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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल इश्क़ मुझको हुआ है बता क्या करें । खत उसे फिर लिखा अब खता क्या करें ।।१ खत लिखा आज पहला उसे याद कर । चूम खत को लिया तो दुआ क्या करें ।।२ आज किस्मत हमारी बदल ही गई । आ रहे वो यहाँ बोल क्या क्या करें ।।३ रख दिया पाँव जब इश्क़ दहलीज पर । पीर फिर जो उठे तो खुदा क्या करें ।।४ मुस्कराऊँ भला आज कैसे यहाँ । जान तन से अभी है जुदा क्या करें ।।५ फूल कैसे उसे आज उपहार दूँ । वह स्वयं मोगरा है चंपा क्या करें ।।६ रूठ मुझसे गई ज़िन्दगी जब प्रखर । मौत से फिर बता हम सुला क्या करे ।।७ ३१/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल इश्क़ मुझको हुआ है बता क्या करें । खत उसे फिर लिखा अब खता क्या करें ।।१
Anil Ray
दृश्य स्वरूप से परे, मेरा एक निजस्वरूप भी है हजारों वस्त्र तन के लिए पर नजरदोष का क्या? कुदरत से प्राप्त कुदरती जिस्म अनमोल है मेरा तुम्हारा वजूद भी मिटेगा खुद को मिटा दूं क्या? ©Anil Ray विचारार्थ लेखन.................✍🏻 "सर! उस साली के बहुत पंख निकल आए हैं। कहती हैं मैं औरों के जैसी नहीं हूँ ... अजीब गंदी औरत है जो साफ होने
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
माता के हर त्याग का , करना है सम्मान । यह जीवन उसका दिया , सुन ले अब इंसान ।। माता से बढ़कर नहीं, होते देव महान । इनके चरणों में झुके , देख स्वयं भगवान ।। कैसे भूलूँ मैं उस माँ को , जिसने मुझको जन्म दिया । अपना सारा जीवन मुझ पर , जिसने हम पर वार दिया ।। कैसे भूलूँ मैं उस माँ को .... याद हमें आता है अब भी , कैसे सबके बीच रही । सुनकर सब की चुप रहती थी , निर्धन हूँ ये सोच रही ।। बदलेगा कल भाग्य हमारा , सब शंभू पर छोड़ रही । लगती मुझको धूप कभी तो ,आँचल अपने छुपा लिया ।। कैसे भूलूँ मैं उस माँ को ..... रहा लाड़ला दादी माँ का , दादा ने सिर हाथ रखा । खेला कूदा पढ़ा लिखा मैं , क्या मैं माँ को भूल सका ।। उतना ही वह याद रही फिर , जितना निशिदिन बड़ा हुआ । जितना करता उसकी खातिर , लगता मुझको कुछ न किया ।। कैसे भूलूँ मैं उस माँ को ..... बचपन की यादें अब आकर , निशिदिन चोट नया देती । अब भी उस आँगन से खुशियाँ , माता मेरी भर लेती ।। लेकिन मन संतोष खजाना , पीड़ा सारी हर लेती । इतना ज्ञान सुनों मैं माँ से , रहकर उनकी शरण लिया ।। कैसे भूलूँ मैं उस माँ को ...... बत्तीस दाँतों में जिभा भी , देखो नरम-गरम होती । लेकिन मेरी माँ की भाषा , बिल्कुल अलग अजब होती ।। जो सीखी थी उसने भाषा , शीश झुकाना ही होती । आज उसी के पद चिन्हों पर , हमने चलना सीख लिया ।। कैसे भूलूँ मैं उस माँ को ...। कैसे भूलूँ मैं उस माँ को , जिसने मुझको जन्म दिया । अपना सारा जीवन मुझ पर , जिसने हम पर वार दिया १६/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR माता के हर त्याग का , करना है सम्मान । यह जीवन उसका दिया , सुन ले अब इंसान ।। माता से बढ़कर नहीं, होते देव महान । इनके चरणों में झुके , द
Durga Deshmukh
मोगरा मोगरा फुलला चेहरा खुलला मन वा-यावर झोपाळा झुलला मोगरा हसतो चेहरा दिसतो मनात ठसतो ह्दयात बसतो मोग-याचा गंध सुटला सुगंध मनाचे रे बंध दाटला आनंद मोगरा पहातो तुला विचारतो केसात माळतो गंधात बांधतो मोगरा रुसला एकटा बसला नाराज दिसला पाहुण हसला दुर्गा देशमुख ©Durga Deshmukh मोगरा
Alpesh sen
Shankar Kamble
तू गेल्यावर राहिले चाफ्याचे बहरणे मालवून गंध जाईचा काजव्यांचे चमकणे..! गोठले दृष्टीत अजूनी शुभ्र पुंजके तारकांचे माळले कुंतलात तेंव्हा स्पर्श ओले मोगऱ्याचे..! थबकलेले क्षण बिलोरी शिंपल्यात सांडले गुंतला श्वासात मारवा रोमरोमी कोंडले..! अवचित अधरी आल्या जुन्याच ओळी पुन्हा? पाठलाग करतो अजूनी जशी सावली उन्हा..! सोबतीला पायखुणा या मजसवे चालती अर्थ सांगू मी कसा?शब्दांवीन जे बोलती..! परतूनी येशी केधवा?आस वेडी जागते सुकली लता केतकी बहर मातीचा मागते..! ©Shankar Kamble #roseday #तू #मी #गेली #चाफा #मोगरा #गंध #मातीचासुगंध #काजवा #गेलीस
Prerana Jalgaonkar
कालच आपलं स्वप्नं आज पुन्हा एकदा पाहूया चल आज पुन्हा एकदा तिथंच भेटूया... तुझ्या नावासवे माझं नांव आज पुन्हा एकदा लिहुया चल आज पुन्हा एकदा तिथंच भेटूया... हातात हात घालून चांदणं आज पुन्हा एकदा पाहूया चल आज पुन्हा एकदा तिथंच भेटूया... आपल्या प्रीतीचा मोगरा आज पुन्हा एकदा फुलवूया चल आज पुन्हा एकदा तिथंच भेटूया... आपल्या प्रेमाच्या सरीत आज पुन्हा एकदा चिंब भिजूया चल आज पुन्हा एकदा तिथंच भेटूया... आपल्या ओठांचं गाणं आज पुन्हा एकदा गाऊया चल आज पुन्हा एकदा तिथंच भेटूया... --प्रेरणा कालच आपलं स्वप्नं आज पुन्हा एकदा पाहूया चल आज पुन्हा एकदा तिथंच भेटूया... तुझ्या नावासवे माझं नांव आज पुन्हा एकदा लिहुया चल आज पुन्हा एकद