाती ओस की बूंदों से तुम्हारी स्नेह जुड़ी थी .... दोपहर भी तुम्हारे तिलमिलाहट से कहाँ अछूता था -निरूद्देश्य भागती पिघलाती पसीने से लथपथ शरीर देखती तुम्हारी आखें सड़कों पर बहती गर्म हवाओं में कहीं दूर मृगमरीचिका और उसमें उलझना तुम्हें अच्छा लगता था शाम में तुम्हारा सूर्यास्त की लालिमा ओढ़ना तुम्हें कितना सकून देता था -लगता है सूर्य की अंतिम लालिमा के साथ साथ विलुप्ती में तुम भी -तुम्हारी उपस्थिति की संवेदना करवटें लेने लगती है । रात रात में अचानक चांद को निशीथ पहर निहारना या अचानक जागकर -जादुई चांदनी में या वर्षा की रिमझिम जल से छत पर ख़ुद को लबालब करना आर्तनाद टर्राते मेंढकों की जो तुम्हें लुभाती थी और अंधेरी काली रातों के सन्नाटे में ठंडी हवाँ का स्पर्श लेना मैं ढूंढना तलाशना हर जगह हर पल जहां कहीं भी तुम रहती थी कहां नहीं थी हर जगह थी तुम मगर अब थक सा गया हूं तुम्हारे भावनात्मक स्पर्श के भवँर में डूबते डूबते इसलिये अब मैं तलाशना छोड़ दिया हर कहीं जहां भी तुम्हारी झलकियां मिलती महसूस हुआ करती थी #निशीथ ©Nisheeth pandey #SunSet प्रेम की तलाश ************ मैं तलाशना छोड़ दिया हूं हर कहीं जहां भी तुम्हारी झलकियां मिलती
Ankita Shukla
भगवान धन दौलत भले ही कम देना दो पल का सुकून भी कम कर देना मेरे हिस्से की खुशियां भी उनके झोली में भर देना वो हस्ते रहे हमे भले ही चाहे दुख दे देना वो हर परेसनियो मे अडिग रहे उनकी हर विनती सुन लेना उनके हर्ष को स्वीकार करना उनके ललाट पर तेज, गाल पर लालिमा अधरो पर मुस्कान बनाए रखना भगवान मेरी माँ जैसी, मेरी मौसी माँ को हमेसा सुहाग से सजाये रखना वो जचती रहे जोड़े मे हमेसा कृपा बनाए रखना प्रभु ©Ankita Shukla #Light भगवान धन दौलत भले ही कम देना दो पल का सुकून भी कम कर देना मेरे हिस्से की खुशियां भी उनके झोली में भर देना वो हस्ते रहे हमे भले ही च
Ankita Shukla
शब्दों से कहां कुछ बया करते हैं दिल की बेबसी को साहब अब देखो न सुलझते सुलझते कितना संभल गए हैं हम जहां सब का ख्याल और इंतजार किया करते थे आज वही देखो अकेले खड़े हैं हम मुरझाए हुए चेहरे पर मुस्कान ढूंढ रहे हैं चेहरे पर खिलखिलाती रोशनी पर सच कहूं तो मन उदास रहता है आंखों में लालिमा सर पर भार रहता है कभी कोई पूछता नहीं हालत सब हाल पर छोड़ देते हैं कभी बैठो पास आंखें हालत बयां करेंगी और अधरों पर मुस्कान होगी ©Ankita Shukla शब्दों से कहां कुछ बया करते हैं दिल की बेबसी को साहब अब देखो न सुलझते सुलझते कितना संभल गए हैं हम जहां सब का ख्याल और इंतजार किया करते थे आ
Sanjay Ni_ra_la
नींद आँखों में उतर जाती है छोटी छोटी बातों में खुशियाँ मिल जाती है जिंदगी ऐसे ही हर रोज बस गुजर जाती है तुम हो मेरे करीब आज भी, यही सोचकर नींद खूबसूरती से आँखों में उतर जाती है जब कभी आता हूँ आइने के सामने मैं फिर वही लालिमा, चेहरे पर छा जाती है हर रोज तुम्हारी यादों में सफर करते करते अपने घर आकर राहें रोज सिमट जाती हैं 07 Apr 2023 ©Sanjay Ni_ra_la ##नींद आँखों में उतर जाती है छोटी छोटी बातों में खुशियाँ मिल जाती है जिंदगी ऐसे ही हर रोज बस गुजर जाती है तुम हो मेरे करीब आज भी, यही सोचक