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Ankur tiwari
White निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं युवा हूं मैं भारत का युवा, बस डिग्री अपनी चूम रहा हूं सरकारों के वादे सुन सुन, दिल में उठती है बस टीस मन करता मिल जाए गर ये, रख दू इनको दे दस बीस नहीं किसी भी काम के हैं यह, सोच सोच कर माथा पीट रहा हूं निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं पिता के झुकता कंधे मेरे, रोज एक प्रश्न करते हैं मां की बुद्धि होती आंखें नित, केवल एक स्वप्न गढ़ते हैं उन प्रश्नों के उन सपनों के, लपटों में जलकर मैं भून रहा हूं निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं रिश्तेदार सब ताने देते हैं, उम्र ब्याह की निकल रही है साहस अब देखो टूट रहा है, धैर्य की डोर हाथों से फिसल रही है फिर भी भर्ती के फॉर्म भरकर,इधर-उधर परीक्षा देने में घूम रहा हूं निज सपनों की चिता जलकर, राख समेटे घूम रहा हूं युवा हूं मैं भारत का युव, बस डिग्री अपनी चूम रहा हूं @mr_master__sab ©Ankur tiwari #Moon निज सपनों की चिता जलाकर, राख समेटे घूम रहा हूं युवा हूं मैं भारत का युवा, बस डिग्री अपनी चूम रहा हूं सरकारों के वादे सुन सुन, दिल मे
kumar shivam hindustani
White स्वप्नों के लिए स्वप्न तोड़ रहे खुद से खुद का मन मोड़ रहे पंक्षी पंथी सब पड़े विराने में डगमग करते देह छोड़ रहे ..पर .. आकाश पवन में उड़ता देखा बाधाओं से भिड़ते देखा चिंगारी लिए जिगर में शमशीरों को लड़ते देखा उम्मीदों के सागर में जज्बातों के गागर में मिट्टी मिट्टी रोता जग आखों से मोती खोता खग घन तिमिर के काले वन में हिम्मत की मशाल जला उठा शस्त्र और उतर रण में मानव स्वप्न साकार करने चला ©kumar shivam hindustani स्वप्नों के लिए स्वप्न तोड़ रहे खुद से खुद का मन मोड़ रहे पंक्षी पंथी सब पड़े विराने में डगमग करते देह छोड़ रहे पर आकाश पवन में उड़ता देखा बाधाओ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
जनमत :- कुण्डलिया जनमत की बाते कभी , सुने नहीं थे आप । इसीलिए तो आपको , मिला आज संताप ।। मिला आज संताप , दोष ये रहा तुम्हारा । छोड़ रहे सब साथ , दलों का वारा न्यारा ।। ऊब गये थे लोग , देखकर तेरी हरकत । अब तुम देखो स्वप्न , मिले फिर हमको जनमत ।। जनमत का हक आपने , खाकर लिया डकार । कभी पलट बाँटा नही , जनता में वह प्यार ।। जनता में वह प्यार , न थी कोई मजबूरी । रखा स्वार्थ भर चाव , यही कारण है दूरी ।। और बताते आज , यहाँ पर हमको हिकमत । जाओ बाबू आप , फैसला है ये जनमत ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जनमत :- जनमत की बाते कभी , सुने नहीं थे आप । इसीलिए तो आपको , मिला आज संताप ।। मिला आज संताप , दोष ये रहा तुम्हारा ।
Ankur tiwari
Black कुछ जज्ज़ लिखें जज्बात लिखें हमने कुछ अपने हालत लिखें जो लिखा नही वो बस यह था ना तुमको अपने साथ लिखें डर था कि डर ना जाओ तुम बिन बात के न कुछ कर जाओ तुम एक बात से ही तुम रूठ गए इस बात से मर ना जाओ तुम इसलिए तो हमने छोड़ दिया हर रिश्ता नाता तोड़ दिया जीवन की जो मंज़िल तुम थे उस मंज़िल को ही छोड़ दिया जाओ अब जी लो खुल के तुम कुछ नए स्वप्न भी लेना बुन पर अबकी जिससे भी जुड़ना हो केवल दिल से ही जुड़ना तुम ©Ankur tiwari #Morning कुछ जज्ज़ लिखें जज्बात लिखें हमने कुछ अपने हालत लिखें जो लिखा नही वो बस यह था ना तुमको अपने साथ लिखें डर था कि डर ना जाओ तुम बि
Sagar Bangar
कसे विसरावे मी तुला तुझ्या नकळत तू पेरलेले स्वप्न जागे आहे माझ्या नकळत ✍️लेखन:-सागर बांगर ©Sagar Bangar #चारोळी ❤️🥰 कसे विसरावे मी तुला तुझ्या नकळत तू पेरलेले स्वप्न जागे आहे माझ्या नकळत❤️ लेखन:-सागर बांगर©® .
Santosh Jangam
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Vishnu Bhagwan दोहा :- कर्म रखो बस ध्यान तुम , सोचों मत परिणाम । देने वाला और है , तू कर अपना काम ।। कुण्डलिया:- जाने कैसे कर्म थे , भुगत रहे परिणाम । करता हूँ अरदास अब , मिले मुझे आराम ।। मिले मुझे आराम , कृपा अब रघुवर कीजै । सह जाऊँ मैं पीर , और अब साहस दीजै ।। विनय प्रखर की आज , सुना रघुनंदन माने । स्वप्न दिखाया दास , छोड़ अब हम सब जाने ।। २९/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- कर्म रखो बस ध्यान तुम , सोचों मत परिणाम । देने वाला और है , तू कर अपना काम ।। कुण्डलिया:- जाने कैसे कर्म थे , भुगत रहे परिणाम । क
मुसाफिर
इन चिड़ियों के आसमां को अपना क्या कहें। ढूंढ़ता मैं अपने स्वप्न के जहा को मैं स्वयं को भूलते जा रहा हूं। ©मुसाफिर #स्वप्न
Dk Patil