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sana naaz
इंसान जब पुरी तरह टुट कर बिखर जाता है। उस वक्त तन्हाई के सिवा उसे कुछ अच्छा नहीं लगता ©sana naaz #Problems RUPENDRA SAHU "रूप" Taj Uddin Yogita Agarwal Aj Stories Sk Manjur Mukesh shakya Mukesh shakya mmm k singh N.B.S , liker boy Afsa
Dharmendra Gopatwar
📝 दगडाचा दैव -✍️ दगडाचा दैव तो , हृदय त्याचे पाषाण फुटेना घाम दाटेना अश्रू दगडाचा दैव हा., त्याचे हृदय जणू पाषाण .. भक्ती भावाने पूजिले मी त्याला त्यासी काय ठाव माझी तहान तळमळतो जीव हा गहिवरते प्राण , मनुज मी दैव तो तळमळ माझी निवांत बघतो दगडाचा दैव तो हृदय त्याचे पाषाण.. हृदयस्थ जप त्यासी ऐकू न जाई., केला तप त्यासी उरे न मूल्यमाप अळकला कंठस्त प्राण ह्रदयशून्य दैव माझा - भावशुन्य विधाता.. दगडाचा दैव माझा काळीज त्याचे पाषाण संकटांशी झुंज जिवी लिहिली त्याने विधान जीव सारे मोहरे त्याची लिहीली त्याने जीवा या सुख दुःखाची विधी विधान ; जगी या रंगमंचावर सुख दुःखाच्या दोरीवर खेळविनाऱ्या त्या देवाला बघण्याची जाब विचारायला खेळ हा कशासाठी ! संधी मजला मिळेल काय ? त्याला बघण्याची जल्मी या तहान मिटेल काय ? जरी असला तो दगडाचा दैव आणि काळीज त्याचं पाषाण परि या जीवाची हाक ., तोच श्रेष्ठ महान , लिहिली त्याने सुख दुःखाची कलमे जरी बनविला संविधान ; दगडाचा दैव माझा हृदय मात्र त्याचे पाषाण. कवी _ ध . वि . गोपतवार 📔कवि मन - मनातलं ओझं पानावर ©Dharmendra Gopatwar #दगडाच्या दैव
SK Poetic
यह युक्ति अपने आप में सारगर्भित है। संसार में दो तरह के मनुष्य हुआ करते हैं।पहली तरह के लोग कर्मनिष्ट होते हैं,जो अपने परिश्रम पर भरोसा करते हैं।दूसरी तरह के लोग आलसी होते हैं,जो अपने कार्यों को टालते रहते हैं।ऐसे आलसी लोग कर्म भीरू होते हैं,और काम को देखकर डर से सूख जाते हैं। कर्मवीर पुरुष जीवन के हर क्षेत्र में सफल होते हैं,क्योंकि उन्हें अपने परिश्रम पर भरोसा रहता है। वे संघर्षों और बाधाओं से लड़ते हुए अपने जीवन -पथ को प्रशस्त करते हैं।आलसी व्यक्ति भगवान को दुहाई देकर हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहते हैं।उन्हें यह ज्ञान नहीं रहता कि भगवान भी उन्हीं की सहायता करते हैं,जो अपनी सहायता आप करते हैं।जो आलसी होते है, वे परजीवी और परान्नभोजी हो जाते हैं।आलसी भगवान के भरोसे कर्म हीन बने रहते हैं और अंत में दुखों से घिरकर बिलबिलाते रहते हैं। ऐसे आलसी को कायर और बुजदिल कहा जा, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।एक प्रसंग से यह बात स्पष्ट हो जाती है।राम समुद्र से रास्ता मांग रहे हैं।राम की दीनता को देखकर लक्ष्मण का पुरुषार्थ जाग उठता है और वे राम से कहते हैं- "कादर मन कर एक अधारा। दैव -दैव आलसी पुकारा।" लक्ष्मण की बात सुनकर राम का पुरुषार्थ जाग उठा और उनके धनुष उठाते हैं समुद्र हाथ जोड़कर सामने खड़ा हो गया। अतः हम कह सकते हैं कि आलस्य मनुष्य समाज में एक रोग की तरह है, जो उसे दीन- हीन और कायर बनाता है ।अगर हम जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो सदा आलस्य से से दूर रहना होगा। ©S Talks with Shubham Kumar #NojotoRamleela दैव- दैव आलसी पुकारा
Neeraj Shelke
उंच उंच जाण्याकरिता प्रत्येकाला लागते एक शिडी , नशिबात असते चमकणे तर बदलते प्रत्येक घडी !! लक्षात ठेवा आपल्याच असते हातामध्ये ती छडी , ज्यात असते ताकद उघडण्यास नशिबाच्या दाराची कडी !! ©नीरज शेळके इंस्टाग्राम । @kavi_manacha_neeraj #नशीब #destiny #दैव #विश्वास #trust
vikrajgill
मुझे उस वक़्त की परवा नहीं जो मेरा है मुझे उस वक़्त की परवा है जिसे खुदा केहता है कि हो सके तो इसे अपना बनाले ©vikraaj gill पुरुषार्थ ही दैव है💐❤️🙏 #peace
Naresh Chandra
कारे बदरा गहराय रहे फिर कारी बदरिया छाय रही बरखा रानी निकरौ घर से प्यासी धरती अकुलाय रही। पपिहा भी शोर मचाय रहा दादुर भी टेर लगाय रहा जन जीवन अब घबरा करके दैव दैव की रट लगाय रहा। ©Naresh Chandra कारे बदरा गहराय रहे फिर कारी बदरिया छाय रही बरखा रानी निकरौ घर से प्यासी धरती अकुलाय रही। पपिहा भी शोर मचाय रहा दादुर भी टेर लगाय रहा जन ज
Nojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)
Hindi Grammar Notes | हिंदी व्याकरण देव-God दैव-Fortune माना कि सब ऐसा मानते हैं कि 'भगवान' और 'किस्मत' एक-दूसरे से ज़्यादा दूर नहीं हैं। म
रजनीश "स्वच्छंद"
मनःस्थिति।। अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी। मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी। दुर्ग रक्षित संस्कृति का, भरभरा कर ढह रहा था, उसमे पनपता एक पल्लव हाथ जोड़े कह रहा था। वीर की थी पृष्ठभूमि जो, कब यहां साकार होगी, कब तलक ये आत्मा, निकृष्ट और लाचार होगी। विनय उस निर्बल की भी, पांव तले कुचली गई, थी कहानी चल रही, जीवन मृत्यु की टकरार थी। अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी। मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी। अपने चरम पर दम्भ भी ले खड्ग था चल रहा, मुरझा गया था बीज भी जो गर्भ में था पल रहा। किसके हृदय को भेदता गजपाद का कम्पन रहा, भेदहींन ज्ञान था, कौन विषधर कौन चन्दन रहा। इस अंतहीन विषाद को छद्म सुख में मैं ढो रहा, चींटियों का झुंड था बस, अपनी लम्बी कतार थी। अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी। मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी। बदला हुआ था रक्तवर्ण, जैसे हुआ शिथिल श्वेत, जिसको समेटे जा रहा, बन्द मुट्ठी में जैसे हो रेत। बालमन की संवेदना, उठ आज फिर से जगा रहा, नवसृजित कदमों से कम्पित पग मैं आगे बढ़ा रहा। फिर गगन छूने को पांव पंजे हाथ मैं विस्तारता हूँ, फिर से सुननी है मुझे, जो कल मेरी जयकार थी। अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी। मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी। ©रजनीश "स्वछंद" मनःस्थिति।। अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी। मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी। दुर्ग रक्षित संस्कृति का, भरभरा कर ढ
gaurav
डोई तुळशी ध्वज पताका,वैष्णव गजर मुखा.. गळा तुळसी माळा, भजन दंगा .. पांडुरंग नामे गाईन मी, चालत येईन पंढरी.... वारी आषाढिची,माळ गळा तुळसी. सुख दुःख या जन्मी ना ऊरे, आसमंतात पांडुरंग भरे.... ऊतरे विठु वैष्वात वारकरी, वाट दावी ध्वज पंढरी.... शरीर जाहले तुझे पांडुरंग उच्चारे, नाचेन पंच पाऊले. गजर जाहला गजर जाहला दंग विठुराया दरबारी..... शोभुन दिसे आसमंती वारकरी ... रत्नजडी ना पुरे या वारकरी, वेड लागले जीवा जाईन वारी. तुळस वृंदा नाचवी जणु रुक्मिणी आई.. अमुतापरी दिसे पितांबर विणेकरी.... उचंबली मन लागता गोडी, हुरहुरला जीव कधी जाईन वाळवंटि.. भेटिसी स्व आले नामा-तुकाई रथ डोलतो परीसा परी...... धोतर पान पोषाक वेगळा, लहान वारकरी विठ्ठल ऊभा पाठीवरी. ना अमृत गोड चवसी, तुझ्या विठुमाई ,उभा दिवे घाटी सावली तुझी. रिंगण तुझ्या नामाची , आनंदी मन डोळा पाणी. देखीण डोळा तुला पुढ्यात उभा तु जवळी रुख्माबाई.... बुक्का भाळी तुझिया नामाचा, गाईला सोहळा अंतरीचा. ढुंडाळीयेली दुनिया सारी ना असा कुठे सोहळा.... नामाचा गजर ऐकुनी कळस बोलला. ऊभा विटेवरी कर कमरी, फुगडी रंगली तुझ्या नावाची. आई माझी शोभुन दिसते रुक्मिणी वारकरी मला वाटले विठ्ठल माऊली. ना रूतला पायात काटा , आली भेटी चंद्रभागा.. वारकरऱ्या शी माझ्या चमड्याची वाहन . ना पांग तरीही फिटणार.. तुम्हीच मला विठ्ठल रुक्मिणीआई... माझा माथा तुमच्या चरणाशी. शुभ संध्या मित्रहो आताचा विषय आहे वॉलपेपर कोट... #वॉलपेपरकोट१७ चला तर मग लिहूया. #collab #yqtaai #स्वरचितकाव्य लिहीत राहा.
lalitha sai
हां..वो मैं ही हूं.. हर पल.. हर लम्हें में.. सिर्फ आपको महसूस.. करके.. आपके यादों में बस जाती हूं.. हां.. वो मैं ही हूं.. आपके शुभचिंतक बनके.. आपको हर कदम में.. रक्षा करती हूं.. हां वो मैं ही हूं..❤️❤️ 😀😀😀 हां वो मैं ही हूं.... मुझे बचपन से.. मेरा नाम मुझे पसंद नहीं है.. सब लोग मेरा नाम को.. बिच में कट देते है.. मेरे पाठशाला दोस्त तो.. मुझे