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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Pramod Kumar
Archana Tiwari Tanuja
ज़िंदगी की शतरंज :- ज़िंदगी के पटल पर शतरंज की बिछी बिसात, कोई जीतेगा बाजी यहां तो कोई खायेगा मात। हार जीत का खेल सारा! आदमी लगा है दांव, द्वंद छिड़ा है खुद का खुद से! बिखरे ये हयात। कभी सियासत चाल है चलती कभी रसूखदार, सुकून-ओ-चैन कहां?दंगाई करते है खुराफात। खुद ही करें भ्रष्टाचार चेहरे पर डाले मुखौटा हैं, हाथ जोड़ सज्जनता का भेष धरे करें सिमात। किसी का किसी से न वास्ता! अलग है रास्ता, फिर भला कब कौन करें किसी से मुलाकात? पहले सी न रही दिलों में आपनेपन की बात, एक से हैं हालात बने क्या शहर क्या दिहात? भ्रमित है हर कोई वास्तविकता का भान नहीं, ज्ञान,गुणों की बात नहीं सब पूछे पहले जात। किसी का सुख किसी को कहां भाता "तनुजा" एक दूजे का कर रहे शिकार हैं लगा आघात। अर्चना तिवारी तनुजा ✍️✍️ ©Archana Tiwari Tanuja #Chess #NojoroHindi #NojotoFilms #myrhought #Zindagi_ki_shatranz 20/07/2023 ज़िंदगी की शतरंज :- ज़िंदगी के पटल पर शतरंज की बिछी बिसात,
Ajay Amitabh Suman
Sakshi
आओ इस कदर रँग जाएं एक दूसरे के रंग में , की किसी दूसरे रँग भान ना रहे, हम हो जाये दोनों मुझमें मैं ना रहूँ , तुझमें तू ना रहे ,और कोई मलाल ना रहे ।। ©Sakshi Soni "Aks" आओ इस कदर रँग जाएं एक दूसरे के रंग में , की किसी दूसरे रँग का भान ना रहे, हम हो जाये दोनों मुझमें मैं ना रहूँ , तुझमें तू ना रहे ,और कोई मला
Devesh Dixit
कठोर (दोहे) हिय कठोर अब ये कहे, मैं ही हूँ सरताज। होते सब भय - भीत हैं, करता ऐसा काज।। जो कहता वो मानते, कर न सके इंकार। रुतबा मेरा देख कर, झुकता ये संसार।। पल पल दहशत में कटे, रहे नहीं कुछ सूझ। वाणी कहूँ कठोर जब, थम जाती तब बूझ।। ऐसा ही वह सोचता, करने को हुड़दंग। संकट में भी डालता, बनकर रहे दबंग।। नहीं समझ उसको अभी, बनता वह नादान। थामे रहे कठोरता, ये उसका अभियान।। वाणी करे कठोर वह, मिले नहीं सम्मान। जीवन में संताप है, कहाँ उसे अब भान।। दुविधा में जब खुद पड़ा, तभी पीटता माथ। संगी साथी छोड़ते, बढ़े नहीं तब हाथ।। ........................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #कठोर #दोहे #nojotohindi कठोर हिय कठोर अब ये कहे, मैं ही हूँ सरताज। होते सब भय - भीत हैं, करता ऐसा काज।। जो कहता वो मानते, कर न सके इंका
Motivational writer
Ajay Amitabh Suman
Ajay Amitabh Suman
Ravi Sharma
हर रथी को अपने रथ पे मान था है समर ही शेष बस ये भान था ।। क्रोध आंखों से टपकता दीखता बस समर में मृत्यु का ही गान था।। पक्ष और प्रतिपक्ष में स्वजन खड़े थे बस विधि का निष्ठुर, ये विधान था।। to be continued...... ©Ravi Sharma हर रथी को अपने रथ पे मान था है समर ही शेष बस ये भान था ।। क्रोध आंखों से टपकता दीखता बस समर में मृत्यु का ही गान था।। पक्ष और प्रतिपक्ष मे