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Gopal Lal Bunker
रोटी ~~~~ भूख पेट की है आग बड़ी। बैठी है तन ज्यों सोन चड़ी।। जीव जगत को जो लगती है। पेट भरे से जो मिटती है।। ⚡✨⚡✨⚡ भूख लगी तो सब संसारी। करने लगे मेहनत भारी।। काम-धाम कर अर्थ कमाएं। लेकर दानें खाना खाएं।। ⚡✨⚡✨⚡ ( कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें ) @ गोपाल 'सौम्य सरल' दाल-भात या रोटी प्यारी। खाते हैं सब जन घरबारी।। रोटी सब्जी बहुत सुहाये। मय चटनी जी भर जाये।। ⚡✨⚡✨⚡ माँ रोटी में रस भरती है। स्वाद भोज में करती है।। दादी अपने हाथ खिलाती। सब बच्चों को बहुत सुहाती।। ⚡✨⚡✨⚡ रोटी घर की बहुत सुहाये। सभी पेट भर खाना खाये।। तोंद डकारें ले इठलाती। नींद बहुत फिर सबको आती।। ⚡✨⚡✨⚡ रोटी की आती है रंगत। जैसी हो तन मन की संगत।। मन होता है सबका वैसा। खाते हैं जो दाना जैसा।। ⚡✨⚡✨⚡ रोजी जैसी रोटी मिलती। रोटी जैसी काया फलती।। नीयत जैसी रोजी-रोटी। होती सद् या होती खोटी।। ⚡✨⚡✨⚡ प्राण जीव का है ये रोटी। इस खातिर है लूट खसोटी।। गिरा आदमी रोटी खातिर। लूटे सबको बनकर शातिर।। ⚡✨⚡✨⚡ नेक हृदय सब जन काम करो। नेक कमाई से नाम करो।। भूखे को तुम भोजन देना। छीन निवाला दोष न लेना।। ⚡✨⚡✨⚡ #रोटी #रोटीकीकीमत #रोटियाँ #चौपाई #कोराकाग़ज़ #glal #yqdidi [ चौपाई: 13/06/2022 ]~ ~~~~~~~~~~~~~~ रोटी ~~~~ भूख प
Dr Jayanti Pandey
स्वीकार करो या फिर प्रतिकार करो खुद पर तुम बस दोहरा न वार करो लड़ना है , तो द्रौपदी सा दृढ़ प्रण हो ना गांधारी जैसा अधूरा संसार करो। स्वाभिमान जगाओ ; तो सीता सा पहले अपना स्वयं सम्मान करो तुममें हैं कितनी क्षमताएं अद्भुत अपने सामर्थ्य का उत्थान करो। (पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें) स्वीकार करो या फिर प्रतिकार करो खुद पर ना दोहरा वार करो लड़ना है तो द्रौपदी सा दृढ़ प्रण लो ना गांधारी सा अधूरा संसार करो। स्वाभिमान जगाओ
Writer1
पाप और पुण्य ( चिंतन) ******************* अनुशीर्षक में पढ़ें 👇👇👇👇👇👇👇 5/30 16.04.2021 पाप और पुण्य ***************** परिभाषा: वैसे तो पाप और पुण्य की कोई परिभाषा नहीं है परंतु ग्रंथों और कर्मों से देखा जाए तो
Pratik Patil Patu
जीवनरंग..... जन्मापासून मृत्यूपर्यंत टप्प्याटप्प्याने बदलत जाणारे जीवन वरणीत करणारी सुंदर कविता लहानपणी आवडतात खारी यौवनात आवडतात पोरी तारुण्यात करतात नोकरी मग येते नवरी घर होतं भारी गाडी येते दारी त्यात छोटीशी परी आयुष्याची होते अर्धवा
PS T
कैप्शन में भणजो ! #सियाळा #YQRajasthani #CollabKakaSa #Collab #राजस्थानी_भासा_म्हारो_स्वाभिमान #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote KakaSa राजस्था
yogesh atmaram ambawale
जगात सर्वात सुंदर अमर प्रेम आईचे असते, कितीही दूर राहिले जरी मुलं, होता त्यांना काही त्रास पहिले आईला जाणवते, प्रेम करावे असे, जे न दिसले लोकांस तरी आपल्या मनात असावे, प्रेम हे अर्धांगिनी सारखे असावे, मनातील घालमेल न सांगता जाणावे. कितीही संकटे संसारी यावे न घाबरता पतीचे हात धरून सोबत उभे रहावे, सुप्रभात मित्र आणि मैत्रिणीनों सुंदर दिवसाची सुरुवात सुंदर विषयाने करुयात. आजचा विषय आहे प्रेम करावे असे... #प्रेमकरावेअसे चला तर मग लिहुया.
N S Yadav GoldMine
(शिव पुराण):- एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया, शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी उस तत्व को न जानते हुए भी इस प्रकार कहने लगे - मैं ही इस संसार को उत्पन्न करने वाला स्वयंभू, अजन्मा, एक मात्र ईश्वर , अनादी भक्ति, ब्रह्म घोर निरंजन आत्मा हूँ| {Bolo Ji Radhey Radhey} मैं ही प्रवृति उर निवृति का मूलाधार , सर्वलीन पूर्ण ब्रह्म हूँ | ब्रह्मा जी ऐसा की पर मुनि मंडली में विद्यमान विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की मेरी आज्ञा से तो तुम सृष्टी के रचियता बने हो, मेरा अनादर करके तुम अपने प्रभुत्व की बात कैसे कर रहे हो ? इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे और अपने पक्ष के समर्थन में शास्त्र वाक्य उद्घृत करने लगे| अंततः वेदों से पूछने का निर्णय हुआ तो स्वरुप धारण करके आये चारों वेदों ने क्रमशः अपना मत६ इस प्रकार प्रकट किया - ऋग्वेद- जिसके भीतर समस्त भूत निहित हैं तथा जिससे सब कुछ प्रवत्त होता है और जिसे परमात्व कहा जाता है, वह एक रूद्र रूप ही है | यजुर्वेद- जिसके द्वारा हम वेद भी प्रमाणित होते हैं तथा जो ईश्वर के संपूर्ण यज्ञों तथा योगों से भजन किया जाता है, सबका दृष्टा वह एक शिव ही हैं| सामवेद- जो समस्त संसारी जनों को भरमाता है, जिसे योगी जन ढूँढ़ते हैं, और जिसकी भांति से सारा संसार प्रकाशित होता है, वे एक त्र्यम्बक शिवजी ही हैं | अथर्ववेद- जिसकी भक्ति से साक्षात्कार होता है और जो सब या सुख - दुःख अतीत अनादी ब्रम्ह हैं, वे केवल एक शंकर जी ही हैं| विष्णु ने वेदों के इस कथन को प्रताप बताते हुए नित्य शिवा से रमण करने वाले, दिगंबर पीतवर्ण धूलि धूसरित प्रेम नाथ, कुवेटा धारी, सर्वा वेष्टित, वृपन वाही, निःसंग,शिवजी को पर ब्रम्ह मानने से इनकार कर दिया| ब्रम्हा-विष्णु विवाद को सुनकर ओंकार ने शिवजी की ज्योति, नित्य और सनातन परब्रम्ह बताया परन्तु फिर भी शिव माया से मोहित ब्रम्हा विष्णु की बुद्धि नहीं बदली | उस समय उन दोनों के मध्य आदि अंत रहित एक ऐसी विशाल ज्योति प्रकट हुई की उससे ब्रम्हा का पंचम सिर जलने लगा| इतने में त्रिशूलधारी नील-लोहित शिव वहां प्रकट हुए तो अज्ञानतावश ब्रम्हा उन्हें अपना पुत्र समझकर अपनी शरण में आने को कहने लगे| ब्रम्हा की संपूर्ण बातें सुनकर शिवजी अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने तत्काल भैरव को प्रकट कर उससे ब्रम्हा पर शासन करने का आदेश दिया| आज्ञा का पालन करते हुए भैरव ने अपनी बायीं ऊँगली के नखाग्र से ब्रम्हाजी का पंचम सिर काट डाला| भयभीत ब्रम्हा शत रुद्री का पाठ करते हुए शिवजी के शरण हुए|ब्रम्हा और विष्णु दोनों को सत्य की प्रतीति हो गयी और वे दोनों शिवजी की महिमा का गान करने लगे| यह देखकर शिवजी शांत हुए और उन दोनों को अभयदान दिया| इसके उपरान्त शिवजी ने उसके भीषण होने के कारण भैरव और काल को भी भयभीत करने वाला होने के कारण काल भैरव तथा भक्तों के पापों को तत्काल नष्ट करने वाला होने के कारण पाप भक्षक नाम देकर उसे काशीपुरी का अधिपति बना दिया | फिर कहा की भैरव तुम इन ब्रम्हा विष्णु को मानते हुए ब्रम्हा के कपाल को धारण करके इसी के आश्रय से भिक्षा वृति करते हुए वाराणसी में चले जाओ | वहां उस नगरी के प्रभाव से तुम ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे | शिवजी की आज्ञा से भैरव जी हाथ में कपाल लेकर ज्योंही काशी की ओर चले, ब्रम्ह हत्या उनके पीछे पीछे हो चली| विष्णु जी ने उनकी स्तुति करते हुए उनसे अपने को उनकी माया से मोहित न होने का वरदान माँगा | विष्णु जी ने ब्रम्ह हत्या के भैरव जी के पीछा करने की माया पूछना चाही तो ब्रम्ह हत्या ने बताया की वह तो अपने आप को पवित्र और मुक्त होने के लिए भैरव का अनुसरण कर रही है | भैरव जी ज्यों ही काशी पहुंचे त्यों ही उनके हाथ से चिमटा और कपाल छूटकर पृथ्वी पर गिर गया और तब से उस स्थान का नाम कपालमोचन तीर्थ पड़ गया | इस तीर्थ मैं जाकर सविधि पिंडदान और देव-पितृ-तर्पण करने से मनुष्य ब्रम्ह हत्या के पाप से निवृत हो जाता है.. By N S Yadav ... ©N S Yadav GoldMine #Dhanteras (शिव पुराण):- एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया, शिवजी की म
nisha Kharatshinde
संसारी ती नार जळतो उरी विस्तव झेलून रोज वार पेटून शांत होते संसारी ती नार नात्यात श्र्वास भरण्या ती मोगरा फुलविते ओवून फूल एक एक ती अंगणी सजविते त्या श्र्वासास छेडण्यास होई मोगरा अतूर हुंदक्यात रात्र दाटे का मोगरा मजबूर? ती पणती होऊन जळते अन् आस तेवते उरी या पंखास बळ देण्या रोज स्वप्नी येई परी ✍️निशा खरात/शिंदे ©nisha Kharatshinde संसारी ती नार
Parasram Arora
अगर तुम यह जानकर जी रहे हो कि यह सब एक दिन छिन जाएगा और इस छिनने में तुम्हे कोई पीड़ा होने की सम्भावना नही है.. तब तुम सन्यासी हो या वैरागी हो अगर तुम जंगल भाग गए और एक लंगोटी रखली पास और..... एक झोपडी बना ली और तुम्हे डर लगता है कि अगर ये छिनेगी तो मैं इसे छोड़ न पाऊंगा..... और ज़ब मौत आकर लंगोटी मांगेगी तो मेरे हाथ सरलता से खुलेंगे नही तो तुम वहा भी संसारी हो.... ©Parasram Arora सन्यासी और संसारी