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Krish Vj
सब बदल गया:_ लघुकथा "सब कुछ बदल गया है तेरे जाने के बाद मैं तो अब मैं भी ना रही हूँ तेरे जाने के बाद अपनी हर आरज़ू को मैंने दफन किया तेरी जुदाई ने मेरे दिल को यह गम दिया " #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kkpc16 #अल्फाज_ए_कृष्णा #yqdidi रामगढ़ के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी रमा एक मेधावी, सुशील कन्या थी । उसका बचपन सभी सुख-सुविधाओं से संपन्न था । युवावस्था पूर्ण होने पर उसका विवाह शिक्षक विक्रम के साथ कर दिया । दोनों का दांपत्य जीवन सुख पूर्वक व्यतीत हो रहा था । कुछ समय पश्चात उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। रमा का परिवार सुख पूर्वक अपना जीवन जी रहा था । समय ने करवट बदली, एक हादसे ने रमा के पति की जीवन लीला समाप्त कर दी । रमा पर द
Krish Vj
चिंतन:_ जीवन और मृत्यु मानव जीवन कर्म पर आधारित है। जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है । जीवन और मृत्यु एक सिक्के के दो पहलू है, अर्थात "प्रारंभ और अंत" । जिसकी उत्पत्ति हुई है वह नष्ट अवश्य होगा। मानव जीवन नश्वर है, चिरकाल तक नहीं रहता । जिसके कर्म अच्छे हैं, वह सुख पूर्वक जीवन यापन करता है और जिसके कर्म धर्म और न्याय संगत नहीं है वह दुःख पूर्वक जीवन यापन करता । ईश्वर की प्रेम पूर्वक आराधना ही जीवन मरण के चक्र से हमें मुक्त करती हैं। #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #अल्फ
Krish Vj
आनन पर हैं सूरज की लाली माथे पर चँदा चमकता है आफ़ताब और माहताब के नगीनों से गला दमकता है प्रकृति रानी का भाल सुशोभित हिम-पर्वतो से होता है पैरों में शोभित होती वन उपवन की पायल छनकाती है खिले है रंग बिरंगे फूल ,खुशबू से अपनी मन महकाते है अनगिनत सुंदर पशु पक्षी, सुंदरता में चार चाँद लगाते है कल-कल नदियां बहती सागर उमड़ घुमड़ फिर आता है मेघराज मल्हार है गाते, वर्षा रानी का नृत्य फिर आता है कंचन सी काया दमकती, अनमोल हीरे-मोती सुहाते है जो निहारता सुंदरता इसकी नयन सुकून से भर आते हैं प्रकृति की सुन्दरता कविता आनन पर हैं सूरज की लाली माथे पर चँदा चमकता है आफ़ताब और माहताब के नगीनों से गला दमकता है प्रकृति रानी का भाल सुशोभित हिम-पर्वतो से होता है पैरों में शोभित होती वन उपवन की पायल छनकाती है
Krish Vj
हमें जुस्तजू सिर्फ़ तुम्हें अपना बनाने की तलब हैं सिर्फ़ इस दिल को तुम्हें पाने की मेरी चाहतों का यह सिलसिला तेरे लिए जैसे आसमान की चाहत है जमी के लिए तू मेरी नस-नस में इस कदर समाई है जैसे "सुमन' ने अपने में ख़ुशबू बसाई है चाँद की उपमा दूँ , आफ़ताब नाम रख दूँ तेरे पाँव तले मैं 'राधा' अपनी जान रख दूँ सुन! प्रिय, मेरी रूह की प्यास मिटा दे तू आकर के इक बार मुझे गले से लगा ले तू तलाब:_ ग़ज़ल #kkpc16 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #अल्फाज_ए_कृष्णा #yqdidi
ashutosh anjan
जीवन और मृत्यु(चिंतन) कैप्शन 👇 में पढ़े। जीवन और मृत्यु (चिंतन) -------------------------------------------------- प्रख्यात कवि श्री कुंवर नारायण जी की कविता के कुछ पंक्ति से मैं इस चिंतन की शुरुआत करना चाहूंगा कि- घर में रहेंगे, हमीं बने रहेंगे समय होगा, हम अचानक गुजर जाएंगे। अनर्गल जीवन ढोते किसी दिन हम एक आशय तक पहुँच सहसा बहुत थक जायेंगे।
ashutosh anjan
सब बदल गया(लघुकथा) कैप्शन में पढ़े👇 सब बदल गया (लघुकथा) ......…............................................... हाईवे पर काफी भीड़ जमा थी। शायद कोई दुर्घटना हो गई थी। सब मदद करने के स्थान पर फ़ोन से वीडियो बना रहे थे। सामने से इस ओर ही आ रही कार में बैठे पिता(सखराम अग्रवाल) शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी और उनकी विवाहित पुत्री(रमा) ने यह दृश्य देखा। रमा बोली-"चलिए पापा! देखें,क्या हुआ है?" सखराम ने अपनी पुत्री को घूरा और यह कहते हुए बात कांट दी औऱ कहा "हमें नहीं पड़ना इन पचड़ों में। हम बिजनेसमैन हैं और बिजनेस में प्रत्येक क्षण अत्यंत मू
ashutosh anjan
प्रकृति की सुंदरता(कविता) नीचे कैप्शन में पढ़े👇 हर धड़ के ऊपर चादर से लिपटा अनंत तक फैला मैं जो नीलापन हूँ हाँ मैं वही आकाश हूँ सर्वस्व अपनी गोद मे किए धारण वात्सल्य से भरी पल पल उजड़ती
अभिलाष सोनी
प्रकृति की सुन्दरता (कविता) अविरल बहती जल की धारा, कल कल करते झरने। स्वच्छंद नदी का अमृत जल है, तारीफ में क्या कहने। पौधों पे हैं पुष्प सुसज्जित, जैसे हीरों का ताज हो पहने। स्वच्छंद हवा का स्रोत है निर्मल, तारीफ में क्या कहने। चहुँओर प्रकृति में बसंत बहार, छाई है जैसे बदन पे गहने। मन को मोहे, दिल को छू ले, तारीफ में क्या कहने। पंछी करते है शोर मधुर, संगीत लगे कानों में बहने। मन भी जैसे झूम उठा हो, तारीफ में क्या कहने। स्वच्छ चाँदनी अम्बर से बिखरी, धरती लगी ये कहने। शीतल छाया, कोमल रोशनी, तारीफ में या कहने। प्रकृति की सुन्दरता (कविता) Pic Credit :- Pinterest अविरल बहती जल की धारा, कल कल करते झरने। स्वच्छंद नदी का अमृत जल है, तारीफ में क्या कहने। पौधों पे हैं पुष्प सुसज्जित, जैसे हीरों का ताज हो पहने। स्वच्छंद हवा का स्रोत है निर्मल, तारीफ में क्या कहने।
अभिलाष सोनी
जीवन और मृत्यु (चिंतन) जीवन और मृत्यु इस प्रकृति का शाश्वत सत्य है, अर्थात जिसने इस धरती पर जीवन लिया है एक निश्चित आयु उपरांत उसकी मृत्यु भी निश्चित है। परंतु आपको नहीं लगता कि मानव प्रकृति के इस शाश्वत सत्य के साथ हद से ज्यादा छेड़खानी कर रहा है। जीवन और मृत्यु प्रकृति के मूल और अंत है एवं इनसे छेड़खानी का मतलब ईश्वर की कृति को बदलना है और इसका खामियाजा एक न एक दिन मानव जाति को भुगतना ही होगा। हम अपनी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा अपने सुख, ऐश्वर्य, भोग, विलास के लिए आवश्यकता से अधिक प्राकृतिक साधनों का उपभोग कर रहे हैं, जो तीव्रता से समाप्त हो रहे हैं और निकट भविष्य में मानव जाति के लिये अनुपलब्ध होंगे। इसी प्रकार लगातार पेड़ों का विदोहन, नए पौधे न लगाना, जनसंख्या वृद्धि कुछ ऐसे प्रमुख कारण है जो एक न एक दिन मानव जाति और इस प्रकृति के विनाश का कारण अवश्य बनेंगे। निवेदन सिर्फ इतना है कि हम अपनी मूल आवश्यकताओं के अतिरिक्त किसी भी चीज का अत्यधिक दोहन न करें, जल संरक्षण करें, पौधरोपण करें, प्रकृति का संरक्षण करें, वैकल्पिक संसाधनों का उपभोग करें, जनसंख्या नियंत्रण करें एवं प्रकृति को स्वच्छ व सुंदर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान अवश्य दें। तभी हम प्रकृति द्वारा निर्धारित जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य को बरकरार रख सकते हैं अन्यथा शीघ्र विनाश की ज्वालामुखी देखने के लिए तैयार रहें। जीवन और मृत्यु (चिंतन) Pic Credit :- Pinterest जीवन और मृत्यु इस प्रकृति का शाश्वत सत्य है, अर्थात जिसने इस धरती पर जीवन लिया है एक निश्चित आयु उपरांत उसकी मृत्यु भी निश्चित है। परंतु आपको नहीं लगता कि मानव प्रकृति के इस शाश्वत सत्य के साथ हद से ज्यादा छेड़खानी कर रहा है। जीवन और मृत्यु प्रकृति के मूल और अंत है एवं इनसे छेड़खानी का मतलब ईश्वर की कृति को बदलना है और इसका खामियाजा एक न एक दिन मानव जाति को भुगतना ही होगा। हम अपनी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा अपने सुख, ऐश्वर्य, भोग, विलास के लिए
अभिलाष सोनी
हँस दे खिलखिला के, ओ मेरी जाने जाना। क्यूँ मुझसे रूठी रहती हो, मैं तेरा ही दीवाना। है बात ज़रा इतनी सी, मैं तुझको चाहता हूँ। इल्म तुझे होने न दिया, मेरे प्यार का फसाना। तुम्हारी तलब में जाना, है दिल बेक़रार कितना। मेरी बेक़रारी का आलम, है तुझको अब बताना। इंकार कभी ना करना, ना कभी तू रूठ जाना। दिल मायूस हो जाता है, मुश्किल है तुम्हें मनाना। कितनी बार करूँ मैं, गुजारिशें अपने इश्क़ की। मान भी जाओ दिलबर, मुश्किल है तुम्हें समझाना। तुम्हारी तलब (ग़ज़ल) Pic Credit :- Pinterest हँस दे खिलखिला के, ओ मेरी जाने जाना। क्यूँ मुझसे रूठी रहती हो, मैं तेरा ही दीवाना। है बात ज़रा इतनी सी, मैं तुझको चाहता हूँ। इल्म तुझे होने न दिया, मेरे प्यार का फसाना।