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ika
दीप शांति का बुझा जा रहा, जाल भ्रांति का बुना जा रहा। अंधकार के इस कलियुग में कैसे अलख जगाऊँ मैं।। हर घर में अब रावण बैठा राम कहाँ से लाऊँ मैं। मजहब-मजहब शोर हो रहा, राजा-राजा चोर हो रहा। मृत हो चुके इस विषयुग में प्राण कहाँ से लाऊँ मैं।। हर घर में अब रावण बैठा राम कहाँ से लाऊँ मैं । भाई भाई अब लड़ा जा रहा, पाप धर्म से बढ़ा जा रहा। परमाणु के इस नव युग को कैसे शांत कराऊँ मैं।। हर घर में अब रावण बैठा राम कहाँ से लाऊँ मै । सत्य शराफ़त टूट रही है कुर्सी इज्जत लूट रही है राजनीति के इस युग को मर्यादा कैसे सिखाऊँ मैं हर घर में अब रावण बैठा राम कहाँ से लाऊँ मैं
Parnassian's Cafe
रात अंधेरी घना अंधेरा चाँद जमीं पर लाऊँ क्या। चूम के तेरे लबों को लब से हदें पार कर जाऊँ क्या।। रात अंधेरी घना अंधेरा चाँद जमीं पर लाऊँ क्या। चूम के तेरे लबों को लब से हदें पार कर जाऊँ क्या।। #रात #अंधेरी #घना #अंधेरा #चाँद #जमीं #पर #लाऊँ #क्या। #चूम #के #तेरे #लबों #को #लब #से #हदें #पार #कर #जाऊँ #क्या।।
मलंग
कैसे दीप जलाऊँ तुम बिन। कैसे दीवाली मनाऊं तुम बिन। तुम थे तो बिन दीप उजियारा था तुमने ही तो घर सवांरा था घर की रौनक के वो आधार स्तम्भ तुम्हीं थे इस अंकुरित बीज का वो प्रारंभ तुम्हीं थे अब वो भौर नही तुम बिन अब वो शोर नहीं तुम बिन कैसे दीप जलाऊँ तुम बिन। कैसे दीवाली मनाऊँ तुम बिन।। आज पास धन है पर मैं धनवान नहीं हूं आज पास सब है पर मैं बलवान नहीं हूँ छाँव देता वो वृक्ष कहाँ से लाऊँ खुशी देता वो पाँव कहाँ से लाऊँ अब कितने भी दीप जला लूँ ये अंधियारा ना मिटता तुम बिन कैसे दीप जलाऊँ तुम बिन। कैसे दिवाली मनाऊँ तुम बिन।। रचनाकार-बलवन्त सिंह रौतेला स० अ० (एल० टी०)
मलंग
कैसे दीप जलाऊँ तुम बिन। कैसे दीवाली मनाऊं तुम बिन। तुम थे तो बिन दीप उजियारा था तुमने ही तो घर सवांरा था घर की रौनक के वो आधार स्तम्भ तुम्हीं थे इस अंकुरित बीज का वो प्रारंभ तुम्हीं थे अब वो भौर नही तुम बिन अब वो शोर नहीं तुम बिन कैसे दीप जलाऊँ तुम बिन। कैसे दीवाली मनाऊँ तुम बिन।। आज पास धन है पर मैं धनवान नहीं हूं आज पास सब है पर मैं बलवान नहीं हूँ छाँव देता वो वृक्ष कहाँ से लाऊँ खुशी देता वो पाँव कहाँ से लाऊँ अब कितने भी दीप जला लूँ ये अंधियारा ना मिटता तुम बिन कैसे दीप जलाऊँ तुम बिन। कैसे दिवाली मनाऊँ तुम बिन।।
Prakash Dwivedi
उसको लिख सके वह कलम तो ले आया,पर लिखावट कहाँ से लाऊँ। जज्बात हजारों है मन में,पर शब्द कहां से लाऊँ ।। बीती हुई रात की वह शाम कहां से लाऊं। मेरे इश्क का हो नशा उसे भी ऐसा जाम कहां से लाऊं।। जो रूठ कर भी मेरे साथ चलती रहे, वो साथ कहां से लाऊं। जो भीगा दे पूरी तरह वह इश्क़ -ए-बरसात कहां से लाऊं।। जो उसको हो पसंद मुझमें वह बात कहां से लाऊं। जो वादा करके छोड़ न जाए वह हाथ कहां से लाऊं।। वह जिस पल के लिए मेरी थी वह वक्त कहां से लाऊं। जो हर पल के लिए मेरी हो वह शख्स कहां से लाऊं।। अर्धसत्य जो कहूं अगर तो,मैं प्रेम रोगी कहलाऊंगा।। शून्य अवस्था में पहुंचकर मैं योगी बन जाऊंगा कहाँ से लाऊँ ।। #कविता #कला #prakashdwivedi #prakashdwivedipoetry #kavita #shyari #kahani #thought #love #passion #poetry #sangeet #music
B.L Parihar
कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहा जाँऊ । अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहा से लाऊँ । दशरथ कौशल्या जैसे मातपिता अब भी मिल जाये, पर राम से पुत्र मिले ना जो आज्ञा ले वन जाये। भरत लखन से भाई को अब ढूंढ कहा से में लाऊँ। अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहा से लाऊँ । कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहा जाँऊ । अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहा से लाऊँ । जिसे समझते हो तुम अपना जड़े खोदता आज वहीं । रामायण की बाते जैसे लगती है सपना कोई। तब थी दासी एक मंथरा आज वही घर घर पाऊँ अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहा से लाऊँ । कलयुग बैठा मार कुंडली जाँऊ तो में कहा जाँऊ । अब हर घर मे रावण बैठा इतने राम कहा से लाऊँ । #kalyug
प्रीतम राज
सुनो, मैं चाँद कैसे लाऊँ,ये पता नही मुझे, हाँ पर उसी शेप का पिज्जा कैसा रहेगा ? क्या ख़याल है तुम्हारा, गर मैं गुलाब के बदले मैं उसी रंग की एक लिपिस्टिक ला दूँ वो तो पसंद है ना तुम्हें ! और कैसा रहेगा गर पास ही के एक दुकान से मैं काजल की डिबिया लाकर सजा दूँ तुम्हारी बड़ी बड़ी आँखों को, क्या गले से लगाओगे मुझे ? हाँ पर मैं चाँद कैसे लाऊँ, ये पता नही मुझे !
Narendra Kumar
भूल के कुछ यादें तेरी दिल को तेरा सुकूँ दे वो ग़ज़ल कहाँ से लाऊँ भूल के ग़ज़ल अपनी तेरी ग़ज़ल कैसे सजाऊँ दिल में उतार जाएं वो लफ़ज़ कहाँ से लाऊँ भूल के कुछ यादें तेरी, याद कैसे दिल में बसाऊँ mere alfaaz 💝💝💝💝 mere alfaaz 💝💝💝💝
अंकित शर्मा बेख़बर
RIP Sushma Swaraj बयां कर सकूँ मैं तेरे किरदार को ऐ सुषमा जी ऐसी हैसियत मैं कहाँ से लाऊँ , पूरी कर सके कोई खाली जगह तेरे जैसे पालनहार की ऐसी किसी शख्सियत को कहाँ से लाऊँ।। #ripsushmaji #post186 #अंकितशर्माबेख़बर सुषमा जी आप भारत का मान हो, भगवान आप की आत्मा को शान्ति दे, मेरी संवेदनाएं आपके परिवार के साथ है।।
सानू
इजाज़त मिलेगी तो ज़ुल्फें सजाऊँ, कहेगी हवा ग़र तो रुख मोड़ लाऊँ, सितारों से मेरा मिलना ही नहीं है, बता तू मैं कैसे उन्हें तोड़ लाऊँ, ज़माना गुज़ारा तिरे साथ मैंने, कहे भी तो कैसे तुझे भूल जाऊँ, खुदा तू बता अब रिश्ता हमारा, ज़माने को जाकर के क्या मैं बताऊँ। #IjazatMilegi #nojotoshayari