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Brandavan Bairagi "krishna"
साहित्य सृजन परिषद गाडरवारा की मासिक काव्य में पधारे कविगण।
राघव_रमण (R.J)..
कविता कहानी अपनी जुबानी गजल गीत शब्दों की है रवानी।। मनोभाव अपने समेटे चली वो कलम स्याही के रंगों में घुली वो कभी कुछ बड़ी संरचना बनाती कभी छोटे - छोटे रूपों में ढली वो अक्षरों के सहारे है जिसकी जवानी गजल गीत शब्दों की है रवानी कविता कहानी अपनी जुबानी।। ©राघव रमण 28/11/19 कविता कहानी अपनी जुबानी गजल गीत शब्दों की है रवानी।। मनोभाव अपने समेटे चली वो कलम स्याही के रंगों में घुली वो कभी कुछ बड़ी संरचना बनाती कभ
Juhi Grover
रंग बिरंगे हमारे सपनों जैसी रंग बिरंगी कविताएँ, सपनों के पूरा न होने पर भी मार्ग नया दिखाएँ। कभी प्रात: रवि सी तेजस्वी बन प्रज्वलित कराएँ, कभी निशा की कालिमा खून के आँसू रुला जाएँ, कभी जीवन के उलझे बिखरे एहसास लिख जाएँ, कभी मृत्यु बन कर के यादों की रंगत बिखेर जाएँ। कभी मिलन की चाहत का रंग बन के मुस्का जाएँ, कभी 'शिव कुमार बटालवी' के दर्द सी चुभ जाएँ, कभी 'पाश' की कविता बन क्रांतिकारी बना जाएँ, कभी 'सुभद्रा कुमारी' जैसी निडर साहसी बन जाएँ। कभी वन्दे मातरम् बन कर स्वतन्त्र भाव जगा जाएँ, कभी जन गण मन बन के तिरंगा झंडा लहरा जाएँ, कभी ज़िन्दादिल शहादत बन गौरवान्वित कराएँ, कभी जीते जी अनोखा अद्भुत इतिहास रच जाएँ। सुकून, बेेचैनी, भय, खुशी, गम को अल्फाज़ बनाएँ, भाव निर्मित अल्फाज़ यहीं कविता बन कर इतराएँ, सपने बेचती हैं ये रंग बिरंगे एहसासों की कविताएँ, साहित्य सृजन का रूप मान पढ़ी जाती हैं कविताएँ। रंग बिरंगे हमारे सपनों जैसी रंग बिरंगी कविताएँ, सपनों के पूरा न होने पर भी मार्ग नया दिखाएँ। रंग बिरंगे हमारे सपनों जैसी रंग बिरंगी कविताएँ, सपनों के पूरा न होने पर भी मार्ग नया दिखाएँ। कभी प्रात: रवि सी तेजस्वी बन प्रज्वलित
Vibha Katare
काली अंधेरी रात का सफर, शहर से दूर वियाबान जंगल के बीच से जाती सड़क, तेज आंधी और तूफान, अचानक बिगड़ गई मेरी कार, अब, मैं , मेरी कार, तेज बारिश , घना जंगल और ऊदबिलावों की आवाज़.. कुछ कदम जब मैं चली, आगे एक पुरानी हवेली दिखी.. हवेली से किसी के कदमों की आवाज़ आना, कम्बल में खुद को लपेटे उस परछाईं का मेरी तरफ आना, फिर अपने काँपते बूढ़े हाथों से लालटेन जलाना.. उफ़ !! ये ख़ौफ़नाक कल्पनाएँ.. अब मेरे कमरे की खिड़की से सटी अधबनी इमारत में भूत दिखना ही बाकी है मुझे। विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा।
S. Bhaskar
बस बंद कर अब मन्द जन को स्वाभिमान सीखाना, बंद कर अब अंधेरे रास्तों में लालटेन जलाना। यहां लोगों में दासता का ही राग विद्यमान है, यहां दिखता चाटुकारिता का ही प्रमाण है, जो मिट्टी को सोना व राख को भी बनाते महान है, ये तो बिना तरकश के बिकते हुए कमान है, छोड़ दे अब इनकी तू अस्मत को बचाना, बस बंद कर अंधेरे को लालटेन जलाना। इन जड़ बुद्धि ने खुद को गुलामी में जकड़ रखा है, यहां बस मूक मुखड़ा और लंबी जबान कर रखा है, ये ना सुधरेंगे हमने इनको करीब से परखा है, गुलामी की जंजीरें इनके प्रिय मित्र और सखा है, बस छोड़ दे ये नहीं चाहते सही रास्ते पर आना, बंद कर अंधेरे रास्तों में लालटेन जलाना। तू खुद अपनी नजरों में गिरता चला जाएगा, पर इनमें कोई खास अंतर ना ला पाएगा, चंद पल तो सुधरेंगे फिर वही कहानी तू दोहराएगा, तेरे अकेले से कभी बदलाव सामने नहीं आएगा, तू बस बंद कर इन मूक लोगों को अमूक बनाना, बस बंद कर लोगों के खातिर अंधेरे में लालटेन जलाना। विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा।
_Ankahe_Alfaaz__
दुनिया में उजाला फेहलाना , क्या इतना आसान है ऐ दोस्त , तो अक्सर उस गरीब के झोपड़े में अँधेरा और उस अमीर के बंगले में रोशनी क्यों होती है जो अपनी तनख्वा दारु में उड़ा देता है , उन लोगो तक ये रोशनी क्यों नहीं पहुँच पाती जो उस रोशनी से अपने जीवन को रोशन करना चाहते है । विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा।
Divyanshu Pathak
फ़ागुन कौ मतवारो मौसम मन में पँख लगाइ रह्यो है कितनी दूर रहै तू छोरी तुझको आज बुलाय रह्यौ है ! जबसे सुनि लई तेरी बोली मन मेरौ कटराय रह्यौ है ! तेइ मोटी मोटी आँख को भौंरा मेरी धुक धुक को खटकाय रह्यौ है ! बंसी वारे अब का होगो कछु मेरी समझ न आइ रह्यौ है तू राधा कौ तेरी राधे कछु ऐसौ ही मोय भाय गयौ है ! 💕😊#मातृभाषादिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको । घर में बने हुए भोजन का स्वाद बहुत ख़ास होता है ना ठीक उतनी ही ख़ासियत अपनी मातृभाषा की होती है।एक
Anjali Parihar
"अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे।" - मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद जी ने सरकारी सेवा करते हुए कहानी लिखना आरम्भ किया, तब उन्होंने नवाब राय नाम अपनाया। बहुत से मित्र उन्हें जीवन-पर्यन्त नवाब के नाम
Aprasil mishra
"कृष्ण जीवन में राधा और रुक्मिणी तुलनात्मक साहित्य : एक कलंक" हमारे समाज के नायकों के अतीतीय जीवन वृत्तान्तों को साहित्य अथवा लेखन जगत उनके वास्तविक व गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अथवा मूल अध