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Niaz (Harf)
रख ले तू, अपना गुरूर अपने जेब में। हम तो मजबूर है इस घुँघरू के साथ। ©Niaz (Harf) रख ले तू, अपना गुरूर अपने जेब में। हम तो मजबूर है इस घुँघरू के साथ। #Niaz #nojoto #नोजोटॉफिल #nojotovideo #love #Life
Author kunal
रातों में चहकती चमकती जुगनू जैसी वो लड़की तमस को जीती हुई नायाब तुलु जैसी वो लड़की या'नी उसके इक दीद पे हि निसार हो जाए कोई भी यानी कह रहा परिजाद में गुल रु जैसी वो लड़की उसके आते हर फ़िजा हर मंजर गुलजार में तब्दील महकी महकी गुलाब की ख़ुशबू जैसी वो लड़की पल में हँसती पल में रो देती जज्बातों से लबरेज़ थोड़ी अल्हड़ थोड़ी पागल मजनूँ जैसी वो लड़की पांँव में पायल माथे पे चाँद की बिंदियाँ आए - हाए छन छन करती बहिशत की घुँघरू जैसी वो लड़की जबसे उसको लिखना चाहा तब से हि मुकम्मल हुँ मैं गोया के हसीन मआनी में उर्दू उर्दू जैसी वो लड़की ©Author kunal #Love #poet #chand #bond #gajal #kunu #viral #kunal
Technocrat Sanam
सब अदाओं से महफूज़..सनम तुम्हारा ये हुनर अच्छा है! मेरे कदम कुछ कांप रहे थे, आस पास लोग भी चुप चाप खड़े थे । सबकी आँखों में एक ही सवाल था.. "वह आवाज़ आखिर है किसकी?" रहा न गया तो बढ़ चला उस
Poonam Ritu Sen
मैं और तू मैं तुझे ख्वाबों सा सोचती , तू मुझे हकीकत सा मिल पाता.. ❤ Read full poetry in caption मैं और तू मैं तुझे ख्वाबों सा सोचती ,तू मुझे हकीकत सा मिल पाता.. ❤ मैं लहरों सी इठलाती, तू बादलो सा बलखाता मैं नदियों सी बहती, तू सागर सा स
Anchal Pandey
श्रृंगारदानी....... दर्पण तो सामने है, मगर आज उसमें चेहरा नहीं है। अपरिचित - सा जान उसको, प्रश्न उससे पूछता है। जो सदा पलकें झपकते, देती थी उत्तर सारे। आज लेकिन..... देखती है श्रृंगारदानी!! Give a read once.. 🌼 /Full poem in caption / ... शोर है चारों तरफ, पर फिर भी बैठा मौन कोई। सजल लोचन आज छलके.. अंजन शनै : बहा रहे हैं। सि
Poonam Suyal
गुलामी की बेड़ियाँ (अनुशीर्षक में पढ़ें) गुलामी की बेड़ियाँ ना डालो ख़ुद के पाँवों में तुम, गुलामी की बेड़ियाँ करो जो दिल करे तुम्हारा, ज़िंदगी जीने में ना करो तुम देरियाँ गुला
AK__Alfaaz..
चैत चढ़े उसकी देह के, समुंदर से निकली, वो आह की लहर, लबों के किनारों पर, जमकर खामोशियों का नमक, बन गयी, डूबती उम्मीदें उसकी, निरंतर प्रयासरत रहीं, तैरने को, हृदय के आवृत्ति की तरंग, शरद पूर्णिमा का चाँद बन, पुनः लातें रहे, उसके मन की, व्याकुलता के सागर मे, इक वृहद अतृप्ता का ज्वार, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #चींखती_पाज़ेब चैत चढ़े उसकी देह के, समुंदर से निकली, वो आह की लहर,
AK__Alfaaz..
इक, बरसती शाम पर, मन के, झरोखे से झाँकती वो, बैठी थी, उलझी लटों को सँवारने, यादों की इक, टूटी दंदों वाली कंघी से, कि तभी, वक्त की आँधी चली, उम्मीद की दहलीज पर टँगा, विश्वास का परदा, फटकर चीथड़े में लहराने लगा, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #सोलह_आने_स्त्री इक, बरसती शाम पर, मन के, झरोखे से झाँकती वो,
RiChA SiNgH SoMvAnShI
जब से गये तुम छोड़ कर, मधुभास भी आता नहीं, अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं। लिपटा है दर्पण धूल से, अौर अधखुली हैं वेणियाँ, है मौन धारे चूड़ियाँ और, लगती हैं नूपुर बेड़ियाँ, खिलती नहीं कलियाँ अधर, श्रृंगार भी भाता नहीं, अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं। मुखरित नीरवता हर दिशा, नि:शब्द लगता व्योम है, अतिरेक झंझावत बनकर, हृदय में लिपटा क्षोभ है, विस्मृत हुआ संगीत, कोकिल कंठ भी गाता नहीं, अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं। पवमान के स्पर्श से, सुगबुगा उठी फ़िर चेतना, रक्तकणिकाओं में केवल, बह रही है अति वेदना, मृतपाय जीवन, श्वास का भी भार सह पाता नहीं, अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं..।। "मधुभास-बसंत ऋतु"●"दल-दीठ-दोनों नेत्र" ● "वेणियाँ-चोटी (braid)" "नूपुर-घुँघरू(anklet)" ● "अधर-ओंठ" "नीरवता-ख़ामोशी" "अतिरेक = ज़रूरत से जादा(
RiChA SiNgH SoMvAnShI
जब से गये तुम छोड़ कर, मधुभास भी आता नहीं, अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं, लिपटा है दर्पण धूल से, अौर अधखुली हैं वेणियाँ, है मौन धारे चूड़ियाँ और लगतीं हैं ये नूपुर बेड़ियाँ, खिलती नहीं कलियाँ अधर, श्रृंगार भी भाता नहीं, अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं। मुखरित नीरवता हर दिशा, नि:शब्द लगता व्योम है, अतिरेक झंझावत बनकर हृदय में लिपटा क्षोभ है, विस्मृत हुआ संगीत, कोकिल कंठ भी गाता नहीं, अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं। पवमान के स्पर्श से, सुगबुगा उठी फ़िर चेतना, रक्तकणिकाओं में केवल, बह रही है अति वेदना, मृतपाय जीवन, श्वास का भी भार सह पाता नहीं, अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं..।। "मधुभास = बसंत ऋतु" "दल-दीठ = दोनों नेत्र" "वेणियाँ = चोटी (braid)" "नूपुर = घुँघरू(anklet) "अधर = ओंठ" "नीरवता = ख़ामोश विरक्ति शब्दहीनता