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Kailas Londesar
जगात एक असं सत्य आहे जो तो व्यक्ती पैसा पैसा करत असतो. पण या पैशांच्या जोरावर तो व्यक्ती विसरून जातो की आपल्या आईवडिलांनी आपल्याला लहानाचं मोठे करण्यासाठी तसेच माझं मुलगा स्वतः मोठा माणूस बनावं.आपल्याला आधार द्यावा हे स्वप्न अंगी बाळगुन कितीतरी पटीने वाईट दिवस काढले आहेत. ©Kailas Londesar #आईवडील
Shankar Kamble
बाप आभाळ आभाळ माय जमीन ओलती पेरा सुखाचा रुजण्या ऊनं, वादळ झेलती बाप गळ्याचा कासरा माय पान्ह्याचा हंबरा ओढ देतो ओढावतो जसा घराचा उंबरा बाप जळणारा दिवा माय मिणमिण वात जशी सावली उन्हाची एकमेकां दे सोबत बाप काटेरी फणस गरे मधाळ ती माय थोपटवी,झोपटवी घट आकारत जाय बाप पहाड खंबीर माय सुईतला धागा हळूवार सांधतसे उसवल्या खोल जागा बाप उरांत हुंदका माय आसवाचा पूर रित्या ओंजळी भरल्या थवा पाखरांचा दूर बाप कळस राऊळी माय गाभारा देवाचा होवू कसा उतराई? श्वास गहाण पायाचा ©Shankar Kamble #Flower #आई #बाप #वडील #माया #माय #आईवडील #आईबाबा #आईची_माया #प्रेम
Vedantika
अच्युथ भव: यश धन रिद्धि सिद्धि के दाता। प्रथम पूज्य की है यह एक गाथा। माता पार्वती के मन में पुत्र की इच्छा ने जन्म लिया। अपने मैल से उन्होंने निर्जीव मूरत को साकार किया। प्राण प्रतिष्ठा की उसमें और उसको जीवन दिया। एक सुंदर से बालक ने माता शब्द का उद्घोष किया। उसके मुख से माता सुन माता का हृदय झूम उठा। क्या आज्ञा हैं मेरे लिए ये सुनकर ध्यान था टूटा। सखियों संग मैं अपने कक्ष के भीतर जाती हूँ। कोई न आने पाए भीतर तुम्हें रक्षक बनाती हूँ। निश्चिंत हो स्नान कीजिए कोई त्रुटि न होने दूंगा। चाहे प्राण चले जाए पर अंदर किसी को न आने दूंगा। एक बालक अपनी माता के कक्ष के बाहर दे रहा था पहरा। आने वाले समय का कुचक्र होने वाला था कुछ गहरा। भोलेनाथ शिव शंकर लौट कर कैलाश पर्वत पर आए थे। उमा से भेंट करने के लिए वे हृदय से अकुलाए थे। (अनुशीर्षक में……) अच्युथ भव: यश धन रिद्धि सिद्धि के दाता। प्रथम पूज्य की है यह एक गाथा। माता पार्वती के मन में पुत्र की इच्छा ने जन्म लिया। अपने मैल से उन्ह
CM Chaitanyaa
" श्री चैतन्य महाप्रभु " श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य सन् 1486 में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (नादिया) नामक गाँव में हुआ। यह स्वयं श
Shree
दिखे ना कोई उद्गम, ना विराम! अनुशीर्षक प्रेम .... प्रेम के कई प्रारूप होते हैं, कई चरण होते हैं, ऐसा कहते हैं। पर, जब चरम आता है, प्रेम का तो ना कोई रूप, ना कोई चरण, ना आंसू, ना म
lalitha sai
कादंबरी.. एक ऐसा नाम.. ये नाम से मेरा रूह जुड़ा है क्योंकि इस नाम से कुछ यादें जुड़े है! कादंबरी... एक ऐसा नाम.. इस नाम से मेरा अस्तित्व जुड़ा है! #lalithasai #mypenname #newnameoflife #myworld कादंबरी... एक काले रंग का पक्षी जिसकी आवाज सुरीली होती है विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री देवी
Rashmi Hule
आईवडील जे सांगायचे ते तेव्हा पटत नसले तरी वय वाढते तसे अनुभवास येते मग त्याच गोष्टी आपण आपल्या मुलांना सांगतो...आणी ते मुलांना पटतेच असे नाही... जब माँ-बाप कुछ कहते हैतब नहीं समझता लेकिन बढती उम्र के साथ अनुभव होता है. फिर वो बाते बच्चों को कहते हैं. और बच्चे नहीं समझते #आईवडील #मुल
Sunita D Prasad
#शब्दों का कौमार्य..... यह शब्दों का सौंदर्य रहा कि हर नए वाक्य पर उनका कौमार्य यथावत रहा। इधर मैं कविता की वे अंतिम पंक्तियाँ रही जिन्होंने उसके प्रारब्ध के संग पूर्ण निर्वाहन किया। मैंने इच्छाओं की उर्वरक भू पर पाँव जमाते हुए स्नेह की दृंढ़ता को थामना चाह पर इच्छाएँ वजनी निकलीं। मेरे मुखमंडल पर विग्रह वेदना का प्रतिबिंब ठहरता इससे पूर्व एक समृद्ध संतुष्टि का आवरण स्वेच्छा से ओढ़ लिया दुःख की तुलना में सुख अकिंचन रहे पर अस्तित्वहीन नहीं जीवन में प्रेम तब उद्धृत हुआ जब वह लगभग परिभाषा विहीन हो चुका प्रतीक्षित अनुभूतियाँ भाषा के अभाव में अनर्थ सिद्ध हुईं पूरे नाट्यक्रम में अपने संवादों को कंठस्थ कर नेपथ्य में प्रविष्टि की प्रतीक्षा करती रही परंतु हम सभी अस्थाई दृश्यों के अस्पष्ट पात्र ही साबित हुए। जीवन अपनी गति में चला दृश्यों संग पात्र बदलते गए पर कुछ प्रतीक्षाएँ कभी समाप्त नहीं हुईं जहाँ दुनिया वृताकार रही वहीं प्रेम सरल रेखा समान संभवतः तभी वृत की गोलाई कभी नाप ही नहीं पाई!! #शब्दों का कौमार्य..... यह शब्दों का सौंदर्य रहा कि हर नए वाक्य पर उनका कौमार्य यथावत रहा।
Dharm Desai
आज का युवा बस धुँआ ही धुँआ (Full piece in the caption ✍️🤹) ये मेरा हिंद और में इसका युवा यहाँ खलबली है बलशालीओ की जो रिसते है राजनीति का धुँआ इसी धुंध के बस मे मैं भी महंगी शिक्षा महंगी दवा एक साथ अ
SURAJ आफताबी
दिल सुबकेगा ताउम्र तो इसकी तुष्टि कौन करेगा जो कर जाओगे लकीरों की लकीरों से बिछड़न फिर बताओ इस विग्रह प्रेम की पुन: पुष्टि कौन करेगा! मरू जंगल से होंगे सारे प्रेमपत्र इन पर निगाह वृष्टि कौन करेगा जो लूट ले जाओगे सबकी निगाहें हमसे दिलबर फिर बताओ इस परित्यक्त सी रूह पर दृष्टि कौन करेगा! तुमने तो बाँध ली बछल गठरी, मेरी तो मुष्टि भी कौन भरेगा ये जो तुम एक क्षण भर में कल्पों तक अकल्प कर रहे हो मुझे तो ये भी बताते जाओ इस अवस्था में मेरी विष्टि कौन करेगा ! अनुग्रह माँग कर रहा "आफताबी" तेरे रूष्ट चन्द्र वदन से जब राख हो जायेगी ये पंक्तियाँ तो सृष्टि कौन रचेगा अभी बसंत के माकूल उर्वर है कागज पर मेरा तेरा अंकन अब बताओ जब हो गई जमीं ये ऊसर तो फिर शब्द-कृष्टि कौन करेगा! तुष्टि- प्रसन्न पुष्टि- दृढ़, मजबूत विग्रह- टुकड़ा, विभक्त वृष्टि - बारिश बछल- प्रेम, वात्सल्य मुष्टि- मुट्ठी कल्प- युग अकल्प - कमजोर, क्षीण