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ashutosh anjan

एब्रोड में हाल में ही शिफ़्ट हुए अपने बेटे-बहू से जी भर कर स्काइप पर बातचीत कर लेने के बाद मिसेज़ शर्मा( मिस्टर शर्मा को गुज़रे कोई 4-5साल हो गए थे) सोफे में धंस गईं।थोड़ी ही देर बाद उन्होंने कॉफ़ी बनाई और कॉफी की चुस्कियां लेते हुए कहा , “गज़ब की तरक्की की है टेलीकम्युनिकेशन ने. ….रियली इट्स ए रेव्यूलेशन ऑफ़ टेक्नोलॉजी….सो स्ट्रेंज !” धीरे धीरे समय बीतता गया अब मिसेज़ शर्मा के बेटे बहु का कॉल आना कम होता गया, महीनें में बमुश्किल 1 से 2 दफ़ा बात हो जाती थी, मिसेज़ शर्मा को भी अब एकाकीपन की आदत हो चुक

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ग़ज़ब सी दुनिया(लघुकथा)
कैप्शन में पढ़िए👇🏻 
एब्रोड में हाल में ही शिफ़्ट हुए अपने बेटे-बहू से जी भर कर स्काइप पर बातचीत कर लेने के बाद मिसेज़ शर्मा( मिस्टर शर्मा को गुज़रे कोई 4-5साल हो गए थे) सोफे में धंस  गईं।थोड़ी ही देर बाद उन्होंने कॉफ़ी बनाई और कॉफी की चुस्कियां लेते  हुए कहा , “गज़ब की तरक्की की है टेलीकम्युनिकेशन ने. ….रियली इट्स ए रेव्यूलेशन ऑफ़ टेक्नोलॉजी….सो स्ट्रेंज !”

धीरे धीरे समय बीतता गया अब मिसेज़ शर्मा के बेटे बहु का कॉल आना कम होता गया, महीनें में बमुश्किल 1 से 2 दफ़ा बात हो जाती थी,  मिसेज़ शर्मा को भी अब एकाकीपन की आदत हो चुक

ashutosh anjan

रूढ़िवादिता को समझने के लिए हमें सर्वप्रथम रूढ़िवाद का अर्थ समझना होगा, रूढ़िवाद का अर्थ है की "पुरातन काल से चली आ रही परंपरागत बातों को मानने का सिद्धांत"। अवधारणा के रूप में ‘‘रूढ़िवाद‘‘ का प्रयोग सर्वप्रथम 1910-1915 में किया गया था, जब अज्ञात लेखकों ने साहित्य के 12 खण्ड प्रकाशित किए जो ‘‘फंडामेंटल्स‘‘ कहलाए।  गांधीजी ने एक बार कहा था कि “अपने घर के खिड़की-दरवाजे कसकर बंद मत रखो, उन्हें उतना स्थान दो कि उनसे ताजी हवा आ सके।” यहाँ गांधी जी का अभिप्राय दरअसल परंपरा और आधुनिकता में समन्वय स्थाप

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रूढ़िवादिता (चिंतन)
लेख 👇🏻कैप्शन में पढ़े। रूढ़िवादिता को समझने के लिए हमें सर्वप्रथम रूढ़िवाद का अर्थ समझना होगा, रूढ़िवाद का अर्थ है की "पुरातन काल से चली आ रही परंपरागत बातों को मानने का सिद्धांत"।

अवधारणा के रूप में ‘‘रूढ़िवाद‘‘ का प्रयोग सर्वप्रथम 1910-1915 में किया गया था, जब अज्ञात लेखकों ने साहित्य के 12 खण्ड प्रकाशित किए जो ‘‘फंडामेंटल्स‘‘ कहलाए। 

गांधीजी ने एक बार कहा था कि 
“अपने घर के खिड़की-दरवाजे कसकर बंद मत रखो, उन्हें उतना स्थान दो कि उनसे ताजी हवा आ सके।” 
यहाँ गांधी जी का अभिप्राय दरअसल परंपरा और आधुनिकता में समन्वय स्थाप

ashutosh anjan

तन्हाइयों का आलम(ग़ज़ल)
गाँव की गलियों से ऊंची इमारतों के सफ़र पर चला,
सदीद धूप में  नर्म पाव लेकर ख़ुद के हुनर पर चला।
हर किसी ने मुझें बदलने की कोशिश बहुत की मग़र,
ऐतराज़ो की आँच सहकर भी ख़ुद के असर पर चला।
वक़्त से  सीखा है कि कुछ  भी देर तक नही ठहरता,
नज़र में खटका  जिनके अब  उन्ही के नज़र पर चला।
सुना था तेज़ तूफानों में बड़े  बड़े जहाज़  डूब जाते है,
मैं  ज़िंदगी के तूफ़ान में भी सर लिए जिगर पर चला।
तन्हाइयों का ये आलम अपना सा लगता है  'अंजान',
ख़ुद से  बेख़बर  होकर भी मैं हमेशा  ख़बर पर चला। #कोराकाग़ज़ 
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ashutosh anjan

ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त (कविता) इस आसान लगने वाले कठिन सफ़र में जब इक रोज़ थककर बैठा और खोली जीवन यात्रा की वो पोटली और निकाली सिलवट पड़ी ख़्वाहिशों की वो फ़ेहरिस्त क्या खोया क्या पाया

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इस आसान लगने वाले कठिन 
सफ़र में जब इक रोज़ थककर बैठा
और खोली जीवन यात्रा की वो
पोटली और निकाली सिलवट 
पड़ी ख़्वाहिशों की वो फ़ेहरिस्त
क्या खोया क्या पाया
की गणित में एक उम्र बीती
मग़र ख़्वाहिशों की गठरी भारी
हर कोई बात करता भीड़ की
मग़र मन मे मौजूद ख़्वाहिशों 
की भीड़ का क्या यहाँ वहाँ नज़र 
दौड़ जाए जहाँ उस छितिज तक बस
ख़्वाहिशें ही ख़्वाहिशें बिखरीं पड़ी है
अब अपनी दो हथेलियों से 
क्या छोड़ू क्या समेटु प्रश्न बड़ा है
स्वप्नों से यथार्थ का मैंने 
बस यहीं अर्थ गढ़ा है! ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त (कविता)

इस आसान लगने वाले कठिन 
सफ़र में जब इक रोज़ थककर बैठा
और खोली जीवन यात्रा की वो
पोटली और निकाली सिलवट 
पड़ी ख़्वाहिशों की वो फ़ेहरिस्त
क्या खोया क्या पाया

Dr Upama Singh

#कोरा काग़ज़ #Collabwith कोराकाग़ज़ #kkpc19 #विशेषप्रतियोगिता

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          “गज़ब सी दुनिया” (लघु कथा) 
कोरोना समय में मजदूर वर्ग अपने अपने शहर से अपने गांव का रुख करने लगे। इसी दौरान भीखू भी परिवार साथ गांव लौट आया। कुछ दिनों बाद जब कोरोना का प्रकोप शांत हुआ तो उसके फैक्ट्री के मालिक श्रीनिवास ने उसको एक दिन उसके गांव पर फोन किया बोला कि तुम फिर से काम पर आ जाओ। भीखू ने कहा मालिक पिछले लॉकडाउन में फैक्ट्री होने से खाने पीने की दिक्कत और गांव घर पहुंचने के लिए पैदल जाना अभी भूला नहीं हूं। श्रीनिवास ने कहा मैं भी तो नुकसान में हूं तुम तो गांव पहुंच चैन से थे लेकिन मेरी फैक्ट्री बंद होने से जो नुकसान हुआ है उसकी कोई भरपाई नहीं हो पाएगी मैंने अपनी एक बच्चे और पत्नी को खो दिया, तुम एक बार आ जाओ सब मिल कर एक बार फिर से शुरुआत करेंगें। भीकू ने कहा मेरे पास अब पैसे नहीं है श्रीनिवास ने कहा मैं तुम्हारी टिकट कटवा देता हूं और यहां आओ तुम्हें वैक्सीन भी लगवा दूंगा रहना खाना तुम्हारा मुफ्त रहेगा। भीखू खुशी से तैयार हो गया।
इस तरह आपने देखा कैसे कोरोना ने दुनिया को अजब गजब स्थिति में पहुंचा दिया कौन अपना कौन पराया पता चल गया मानवता है भी नहीं भी सब परिस्थिति पर निर्भर करता है वह री गज़ब सी दुनिया। #कोरा काग़ज़
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Dr Upama Singh

       “रूढ़िवादिता एक चिंतन
ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक विचाराधारा है जो पारंपरिक मान्यताओं का
अनुकरण करता है एक तरह से कुरीति ही है जिसका कोई तार्किक वैज्ञानिकता से कोई लेना देना नहीं होता। यह सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक समुच्चय है जो प्रचलित है। कितनी सारी स्त्रीयों की दहेज़ लड़कियां पैदा होने पर ही उन्हें  मार दिया जाता है। जिस में दहेज प्रथा, लिंग भेद, नारी शिक्षा, नारी सम्मान, और जाति व्यवस्था इत्यादि सभी सामाजिक बंधनों को तोड़ना है। जाति वर्ण, लिंग के आधार पर काम बांटना, लड़कियों के पढ़ाई नौकरी के बाद भी दहेज देना, विवाह बाद बेटी से काम ना करा कर बहू से करवाना इत्यादि बहुत सारी सामाजिक कुरीतियां हैं जिन्हें तोड़ना बहुत जरूरी है।  #कोराकाग़ज़ 
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#kkpc19 
#विशेषप्रतियोगिता

Dr Upama Singh

#kkpc19 #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकागज़ # विशेषप्रतियोगिता

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          “तन्हाई का आलम”
अपनी जिस्म और सांसों में बस का बन खुशबू
चाहूं तुझे इतनी शिद्दत से करूं प्यार बेइंतहा।

मैं अपनी हर सांस जिंदगी कर दूं बस तेरे नाम
तू भी चाहे मुझे ऐसे कुछ तो दिखा जज़्बात।

ताउम्र ओ बेखबर तू रहे मेरे खयालों में
कंधे पर रख सर ज़ुल्फ मैं तेरे संवार दूं।

चलो एक दुजे में खो एक दूसरे के हो जाएं
ऐसी रात ऐसे खयालात लगे पहली मुलाकात।

नींद टूटी ख़्वाब टूटे सारे सपने बिखरे
बेवफ़ाई का फासला टूटा दूरियां बढ़ती गईं।

तन्हाई के आलम में जीते गए  
जिंदगी का जहर हम पीते गए।। #kkpc19
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Dr Upama Singh

         ‘ख्वाइशों के फेहरिस्त’
ख्वाइशों के फेहरिस्त बचपन में थी छोटी सी
बस यही अरमान था मैं रहूं नन्हीं परी पिता की।

कच्ची उम्र से जब कुछ मैं आगे बढ़ी
चाहत थी बस अपनी मनमानी करने की
ख्वाइश थी दूर आसमां में पंख फैला उड़ने की।

टूटे मेरे ख्वाइश और सारे सपने जब आया जिंदगी मेरे किसी देश का राजकुमार
कतर दिए उसने पंख मेरे हौसलों के उड़ान का।

किसी के लिए बोझ थी किसी के लिए जिम्मेदारी सबने थमा दिया बस अपना निर्णय किया बस अपनी मनमानी। 

किसी ने ना सुनी मेरी एक बात
सबके हाथ की थी मैं एक कठपुतली।

सामाजिक बेड़ियों मैं जकड़ी एक लड़की थी
किसी पिता या पुरुष ने मेरे ख्वाइशों की फेहरिस्त ना समझी।।

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DR. SANJU TRIPATHI

तन्हाइयों का आलम

दिल की तन्हाइयों का आलम न पूछो मुझसे मेरे सनम,
कैसे गुजर रही है जिंदगी मेरी मुझसे ना पूछो मेरे बलम।

बीतते पल के साथ बेचैनी और बेकरारी बढ़ती जाती है,
तेरे साथ बिताए हर एक लम्हे की याद बहुत तड़पाती है।

तेरे इंतजार की घड़ियांँ पल-पल लंबी ही होती जाती हैं,
तेरे ख्यालों की खुमारी वक्त के साथ और बढ़ती जाती है

तेरे बिन एक लम्हा भी गुजारना मुश्किल है जान लो तुम
करवट बदल बदल कर अपनी सारी रातें बिताते हैं हम।

चाहत की हद से ज्यादा"एक सोच"ने तुम्हें प्यार किया है,
एतबार की हद से भी ज्यादा तुम पर एतबार किया है। #तन्हाइयोंकाआलम
#कोराकाग़ज़
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