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Ravi Sharma
हर रथी को अपने रथ पे मान था है समर ही शेष बस ये भान था ।। क्रोध आंखों से टपकता दीखता बस समर में मृत्यु का ही गान था।। पक्ष और प्रतिपक्ष में स्वजन खड़े थे बस विधि का निष्ठुर, ये विधान था।। to be continued...... ©Ravi Sharma हर रथी को अपने रथ पे मान था है समर ही शेष बस ये भान था ।। क्रोध आंखों से टपकता दीखता बस समर में मृत्यु का ही गान था।। पक्ष और प्रतिपक्ष मे
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा किसको कितने याद हैं , अपने अब अधिकार । आते ही घर नव वधू , बदले सुनों विचार ।।१ हाथ थाम जब तक चले , तब तक वही विचार । पर आते ही माँगते , फिर अपना अधिकार ।।२ उसके मन की लालसा , करवाती संहार । मानव ही शैतान बन , करता अत्याचार ।।३ माया की चलकर डगर , भूले सब व्यहवार । अपनों पर ही कर रहे , देखो अत्याचार ।।४ प्रभु की सेवा भी तभी , होती सुनो कबूल । मातु-पिता के पथ यहाँ , जो सुत हरता शूल ।। सेवा अपने मातु की , जो सुत करता देख । बदले उसके भाग्य की , सुन गिरधर भी रेख ।। जो भी मानव कर रहा , जीवन में संघर्ष । उसको ही उपहार में , मिलता देखो हर्ष ।। मातु-पिता आशीष से , मन में छाया हर्ष । उनके ही यह कर्म है , पाया मैं उत्कर्ष ।। समय नही रुकता कभी , कर ले मानव भान । इससे जग में हो सदा , मानव की पहचान ।। समय जिसे चाहे यहाँ , करे उसे बलवान । इसके आगे हैं झुके , देख स्वयं भगवान ।। अपने ही करने लगे , देखो आज प्रहार । मन्द-मन्द मुस्का रहे , खोकर शुद्ध विचार ।। ०४/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा किसको कितने याद हैं , अपने अब अधिकार । आते ही घर नव वधू , बदले सुनों विचार ।।१ हाथ थाम जब तक चले , तब तक वही विचार ।
Devesh Dixit
कठोर (दोहे) हिय कठोर अब ये कहे, मैं ही हूँ सरताज। होते सब भय - भीत हैं, करता ऐसा काज।। जो कहता वो मानते, कर न सके इंकार। रुतबा मेरा देख कर, झुकता ये संसार।। पल पल दहशत में कटे, रहे नहीं कुछ सूझ। वाणी कहूँ कठोर जब, थम जाती तब बूझ।। ऐसा ही वह सोचता, करने को हुड़दंग। संकट में भी डालता, बनकर रहे दबंग।। नहीं समझ उसको अभी, बनता वह नादान। थामे रहे कठोरता, ये उसका अभियान।। वाणी करे कठोर वह, मिले नहीं सम्मान। जीवन में संताप है, कहाँ उसे अब भान।। दुविधा में जब खुद पड़ा, तभी पीटता माथ। संगी साथी छोड़ते, बढ़े नहीं तब हाथ।। ........................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #कठोर #दोहे #nojotohindi कठोर हिय कठोर अब ये कहे, मैं ही हूँ सरताज। होते सब भय - भीत हैं, करता ऐसा काज।। जो कहता वो मानते, कर न सके इंका
Asheesh indian
रिश्तों का बाजार..... ©Asheesh indian मैंने रिश्तों के बाजार में अक्सर देखा है जो इंसान जितना ज्यादा रिश्तों को बचाने के लिए झुकता है वो इंसान लोगों की नजर में उतना ही बुरा होता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- सातों वचनों के नियम , रहे सभी को ज्ञात । यही सनातन धर्म के , मर्म सुनों हैं तात ।। सातों वचनों के नियम ... प्रथम वचन में आप भी , लेवें यह संकल्प । तीर्थ और उपवास में , मैं ही रहूँ विकल्प ।। मातु-पिता के मान का , रखना तुम भी भान । तेरे मेरे अब नहीं , दोनों एक समान ।। भूलोगे अब तुम नही , मेरी इतनी बात । इतनी हमको चाहिए , तुमसे यह सौगात ।। सातों वचनों के नियम... तीज वचन के रूप में , दे दे अब वरदान । जो भी जैसे क्षण मिले , होगें एक समान ।। आज अभी से आपको , करने है कुछ काम । रहे नहीं अब आप भी , सुनो आदमी आम ।। सुख दुख के हर मोड़ पर , होगे मेरे साथ । जैसे चाहे दिन रहे , जैसे चाही रात सातों वचनों के नियम .. और वचन बाकी अभी , सुनो कथन है चाह । आगे से हर कार्य में , लोगे आप सलाह ।। स्वयं मान लक्ष्मी हमें , हरि हो जाए आप । दोनो सम्मुख बैठकर , हर ले सब संताप ।। जो भी ग्रसित लोग है , रहना उनसे दूर । दुश्मन हो या हो सखा , होगी न मुलाकात ।। सातों वचनों के नियम ... और अहम है यह वचन , जो अब आखिर आज । मेरी जैसी ही समझ , हर नारी की लाज ।। इतने वचनों की अगर , तुम रखते हो लाज । तभी तुम्हारे संग में , मैं चल दूँ रघुराज ।। इतने वचनों की शपथ , ली है तुमने आज । याद रखो इस बात पर , नही करोगे घात ।। सातों वचनों के नियम.... सातों वचनों के नियम , रहे सभी को ज्ञात । यही सनातन धर्म के , मर्म सुनों हैं तात ।। २५/०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- सातों वचनों के नियम , रहे सभी को ज्ञात । यही सनातन धर्म के , मर्म सुनों हैं तात ।। सातों वचनों के नियम ... प्रथम वचन में आप भी ,
Archana Tiwari Tanuja
ज़िंदगी की शतरंज :- ज़िंदगी के पटल पर शतरंज की बिछी बिसात, कोई जीतेगा बाजी यहां तो कोई खायेगा मात। हार जीत का खेल सारा! आदमी लगा है दांव, द्वंद छिड़ा है खुद का खुद से! बिखरे ये हयात। कभी सियासत चाल है चलती कभी रसूखदार, सुकून-ओ-चैन कहां?दंगाई करते है खुराफात। खुद ही करें भ्रष्टाचार चेहरे पर डाले मुखौटा हैं, हाथ जोड़ सज्जनता का भेष धरे करें सिमात। किसी का किसी से न वास्ता! अलग है रास्ता, फिर भला कब कौन करें किसी से मुलाकात? पहले सी न रही दिलों में आपनेपन की बात, एक से हैं हालात बने क्या शहर क्या दिहात? भ्रमित है हर कोई वास्तविकता का भान नहीं, ज्ञान,गुणों की बात नहीं सब पूछे पहले जात। किसी का सुख किसी को कहां भाता "तनुजा" एक दूजे का कर रहे शिकार हैं लगा आघात। अर्चना तिवारी तनुजा ✍️✍️ ©Archana Tiwari Tanuja #Chess #NojoroHindi #NojotoFilms #myrhought #Zindagi_ki_shatranz 20/07/2023 ज़िंदगी की शतरंज :- ज़िंदगी के पटल पर शतरंज की बिछी बिसात,
Sangeeta Kalbhor
1भगवंता.. तुम्ही आहात हो इथेचं.. माझ्यासोबत.. मी नयन बंद केले की तुम्ही असता माझ्यात माझ्या शब्दात.. हो आणि भगवंता.. तुम्हीचं तर दिलेयं हे सगळे ज्याला मी व्यर्थ माझे म्हणतेयं.. भगवंता .. सगळे तुमचेचं आहे हो.. अगदी मीही.. ह्या देहाला ,ह्या मनला आणि ह्या चराचराला अर्थ प्राप्त झालायं तो आपल्याचंमुळे आपल्या शिवाय.. काय आमची बिशाद पान ही हलवायची.. श्वास ही घ्यायची.. भगवंता... एक कराल का.... वृथा अभिमान हरवाल का.... मनाने ,देहाने आणि वाचेने आणि वचनाने अगदी खरे बनवा... बनवाबनवी नको थोडीही... क्लेश देणारी... आत्म्याला नाराज करणारी.. भगवंता.... भान हरपून आपल्या सेवेची सेवेकरी करुन घ्या ना मला... रहायचेयं आपल्या सेवेत... अखंड...श्वास असेतोपर्यंत..... भगवंता...मन निर्मळ बनवा... अगदी जलापरी.... जीवन देणारे...कल्याण करणारे आणि उभ्या हयातभर स्वगुण टिकवणारे.... एवढेचं भगवंता..... द्यावे आपण ..... मी माझी..... 09/05/2023मला ©Sangeeta Kalbhor #BudhhaPurnima 14..भगवंता.. तुम्ही आहात हो इथेचं.. माझ्यासोबत.. मी नयन बंद केले की तुम्ही असता माझ्यात
Poet Maddy
हमें शीरीन चाहिए, फरहाद होने के लिए....... और जवानी चाहिए, बर्बाद होने के लिए......... ©Poet Maddy हमें शीरीन चाहिए, फरहाद होने के लिए....... #Need#Shirin#Farhad#Juvenility#Ruined............
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- मिट्टी की यह देह है , करना नहीं गुमान । ऊपर गिरधर तोलता , सबको एक समान ।।१ कंचन काया देखकर , करता क्यों अभिमान । नश्वर काया है मिली , कर ले इसका भान ।।२ मिट्टी की इस देह का , कर ले तू सम्मान । जन-गण के हित कार्य कर , रखते गिरधर ध्यान ।।३ मिट्टी को सोना बना , लेकर उनका नाम । उनके ही तो नाम से , होते सबके काम ।।४ मिट्टी के इस रूप को , कर ले तू अनमोल । गिरधर जिसको चाहता , उसका करें न तोल ।।५ १९/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- मिट्टी की यह देह है , करना नहीं गुमान । ऊपर गिरधर तोलता , सबको एक समान ।।१ कंचन काया देखकर , करता क्यों अभिमान । नश्वर काया है मि
Vedantika
लेखन में विश्वास हो। विचार में विस्तार हो। लेखन में छुपा हुआ ही, लेखक का संसार हो। 📮रचना का सार..📖 जन्मदिन विशेष कोलाब प्रतियोगिता :- 📌नीचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏 🌄रचना का सार..📖 मंच को आज दो वर्ष पूर्ण होने क