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Rakesh frnds4ever
जीवन के सभी सुखद दुखद क्षणों की मन में छपी और मस्तिष्क के चेतन अवचेतन हिस्से में सहेजी गई सभी स्मृतियां जब जिंदगी की मुश्किल परिस्थितियों ओर बदतर हालातों में अनायास ही आंखों के दृश्यपटल के सामने इक रंगमंच के रूप में एक साथ प्रसारित हो ,, छवि के रूप में उभरती हैं तो मानों जैसे आपकी खुद की विभिन्न स्थितियों में अच्छी, बुरी, बेकार ,दयालु,स्वार्थी,लोभी, निर्दयी,सहयोगी, मतलबी,एकाकी,,आदि सभी छवियों से आपको रूबरू करा देती हैं ©Rakesh frnds4ever #Chhavi #जीवन के सभी सुखद दुखद #क्षणों की मन में छपी और मस्तिष्क के #चेतन #अवचेतन हिस्से में सहेजी गई सभी #स्मृतियां जब जिंदगी की
rajkumar
जय श्री राधे कृष्णा ©rajkumar 🙏🌹जय जय श्रीराधे🌹🙏 श्रीमद्नित्यनिकुंजबिहारिण्यै नमः🌹🙏 जय जय श्रीराधा बल्लभ जय श्रीहरिवंश 🙏🌹श्रीहरीदास🌹🙏 हे सर्वव्यापक सदासच्चिदानंद भगवन्...
KP EDUCATION HD
KP GK EDUCATION HD video recording HD video recording HD video recording HD video ©KP EDUCATION HD आइए एआई-जनित सामग्री की दुनिया में उतरें और उन कानूनी नतीजों का पता लगाएं जो रचनात्मकता और धोखे के बीच पतली रेखा पर चलने वालों का इंतजार करत
ashutosh anjan
जीवन और मृत्यु(चिंतन) कैप्शन 👇 में पढ़े। जीवन और मृत्यु (चिंतन) -------------------------------------------------- प्रख्यात कवि श्री कुंवर नारायण जी की कविता के कुछ पंक्ति से मैं इस
दि कु पां
वक्त की कद्र करना सीख ले बंदे, वरना पछे तू पछतायेगा, जिस उम्र में मैं हूं, कल तू भी वहीं पहुंच जायेग.. गुमान ना आज पर कर, आज पीछे छूट जायेगा.. ये वक्त फिर खड़ा हो, तुझपे मुस्कुराएगा... वक्त की कद्र करना सीख ले बंदे वरना पछे तू पछतायेगा, जिस उम्र में मैं हूं, कल तू भी वहीं पहुंच जायेग.. गुमान ना आज पर कर, आज पीछे छूट जायेगा
AB
छाया हो या काल्पनिक प्रतिबिम्ब कुंतल यामिनी प्रभुता का शरण -बिम्ब, अनिमेष ही देखता रहूँ तुम्हें कनखी -कनखी पाट-पाट सकल तुम्हारे अरुण कोपल मलिन, स्मृति पाथेय तुम मेरी स्मृतियों में मधुप जैसे अनंत नीलिमा अनुरागिनी, कंजकली शोभा -श्री हो कदाचित,! Dedicating a #testimonial to Kavita chaudhary💚 प्रकृति ने जीवन खिलाया हो जैसे, सुरंग सुधियाँ सुहावनी, मृगतृष्णा नहीं यह है यथार्थ ही,
AK__Alfaaz..
अधखुले नैनों से, ताकती वो, पगडंडी की ऊँची ढ़लान से, उतरते सूरज को, व, तलाश रही है वो, अपने जीवन की, वास्तविकता का यथार्थ, और..श्वाँसों के आने जाने से, तय करती, उम्र का उपसंहार, उसकी पलकों मे बँधे मोती, अपनी स्थिरता की प्रस्तावना, करने में असमर्थ हो गये, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अनामिका अधखुले नैनों से, ताकती वो, पगडंडी की ऊँची ढ़लान से, उतरते सूरज को,
Aprasil mishra
"नारी अस्मितायें एवं सामाजिक सुरक्षा" एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर
Aprasil mishra
"नारी अस्मितायें एवं सामाजिक सुरक्षा" एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर