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ashutosh anjan

जीवन और मृत्यु (चिंतन) -------------------------------------------------- प्रख्यात कवि श्री कुंवर नारायण जी की कविता के कुछ पंक्ति से मैं इस चिंतन की शुरुआत करना चाहूंगा कि- घर में रहेंगे, हमीं बने रहेंगे समय होगा, हम अचानक गुजर जाएंगे। अनर्गल जीवन ढोते किसी दिन हम एक आशय तक पहुँच सहसा बहुत थक जायेंगे।

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जीवन और मृत्यु(चिंतन)
कैप्शन 👇 में पढ़े। जीवन और मृत्यु (चिंतन)
--------------------------------------------------
प्रख्यात कवि श्री कुंवर नारायण जी की कविता के कुछ पंक्ति से मैं इस चिंतन की शुरुआत करना चाहूंगा कि-

घर में रहेंगे, हमीं बने रहेंगे
समय होगा, हम अचानक गुजर जाएंगे।
अनर्गल जीवन ढोते किसी दिन हम
एक आशय तक पहुँच सहसा बहुत थक जायेंगे।

ashutosh anjan

सब बदल गया (लघुकथा) ......…............................................... हाईवे पर काफी भीड़ जमा थी। शायद कोई दुर्घटना हो गई थी। सब मदद करने के स्थान पर फ़ोन से वीडियो बना रहे थे। सामने से इस ओर ही आ रही कार में बैठे पिता(सखराम अग्रवाल) शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी और उनकी विवाहित पुत्री(रमा) ने यह दृश्य देखा। रमा बोली-"चलिए पापा! देखें,क्या हुआ है?"  सखराम ने अपनी पुत्री को घूरा और यह कहते हुए बात कांट दी औऱ कहा "हमें नहीं पड़ना इन पचड़ों में। हम बिजनेसमैन हैं और बिजनेस में प्रत्येक क्षण अत्यंत मू

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सब बदल गया(लघुकथा)
कैप्शन में पढ़े👇 सब बदल गया (लघुकथा)

......…...............................................
हाईवे पर काफी भीड़ जमा थी। शायद कोई दुर्घटना हो गई थी। सब मदद करने के स्थान पर फ़ोन से वीडियो बना रहे थे। सामने से इस ओर ही आ रही कार में बैठे पिता(सखराम अग्रवाल) शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी और उनकी विवाहित पुत्री(रमा) ने यह दृश्य देखा।
रमा बोली-"चलिए पापा! देखें,क्या हुआ है?"

 सखराम ने अपनी पुत्री को घूरा और यह कहते हुए बात कांट दी औऱ कहा "हमें नहीं पड़ना इन पचड़ों में। हम बिजनेसमैन हैं और बिजनेस में प्रत्येक क्षण अत्यंत मू

ashutosh anjan

हर धड़ के ऊपर चादर से लिपटा अनंत तक फैला मैं जो नीलापन हूँ हाँ मैं वही आकाश हूँ सर्वस्व अपनी गोद मे किए धारण वात्सल्य से भरी पल पल उजड़ती

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प्रकृति की सुंदरता(कविता)
नीचे कैप्शन में पढ़े👇 हर धड़ के ऊपर चादर से
लिपटा अनंत तक फैला
मैं जो नीलापन  हूँ
हाँ मैं वही आकाश हूँ

सर्वस्व अपनी गोद मे किए
धारण वात्सल्य से भरी
पल पल उजड़ती

अभिलाष सोनी

प्रकृति की सुन्दरता (कविता) Pic Credit :- Pinterest अविरल बहती जल की धारा, कल कल करते झरने। स्वच्छंद नदी का अमृत जल है, तारीफ में क्या कहने। पौधों पे हैं पुष्प सुसज्जित, जैसे हीरों का ताज हो पहने। स्वच्छंद हवा का स्रोत है निर्मल, तारीफ में क्या कहने।

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प्रकृति की सुन्दरता (कविता)

अविरल बहती जल की धारा, कल कल करते झरने।
स्वच्छंद नदी का अमृत जल है, तारीफ में क्या कहने।

पौधों पे हैं पुष्प सुसज्जित, जैसे हीरों का ताज हो पहने।
स्वच्छंद हवा का स्रोत है निर्मल, तारीफ में क्या कहने।

चहुँओर प्रकृति में बसंत बहार, छाई है जैसे बदन पे गहने।
मन को मोहे, दिल को छू ले, तारीफ में क्या कहने।

पंछी करते है शोर मधुर, संगीत लगे कानों में बहने।
मन भी जैसे झूम उठा हो, तारीफ में क्या कहने।

स्वच्छ चाँदनी अम्बर से बिखरी, धरती लगी ये कहने।
शीतल छाया, कोमल रोशनी, तारीफ में या कहने। प्रकृति की सुन्दरता (कविता)
Pic Credit :- Pinterest

अविरल बहती जल की धारा, कल कल करते झरने।
स्वच्छंद नदी का अमृत जल है, तारीफ में क्या कहने।

पौधों पे हैं पुष्प सुसज्जित, जैसे हीरों का ताज हो पहने।
स्वच्छंद हवा का स्रोत है निर्मल, तारीफ में क्या कहने।

अभिलाष सोनी

जीवन और मृत्यु (चिंतन) Pic Credit :- Pinterest जीवन और मृत्यु इस प्रकृति का शाश्वत सत्य है, अर्थात जिसने इस धरती पर जीवन लिया है एक निश्चित आयु उपरांत उसकी मृत्यु भी निश्चित है। परंतु आपको नहीं लगता कि मानव प्रकृति के इस शाश्वत सत्य के साथ हद से ज्यादा छेड़खानी कर रहा है। जीवन और मृत्यु प्रकृति के मूल और अंत है एवं इनसे छेड़खानी का मतलब ईश्वर की कृति को बदलना है और इसका खामियाजा एक न एक दिन मानव जाति को भुगतना ही होगा। हम अपनी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा अपने सुख, ऐश्वर्य, भोग, विलास के लिए

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जीवन और मृत्यु (चिंतन)
जीवन और मृत्यु इस प्रकृति का शाश्वत सत्य है, अर्थात जिसने इस धरती पर जीवन लिया है एक निश्चित आयु उपरांत उसकी मृत्यु भी निश्चित है। परंतु आपको नहीं लगता कि मानव प्रकृति के इस शाश्वत सत्य के साथ हद से ज्यादा छेड़खानी कर रहा है। जीवन और मृत्यु प्रकृति के मूल और अंत है एवं इनसे छेड़खानी का मतलब ईश्वर की कृति को बदलना है और इसका खामियाजा एक न एक दिन मानव जाति को भुगतना ही होगा। हम अपनी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा अपने सुख, ऐश्वर्य, भोग, विलास के लिए आवश्यकता से अधिक प्राकृतिक साधनों का उपभोग कर रहे हैं, जो तीव्रता से समाप्त हो रहे हैं और निकट भविष्य में मानव जाति के लिये अनुपलब्ध होंगे। इसी प्रकार लगातार पेड़ों का विदोहन, नए पौधे न लगाना, जनसंख्या वृद्धि कुछ ऐसे प्रमुख कारण है जो एक न एक दिन मानव जाति और इस प्रकृति के विनाश का कारण अवश्य बनेंगे।
निवेदन सिर्फ इतना है कि हम अपनी मूल आवश्यकताओं के अतिरिक्त किसी भी चीज का अत्यधिक दोहन न करें, जल संरक्षण करें, पौधरोपण करें, प्रकृति का संरक्षण करें, वैकल्पिक संसाधनों का उपभोग करें, जनसंख्या नियंत्रण करें एवं प्रकृति को स्वच्छ व सुंदर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान अवश्य दें। तभी हम प्रकृति द्वारा निर्धारित जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य को बरकरार रख सकते हैं अन्यथा शीघ्र विनाश की ज्वालामुखी देखने के लिए तैयार रहें। जीवन और मृत्यु (चिंतन)
Pic Credit :- Pinterest

जीवन और मृत्यु इस प्रकृति का शाश्वत सत्य है, अर्थात जिसने इस धरती पर जीवन लिया है एक निश्चित आयु उपरांत उसकी मृत्यु भी निश्चित है। परंतु आपको नहीं लगता कि मानव प्रकृति के इस शाश्वत सत्य के साथ हद से ज्यादा छेड़खानी कर रहा है। जीवन और मृत्यु प्रकृति के मूल और अंत है एवं इनसे छेड़खानी का मतलब ईश्वर की कृति को बदलना है और इसका खामियाजा एक न एक दिन मानव जाति को भुगतना ही होगा। हम अपनी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा अपने सुख, ऐश्वर्य, भोग, विलास के लिए

अभिलाष सोनी

तुम्हारी तलब (ग़ज़ल) Pic Credit :- Pinterest हँस दे खिलखिला के, ओ मेरी जाने जाना। क्यूँ मुझसे रूठी रहती हो, मैं तेरा ही दीवाना। है बात ज़रा इतनी सी, मैं तुझको चाहता हूँ। इल्म तुझे होने न दिया, मेरे प्यार का फसाना।

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हँस दे खिलखिला के, ओ मेरी जाने जाना।
क्यूँ मुझसे रूठी रहती हो, मैं तेरा ही दीवाना।

है बात ज़रा इतनी सी, मैं तुझको चाहता हूँ।
इल्म तुझे होने न दिया, मेरे प्यार का फसाना।

तुम्हारी तलब में जाना, है दिल बेक़रार कितना।
मेरी बेक़रारी का आलम, है तुझको अब बताना।

इंकार कभी ना करना, ना कभी तू रूठ जाना।
दिल मायूस हो जाता है, मुश्किल है तुम्हें मनाना।

कितनी बार करूँ मैं, गुजारिशें अपने इश्क़ की।
मान भी जाओ दिलबर, मुश्किल है तुम्हें समझाना। तुम्हारी तलब (ग़ज़ल)
Pic Credit :- Pinterest

हँस दे खिलखिला के, ओ मेरी जाने जाना।
क्यूँ मुझसे रूठी रहती हो, मैं तेरा ही दीवाना।

है बात ज़रा इतनी सी, मैं तुझको चाहता हूँ।
इल्म तुझे होने न दिया, मेरे प्यार का फसाना।

DR. SANJU TRIPATHI

तुम्हारी तलब (ग़ज़ल)

बेस्वाद सी जिंदगी को मेरी जब से तेरे प्यार का स्वाद लग गया,
पल में सारे समां के साथ-साथ जिंदगी का जायका बदल गया।

जीने लगे तेरे ही ख्वाबों-खयालों में रात और दिन, शाम-ओ-पहर,
खोया रहने लगा दिल तेरे तसव्वुर में और कोई काम ना रह गया।

तुम्हारी तलब ऐसी लगी कि मेरी सारी की सारी दुनियाँ बदल गई,
हर पल हर घड़ी खुदा से दुआओं में तुझे ही मांगने दिल लग गया।

कट रही थी मेरी जिंदगी तन्हाइयों में तूने शहनाइयों से सजा दी,
चाहने लगे दिल-ओ-जान से ज्यादा जाने तू कैसा जादू कर गया।

तेरे बिना जिंदगी जीने की "एक सोच" कभी सोच भी नहीं सकती,
तेरा नाम दिल के साथ-साथ हाथों की लकीरों पर भी लिख गया। तुम्हारी तलब (ग़ज़ल) 

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DR. SANJU TRIPATHI

सब बदल गया (लघुकथा)

सूरज एक बहुत ही होनहार लड़का था वह अपने जीवन में डॉक्टर बन कर सब की सेवा करना चाहता था इसके लिए मैं दिन-रात मेहनत ही करता रहता था और पढ़ने में भी बहुत अच्छा था वह घर में सबसे बड़ा था उसकी एक बहन और एक छोटा भाई था वह अपने परिवार के साथ प्रेम पूर्वक खुशी खुशी रह रहा था।

परंतु नियति को कुछ और ही मंजूर था एक बार सपरिवार घूमने के लिए गए थे रास्ते में एक छोटे बच्चे को बचाने के चक्कर में उनकी गाड़ी एक ट्रक से टकरा गई बहुत ही भयंकर एक्सीडेंट हो गया जब सूरज को होश आया तब उसे पता चला कि उसके मां-बाप दोनों उस एक्सीडेंट में नहीं रहे उसकी छोटी बहन और भाई की जान बच गई थी सूरज पर मानो पहाड़ टूट पड़ा वह बुरी तरह से टूट गया परंतु छोटे भाई बहनों के लिए उसने हिम्मत जुटाई और फिर से जीना शुरु किया एक पल में सब कुछ बदल गया कहांँ हो डॉक्टरी की पढ़ाई करके एक डॉक्टर बनना चाहता था परंतु बड़ा भाई होने के नाते सारी जिम्मेदारी उस पर आ गई मांँ बाप के ना रहने पर उसने अपने भाई बहन को अच्छी परवरिश देने का निश्चय किया और अपना डॉक्टरी का सपना छोड़कर नई राह पकड़ ली। सब बदल गया (लघुकथा) 

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DR. SANJU TRIPATHI

जीवन और मृत्यु (चिंतन)

जन्म व मृत्यु का चक्र अन्य प्राकृतिक नियमों की तरह परमात्मा ने बनाया है। जन्म व मृत्यु की यह व्यवस्था सृष्टि की अटल व्यवस्था है। संसार में यह नियम काम कर रहा है कि जिसका जन्म व उत्पत्ति होती है उसकी मृत्यु व नाश अवश्य ही होता है। संसार में भौतिक पदार्थों से जो भी वस्तुयें बनी हैं, वह बनने के बाद से ही पुरानी व क्षीण होने लगती हैं और कुछ काल बाद वह नष्ट हो जाती हैं
मनुष्य का शरीर जड़ है और यह प्रकृति के परमाणुओं व कणों से बना हुआ है। शरीर को बनाने वाला परमात्मा है। जीवात्मा स्वयं अपने व दूसरों के शरीर की रचना नहीं कर सकते। हां, वह इस कार्य में सहायक हो सकते हैं। परमात्मा जीवात्माओं को सुख व उनके कर्मों का भोग कराने के लिये उनके पूर्व जन्म के कर्मानुसार शरीर को बनाते है। यदि पूर्वजन्म में हमने आधे से अधिक शुभ व पुण्य कर्म किये हैं तो जीवात्मा को मनुष्य का शरीर मिलता है अन्यथा पशु, पक्षी आदि प्राणियों के शरीर मिलतें हैं। मनुष्य योनि उभय योनि हैं जहां वह शुभाशुभ कर्म करने के साथ पूर्व किये हुए कर्मों का फल भी भोगता है जबकि सभी मनुष्येतर योनियों में जीवात्माओं को अपने कर्मों का भोग करना होता है। 
हमारा मानव शरीर पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश इन पंच भौतिक तत्वों से बना है। यह शरीर अमर नहीं हो सकता है। जीवन और मृत्यु शाश्वत सत्य है जिसे कोई भी बदल नहीं सकता है। जीवन और मृत्यु (चिंतन)

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#विशेषप्रतियोगिता

DR. SANJU TRIPATHI

प्रकृति की सुंदरता(कविता) #कोराकागज #collabwithकोराकागज #kkpc16 #विशेषप्रतियोगिता

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प्रकृति की सुंदरता (कविता)

सुबह सवेरे पूरब से जब किरणों संग सूर्योदय होता है,
लगता है वो दृश्य अति मनोहर, मन आनंदित होता है।

कहीं धूप,कहीं छांव निराली चारों ओर फैली हरियाली,
प्रकृति की सुंदरता को देख कर,मन प्रफुल्लित होता है।

कभी पतझड़ लाती, कभी बसंत,कभी गर्मी,कभी सर्दी,
हर मौसम की अपनी सुंदरता, हर रूप अनोखा होता है।

वन,नदियांँ,पर्वत और सागर गरिमा बढ़ाते हैं प्रकृति की,
अन्न,धन,जल व उर्जा का प्रकृति में भंडार भरा होता है।

पशु-पक्षी गाते हैं तितली और भंँवरे बागों में गुनगुनाते हैं,
कभी बादल,कभी नीला आसमान खूबसूरती बढ़ाता है।

प्रकृति की सुंदरता बचाने का हमको प्रयास करना होगा,
प्रकृति पर ही तो सभी जीवों का जीवन आश्रित होता है।


 प्रकृति की सुंदरता(कविता)

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